बहुपति प्रथा - Bahupati Pratha Kya hai?

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बहुपति प्रथा - Bahupati Pratha Kya hai?


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Published on 29 Jan 2023

हिंदू पौराणिक इतिहास में चली आ रही है बहुपति प्रथा

जब एक से अधिक पतियों की पत्नी होने की बात होती है, तो जहन में द्रौपदी के अलावा कोई और नाम नहीं सूझता. द्रौपदी, जिसे लोग पांचाली करते हैं. पांचाली होना द्रौपदी के लिए जीवनभर अपमान की संज्ञा रही.

पर ऐसा क्यों है कि जब बहुपति की बात आती है तो केवल द्रौपदी के चरित्र पर आक्षेप लगाए जाते हैं. जबकि इतिहास के गर्त में ऐसी कई देवियां और महारानियां हैं, जिनके एक से ज्यादा पति थे.

हालांकि ऐसा होने के पीछे हर बार एक सकारात्मक कारण निहित रहा.

तो जो लोग इतिहास में केवल द्रौप​दी को बहुपति प्रथा का प्रेररक मानते हैं उन्हें आज ऐसे किरदारों से परिचित करवाते हैं, जिन्होंने इस प्रथा को और बल दिया था!

चन्द्रवंश के ययाति की पुत्री माधवी

बहुपतियों की बात होती है, तो यहां माधवी का जिक्र करना हर लिहाज से जरूरी है. माधवी के जीवन को पौराणिक काल की यौन प्रताड़ना के संदर्भ में भी याद किया जाता है. दरअसल नहुष कुल में जन्में चन्द्रवंश के पांचवें राजा ययाति की पुत्री माधवी थी. जिसे यह वरदान प्राप्त था कि वह हमेशा कुंवारी रह सकती है.


महाभारत के उद्योगपर्व के 106वें अध्याय से 123वें अध्याय में माधवी का जिक्र किया गया है. जिसके अनुसार गालव ऋषि अपने गुरू विश्वामित्र को गुरु दक्षिणा में 800 श्वेतवर्णी अश्व भेंट करना चाहते थे. इसी संदर्भ में ययाति ने अपनी बेटी माधवी का विवाह गालव ऋषि के साथ कर दिया. ऋषि माधवी की शक्ति से परिचित थे. अत: उन्होंने माधवी को अपनी गुरू दक्षिणा पूरी करने का साधन बनाया. ययाति ने विवाह के दौरान शर्त रखी थी कि गालव अपनी दक्षिणा जुटाने के बाद माधवी को उन्हें लौटा देंगे.

गालव दक्षिणा जुटाने के लिए सबसे पहले अयोध्या के राजा हर्यश्व के पास पहुंचे. जहां उन्होंने राजा के सामने माधवी को भेंट किया. कुछ समय राजमहल में रहने के बाद माधवी ने वसुमना नाम के पुत्र को जन्म दिया और आपना कौमार्य वापिस हासिल कर लिया. बदले में राजा ने गालव को 200 अश्व भेंट की. फिर वे काशी के राजा दिवोदास के दरबार में पहुंचे और वहां भी माधवी को उन्हें सौंप दिया. माधवी ने यहां प्रतर्दन नाम के बेटे को जन्म दिया. बदले में राजा ने ऋषि को अश्व भेंट कर दीं.

तीसरी बार में ऋषि माधवी को लेकर भोजराज उशीनर के पास पहुंचे और यहां भी माधवी ने राजा के साथ समय गुजारने के बाद शिवि नाम के पुत्र को जन्म दिया. बदले में अश्व दान में लीं. इस तरह गालव ऋषि के पास 600 अश्व हो गईं. परन्तु दक्षिणा के लिए अभी भी 200 अश्व कम थे. वे वापिस ऋषि विश्वामित्र के पास पहुंचे और उन्हें सारा वृतांत सुनाया.

