कोरोना और ब्लैक फंगस के बीच जूझता मानव

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कोरोना और ब्लैक फंगस के बीच जूझता मानव

  • सरकारों को अपने चुनाव का प्रचार करने से फुर्सत ही कहाँ थी, जो वह आम जनता के बारे में सोच पाती
  • जिस तरह से मृतकों से व्यवहार किया जा रहा था, उसे देखकर तो ऐसा लगा, जैसे मानव अपने मानवीय रूप को ही भूल गया है

Corona, Black Fungus and Humanity, Hindi Content

लेखिका: सपना नेगी (Writer Sapna Negi)
Published on 29 May 2021 (Last Update: 29 May 2021, 4:31 PM IST)

कोविड-19 ने जब 2020 में भारत में दस्तक दी, उस समय यहाँ की आम जनता ने विदेशों में इसके कहर को देखते हुए सावधानियाँ बरती और साथ ही सरकार के हर दिशा-निर्देशों का बखूबी से पालन भी किया। प्रधानमंत्री जी के कहने पर समस्त आम जनता ने कभी थाली बजाकर तो कभी मोमबती जलाकर एक-दूसरे का उत्साह बढ़ाया, साथ ही कोरोना योद्धाओं का भी धन्यवाद किया। उनके बाद परिस्थितियों को देखते हुए देश में लॉकडाउन भी लगाया गया, जिसका यहाँ की आम जनता ने समर्थन भी किया। 

उस लॉकडाउन का पालन करते हुए उस समय का सद्पयोग भी किया। लोगों को इससे काफी परेशानी तो हुई, प्रवासी मजदूरों को इसके चलते शहर छोड़ अपने-अपने गाँव की ओर लौटना पड़ा। उस समय सबका यही सोचना था कि कुछ महीनों की बात है, फिर सब पहले जैसा होना है। 2021 तक आते-आते कोरोना से राहत मिल रही थी और जीवन की गाड़ी फिर से पटरी पर उतरने लगी थी। प्रवासी मजदूरों ने भी शहरों की ओर एक बार फिर से कदम बढ़ा दिया था। बाजारों में रौनक भी बढ़ गई थी, और अब आम जनता थोड़ी सी राहत महसूस कर रही थी। उम्मीद की जा रही थी कि हमने कोरोना को मात दे दी है, जिसके चलते आम जनता लापरवाह हो चुकी थी और प्रशासन चुनाव की तैयारी में जुट गए थे।  

यहीं पर सबसे बड़ी गलती हुई, जिसकी कारण भारत में कोरोना की दूसरी लहर भी आ गई। कोरोना की दूसरी लहर देश में इतना हाहाकार नहीं मचाती, अगर समय रहते ही इस ओर ध्यान दिया जाता। पर सच्चाई तो यही है कि प्रशासन और आम जनता की लापरवाही के कारण ही आज देश को इससे जूझना पड़ रहा है। इसके शुरुआत में तो सरकारों को अपने चुनाव का प्रचार करने से फुर्सत ही कहाँ था, जो यह आम जनता के बारे में सोच पाती। उस समय तो सरकार कोरोना के सारे नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए लोगों को एकत्रित करने में जुटी रही। न मास्क का ध्यान रखा गया और न ही 2 गज दूरी का और जब चुनाव खत्म हुआ तक जाकर यह सोयी हुए सरकार जागी। पर तब तक कोरना की दूसरी लहर ने इतना विकराल रूप धारण कर लिया था कि प्रशासन को कई कर्फ्यू तो कही लॉकडाउन लगाने की नौबत तक आ गई। उसके बाद में यहाँ मौत का तांडव चलता रहा, कई लोग आक्सीजन न मिलने की वजह से, तो कईयों ने अस्पताल के बाहर ही अपना दम तोड़ दिया। अस्पतालों में बेड के लिए मारा-मारी होने लगी, खबर तो यह भी सुनने को मिली की अपने ही अस्पताल में कोरोना पोजिटिव डॉक्टर को बेड नहीं मिला।  
कई देशों ने अपनी सूझ-बुझ से कोरोना को मात देते हुए दूसरी लहर को आने ही नहीं दिया, पर हम भारतीय तो भेड़ की चाल चलने वाले हैं। हम ने कोरोना की पहली लहर से भी कोई सबक नहीं लिया। कोरोना की पहली लहर कम होते ही एक-दूसरे की देखा-देखी में हमने सोच लिया कि जब सामने वाला बिना मास्क के घूम रहा है, तो हमें मास्क लगाने की क्या जरूरत है। 


