कर्ण विवाह: दो कन्याओं को बनाया था जीवन संगिनी
महाभारत! यह केवल एक महायुद्ध नहीं था, बल्कि कई रहस्यों, कहानियों और प्रतिशोधों का एक हवन था. कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े हर योद्धा के पीछे एक कहानी थी, जिसने उसे इस रक्तपात का हिस्सा बनाया. शूरवीरों के इस भीड़ में कुछ नाम ऐसे है, जो बुराई के साथ थे, पर समाज में उनका सम्मान आज भी जीवित है. नामों की इसी सूची में शामिल है कर्ण.
एक सूतपुत्र, जिसे आखिरी क्षणों में अपने परिवार का पता चला, जिसने जीवनभर अपमान सहा, जो सच्चा मित्र था, जो अच्छा भाई बन सकता था, जो कुशल योद्धा था और सुयोग्य बेटा बन पाता! पर नियति को कुछ और ही खेल खेल रही थी. वैसे तो हमने अपनी पिछली कई कहानियों में कर्ण के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर से पर्दा हटाया है.
किन्तु, उसका निजी जीवन अब भी रहस्यों से घिरा हुआ है. यह रहस्य है कर्ण के विवाह का. इतिहास साक्षी है कि कर्ण द्रोपदी से विवाह करना चाहता था पर सूतपुत्र होने का दाग उसका यह सपना निगल गया. लेकिन ऐसा नहीं है कि कर्ण को उसका जीवनसाथी न मिला हो. द्रौपदी से अलग होने के बाद कर्ण ने विवाह किए, एक नहीं बल्कि दो.
तो चलिए आज आपको मिलवाते हैं कर्ण के परिवार से-
कर्ण की पहली पत्नी
कर्ण को जन्म देने वाली माता कुंती ने उन्हें जल में प्रवाहित कर दिया था. जिसके बाद कर्ण का लालन पालन एक सूत परिवार में हुआ. यही कारण है कुंती और सूर्य की संतान होने के बाद भी कर्ण हमेशा सूत पुत्र कहलाए. कर्ण के दत्तक पिता आधीरथ रथ बनाने का काम करते थे. जब द्रौपदी के स्वयंवर से कर्ण को अपमानित करके बाहर निकाल दिया गया तो वे काफी दुखी थे.
द्रौपदी के अपमान के क्रोध के साथ ही उसे खो देने की तकलीफ भी थी.
अपने बेटे को इस प्रकार दुखों से घिरा देखकर आधीरथ ने उनके विवाह के लिए कन्या की तलाश शुरू की. तब उन्हें दुर्योधन के विश्वास पात्र सारथी सत्यसेन की बहन रुषाली की याद आई. वह बेहद चरित्रवान सूतपुत्री थी.
चूंकि यहां सामाजिक बाधाएं नहीं थीं इसलिए आधीरथ ने कर्ण से कहा कि वह रुषाली से विवाह कर लें. अपने पिता की आज्ञा को भला कर्ण कैसे इंकार करते, सो उन्होंने विवाह के लिए सहमति दे दी.
दोनों का विवाह धूमधाम से हुआ. रुषाली के विषय में एक और कहानी है. जिसके अनुसार जब पांडव कौरवों के बुलावे पर राजमहल पहुंचे थे तब वे इस बात से अनभिज्ञ थे कि वे मामा शकुनि के छल के कारण अपना सबकुछ हारने वाले हैं. जब महल में दुर्योधन और मामा शकुनि पांडवों और द्रौपदी के खिलाफ योजना बना रहे थे तो रुषाली ने उनकी बातें सुन लीं.
वह जानती थी कि यदि द्रौपदी महल में रही तो जरूर कुछ ऐसा घटेगा जो विनाशकारी होगा. इसलिए जब पांचाली महल में पहुंची तो रुषाली उनसे मिलेगी. उसने विनती की कि वह महल से चली जाए. द्रौपदी रुषाली की विनती का अर्थ नहीं समझ सकी और उसने महल में से जाने से इंकार कर दिया.
आखिर बाद में पांडव पांचाली को जुंए में हार गए और भरी सभा में उसका चीर हरण हुआ.
कर्ण ने किया था दूूसरा विवाह
कर्ण के दूसरे विवाह की कहानी किसी फिल्म में पटकथा की तरह लगती है. इस कहानी में दो नायकाएं थीं, जिसमें से कर्ण ने एक से विवाह किया. दरअसल राजा चित्रवत की बेटी असांवरीऔर उसकी दासी ध्यूमतसेन की सूत कन्या पद्मावती (जिसे लोगों ने सुप्रिया नाम भी दिया है) एक दिन वन की सैर के लिए निकलीं.
तभी उन पर दुश्मन देश के सैनिकों ने हमला कर दिया. असांवरी के प्राणों को संकट में देखकर पद्मावती सामने आ गई और उसे चोट लग गई. तभी वहां से अंगराज कर्ण गुजरे. दो कन्याओं को संकट में फंसा जानकर उन्होंने मदद की और सैनिकों को अपनी तीरों से मार गिराया. इस दौरान वे खुद भी घायल हो गए.
पद्मावती ने देर न करते हुए राजकुमारी और कर्ण को रथ में बैठाया. राजकुमारी को उनके राजमहल में छोडने के बाद वह कर्ण को लेकर अपने घर आ गई. जहां वैद्य ने उनका उपचार किया.
