इमरजेंसी 'सिचुएशन' को कैसे हैंडल करें?

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इमरजेंसी 'सिचुएशन' को कैसे हैंडल करें?

How to Handle Emergency Situations?

Writer: Vindhyawasini Singh
Published on 23 March 2023

जैसा कि सब्जेक्ट लाइन से ही स्पष्ट हो गया है कि यह सिर्फ काम करने के विषय में नहीं है, बल्कि जब इमरजेंसी हो, और उस दौरान जब परिस्थितियां ऐसी बन जाती हैं, कि सोचने समझने की क्षमता काम नहीं करती है, तब क्या करें?

ऐसी परिस्थिति में सामान्यतः लोग गुस्सा करते हैं, फ्रस्ट्रेट होते हैं, एक -दूसरे की गलतियां बताने लगते हैं, और इमरजेंसी सिचुएशन में कैसे रियेक्ट किया जाए, यह बात कहीं पीछे छूट जाती है। 

तो ऐसी इमरजेंसी सिचुएशन में कैसे परफॉर्म किया जाए, अपना बेस्ट कैसे दिया जाए आज हम इसी विषय पर चर्चा करेंगे। वास्तव में यहाँ 'इमरजेंसी' शब्द जरूर इस्तेमाल किया गया है, जिससे लगता है कि ऐसी परिस्थिति कभी-कभी ही आती होगी, किन्तु आज की भागमभाग भरी ज़िन्दगी में 'इमरजेंसी' भला कब नहीं होती है?

सच तो यह है कि आजकल हर दिन लोगों को इमरजेंसी सिचुएशन का सामना करना पड़ता है!
कभी घर पर, कभी ऑफिस में, कभी समाज में... 

तो चलिये, शुरू करते हैं...

यहां मैं अपना एक निजी, और बेसिक अनुभव शेयर करूंगी, ताकि प्रॉब्लम ठीक ढंग से समझनी की प्रवृत्ति डेवलप हो सके, और छोटी से छोटी या बड़ी से बड़ी समस्या उसी आधार पर बिना घबराये हैंडल करने में हमें सही सोच विकसित करने में मदद मिल सके! 

मेरा बेटा जो की सातवीं क्लास में पढ़ता है, उसका एनुअल एग्जाम चल रहा है। बीते 17 मार्च को उसकी साइंस की परीक्षा होनी थी, जबकि भूलवश वह तीन दिन से मैथ्स की तैयारी कर रही थी। 
ठीक सुबह जब परीक्षा देने जाने से एक घंटा पहले मैंने व्हाट्सएप ग्रुप चेक किया, तो पता चला कि आज मैथ की नहीं, बल्कि साइंस की परीक्षा है। 

कुछ देर के लिए तो मेरा दिमाग सन्न रह गया कि अब मैं क्या करूं, मेरा बेटा पिछले दिन 3 दिनों से मैथ की तैयारी कर रहा है, साइंस का रिवीजन तो उसने किया ही नहीं! 

दो-तीन मिनट तक मैं एक दम शॉक्ड सी हो गयी, मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया और मैं कुछ भी सोच नहीं पा रही थी। हालांकि मैंने अपने आप पर कंट्रोल किया और यह बात जाकर मैंने अपने हस्बैंड को बताई कि, आज साइंस की परीक्षा है, जबकि हमारा बेटा तीन दिन के एग्जाम गैप में मैथ की तैयारी कर रहा था!
यह बात बताते हुए मेरी आवाज में झुंझलाहट साफ पता चल रही थी, मैं घबरा भी रही थी। 
बच्चे की साल भर की मेहनत के मिट्टी में मिल जाने की सोच मुझ पर लगातार हावी हो रही थी!

लेकिन मेरे पति बिलकुल शांत बैठे थे, और उन्होंने थोड़ी देर के लिए मुझे अपने पास बिठाया!
फिर बेहद सहजता से उन्होंने कहा कि, "समस्या तो है, लेकिन तुरंत क्या काम किया जा सकता है, इसके बारे में सोचना अधिक आवश्यक है!
अभी 45 मिनट बचे हैं, तो इसको कैसे यूटिलाइज करना है, तुरंत प्लान A बनाओ और ध्यान रखना बच्चे को प्रेशर फील ना हो, इसकी भी तैयारी करो 1 मिनट के अंदर - बच्चे से इंटरेक्शन से पहले!" 