ऋषि ने 600 अश्वों के साथ माधवी को स्वीकार किया और फिर वहां अष्टक नाम के पुत्र का जन्म हुआ.
इस तरह माधवी के विवाह तो एक ही पुरूष से किया परंतु उसके संबंध 4 पुरूषों के संग रहे. जब माधवी वापिस अपने पिता के पास आई तो वे उसका विवाह करना चाहते थे पर माधवी ने इंकार करते हुए आजीवन विवाह न करने का प्रण ले लिया.


मरिषा का विवाह प्रचेताओं संग

महाराज पृथु के वंश में बर्हिषद नाम के राजा का जन्म हुआ था. जिनका विवाह समुद्र कन्या शतद्रुति से हुआ. उनके 10 प्रचेयता पुत्र हुए. जब वे विवाह योग्य हुए तो उनके लिए देवीय कन्या की तलाश शुरू हुई, जिससे दैवीय पुत्रों की प्राप्ति हो सके. इसी संकल्प के साथ प्रचेता बंधुओं ने तपस्या शुरू की. उनके तप से सृष्टि जल उठी, लोग हाहाकार करने लगे.

इस विनाश को देखकर वृक्षराज सोम ने अपनी बेटी मरिषा का विवाह 10 प्रचेताओं संग करवा दिया. प्रचेताओं और मरिषा के संयोग से राजा दक्ष का जन्म हुआ. इसके साथ ही देव, गण, गंधर्व आदि का जन्म हुआ.
राजा दक्ष ने ही सृष्टि पर  चल-अचल, मनुष्य, पक्षी, पशु आदि को विस्तार दिया.

दो भाईयों की पत्नी तारा की कहानी

अहल्या द्रौपदी तारा कुंती मंदोदरी तथा।पंचकन्या: स्मरेतन्नित्यं महापातकनाशम्॥

इस श्लोक में जिस तारा का नाम लिया गया है, वह पंचकन्यों में शामिल थी. तारा का दूसरा परिचय महाकाव्य रामायण में बा​लि की पत्नी के तौर पर करवाया जाता है. तारा अंगद की मां भी थीं. पर केवल बालि ही तारा के पति नहीं थे, बल्कि उनका दूसरा विवाह अपने ही देवर सुग्रवी के साथ हुआ था. हालांकि यह विवाह बालि की मृत्यु के बाद हुआ.

हालांकि, तारा का विधवा पुन: विवाह हुआ था. यानि एक समय में उसके एक ही पति से संबंध थे. इसी प्रकार रावण की मृत्यु के बाद उसकी पत्नी मंदोदरी का विवाह विभीषण के साथ हो गया था.
गुरू बृहस्पति और उनकी पत्नी तारा के संदर्भ में जो कथा है, वह अधिकांश लोगों को पता है. इस कथा के अनुसार चंद्र देव अत्यंत चंचल प्रवृत्ति के थे. एक बार उन्होंने अपने ही गुरू बृहस्पति की प​त्नी तारा को देखा. पहली ही नजर में वे उसके प्रति आकृषित हो गए. चंद्रमा का रूप ऐसा था कि तारा भी उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकी.

चूंकि, गुरू प​त्नी का शिष्य के साथ संबंध रखना अनैतिक था, इसलिए चंद्रमा ने तारा का अपहरण कर लिया. तारा चंद्रमा के साथ रहने लगी. जब बृहस्पति को इस बात की खबर हुई तो, उन्होंने अपनी पत्नी को वापिस मांगा पर चंद्र देव राजी न हुए और दोनों के बीच जंग शुरू हो गई. इस बात का फायदा राक्षसो को हुआ और उन्होंने चंद्रदेव का साथ दिया.

