हिमंत बिस्वा पर लगा दांव, भाजपा को पहुंचेगा '2024 में फायदा'!

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हिमंत बिस्वा पर लगा दांव, भाजपा को पहुंचेगा '2024 में फायदा'!

  • पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार, व कोरोना में केंद्र के पूरी तरह फेल हो जाने को लेकर, 2024 के बारे में भी कई विश्लेषण किए जा रहे थे! 
  • भाजपा हिमंत बिस्वा सरमा की क्षमता और महत्वाकांक्षाओं दोनों को जानती है
  • मध्य प्रदेश के बाद राजस्थान जैसे राज्यों में कांग्रेस में गहराई से सेंध लगाने का भाजपा ने क्लियर मैसेज दिया है

BJP Strategy in North East, Himanta Biswa Sarma elected Assam Chief Minister

लेखकमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 9 May 2021 (Last Update: 9 May 2021, 6:12 PM IST)

औपचारिक घोषणा से पहले इसकी उम्मीद बहुत कम विश्लेषक कर पा रहे थे कि पूर्वोत्तर में बेहद लोकप्रिय नेता होने के बावजूद, असम में भारतीय जनता पार्टी का 'संकट मोचक' होने के बावजूद, ना केवल असम - बल्कि पूरे पूर्वोत्तर के राज्यों में भाजपा का झंडा मजबूत करने के बावजूद, हिमंत बिस्वा सरमा को असम की गद्दी भाजपा इतनी आसानी से दे देगी!

लोग यह कयास जरूर लगा रहे थे, किंतु पूर्व सीएम सर्वानंद सोनोवाल को पुनः गद्दी मिलने की संभावना कहीं ज्यादा जताई जा रही थी. तमाम कारणों में अगर, इसका सबसे मजबूत सिर्फ एक कारण गिनाया जाता तो, वह यह था कि हेमंत के मुकाबले सोनोवाल भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के कहीं ज्यादा वफादार थे, अपेक्षाकृत कम महत्वाकांक्षी भी थे. 

इसीलिए कोई दावे से यह कह पाने में सक्षम नहीं था कि हिमंत बिस्वा सरमा को गद्दी मिल ही जाएगी!
पर यह सब बड़ी आसानी से हो गया और जाहिर तौर पर केंद्रीय नेतृत्व की सहमति के बिना सोनोवाल इतनी आसानी से अपनी गद्दी नहीं छोड़ते, वह भी तब - जब उनकी खुद की भी निर्विवाद छवि रही है और 5 साल तक असम को उन्होंने ठीक ढंग से चलाया है.

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पर मामला इससे कहीं अधिक गहरा था!

पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार के बाद राष्ट्रीय मीडिया में तो तूफान मचा ही हुआ था, साथ ही नरेंद्र मोदी सरकार पर जबरदस्त ढंग से ना केवल राष्ट्रीय, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर टीका टिप्पणी हो रही थी.
ऐसे में सोनोवाल के बारे में कहीं ना कहीं यह मैसेज जा रहा था कि वह केंद्रीय नेतृत्व के साए में हैं, और पीएम मोदी के करीबी भी हैं.

पश्चिम बंगाल में भाजपा की हार को लेकर, और कोरोना संकट में केंद्रीय प्रबंधन के पूरी तरह फेल हो जाने को लेकर, 2024 के बारे में भी कई विश्लेषण किए जा रहे थे कि ब्रांड मोदी को कहीं ना कहीं अच्छा खासा नुकसान पहुंचा है, जिसे बेहद मेहनत से गढ़ा गया था.

अगर इसे संघ-भाजपा का थिंक टैंक भी महसूस कर रहा था, तो उसे 2024 में मोदी की मजबूती के लिए खुले दिल से कार्य करने की ज़रुरत थी. उसके लिए ऐसे सपोर्टरों की ज़रुरत थी, जो 2024 में भगवा झंडे को, केंद्र में मजबूत ढंग से गाड़े रखने में 'ब्रांड मोदी' के बिना भी सक्षम हों!

असम में 14, त्रिपुरा में 2, नागालैंड और मिजोरम में 1-1, मणिपुर में 2, अरुणाचल में 2, कुल 22 सीटों पर हिमंत सीधा प्रभाव डाल सकते हैं. साथ ही वह अपनी अपील दूसरे स्टेट्स में भी बढ़ाएंगे, उनका विश्लेषण करने पर यह साफ पता चलता है.
आखिर 2024 में स्पष्ट बहुमत के लिए एक-एक सीटों की अहमियत बढ़ सकती है, इस बात से शायद ही कोई विश्लेषक इंकार कर पाए!

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हिमंत बिस्वा सरमा इस बिसात पर सबसे मुफ़ीद हैं, इस बात से शायद ही कोई इंकार करे.