हम पहले की भांति जीवन-जीने लगे, जैसे कि कोरोना का नामो निशान मिट गया हो और वह दूबारा भारतीयों पर अपना कहर नहीं डालेगा। प्रशासन की लापरवाही  और हमारी अपनी गलती के कारण ही न जाने कितने परिवारों ने अपनों को खो दिया, कितने ही मासूम बच्चों के सिर से माता-पिता का साया उठ गया, और कितने ही बूढ़े माँ-बाप का कुल दीपक उनसे छीन गया। श्मशान घाट में मृतकों की संख्या इतनी बढ़ गई कि पार्कों को ही श्मशान घाट बनाना पड़ गया। इन सबके बीच मानवता को शर्मसार करती तस्वीरें भी सामने आयी। ऐसे में लोग अपनों का साथ देने की बजाय उन से मुंह फेरते दिखे, जैसे कोरोना की यह बीमारी उन्हें तो होगा ही नहीं। 

वे क्यूँ दूसरों की मदद करे!

जिस तरह से मृतकों से व्यवहार किया जा रहा था, उसे देखकर तो ऐसा लगा, जैसे मानव अपने मानवीय रूप को ही भूल गया है। कई जगह लाशें पानी में तैरती दिखीं, कई परिवार के सदस्यों द्वारा अंतिम संस्कार के लिए मना करने पर पुलिस वालों द्वारा ही अंतिम संस्कार किया गया। जहाँ एक तरफ लोग ऑक्सीजन और दवाइयों की कमी से मर रहे थे, वहीं कुछ लोगों द्वारा कालाबाज़ी कर जनता को लूटा गया।


कोरोना की इस दूसरी लहर ने गाँव तक के लोगों को नहीं छोड़ा, जो यह सोच कर बैठे थे कि कोरोना वहाँ नहीं पहुँच पायेगा, आज वहाँ भी कोरोना मरीजों की संख्या कम होने की जगह बढ़ ही रही है। हिमाचल सरकार यदि समय रहते ही सख्त से सख्त कानून बनाती, और बाहरी लोगों के हिमाचल आगमन पर रोक लगा देती, तो शायद कोरोना की चपेट से यहाँ के गाँव काफी हद तक बच जाते। 

सुनने में तो यह भी आ रहा है कि अब कोरोना की तीसरी लहर भी आयेगी, जिसका असर बच्चों पर सबसे ज्यादा होगा। 

कोरोना की पहली और दूसरी लहर ने जो देश में तबाही मचाई है, उसे देखते हुए प्रशासन को चाहिए कि वह अभी से ही इसकी तैयारी कर ले, ताकि इसे शुरू में ही रोक लिया जाए, न कि दूसरी लहर की तरह अपनी नाकामी दिखाए। आम-जनता को मरने के लिए छोड़ दे।      
कोरोना की इस दूसरी लहर से अभी जनता उबरी ही नहीं थी, कि इसी बीच ब्लैक फंगस ने देश में एक नई आफत के रूप में अपने पैर पसार लिया। जिसने देश में कुछ ही समय में हजारों लोगों को अपने चपेट में ले लिया। ब्लैक फंगस का एक अन्य नाम जायगोमायकोसिस भी है। सी० डी० सी० यानि सेंटर फॉर डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक़, यह एक खतनाक फंगल इंफेक्शन है, जो म्यूकोरमाइसेटस नामक फफूंद की वजह से होता है। 
यह फंगस मुख्यतः नाक से फैलता है। 


ज्यादातर यह इंफेक्शन श्वास नली के रास्ते हमारे शरीर में प्रवेश करता है। अगर इसका शुरुआती दौर में ही सही उपचार नहीं कराएं, तो ये धीरे-धीरे हमारी आँखों पर असर करता है। आँखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होने लगती है और हम अंधेपन का शिकार हो जाते हैं। ज्यादातर कोरोना से ठीक हुए मरीजों पर ही इसका सबसे ज्यादा प्रभाव देखा जा रहा है, क्योंकि इस समय इनके शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता पहले की अपेक्षा कमजोर हो चुका है। कोरोना इलाज के दौरान कई प्रकार के दवाई, सुई आदि मरीजों को लगा होता है, जिससे थोड़ा बहुत इस रोग (इंफेक्शन) से लड़ने की क्षमता तो रहती है, लेकिन इम्यूनिटी कमज़ोर हो जाती है। इसी कमज़ोर इम्यूनिटी के कारण आज ये इंफेक्शन तेजी से लोगों में फैल रहा है। ऐसे में हम सबकी सतर्कता ही हमें ब्लैक फंगस से जिताने में मददगार सिद्ध हो सकती है।

(लेखिका: सपना नेगी, किन्नौर, हिमाचल प्रदेश) 


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2 Comments

  1. बहुत सुंदर रचना डिअर । ये लेख वर्तमान कोरोना के समय मे हमारे समाज का एक आईना दिखातीं है कि हमारा समाज किस और जा रहा है।

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  2. शानदार...... यूंहि आगे बढ़ते रहे आप हार्दिक शुभकामनाएं 🙏

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