- कोरोना महामारी में मजदूरों के हितों को सुरक्षित करना होगा
- सरकारें तो तब जागती हैं, जब बड़ा हादसा घटित हो जाता है
- जो चंद चादी के सिक्कों की चाहत के लिए मजदूरों की जिन्दगियां ले रहे हैं, ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ा संज्ञान लेना चाहिए
लेखक: नरेन्द्र भारती (Writer Narender Bharti)
Published on 1 May 2021 (Last Update: 1 May 2021, 4:15 PM IST)
बेशक देश में प्रतिवर्ष की तरह 1 मई 2021को मजदूर दिवस मनाया जा रहा है।
कोरोना महामारी में मजदूरों के हितों को सुरक्षित करना होगा, क्योंकि कोरोना मजदूरों के लिए अभिशाप बन गया है। उनका रोजगार छिन गया है, तो महामारी के डर से मजदूर पलायन कर रहे हैं, अपने राज्यों में लौट रहे हैं। 2020 में भी मजदूरों पर कोरोना का कहर बरपा था और मजदूर दिन रात पैदल ही अपने गांव लौट गए थे। कुछ महीने के बाद जिदंगी पटरी पर आने लगी थी, मगर कोराना की दूसरी लहर ने फिर से डरावनी इबारत लिखनी शुरु कर दी है।
आज भी वह मंजर याद आता है, जब बेचारे मजदूर पैदल ही हाईवेज पर चलते हुए अपने गाँव को लौट रहे थे। मजदूरों की तस्वीरों से मन व आत्मा सिहर उठती है। कोराना काल में मजदूरों ने जो झेला है, वह असहनीय दर्द रुला देता है।
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https://play.google.com/store/apps/details?id=in.articlepediaभूखे प्यासे, दिन रात, बिना डर के अपने घर वह सभी सुरक्षित पंहुचने में लगे थे। मजदूरों के साथ रास्ते में दर्दनाक हादसे भी हुए। मजदूर दिवस के नाम पर, मात्र एक दिन बडे़-बड़े सैमिनार, गोष्ठियां की जाती हैं, मजदूरों के हितों को सुरक्षित करने के लिए बड़े दावे किये जातें हैं, मगर बाकी 364 दिन मजदूरों के बारे में कोई नहीं सोचता कि मजदूरों के साथ कैसे-कैसे हादसे होते रहते हैं।
प्रतिदिन समाचार पत्रों में मजदूरों के मरने की खबरें सुखियां बनती हैं, मगर सरकारें मूकदर्शक बनी तमाशा देख रही हैं। देश के कारखानों में मजदूर मर रहे हैं, हर जगह मजदूर काल का ग्रास बन रहे हैं। देश में मजदूरों के साथ हादसे कब थमेगें, यह एक यक्ष प्रश्न है। हर साल दिवस मनाए जाते हैं, मगर धरातल की सच्चाइयां बहुत ही भयानक हैं, क्योंकि हर जगह मजदूरों का शोषण ही किया जाता है।
मजदूरों के नाम पर सैकडों योजनाए चलाई जाती हैं, मगर उन्हें उनका हक नहीं मिलता। देश में हर रोज मजदूर बेमौत मर रहे हैं। मजदूरों के साथ होने वाले यह हादसे त्रासदी जैसे हैं। वह कहीं उद्योगों में जलकर मारे जा रहे हैं।हादसों की वजह से उनके बच्चे अनाथ हो रहे हैं, मगर केन्द्र व राज्य की सरकारों को जरा सा भी सदमा होता ,तो मजदूरों के हितों में कदम उठाती, लेकिन सरकारें तो तब जागती हैं, जब बड़ा हादसा घटित हो जाता है।
देश में हर वर्ष अनगिनत मजदूर खदानों में दबकर मारे जा रहे हैं, उद्योगों में जलकर मरे जा रहे हैं। देश के कारखानों में मजदूर मर रहे हैं, इमारतों के नीचे दबकर मजदूर काल का ग्रास बन रहे हैं। हादसों को देखकर रोंगटे खडे़ हो जाते हैं। देश के राज्यों में चल रहे ईटों के भठठों में मजदूर मारे जा रहे हैं। मजदूरों के पसीने से ही ईटें पकती हैं, मगर भट्टा मालिक मजदूरों का शोषण कर रहे हैं। मजदूर खून-पसीना बहाकर काम करते हैं, मगर बदले में मेहनताना नाममात्र दिया जाता है।
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मालिक मजदूरों के सिर पर करोड़ों रुपया कमा रहे हैं। आँकड़ों के मुताबिक बीते सालों में देश में हजारों मजदूर मारे जा चुके हैं। हादसो ने सवाल खड़े कर दिये हैं कि बार-बार हो रहे इन हादसों के आखिर कारण क्या है?
