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'लिखूं तो क्या लिखूं के लिखने का नाम हो जाए' यही विचार मेरे जेहन में कई बार आया तो सोचा कि जिन परिस्थितियों में आजकल हम हम सबकी जिंदगी का दौर चल रहा है, उसी विचार को कागज पर स्याही की मदद से जाहिर किया जाए।
'जिंदगी कितनी अनमोल है' यह समझने में ही हम पूरी जिंदगी लगा देते हैं। वैसे तो सबकी जिंदगी और जिंदगी जीने का तरीका ही अलग अलग होता है पर आज के दौर पर सबकी जिंदगी एक जैसे ना होकर भी एक जैसी बनी हुई है। हाई लाइफ स्टाइल और हाई एजुकेशन बोलने वालों से लेकर अनपढ़ तक सबकी जिंदगी एक सम्मान भी दी जा रही है।
क्यों हम दुनिया दिखावा करते हैं, क्यों अमीर गरीब, गोरा- काला, शिक्षित -अशिक्षित होने का भेदभाव करते हैं। ऐसी सोच रखना ही गलत है सब कुछ समझ कर भी हम नासमझ बने हुए हैं। हाई स्टैंडर्ड एंड लाइफ स्टाइल की कल्पना करना जैसे यह सब इंसान की धारणा नहीं बल्कि अहम जरूरत बन गया है। जिसे पूरा करने के लिए इंसान किसी भी हद तक जा सकता है और सही और गलत में अंतर भी नहीं समझ पा रहा। आजकल हम सब की लाइफ में 'ओवर वर्क' एंड 'ओवर स्ट्रेस' पार्ट ऑफ लाइफ बन गया है। पर यह सिलसिला कब तक चलना था कभी ना कभी इसको रुकना भी था। माध्यम चाहे कुछ भी बने समय के अनुसार जो बदलना होगा वह बदलेगा ही!
‘ अब देखिए ना पड़ोस में रहने वाली सरला आंटी जो हमेशा अपने अमीर होने का ढोल पीटते रहती थी वह भी आज दो टाइम की रोटी शांति और स्वच्छता से मिल जाए यही कामना भगवान से कर रही हैं!
‘’गली मोहल्ले में खेलने वाले बच्चे जो मां की पुकार ने पर भी घर ना जाने के बहाने बनाते थे वह आज अपने घर से निकलने में भी डरते हैं!
“ सुबह शाम जिम जाने वाले लोग अब घर की छत में ही योगा करते नजर आ रहे हैं!
“ गली मोहल्ले की खबर रखने वाली आंटियां आज खुद अपने अपने घर से ही फोन के माध्यम से एक दूसरे का हालचाल पूछ रही है!
“ जो मां बाप बच्चों के हाथ में फोन देख कर दुखी हुआ करते थे आज बच्चों की खुशी के लिए उनको फोन दे रहे हैं!
“गांव में रह रहे लोगों के सादगी जीवन और रहन-सहन रहन-सहन को गंवार बताने वाले आज खुद गंवारपन को अपना रहे हैं।
घर मकान जहां परिवार एक साथ रहता है जिस घर रहने के लिए बच्चे स्कूल की छुट्टियां करने के बहाने ढूंढते हैं जिस घर को ऑफिस में काम कर रहा व्यक्ति याद करता है कि कब घर पहुंचे और सुकून के दो पल आराम से जी ले, वह घर आज उन्हें जेल जैसा प्रतीत होता है।
हेलो हाय और गले मिलने वाले लोग आज दूर से ही नमस्कार करके एक दूसरे से परिचित करते हैं।
महंगी मार्बल और टाइल्स लगाने के लिए जिन पेड़ पौधों की कटाई की गई थी आज फिर पेड़ पौधे लगाने के लिए टाइल्स और मार्बल को हटाया जा रहा है। आखिर इतना बदलाव कैसे आ गया? यह लोगों ने पुरानी संस्कृति के साथ जीवन जीने का संकल्प लिया है या कोई मजबूरी है ? आखिर यह दस्तक किसकी थी जिसके आने से कई सालों से जी रहे जिंदगी का रहन सहन मिनटों में ही बदल गया!
तो जानते है उस शख्सियत को जिसकी वजह से इतना बदलाव आया है!
वो कोई और नहीं कोविड-19 है जिसके आने से सबसे पहले लॉक डाउन लगा। बच्चे, बूढ़े और नौजवान सब अपने घरों में कैद हो गए। जिसके आने से घर के अंदर हो कर भी डर लगा रहा था। कोई अपराध ना करके भी अपराधी जैसे जिंदगी जी रहे थे। ना कहीं आना जाना ना किसी बाहर वाले से बात करना और सादा खाना पीना और पहरावा रखना ! फ्रीडम वाली लाइफस्टाइल के लिए तो अपराध जैसी जिंदगी से कम नहीं थी। अमीर हो या गरीब, हर जाति और मजहब के लोग एक जैसे जिंदगी जी रहे थे। सब कुछ हो कर भी सबके पास कुछ नहीं ।
वक्त वक्त की बात है कभी हम हजारों और लाखों के रुपए बेतुकी की चीजों पर उड़ा दिया करते थे। आज 2,4 पैसों की वैल्यू पता चल रही है।
मेरा अनुभव तो यही कहता है जिंदगी के पलों का कुछ पता नहीं कब कौन सा मोड़ ले ले। दो पल की जिंदगी को शांति सुकून और हँस- खेल के ही जिया जाए वही हमारे लिए बेहतर है।
-प्रेरणा शर्मा, फैशन डिजाइनर
लुधियाना, पंजाब
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