पूर्व सीएम सोनोवाल के असम के पुनः मुख्यमंत्री बनने की स्थिति में कहीं ना कहीं राज्य में गुटबाजी होती, साथ ही पूर्वोत्तर राज्यों पर से भी भाजपा की पकड़ ढीली होती. आखिर बेहद मजबूती होने के बावजूद सरमा, नंबर 2 पर पूरे मनोयोग से कार्य ही क्यों करते?

ऐसे में हिमंत बिस्वा सरमा को असम का मुख्यमंत्री बनाकर 2024 लोकसभा के लिए भाजपा ने भारत के एक हिस्से को अपने पाले में करने का दांव चला है. इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिमंत बिस्वा सरमा अपने आप में छत्रप हैं.
कांग्रेस की तरुण गोगोई सरकार में भी वह नंबर दो की पोजीशन पर ही थे, और मुख्यमंत्री बनने का सपना संजोए थे, किंतु जब असम के सीएम तरुण गोगोई ने अपने पुत्र, गौरव गोगोई को राजनीति में बढ़ाना शुरू किया, तब हिमंत ने कांग्रेस छोड़ने में देर नहीं लगाई!

हालांकि इससे पहले उन्होंने कांग्रेसी नेतृत्व राहुल गांधी से मिलकर, ज़रूरी प्रोटोकॉल जरूर फॉलो किया था.

बाद में मीडिया में राहुल गांधी की गंभीरता को लेकर उनकी नाराजगी सामने आई. हिमंत बिस्वा सरमा ने साफ़ कहा कि जब वह असम की समस्या पर राहुल गांधी से चर्चा करने दिल्ली गए थे, तब राहुल गांधी अपने कुत्ते को बिस्किट खिला रहे थे!

खैर राहुल गांधी की 'राजनीतिक गंभीरता' अपने आप में ही एक 'राष्ट्रीय मुद्दा' है!!

कोरोना महामारी की सेकंड वेव में, जब भारत में लाशों का ढेर लग गया है, तब राहुल गांधी ट्वीट करके मोदी सरकार पर हमला कर रहे हैं, पर शायद उन्हें पता नहीं है कि असली विपक्ष की भूमिका के लिए उनके सांसदों की संख्या 44 की बजाय कम से कम 144 रहती तो, शायद लोगों के हक़ के लिए वह बेहतर ढंग से, मजबूत आवाज़ उठा पाते!


ऐसे में कोरोना के कारण मरते लोगों का अगर दोष केंद्र की मोदी सरकार पर लग रहा है तो आधा दोष राहुल गांधी द्वारा 'कुत्ते को बिस्किट' खिलाने को भी क्यों नहीं दिया जाना चाहिए?

संदर्भ से हटकर राहुल गाँधी से सम्बंधित एक हालिया प्रसंग याद आया.
अभी पिछले दिनों राष्ट्रीय लोक दल के नेता चौधरी अजीत सिंह का निधन हुआ और तमाम नेताओं ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. राहुल गांधी ने भी श्रद्धांजलि ट्वीट किया, पर उन्होंने स्वर्गीय चौधरी अजीत सिंह जी का जो फोटो अपने ट्विटर अकाउंट पर श्रद्धांजलि संदेश में लगाया था, उस तस्वीर की क्वालिटी बेहद ख़राब थी, टेक्निकल लैंग्वेज में बोलें, तो वह पिक्सेलेट हो रही थी.
कोई इसे हल्का मुद्दा बेशक माने, पर व्यक्तिगत रूप से मुझे बहुत निराशा हुई. चूंकि मैं तकनीकी फील्ड से भी जुड़ा हुआ हूं, इसलिए सोचा कि इतना बड़ा राष्ट्रीय नेता इतनी छोटी बातें भी अगर गंभीरता से नहीं ले सकता तो उसकी राजनीतिक-समझ पर क्या ही टीका-टिप्पणी की जाए!

अगर उनकी राजनीतिक गंभीरता होती तो हिमंत ही क्यों, मध्य प्रदेश में भी कांग्रेस की सरकार गिरती नहीं, जिसे जनता ने जनादेश दिया था. संभवतः ज्योतिरादित्य भी जब उनसे एमपी पर चर्चा करने गए होंगे, तब क्या पता वह बिल्ली कोई दूध पिला रहे होंगे!
राजस्थान में भी सचिन पायलट की बगावत ठंडी नहीं हुई है, यह बात भला कौन नहीं जानता है!

खैर! राहुल गांधी की गंभीरता, असम में एक ऐसा मुद्दा थी, जिसके कारण हिमंत बिस्वा सरमा कांग्रेस से, भाजपा में आ गए.