इन घटनाओं ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकारों ने कोई सबक सीखा और न ही लोगों ने सीखा।
हालाँकि पिछले कई सालों से ऐसे दर्दनाक हादसे हो रहे हैं।
बीते वर्ष में रायबरेली के उंचाहार में एटीपीसी संयत्र का बायलर फटने से 30 मजदूरों की दर्दनाक मौत हो गई थी, तथा 100 के लगभग घायल हो गए थे। 500 मेगावाट इकाई के बायलर में यह हादसा हुआ था, उस समय 200 कामगार मौजूद थे।
सरकारों ने मृतकों को मुआवजे की घोषणा की, मगर मुआवजा इसका हल नहीं है। एक ऐसा ही हादसा जयपुर के पास खातोलाई गांव में घटित हुआ था, जहां ट्रांसफार्मर फटने से 14 लोगों की मौत हो गई थी।
इन हादसों ने औद्याोगिक क्षेत्रों में मजदूरों की सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है!
इन हादसों पर संज्ञान लेना होगा, तथा मजदूरों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने होगें, ताकि भविष्य में ऐसे हादसों पर रोक लग सके।
गत वर्ष जम्मू के उधमपूर से 80 किलोमीटर दूर रामबन जिले के चंद्रकोट में जम्मू-कश्मीर हाईवे पर टनल कर्मचारियों की बैरक में आग लगने से दस श्रमिक जिंदा जल गए थे। गत वर्ष एक निर्माणाधीन प्रोजेक्ट की दीवार गिरने से चार मजदूर बेमौत मारे गए। यहां पर 11 मजदूर काम कर रहे थे कि अचानक दीवार गिर गई। सात मजदूर तो भागकर बच गए, मगर बेचारे चार मजदूर जिन्दा दफन हो गए थे।
इन मजदूरों पर 42 मीटर लंबी दीवार गिर गई। यह बहुत ही दुखद हादसा था। मुम्बई के अलीबाग में एक पटाखा फैक्ट्री में आग लगने से 9 मजदूर मारे गए और 19 घायल हो गए थे। और दूसरी घटना में 24 फरवरी 2014 को कुल्लु के मणीकर्ण में करंट लगने से एक मजदूर की मौत हो गई थी, जो कि एक ठेकेदार के पास काम कर रहा था।
इस दर्दनाक हादसे में एक अन्य मजदूर भी घायल हो गया था।
गोवा के कनाकोना शहर में फिर एक निर्माणाधीन इमारत गिरने से 7 लोगों की मोैेत हो गई थी। जब यह इमारत ढही उस समय 40 लोग काम कर रहे थे।
Happy Labour Day |
इस घटना ने सवाल खड़े कर दिये कि बार-बार हो रहे इन हादसों के कारण क्या है?
इस घटना ने यह प्रमाणित कर दिया है कि बीती घटनाओं से न तो सरकार ने सबक सिखा और न ही लोगों ने सीखा।
सरकार ऐसी घटनाओ के बाद मुआवजों की घोषणा करने तथा जांच के आदेश देने में देरी नहीं करती, लेकिन यदि पहले ही इन लोगों पर कार्रवाई कर ली जाए, तो ऐसे हादसे रुक सकते हैं, मगर सरकारों की तन्द्रा तो हादसे के बाद ही टूटती है।
आखिर कितने हादसों के बाद प्रशासन अपनी जिम्मेवारी निभायेगा, इस प्रशन का जबाब सरकार को देना होगा।
इमारतों का निर्माण करने वाले लापरवाह ठेकेदारों को सजा ए मौत देनी चाहिए, जो इन हादसों के लिये प्रत्यक्ष रुप से जिम्मेवार हैं। जो चंद चादी के सिक्कों की चाहत के लिए मजदूरों की जिन्दगियां ले रहे हैं, ऐसे लोगों के खिलाफ कड़ा संज्ञान लेना चाहिए।
जो मानव की जान लेने से भी नहीें हिचकचाते. ऐसे जल्लादों को सरेआम फांसी देनी चाहिए। देश में प्रतिदिन ऐसे मर्मातंक हादसे होते हैं, मगर प्रकाश में नहीं आते। केन्द्र सरकार को मजदूरों के हित में कदम उठाने होगें, तभी ऐसे मजदूर दिवसों की सार्थकता होगी ।
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