कुंभकर्ण चरितं - Kumbhakarna: The Brother of King Ravana of Lanka

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कुंभकर्ण चरितं - Kumbhakarna: The Brother of King Ravana of Lanka


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Published on 29 Jan 2023

रामायण के प्रमुख पत्रों में एक पात्र कुंभकर्ण है ! वह ऋषि व्रिश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र तथा लंका के राजा रावण का छोटा भाई था। कुम्भ के बचपन से ही उस के कान बड़े थे कुम्भ यानि घड़ा और कर्ण अर्थात कान, बचपन से ही बड़े कान होने के कारण इसका नाम कुम्भकर्ण रखा गया था। यह विभीषण और शूर्पनखा का बड़ा भाई था ! बचपन से ही इसके अंदर बहुत बल था, इतना कि एक बार में यह जितना भोजन करता था उतना कई नगरों के प्राणी मिलकर भी नहीं कर सकते थे यह देख देवता भी चिंतित हो गए थे

कुम्भ को मिला ब्रह्मा जी ने दिया था छः महीने सोने का वरदान
एक समय की बात है की ऋषि व्रिश्रवा में अपने तीनो पुत्र रावण, विभीषण और कुंभकर्ण को कठोर तपस्या के लिए वन में गए कई सालो तक तपस्या की ! तीनो कि तपस्या से इंद्र का शासन भी हिल गया था ! तपस्या से बेहद खुश हो कर ब्रह्मा जी तीनो को वरदान देने के लिए जाते है ! रावण, विभीषण को मनचाह वरदान देने के बाद वह कुंभ के पास जाते है उस वक्त ब्रह्मा जी को चिंता थी की कही वरदान में कुछ पेट भर भोजन ना मांग ले यदि मांग लिया तो जल्दी ही पृथ्वी से जीवन ख़त्म हो जाएगी ! क्योकी पृथ्वी पर खाने के लिए कुछ भी नहीं बचेगा !


देवता अपनी चिंता को लेकर माता सरस्वती से विनती करते है की जब ब्रह्मा जी वरदान दे रहे हो उस वक्त आप कुम्भ के मुख पर विराजे ! माता सरस्वती देवताओ की विनती को स्वीकार कर लेती है !  जब कुम्भकर्ण  ब्रह्मा जी से  इंद्रासन माँगने लगा तो उसके मुख से इंद्रासन की जगह निंद्रासन (सोते रहने का वरदान )निकला जिसे ब्रह्मा जी ने पूरा कर दिया परंतु बाद में जब कुम्भकर्ण को इसका पश्चाताप हुआ तो ब्रह्मा जी ने इसकी अवधि घटा कर एक दिन कर दिया जिसके कारण यह छः महीने तक सोता रहता फिर एक दिन के लिए उठता और फिर छः महीने के लिए सो जाता,परंतु ब्रह्मा जी ने इसे सचेत किया कि यदि कोई इसे बलपूर्वक उठाएगा तो वही दिन कुम्भकर्ण का अंतिम दिन होगा।

कुंभकर्ण था अत्यंत बलवान
रावण का भाई कुंभ अत्यंत बलबन था इससे मुकाबला लेने वाला कोई योद्धा पूरे जगत में नहीं था। वह मदिरा पीकर छ: माह सोया करता था। जब कुंभकर्ण जागता था तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाता था !


कुंभकर्ण को हुआ था दुख
रावण द्वारा सीता हरण के बाद श्रीराम वानर सहित लंका पहुंच गए थे। श्रीराम और रावण, दोनों की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध होने लगा, उस युद्ध में उसके पुत्र इंद्रजीतऔर एक से एक बड़े युधाो के युद्ध में वध हो रहे थे उस समय रावण ने अपने भाई कुंभकर्ण को जगाने को कहा ! वह उस वख्त सो रहा था । कई प्रकार के उपायों के बाद जब कुंभकर्ण जागा और उसे मालूम हुआ कि रावण ने सीता का हरण किया है तो उसे बहुत दुख हुआ था। कुंभ भाई कि करतूत देख के बड़ा दुखी हुआ और अपने भाई को समझने लगा कि आपने जिसका हरण किया है वह कोई नहीं जगत जननी है ! काफी समझने के बाबजूद भी रावण नहीं मानता है कुंभ कहते है कि यदि तुम अपने कुल का कल्याण चाहते हो तो आप सीता को कुशलपूर्वक छोड़ दे राम आप श्री राम से माफ़ी मांग ले ! श्री राम दयावन है वह माफ़ कर दे गए ! काफी समझने के बाद रावण को कुछ समझ नहीं आता है वह कुंभकर्ण कि कोई भी बात मानाने को राजी नहीं हुआ ! अंतत कुंभकर्ण ने अपने बड़े भाई कि आज्ञा का पालन करने के लिए युद्ध के मैदान में जाने को तैयार हो जाता है !

रावण सम्मान रखने के लिए तैयार हो युद्ध करने को कुंभकर्ण
जब रावण युद्ध टालने की बातें नहीं माना तो कुंभकर्ण बड़े भाई का मान रखते हुए युद्ध के लिए तैयार हो गया। कुंभकर्ण जानता था कि श्रीराम साक्षात भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें युद्ध में पराजित कर पाना असंभव है। इसके बाद भी रावण का मान रखते हुए, वह श्रीराम से युद्ध करने गया। श्रीराम चरित मानस के अनुसार कुंभकर्ण श्रीराम के द्वारा मुक्ति पाने के भाव मन में रखकर युद्ध करने गया था। उसके मन में श्रीराम के प्रति भक्ति थी। भगवान के बाण लगते ही कुंभकर्ण ने देह त्याग दी और उसका जीवन सफल हो गया।

Kumbhakarna: The Brother of King Ravana of Lanka

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