जब हम ये बातें कर रहें थे तब तक हमारा बेटा बाथरूम में नहा रहा था। 

आपको बता दूं कि मैं कुछ मिनटों में ही घबराहट की सिचुएशन से निकल गई, और बच्चे की साइंस की प्रैक्टिस 30 मिनट में कैसे करानी है, इसका प्लान A न केवल 1 मिनट में बना लिया, बल्कि उसे अपनी मोबाइल के कॉमन व्हाट्सअप ग्रुप में नोट भी कर लिया। 

यह मेरी कोई विशेष खूबी लग सकती है आपको, किन्तु ऐसा है नहीं... बल्कि मेरा मस्तिष्क बड़ी देर तक किसी भी सामान्य व्यक्ति की भांति एक अवस्था से उबर नहीं पाता है, तो ऐसा कैसे कर पायी इस बार, इसे आगे एक्सप्लेन करूंगी, पर पहले कहानी में आगे बढती हूँ...

बच्चे के बाथरूम से निकलते ही मैंने 1 सेकंड की भी देरी नहीं की, और तुरंत पिछली बातों को भुलाकर और साइंस के प्रोजेक्ट में फोकस करके 30 मिनट मैंने अपने बच्चे को साइंस का सैंपल पेपर जो स्कूल की तरफ से प्रोवाइड किए गए थे, उसका रिवीजन फटाफट कराया। 
रिविजन के बाद बच्चे की स्ट्रेंथ एरियाज पर फोकस करके उन चेप्टर्स का रिविजन कराया, और उसका कांफिडेंस कम होने की जगह बूस्ट होने लगा!

अब यहाँ आम तौर पर बच्चे घबरा जाते हैं, किन्तु मेरे बेटे ने को- ऑपरेट किया, बिल्कुल फ्रस्ट्रेट नहीं हुआ। इसका कारण मेरी उस तैयारी (प्लान A) में छिपा था, जो मैंने इस 'इमरजेंसी सिचुएशन' को हैंडल करने के लिए एक मिनट में किया था. 

यहां भी मैं बता दूं कि मेरे पति ने पहले ही मुझे अलर्ट कर दिया था कि, बच्चे के बाथरूम से आने से पहले सोच लो कैसे उसके साथ कम्युनिकेशन करोगी कि उसके दिमाग में फ्रस्ट्रेशन नहीं आए और वह बिना किसी टेंशन के एग्जाम देने जाये। 

अब जैसे ही मेरा बेटा बाथरूम से आया मैंने उसे साफ़गोई से बताया कि 'बेटा! आज मैथ नहीं, बल्कि साइंस की परीक्षा है, और यह मेरी ग़लती है, क्योंकि मुझे इसे चेक करना चाहिए था!'
यह सुन कर शुरुआत में मेरा बेटा आर्यांश थोड़ा घबराया कि मैं कैसे साइंस करूँगा, मैंने तो रिवीजन किया ही नहीं?

लेकिन अपनी ग़लती मानकर मैं उसे समझाने पर एक मिनट में ही उसे ट्रैक पर लाने में सफल रही कि 'घबराने की जरूरत नहीं है', और आप साइंस में हमेशा से अच्छा करते हो, आपने पहले से पढ़ा हुआ है। 

अभी सिर्फ सैंपल पेपर पढ़ लोगे, तो आपको फटाफट रिवीजन हो जाएगा। 
सैम्पल पेपर का नाम सुनते ही बच्चे को एक निश्चित दिशा मिल गयी, और क्लियर डायरेक्शन मिलते ही, बिना किसी गुस्से - बिना किसी फ्रस्ट्रेशन के उसने अगले 15 मिनट के भीतर दोनों सैम्पल पेपर्स का रिवीजन कर लिया।
फिर अगले 15 मिनट्स में मैंने उसकी स्ट्रेंथ एरियाज (जो चेप्टर उसे पहले से आते थे) उस को रिवाइज करा दिया!

इस तैयारी के दौरान मैं उसके साथ लगी रही। धैर्य के साथ, उसका हौसला बढ़ाती रही कि उसे सब आता है, और एग्जाम अच्छा जायेगा। 

मेरा बेटा स्कूल गया, उसने एक्जाम दिया और उसके चेहरे से कॉन्फिडेंस कहीं भी कम नहीं दिखा!
... 

अब मैं अपने दिल की बात करूँ तो जब मेरा बेटा एक्जाम देने गया था, तो मेरे मन में कोई बेचैनी नहीं थी, कोई फ्रस्ट्रेशन नहीं थी, जबकि जनरली ऐसा नहीं होता है! 
अपनी ही बात करूं तो पहले मैं बहुत देर तक विचारों में डूबी रहती थी कि बहुत बड़ी गलती हो गई, अब क्या होगा, काम बिगड़ गया जैसी ढेरों निगेटिव बातें!

