अस्पताल में मारपीट करने और डॉक्टर से उलझने पर क्या कहता है कानून?

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अस्पताल में मारपीट करने और डॉक्टर से उलझने पर क्या कहता है कानून?

  • डॉक्टर्स सहित मेडिकल स्टाफ कोरोना के दौर में भारी दबाव का सामना कर रहा है.
  • एपिडेमिक डिजीज एक्ट 1897 सहित कई कानून करते हैं मेडिकल इंडस्ट्री के अधिकारों की रक्षा
  • डॉक्टर्स पर अटैक करने से आप 10 साल के लिए जेल में जा सकते हैं, साथ ही 10 लाख तक का जुर्माना आपको देना पड़ सकता है.



लेखक: मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली 
Published on 28 April 2021 (Last Update: 28 April 2021, 10:21 AM IST)

वर्तमान समय में हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर (Health infrastructure in India) के ऊपर आया संकट संभवतः सबसे बड़ा संकट है.
इस वक्त अस्पताल और उसके कर्मचारी चौतरफा दबाव का सामना कर रहे हैं. इतनी अधिक मात्रा में कोविड-19 के मरीज उनके पास आ रहे हैं कि उनको एडमिट कहां करें, और उनको किस प्रकार फैसिलिटी दें, इस पर तमाम अस्पताल विवश हो गए हैं.
कहीं दवाइयों की कमी है, तो कहीं ऑक्सीजन की कमी है, तो कहीं से उनके ऊपर राजनीतिक दबाव आ रहा है, प्रशासनिक दबाव आ रहा है, तो मामला बिगड़ने पर मरीजों के परिजन उन पर हमले तक कर रहे हैं. ऐसी स्थिति में कोरोना वारियर्स के नाम से सम्मानित किए जाने वाले डॉक्टर खौफ में आ जा रहे हैं (Corona Warriors in Crisis).


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हमारे देश में वैसे भी कई लोगों को कानून की काफी कम जानकारी होती है.
ऐसी स्थिति में सभी को यह जान लेना चाहिए कि अस्पताल में किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ करने या फिर डॉक्टर या दूसरे हॉस्पिटल स्टाफ से मारपीट करने पर कड़ी सजा देने का कानून पहले से मौजूद है.

हेल्थ केयर सर्विस पर्सनल एंड क्लिनिकल एस्टेब्लिशमेंट एक्ट (Healthcare Service Personel and Clinical Establishment Act)
इस कानून के तहत 2019 में हेल्थ एम्पलाइज, एंबुलेंस एंप्लाइज या हॉस्पिटल पर किसी भी तरह का अटैक होने की स्थिति में आरोपी के खिलाफ सख्त धाराओं के तहत मुकदमा दर्ज करने की बात की गई है.
खास बात यह भी है कि इसमें 1 या 2 साल की नहीं, बल्कि मैक्सिमम 10 साल की जेल और 1000000 का ही जुर्माना देना पड़ सकता है. इतना ही नहीं. अगर कोई जुर्माने की राशि दे पाने में सक्षम नहीं है. तो उसकी संपत्ति बेचकर जुर्माने की भरपाई किया जाने का प्रावधान निर्मित किया गया है.



इसी प्रकार से एपिडेमिक डिजीज एक्ट (Epidemic Disease Act) 1897 भी हमारे देश में मौजूद है. इस पर हाल ही में बदलाव किया गया है. इस लॉ के तहत किसी भी मेडिकल कर्मचारी पर अटैक करने वाले को 3 माह से 5 साल तक की पनिशमेंट हो सकती है. साथ ही 50,000 से लेकर 200000 तक का जुर्माना किया जा सकता है. इस एक्ट के तहत किया जाने वाला क्राइम गैर जमानती माना गया है. जाहिर तौर पर अगर किसी भी हॉस्पिटल स्टाफ या कर्मचारी के साथ कोई बदतमीजी करता है. तो यहां पर वह नुकसान उठाने को विवश होगा.

धारा 188 
कोरोना के दौरान अगर कोई गवर्नमेंट के गाइडलाइंस का उल्लंघन (Law for Violating Government Guidelines in Hindi) करता है, तो उसके खिलाफ धारा 188 इस्तेमाल में लाई जाती है. इस कानून का सेक्शन 3 यह कहता है कि अगर कोई इस कानून के प्रावधानों का वायलेशन करता है, तो उसे दोषी पाए जाने पर दंडित किया जा सकता है.



यह केवल आम आदमी पर ही नहीं, बल्कि किसी भी सरकारी कर्मचारी (Law for government employees, for violating rules) पर भी उसी तीव्रता से लागू होती है. इस कानून के तहत मिनिमम 1 महीने की जेल या फिर 200 से ₹1000 तक का जुर्माना या फिर दोनों एक साथ लगाए जाने का प्रावधान है, और यह कानून लागू करने का राइट जिला मजिस्ट्रेट / जिला अधिकारी के पास मौजूद होता है.


जैसा कि हम सभी जानते हैं कि डॉक्टर (Medical Staff Protection Law) भगवान के रूप होते हैं, किंतु कई बार ऐसी स्थिति होती है कि उनके हाथ में सब कुछ नहीं होता है, और भावनाओं में बहकर लोग उन पर हमला कर देते हैं. इस स्थिति से किसी का भी भला होने की गुंजाइश नहीं होती है. साथ ही कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने के जुर्म में आप सलाखों के पीछे जा सकते हैं.
तो बेहतर यही होगा कि कानून का पालन हर हाल में सुनिश्चित किया जाए, और यही वक्त की मांग भी है.




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