क्या मोहन भागवत जी हिन्दुओं को बांट रहे हैं? Is Mohan Bhagwat ji dividing Hindus?

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क्या मोहन भागवत जी हिन्दुओं को बांट रहे हैं? Is Mohan Bhagwat ji dividing Hindus?


Is Mohan Bhagwat ji dividing Hindus?
लेखकपूरण चन्द्र शर्मा
Published on 6 March 2023

हाल ही में RSS प्रमुख मोहन भागवत ने एक विवादास्पद बयान देकर ब्राम्हणों को ही नहीं, पूरे हिन्दू समुदाय को नाराज कर दिया हैl 
श्री भागवत ने अपने एक बयान में कहा कि पण्डितों ने ऊँच- नीच एवं जातिवाद को बढावा दिया हैl श्री भागवत ने इस तरह का गैरजिम्मेदाराना बयान देकर हिन्दू समाज में विष घोलने जैसा कार्य किया है, जो उचित नहीं हैl
 
श्री भागवत जी को मालूम होना चाहिए कि वर्ण व्यवस्था पंडितों ने पैदा नहीं की थी, बल्कि इस व्यवस्था का मनुष्य के कर्म एवं उसकी योग्यता के हिसाब से निर्धारण किया गया थाl
 
जो पूजा पाठ करते, उन्हें पुरोहित, अर्थात सभी का हित चाहने वाले पंडित कहलाये, जो राज्य पर शासन करते उन्हें क्षत्रिय कहा गयाl
क्षत्रिय का काम राज्य में  कानून व्यवस्था को बनाए रख कर प्रजा के हित में कार्य करना, वैश्य का काम व्यापार - वाणिज्य के द्वारा लोगों को खाद्यान तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं को उपलब्ध कराना, तथा शूद्र जन अपनी रुचि एवं कार्य अनुभव के अनुसार तीनों वर्गों को अपनी सेवाएं प्रदान करना थाl 

सच तो यह है कि तब कोई भी काम छोटा-बड़ा नहीं होता था, जो जिसमें निपुण होता, वहीं कार्य करताl 
सभी वर्ण के लोग एक दूसरे का सम्मान करते थेl 

जिस तरह से जिसने डॉक्टर की डिग्री हासिल की वह डॉक्टर बनेगा, वकील की पढ़ाई करने वाला वक़ालत करेगा,  आई .ए. एस. पास करने  वाला कलेक्टर बनेगा, योग्यता के अनुसार ही कोई क्लर्क या चपरासी बनता हैl 

स्वाभाविक है कि कलेक्टर के ऑफिस में जिस दिन चपरासी न आए, उस दिन कलेक्टर साहब का सारा काम रुक जाएगाl 
आखिर उनकी टेबल पर फाइल भी कौन पहुंचाएगा? 

इससे यह बात साबित होती है कि कलेक्टर सहाब का जितना महत्व है, उतना ही उस ऑफिस के क्लर्क एवं चपरासी का भी हैl
इस तरह से उस वक़्त वर्ण व्यवस्था की जो रचना की गई थी वह समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए तैयार की गई थीl सभी को उनकी योग्यता के अनुसार कार्य का विभाजन कर दिया गया थाl

चारों वर्ण के लोग एक दूसरे का सम्मान करते, तथा एक दूसरे से खुश थेl

फिर धूर्त नेताओं ने वोट बैंक के कारण समाज में विष घोल दियाl ब्रिटिश हुकूमत का फार्मूला "फूट डालो एवं राज करो (Divide & Rule)" की नीति को अपना लियाl भागवत जी ने भी यही किया, जो उन्हें नहीं करना चाहिए थाl 

Division of Work के अनुसार वर्ण व्यवस्था का निर्धारण किया गया थाl भागवत साहब, अब आप यह बताएं कि इन सभी पदों का सृजन क्या पंडितों ने किया है क्या?

जिन्होंने नीति शास्त्र तथा धर्म शास्त्रों का अध्ययन किया वे पंडित कहलायेl बुद्धिमान राजा पंडितों की सलाह से ही शासन किया करता थाl  चाणक्य ब्राह्मण ही थे, तथा उनकी नीतियों का पालन एक समझदार शासक आज भी करता है, जिससे जनता खुश रहे, तथा शत्रुओं को मुहंतोड़ जवाब दिया जा सकेl

धर्म, संस्कृति, कला तथा शिक्षा के क्षेत्र में, देश की आजादी और भारत की राजनीति में ब्राह्मणों का महान योगदान रहता आया है।
भागवत जी कैसे बहक गए कि उन्होंने इस तरह के अशोभनीय बयान दे डाले?

इस तरह के बयान से उनकी गरिमा तो घटी ही है, साथ ही संगठन का भी भारी नुकसान हुआ हैl मोहन भागवत जी का सभी सम्मान करते हैं, पर उन्होंने इस तरह का बयान देकर सभी को निराश कर दियाI 
वोट हासिल करने की लिये इस तरह के बयान निम्न दर्जे के नेता ही देते रहते हैंl  इस तरह के नेता राजनीति के क्षेत्र में अयोग्य ही होते हैंl 
अल्पज्ञानी राजा बनता है तो वह प्रजा को तकलीफ ही देगा l 

भागवत जी के संबंध में अब एक दूसरे प्रसंग पर आते हैंl 

02 नवम्बर 2017 को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस पार्टी के एक नेता एवं जलपाईगुड़ी नगर पालिका के तत्कालीन चेयरमैन मोहन बोस ने दिन दहाड़े दिन-बाजार जलपाईगुड़ी के 125 साल पुराने श्री हनुमानजी के मंदिर को बुलडोजर से तोड़ दियाl श्री बोस का उद्देश्य मंदिर को तोड़ कर वहां पर मार्केट कॉम्प्लेक्स बना कर धन कमाना थाl इस मंदिर का मालिकाना हक करौली (राजस्थान) निवासी पंडित तुलसी दत्त शर्मा का था, तथा उनके वारिस हनुमानजी जी की पूजा अर्चना कर आ रहे थे l 
 श्री मोहन भागवत सिलीगुड़ी दौरे पर आएl

उनकों मंदिर तोड़े जाने की बात बताई गई पर उन्होंने कुछ नहीं किया, ना ही इस संबंध में प्रेस के सामने प्रतिवाद स्वरूप आवाज उठाईl 
उनके इस तरह के उदासीनता पूर्ण रवैय्या से हनुमान भक्तों को भारी निराशा हुई, एवं उनकी इमानदारी पर प्रश्न चिन्ह लग गयाl इसे एक संयोग ही कहा जाएगा कि दोनों का नाम मोहन हैl एक मोहन ने मंदिर को तोड़ा, एवं दूसरे मोहन ने मौन धारण कर इस कुकृत्य का समर्थन कियाl 

एक मोहन, वह भी तो था, जिसने धर्म की रक्षा की खातिर सुदर्शन उठा लिया था... पर क्या कहा जाए, जब अपने ही समाज में विष घोलने लगें, बजाय कि राजनेताओं पर अंकुश कसने के, भागवत जी जैसे लोग जब राजनीति की खातिर बयानबाजी करने लगें, तो इसे हिन्दू समाज का दुर्भाग्य ही कहा जाएगाl

आप क्या सोचते हैं, कमेन्ट-बॉक्स में अपने विचार अवश्य बताएंl


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