जब कर्ण ने आंखें खोली तो पद्मावती को अपने सामने पाया. दोनों की बीच उक्त घटना को लेकर बातचीत हो रही थी कि तभी राजमहल से सैनिक आया और उसने कर्ण से कहा कि राजा चित्रवत आपके बहुत आभारी हैं. वे चाहते हैं कि आप उनके महल में ठहरें. कर्ण जब महल पहुंचे तो राजकुमारी असांवरी ने उनका स्वागत किया.
कर्ण और असांवरी के बीच अनायास ही एक रिश्ता बन गया. दोनों मन ही मन एक दूसरे को चाहने लगे. वहीं दूसरी ओर पद्मावती भी कर्ण को पसंद करने लगी थी. असांवरी अपने मन की बात पद्मावती के सिवा किसी और से नहीं करती थी. इसलिए उसने पद्मावती को बताया कि वह कर्ण को पसंद करती है. यह सुनकर पद्मावती ने अपने जज्बातों को मन में ही छिपा लिया.
वहीं जब कर्ण स्वास्थ्य हो गए तो उन्होंने महल से प्रस्थान करने की तैयारी की. तब राजा चित्रवत ने उनसे कहा कि आपने मेरी बेटी की रक्षा की है, इसके बदले आप मुझसे जो चाहे वह मांग सकते हैं.
कर्ण ने देर न करते हुए राजकुमारी असांवरी का हाथ मांग लिया. यह सुनकर राजा चित्रवत क्रोधित हो गए.
उन्होंने कहा कि मुझे तुम्हारे शौर्य पर पूरा विश्वास है पर समाज और जाति व्यवस्था भी कोई चीज होती है. मैं सूत पुत्र से अपने बेटी का विवाह नहीं करूंगा. यह दूसरा मौका था जब कर्ण का सूतपुत्र होने के कारण विवाह प्रस्ताव ठुकरा दिया गया हो.
कर्ण वहां से खाली हाथ चले गए पर मन क्रोध से भर उठा. राजा ने देर न करते हुए असांवरी के स्वयंवर का एलान कर दिया. इस स्वयंवर में अचानक कर्ण पहुंचे. जिसे देखकर राजा चित्रवत फिर क्रोधित हो गए.
सभा में उपस्थित सभी राजकुमारों ने कहा कि यदि सूतपूत्र इस स्वयंवर में शामिल होगा तो हम हिस्सा नहीं लेंगे. कर्ण ने उन्हें चुनौती दी और एक के बाद एक सभी राजकुमारों को परास्त कर दिया. असांवरी और पद्मावती दोनों वहां उपस्थित थीं. असांवरी ने सभी के सामने कर्ण से विवाह की इच्छा जाहिर की पर कर्ण ने उसे अस्वीकार कर दिया.
कर्ण ने कहा कि तुम मेरी शक्ति के प्रदर्शन से उत्साहित होकर ऐसा कर रही हो. मुझे तुम्हारी दया की आवश्यकता नहीं है. इसके बाद वह पद्मावती के पास पहुंचे और कहा कि मुझे प्रेम की आवश्यकता है. पद्मावती ने कर्ण को देखा और उनका आशय समझ गई. कर्ण ने असांवरी की वर माला पद्मावती को सौंपी और दोनों ने वहीं विवाह कर लिया.
कर्ण पुत्र को पांडवों ने सौंपा अपना राजपाठ
इस प्रकार कर्ण की दो पत्नियां हुईं और दोनों ही सूतकन्याएं थीं. इन दोनों पत्नियों से कर्ण को नौ पुत्र प्राप्त हुए. कर्ण पुत्रों के नाम थे-वृशसेन, वृशकेतु, चित्रसेन, सत्यसेन, सुशेन, शत्रुंजय, द्विपात, प्रसेन और बनसेन. इन सभी ने महाभारत के युद्ध में कौरवों की तरफ से हिस्सा लिया था. जिसमें 8 वीरगति को प्राप्त हुए थे. प्रसेन की मौत सात्यकि के हाथों हुई, शत्रुंजय, वृशसेन और द्विपात की अर्जुन, बनसेन की भीम, चित्रसेन, सत्यसेन और सुशेन की नकुल के द्वारा मृत्यु हुई थी.
वृशकेतु एकमात्र पुत्र था, जो जीवित बचा. युद्ध के दौरान जब पांडवों को ज्ञात हुआ कि कर्ण उनका अपना भाई है तो उन्हें बहुत दुख पहुंचा. पांडवों ने अपने ही हाथों अपने भाई और उसके कुल का नाश कर दिया था. केवल एक पुत्र वृशकेतु जीवित बचा था. महाभारत के बाद पांडवों ने तय किया कि वे इंद्रप्रस्थ का सारा कार्यभार वृशकेतु को सौंप देंगे.
उन्होंने वृशकेतु से अपने किए गए अपराध की क्षमा मांगी और सारी जिम्मेदारी उसे सौंप दी. वहीं कर्ण की पत्नियों में से एक रुषाली ने कर्ण की चिता पर ही सती हो जाना स्वीकार किया.
चूंकि कर्ण को कृष्ण की गोद में चिता प्राप्त हुई थी इसलिए रुषाली भी उनके साथ वहीं भस्म हुई.
Marriage of Great Mahabharata's Warrior, Untold Story of Karna's Wedding In Mahabharata, Hindi Article
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