8 March: महिलाओं के प्रति बदलना होगा नजरिया - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष - International Women Day

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8 March: महिलाओं के प्रति बदलना होगा नजरिया - अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर विशेष - International Women Day

8 March International Women Day, Hindi Article at Article Pedia
लेखक: रमेश सर्राफ धमोरा (Writer Ramesh Sarraf Dhamora)
Published on 6 March 2023

भारत में नारी को देवी के रूप में देखा गया है। कहा जाता है कि जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। प्राचीन काल से ही यहां महिलाओं को समाज में विशिष्ट आदर एवं सम्मान दिया जाता है। भारत वह देश है, जहां महिलाओं की सुरक्षा और इज्जत का खास ख्याल रखा जाता है। अगर हम इक्कीसवीं सदी की बात करें, तो यहां की महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिला काम कर रही हैं।

हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों के बराबर अधिकार है। महिलायें देश की आधी आबादी का प्रतिनिधित्व करती हैं, तथा विकास में भी बराबर की भागीदार हैं। आज के युग में महिला पुरुषों के साथ ही नहीं, बल्कि उनसे दो कदम आगे निकल चुकी है। महिलाओं के बिना समाज की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। भारतीय संविधान के अनुसार महिलाओं को भी पुरुषों के समान जीवन जीने का हक है।

देश में 2021 में 2020 के मुकाबले महिलाओं के खिलाफ अपराधों में 15.3 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराधों के 4,28,278 मामले दर्ज हुए हैं, जबकि 2020 में 3,71,503 मामले दर्ज हुए थे।

निश्चित रूप से ये बेहद चिंताजनक आंकड़ें हैं!

एनसीआरबी की रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि प्रति एक लाख की आबादी पर महिलाओं के खिलाफ अपराध 2020 में 56.5 फीसदी से बढ़कर 2021 में 64.5 फीसदी हो गए हैं। इनमें अधिकतर मामले 31.8 फीसदी पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता के हैं। इसके बाद 20.8 फीसदी मामले महिलाओं की गरिमा को भंग करने इरादे से उनपर हमला करने के हैं। 17.6 फीसदी उनके अपहरण के और 7.4 फीसदी बलात्कार के हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे ज्यादा मामले असम में सामने आए हैं, यानी 168.3 फीसदी। जबकि बीते तीन साल में इसमें गिरावट दिखी है। राज्य में बीते साल इस तरह के 29,000 मामले दर्ज हुए हैं। इसके अलावा टॉप पर रहने वाले राज्यों में ओडिशा, हरियाणा, तेलंगाना और राजस्थान शामिल हैं।

राजस्थान में भी असम की ही तरह मामलों में मामूली कमी देखी गई है। जबकि बाकी के तीन राज्यों ओडिशा, हरियाणा और तेलंगाना में मामले बढ़े हैं। रिपोर्ट में वास्तविक दर्ज मामलों में उत्तर प्रदेश 56,083 पहले स्थान पर है। हालांकि उसकी दर 50.5 फीसदी से कम है। राजस्थान 2021 में बलात्कार की उच्चतम दर 16.4 फीसदी रही है, और यह वास्तविक दर्ज 6,337 मामलों के साथ लिस्ट में टॉप पर है। हालांकि नागालैंड बीते तीन साल से महिलाओं के खिलाफ सबसे कम अपराध वाले राज्यों में बना हुआ है। यहां 2019 में 43, 2020 में 39 और 2021 में 54 मामले दर्ज हुए हैं। यहां 2021 में भी महिलाओं के खिलाफ सबसे कम अपराध दर 5.5 फीसदी दर्ज की गई है।

एनसीआरबी की नई रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में पिछले साल हर दिन दो नाबालिग लड़कियों से बलात्कार हुआ है। आंकड़ों से पता चलता है कि दिल्ली में 2021 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 13,892 मामले दर्ज किए गए। जिसमें 2020 की तुलना में 40 फीसदी से अधिक की वृद्धि हुई है। साल 2020 में यह आंकड़ा 9,782 था। दिल्ली के बाद मुंबई में 5,543 मामले और बेंगलुरु में 3,127 मामले आए थे।

थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन की ओर से जारी किए गए एक सर्वे में भारत को पूरी दुनिया में महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक और असुरक्षित देश माना गया है। महिलाओं के प्रति यौन हिंसा, मानव तस्करी और यौन व्यापार में ढकेले जाने के आधार पर भारत को महिलाओं के लिए खतरनाक बताया गया है। इस सर्वे के अनुसार महिलाओं के मुद्दे पर युद्धग्रस्त अफगानिस्तान और सीरिया क्रमशः दूसरे और तीसरे, सोमालिया चैथे और सउदी अरब पांचवें स्थान पर हैं। इस सर्वे में 193 देशों को शामिल किया गया था।

इससे यह साबित होता है कि 2012 में दिल्ली में एक चलती बस में हुए सामूहिक बलात्कार के बाद अभी तक महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पर्याप्त काम नहीं किए गए हैं। 2012 में हुए निर्भया कांड के बाद महिलाओं की सुरक्षा और उनके खिलाफ  होने वाली हिंसा देश के लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया था। अब प्रश्र यह है कि क्या भारत सच में महिलाओं के लिए सुरक्षित स्थान नहीं है?

पाश्चात्य देशों का भारत के प्रति रुख कभी सकारात्मक नहीं रहा है। आज भारत जब जहां एक ओर विकास की लम्बी छलाग लगा रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ विदेशी संस्थान दूर बैठ कर भारत के ऊपर नकारात्मक रिपोर्ट बना रहे हैं। कुछ घटनायें वाकई में शर्मनाक हैं, लेकिन कुछ घटनाओं के लिए पूरे देश को जिम्मेदार तो नहीं ठहराया जा सकता है।

जहां तक बात आती है महिलाओं की सुरक्षा की, तो पिछले कुछ वर्षों में भारत ने अभूतपूर्व निर्णयों से महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई प्रबंध किये हैं। ऐसे में भारत के प्रति ऐसी नकारात्मक रिपोर्ट भारत में खबर बनाने की विदेशी संस्थाओं की सोची समझी साजिश भी हो सकती है। 

भारत में आज जहां महिलाये नयी ऊंचाइयों को छू रहीं हैं, वहीं दूसरी ओर सुरक्षा के शीर्ष पदों में भी देश का गौरव बढा रहीं हैं।

भारत में महिला सुरक्षा से जुड़े कानून की सूची बहुत लंबी है। इसमें हिंदू विडो रीमैरिज एक्ट 1856, इंडियन पीनल कोड 1860, मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1861, क्रिस्चियन मैरिज एक्ट 1872, मैरिड वीमेन प्रॉपर्टी एक्ट 1874,चाइल्ड मैरिज एक्ट 1929, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954, हिन्दू मैरिज एक्ट 1955, फॉरेन मैरिज एक्ट 1969, इंडियन डाइवोर्स एक्ट 1969, मुस्लिम वुमन प्रोटेक्शन एक्ट 1986, नेशनल कमीशन फॉर वुमन एक्ट 1990, सेक्सुअल हर्रास्मेंट ऑफ वुमन एट वर्किंग प्लेस एक्ट 2013 आदि। 

इसके अलावा 7 मई 2015 को लोक सभा ने और 22 दिसम्बर 2015 को राज्य सभा ने जुवेनाइल जस्टिस बिल में भी बदलाव किया है। इसके अन्तर्गत यदि कोई 16 से 18 साल का किशोर जघन्य अपराध में लिप्त पाया जाता है, तो उसे भी कठोर सजा का प्रावधान है।

देश में महिलाओं के प्रति खराब होते माहौल को बदलने की जिम्मेदारी सिर्फ सरकार की ही नहीं, अपितु हर आम आदमी की भी है। हम सभी को आगे आकर महिला सुरक्षा की लड़ाई में महिलाओं का साथ देना होगा, तभी देश की मातृ शक्ति सर उठा कर शान से चल सकेगीं। फिर कोई विदेशी संस्था भारत के खिलाफ इस तरह की नकारात्मक रिपोर्ट जारी करने से पहले सौ बार सोचेगी। अब महिलाओं को समझना होगा कि आज समाज में उनकी दयनीय स्थिति समाज में चली आ रही परम्पराओं का परिणाम है। इन परम्पराओं को बदलने का बीड़ा स्वयं महिलाओं को ही उठाना होगा।



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