और मैं ही क्यों, बल्कि अधिकांश लोगों के साथ यह परेशानी होती है कि इमरजेंसी सिचुएशन में वह पछतावे में डूबने लगते हैं, बजाय कि उस सिचुएशन से डील करने के! 

तो यहां मैं स्पष्ट कर दूं कि चाहे जो भी सिचुएशन हो, अब वह है तो है!
उसमें तो हम कुछ नहीं कर सकते हैं कि वह सिचुएशन क्यों आई, लेकिन ऐसी अवस्था में सबसे पहले हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि उस सिचुएशन में मैक्सिमम परफॉर्म कैसे किया जाए?
अगर हम समस्या हल करने की तरफ अपना ध्यान लगाएंगे, तो उस सिचुएशन में भी बेहतरीन (Optimum) सल्यूशन जरूर निकलेगा!

बेशक वह सबसे बेहतरीन सल्यूशन न हो, किन्तु हमारे मन में इतना आत्मविश्वास जरूर आ जाएगा कि हमने बिगड़ी हुई चीज को बनाने का प्रयास किया। इस इमरजेंसी सिचुएशन में जो हमारा कर्तव्य था, वो हमने पूरा मनोयोग से किया। 
किसी भी मनुष्य में कॉन्फिडेंस यहीं से तो आता है!
कर लेंगे, हर सिचुएशन में कर लेंगे, हर सिचुएशन में प्लान बना लेंगे... अपना बेस्ट देंगे!

अब बात यहीं खत्म नहीं हो जाती है, अब जब हमने काम को सही करने का प्रयास कर लिया है, और वह परिस्थिति निकल चुकी है, तो अब समय है 'एनालिसिस' का!

अब यहीं अधिकांश लोग काम से इतिश्री कर लेते हैं, और मैं भी काफी हद तक उन्हीं लोगों में शामिल थी, जो जैसे-तैसे काम निकल गया, उसके बाद से रिलैक्स हो जाने वालों में। 

लेकिन आज मैं रिलैक्स नहीं हुई और बच्चे के स्कूल जाते ही कॉपी पेन के साथ एनालिसिस करने बैठ गयी कि, क्यों यह गलती हुई, किसकी वजह से यह गलती हुई और इसका क्या दुष्परिणाम हो सकता है!

ध्यान दीजिये, यह किसी पछतावे का हिस्सा नहीं था, बल्कि कोई भी समस्या क्यों आती है, अगर आप इसे समझेंगे नहीं, तो अधिकांश समस्याएं पुनः उपस्थित हो जाएँगी!
वास्तव में हकीकत तो यह है कि अधिकांश समस्याएं, अधिकांश इमरजेंसी सिचुएशन मानव-जनित ही होती हैं, जिसे अवॉयड किया जा सकता है, अगर हम अलर्ट रहें तो, अन्यथा कब हमारी छोटी सी लापरवाही - अनदेखापन, कब हमारा बिहेवियर बन जाता है, यह हमें स्वयं भी पता नहीं चलता!

इसलिए इमरजेंसी सिचुएशन में Optimum Action (बेहतर एवं तात्कालिक एक्शन) लेने के बाद Problem Analysis अवश्य करें, यह आपकी आदत में बड़ा परिवर्तन ले आएगा!

अब मेरे बच्चे के एग्जाम को मिस होने को ही ले लीजिये, इस एनालिसिस से निकले पॉइंट को मैंने नोट किया:

1. मैंने एग्जाम शेड्यूल को री-चेक नहीं किया, और बच्चे द्वारा दी गयी इन्फॉर्मेशन पर आंख मूंद कर भरोसा कर लिया। 
2. डेट शीट को पब्लिकली शेयर नहीं किया, यानि की दीवार पर नहीं लटकाया, जिससे आसानी से सभी नजर रख सकें। 

अगर इन दो चीजों को मैं पहले करती तो गलती होने की संभावना निश्चित रूप से कम हो जाती! और इसमें मेरा कोई बड़ा एफर्ट भी नहीं लगता... 

ज़रा सोचिये! इस छोटी सी लापरवाही से मेरे बच्चे का फाइनल एग्जाम, उसका रिजल्ट खराब हो सकता था, और इससे भी बड़ी बात यह है कि उस बच्चे का कॉन्फिडेंस कम हो सकता था!

ऐसे में जब हम किसी प्रॉब्लम के बारे में एनालिसिस करते हैं, नोट डाउन करते हैं, उस पर गौर करते हैं तो इसका सबसे बड़ा फायदा यह होता है, कि भविष्य में ऐसी गलतियां दोहराए जाने की संभावना बहुत कम हो जाती है। इसीलिए यह स्टेप करना बहुत जरूरी है। 
...
अब ऊपर मेंशन एक पॉइंट को मैं एक्सप्लेन करना चाहूँगी कि आखिर कैसे मैंने एक मिनट में अपने मस्तिष्क को तैयार कर लिया प्लान A बनाने के लिए...
ऐसी अवस्था में तो हम सभी का माइंड अव्यवस्थित होता है, फ्रस्ट्रेट होता है, जैसे-तैसे काम को निपटाता है, दोषारोपण करता है!