जबकि, देवताओं ने गुरूदेव का. ब्रम्हा जी जानते थे कि यदि यह संग्राम जारी रहा तो सृष्टि खत्म हो जाएगी. उन्होंने तारा से विनती की कि वह अपने पति के पास वापिस लौट जाए. तार बृहस्पति के पास वापिस आ गई पर जब वे आईं तक वह गर्भवति थीं. उन्होंने बुध नाम के पुत्र को जन्म दिया जो तारा और चंद्रमा का पुत्र कहलाया.

कुरू वंश की अनूठी बहुपति प्रथा


सत्यवती को कुरू वंश की रानी और शांतनु की पत्नी के तौर पर जाना जाता है, पर शांतनु से पहले उनका संबंध ऋषि पराशर से था. एक कथा के अनुसार दोनों का​ मिलन यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था. जहां सत्यवती ने पुत्र व्यास को जन्म दिया. व्यास बचपन से ही जंगलो में रहकर तप करते रहे. आगे चलकर वही वेद व्यास कहलाए.
ऋषि पराशर से संंबंध खत्म होने के बाद सत्यवती ने राजा शांतनु से विवाह​ किया. उनके दो पुत्र हुए. चित्रांगद और विचित्रवीर्य. जबकि, गंगा और शांतनु की संतान भीष्म भी उनके जेष्ठ भाई थे. शांतनु की मृत्यु के बाद एक युद्ध में चित्रांगद की भी मृत्यु हो गई. विचित्रवीर्य का विवाह  काशीराज की दो पुत्रियों अम्बिका और अम्बालिका से करवा दिया.

परंतु विचित्रवीर्य में संतान उत्पत्ति की क्षमता नहीं थी. सत्यवती से अपने कुल के खत्म हो जाने की चिंता हुई. उन्होंने भीष्म से कहा कि वह अम्बिका और अम्बालिका से संबंध बनाकर कुल को वारिस देें.

परंतु भीष्म पहले ही आजीवन विवाह न करने का प्रण ले चुके थे. इसलिए उन्होंने इंकार कर दिया.
सत्यवती को ऐसे मौके पर पहले पुत्र व्यास की याद आई और उन्होंने व्यास से कहा कि वह अम्बिका और अम्बालिका से संबंध स्थापित करें. जब व्यास बड़ी रानी अम्बिका के पास पहुंचे तो, उन्होंने डर के कारण आंखें बंद कर लीं.

जब व्यास कक्ष से बाहर आए तो उन्होंने कहा कि अम्बिका को पुत्र प्राप्ति तो होगी पर वह नेत्रहीन संतान होगी. इसके बाद व्यास छोटी रानी अम्बालिका के पास पहुंचेे. व्यास के डर से अम्बालिका का रंग पीला हो गया. जब व्यास कक्ष से बाहर आए तो उन्होंने सत्यवती से कहा कि रानी को पुत्र होगा पर वह पांडु रोग से ग्रसित होगा.
इस प्रकार अम्बिका ने धृतराष्ट्र को जन्म दिया और अम्बालिका ने पांडु को.
आगे संतान हीनता का क्रम कुरू वंश में जारी रहा....
राजा पांडु संतानहीन थे. तब उनकी पहली पत्नी कुंती ने पवन देव और इंद्र देव का आहवाहन कर गर्भ धारण किया. इसके फलस्वरूप  युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन का जन्म ​हुआ. इसके बाद उसी आहवाहन मंत्र की मदद से पांडु की दूसरी पत्नी माद्री ने अश्वनी कुमारों का आहवाहन किया और नकुल-सहदेव को जन्म दिया.


हालांकि, इस घटना में रानियों ने संबंध तो केवल अपने पति से रखे. जबकि संतान उत्पत्ति के लिए देवताओं को बुलाया और मंत्रोच्चार के जरिए संतान प्राप्ति की. बावजूद इसके उनके कुरू वंश में बहु पति प्रथा का चलन द्रौपदी के रूप में जारी रहा.

Bahupati Pratha Kya hai? Stories of Polytheism Tradition in Hindu Mythology, Hindi Article

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