BJP Strategy in North East, Himanta Biswa Sarma Elected Chief Minister of Assam

भाजपा भी हिमंत बिस्वा की क्षमता और महत्वाकांक्षाओं दोनों को जानती थी, इसीलिए पहली बार उन्हें असम में महत्वपूर्ण पोर्टफोलियो तो जरूर दिए गए, किंतु सीएम पद की कमान उन्हें नहीं सौंपी गयी.
पर इस बार भाजपा के सामने 2024 का यक्ष प्रश्न था, और हिमंत बिस्वा सरमा ने भी सीएम पद के लिए पूरा जोर भी लगाया. खबरों के अनुसार भाजपा के 75 विधायक जीते हैं, और उसमें 45 विधायकों ने सीधे तौर पर हिमंत बिस्वा सरमा का समर्थन किया. ज़ाहिर तौर पर विधायक दल में हिमंत का बहुमत था, पर भाजपा के केंद्रीय कमान से भी काफी कुछ चीजें तय होती हैं, खासकर मोदी-शाह युग में!
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अगर 2024 का गणित नहीं होता, तो हिमंत बिस्वा सरमा को और इन्तजार के लिए कहा जाता, इस बात की पूरी संभावना थी, वह भी तब जब भाजपा के हाथ में 'सोनोवाल' जैसा कम महत्वाकांक्षी और वफादार पत्ता हाथ में था.

पर यही तो राजनीति है! 
तमाम अंतर विरोधों के बावजूद, बेहतरीन योग्यता को आगे बढ़ाना, न केवल सक्षम नेतृत्व का कर्तव्य है, बल्कि राज्य एवं देश के प्रति उसकी जवाबदेही भी है. जब सक्षम नेतृत्व आगे नहीं बढ़ता है, तो कहीं ना कहीं समाज को उतना लाभ नहीं मिल पाता है, जितना उसे मिलना चाहिए. कई बार तो उसे नुकसान भी होता है.
हिमंत बिस्वा सरमा के भीतर जबरदस्त कैलीबर है, जो उन्होंने बार-बार साबित भी किया है.

आखिर इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि जहाँ एक पार्टी छोड़ने के बाद लोगों की हस्ती मिट जाती है, वहीं असम में कांग्रेस जैसी मजबूत पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में, बेहद कम समय में उन्होंने न केवल अपना वर्चस्व जमाया, बल्कि 7 वर्ष से भी कम समय में दूसरी पार्टी से राज्य में चीफ मिनिस्टर भी बन गए.

खैर! देश भर में भाजपा के पोर्टफोलियो में इस समय एक से बढ़कर एक नेतृत्व मौजूद है, जिसमें हिमंत बिस्वा सरमा का नाम भी मजबूती से जुड़ गया है. आने वाले दशकों  में, केंद्र में भी अगर वह बड़ी भूमिका में नजर आ जाएँ, तो इसमें शायद ही किसी को आश्चर्य हो!

देखा जाए तो असम के पूर्व सीएम सर्वानंद भी योग्य व्यक्ति हैं, और आने वाले दिनों में उनकी प्रतिभा को भाजपा बेकार नहीं करना चाहेगी. हिमंत को फ्री हैण्ड देने के बाद, राज्य में सर्वानंद की भूमिका कुछ खास रहने की संभावना नहीं होगी, क्योंकि इससे गुटबाजी बढ़ेगी. ऐसे में संभवतः मोदी मंत्रिमंडल के अगले विस्तार में उन्हें केंद्र में शिफ्ट करने की योजना भी क्रियान्वित हो सकती है.
पर यह बात क्लियर है कि 2024 के आम चुनाव तक, हिमंत बिस्वा सरमा को पूर्वोत्तर में फ्री हैंड मिलेगा ही मिलेगा!


वैसे दूर की सोचा जाए तो भाजपा ने एक तीर से कई निशाने साधे हैं, और इसमें एक निशाना यह भी है कि मध्य प्रदेश में जिस तरह से सिंधिया भाजपा में सम्मिलित हुए, और भाजपा ने वहां सरकार बनाई, तो असम में हिमंत बिस्वा सरमा को चीफ मिनिस्टर का पद तक दे दिया.

ऐसे में राजस्थान में भी भाजपा की सेंध लगाने की पूरी तैयारी जगजाहिर है. वहां सचिन पायलट जैसे योग्य युवा नेताओं का दिल, हिमंत बिस्वा सरमा की ताजपोशी देखकर अवश्य ही ललचा रहा होगा. कांग्रेस पार्टी जहां योग्यता की अनदेखी कर रही है, कई बार उनका अपमान करके उन्हें पार्टी से जाने दे रही है, तो भारतीय जनता पार्टी नई पीढ़ी के युवा और सक्षम नेताओं को न केवल आगे बढ़ा रही है, बल्कि उन्हें संतुलित रूप से फ्री हैण्ड भी दे रही है, यह अपने आप में आने वाली राजनीति का बड़ा संकेत है.

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