एक लेखक होने के नाते यहाँ मुझे थोड़ा प्रिविलेज मिला है कि इन तमाम विषयों पर मैं सोचती हूँ, मेरे हस्बैंड भी लेखक हैं, तो बहुत सारे विषयों पर हम चर्चा करते रहते हैं।

यह संयोग ही है कि मेरे बेटे के एग्जाम से 1 दिन पहले, यानी 16 तारीख की रात को मैं और मेरे पति इस मुद्दे पर लगभग घंटे भर आपस में चर्चा कर रहे थे, कि कैसे बिना गिल्ट में आये, किसी भी सिचुएशन में बेस्ट परफॉरमेंस दी जा सकती है!

यहाँ हर किसी के लिए वही मन्त्र है, जो गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि 

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।।2.47।।

अर्थात, कर्म करते हुए फल के बारे में अत्यधिक डूबना, आपको फ्रस्ट्रेट कर देगा, और अंततः आप कर्म के मार्ग से विचलित हो जायेंगे, और जब आप कर्म के मार्ग से ही हट जायेंगे, तो फल कहाँ से मिलेगा?

आपको यह थोड़ा कन्फयूजिंग लगेगा, किन्तु इसे बार - बार पढ़ें, और गहराई से समझें! 

ज़रा सोचिये, अगर अपनी सिचुएशन में मैं यह सोचती कि 30 मिनट में क्या ही होगा, तो क्या मैं उतनी भी तैयारी कराने का कर्म कर सकती थी, जो मैंने अपने बेटे को कराने का दायित्व निभाया?
ज़ाहिर है कि फल के बारे में सोचने से, मेरा कर्म विचलित हो जाता, और जब कर्म ही विचलित हो जाता, तो फल क्या ख़ाक आएगा!

कन्फ्यूज न होयें, जीवन के हर क्षण को आप तोलें... और आप समझ जायेंगे कि हर अवस्था में पूर्ण मनोयोग से कर्म करना ही श्रेष्ठ है!

रात को ही मैं और मेरे पति इस बात पर सहमत थे कि कैसे हमें रियल टाइम में काम करना है, जो हमारी ड्यूटी है उसको इंजॉय करना है, जो कर्तव्य है उसको समझ कर कर्तव्य करने को ही एंजॉय करना है ना, कि जो मैंने काम किया उसका रिजल्ट क्या आएगा, इसके बारे में सोचना है। 
चूंकि जो कर्म हम करेंगे उसका फल तो आएगा ही... अच्छा करेंगे अच्छा फल आएगा, बुरा करेंगे बुरा फल, ऐसे में फल पर तो हमारा कोई कंट्रोल नहीं है, लेकिन कर्म करने पर हमारा कंट्रोल है, तो हमें अपने कर्म करने पर ध्यान देना चाहिए और उसी पल को एंजॉय करना चाहिए।
...
सच तो यह है कि परिणाम हमारी इच्छाओं के अधीन नहीं हैं!

ऑफिस में हम सोचते हैं कि हमने बेस्ट कार्य किया, जबकि प्रमोशन किसी और को मिल गया!
रोड पर चलते समय, लोग हमारी इच्छाओं के अनुरूप नहीं चलते हैं, तो हम फ्रस्ट्रेट होते हैं, गुस्सा होते हैं, और अंततः अपना ही नुकसान करते हैं!

और भी ऐसे हजारों उदाहरण आपको दिख जायेंगे!

इन बातों पर विचार करने अपना कांफिडेंस कम करने की बजाय, अपना बेस्ट परफॉर्म करके अपने आत्मविश्वास को हमेशा ऊंचा रखें!
इसी आत्मविश्वास से आप आगे बढ़ेंगे, किसी भी समस्या का बेहतर सलूशन निकालने का यत्न करेंगे!

और हाँ! अपनी गलतियों पर परदा डालने की बजाय, उसे स्वीकारें, उसकी एनालिसिस करें, ज़रूरी सुधार करें, और पुनः आत्मविश्वास का स्तर बढाएं, बजाय कि गिल्ट में पड़कर कांफिडेंस कम करने के! 

आप क्या सोचते हैं, आप क्या करते हैं इमरजेंसी सिचुएशन में, कमेन्ट-बॉक्स में अवश्य बताएं!



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