चूहे को हल्दी की गांठ मिली, और आप को पद

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चूहे को हल्दी की गांठ मिली, और आप को पद


लेखक: पूरण चन्द्र शर्मा
Published on 27 Feb 2023

सोशल मीडिया पर जब से मैंने लिखना आरंभ किया है मुझे एक नया अनुभव प्राप्त हुआ है.
 मैं अचंभित हूं कि सोशल मीडिया कितना पावरफूल एवम प्रभावशाली बन गया है . 
 मेरे द्वारा लिखे गये कई आर्टिकल तो इतने वायरल हुए हैं कि देश के कई हिस्सों से मेरे पास फोन आने लगे हैं तथा वे कहते हैं कि जब भी हम दार्जिलिंग, गंगटोक घूमने के लिए आयेंगे और  मौका मिला तो आपसे अवश्य मिलेंगे . 
कई समाचार पत्रों ने तो मेरे इन लेखों को अपनी इच्छा से प्रकाशित कर दिया . 

 यही नहीं श्री मोती पंचाग (दैनिक) जो हम रोजाना अपने Facebook Page, twitter, Instagram एवं WhatsApp group में पोस्ट करते हैं उसे भी पूरे देश में हज़ारों लोग अपने whatsApp status पर लगाने लगे हैं एवं इसी के साथ वें भारी संख्या में अपने अपने WhatsApp groups में इस दैनिक पंचाग को रोजाना पोस्ट करते रह हैं, इस तरह से श्री मोती पंचाग (दैनिक) अप्रत्यक्ष रूप से लाखों लोगों तक पहुंच रहा हैं.  हमारा यह एक सुखद अनुभव हैं. 
श्री मोती पंचाग परिवार उन सभी पाठकों का आभार प्रकट कराता है जो रोजाना निस्वार्थ भावना से इस तरह का नेक कार्य कर रहे हैं . 

मेरा इन बातों का लिखने का  उद्देश्य क्या है मैं अब स्पष्ट कर देना चाहत हूं . पहली बात मैं कोई विद्वान व्यक्ति नहीं हूं, आप लोगों की तरह एक साधारण व्यक्ति ही हूं . यह लेख लिखने का मेरा दूसरा उद्देश्य है कि मैं उन घमण्डी व्यक्तियों को यह संदेश देना चाहता हूं कि थोथा चना एवं भरे हुए चने मैं क्या अंतर है . बिल्कुल प्रैक्टिकल उदाहरण.
मैं अपनी मेहनत , परम पूजनीय माता-पिता के आशीर्वाद से एवं माँ सरस्वती की कृपा से इस मुकाम पर पहुंचा हूं . 
मैंने हमेशा अपने कर्म को महत्व दिया है , फल की चिंता कभी नहीं की यही बात भगवान कृष्ण ने गीता में कही .   
भगवान कृष्ण ने गीता में यह भी कहा कि अन्याय के विरुद्ध लड़ना वीरता का प्रतीक है तथा अन्याय को होते देख कर मौन रहना कायरता.   

भगवान श्री कृष्ण के इन वचनों  को मैंने अपने जीवन में उतारा.
मैं बचपन से ही अन्याईयों  के खिलाफ लड़ता रहा हूं भले ही वें मेरे से कितने भी ताक़तवर क्यों न हो .  महाभारत के युद्ध में  कौरव सौ थे पर पांडव तो पांच ही थे  फिर यहां पर संख्या बल किस काम आया . 

  मेरे पिताजी पूजनीय पण्डित मोती लाल शर्मा कहा करते थे कि - "कायरता पूर्ण सौ साल जीने की बजाय वीरता पूर्वक जीवन जी कर अल्पायु में मर जाना श्रेष्ठ है . जो शान से जीते हैं उनकी मौत भी शानदार होती है . ऐसे लोग मौत से डरते नहीं हैं. 

समाज के उन घमण्डी व्यक्तियों के लिए मेरा थोड़ा - बहुत परिचय देना आवश्यक हो गया है जो पद को प्राप्त करने के बाद अपने आप को शहंशाह समझने लगते हैं जबकि उनमे होनी जानी कुछ भी नहीं है . .

जो भी सज्जन व्यक्ति मुझसे मिलता है वह यही कहता है कि  शर्माजी आपने जो शोहरत हासिल की है वह हर किसी के वश की बात नहीं है, फिर भी आप में नाम मात्र का घमण्ड नहीं है, बिल्कुल साधारण एवं मिलनसार व्यक्तित्व है आपका. 
 मैं तो कहता हूं कि मुझे तो सिलीगुड़ी का सबसे बड़ा घमण्डी व्यक्ति होना चाहिए था.  
मैंने अपने जीवन में बहुत सारे ऐसे कार्य किए हैं जो मुझे घमण्डी बना सकते थे पर मैं घमण्डी बना नहीं .
  माफ करना, मैं अपनी बड़ाई नहीं कर रहा हूं बल्कि उन घमण्डी व्यक्तियों को बता देना चाहता हूं कि वें झूठ मूठ का घमंड न करें. 

मेरे ये कार्य मुझे घमंडी बनाने के लिए पर्याप्त थे पर मैं घमण्डी बना नहीं. 
उदाहरण स्वरूप मैं अपना विवरण नीचे दे रहा हूं :- 
छात्र जीवन से ही मैंने अपनी राजनैतिक यात्रा आरंभ कर दी थी .
मैं जलपाईगुड़ी भाजपा युवा मोर्चा का जिला उपाध्यक्ष रहा .
 स्व. रामअवतार जी किथानिया , स्व. सत्यनारायण जी कानोड़ियां, स्व. संवारमल जी अग्रवाल, स्व. बिस्वास बाबु ( पेट्रोल पम्प वाले),  स्व. राजमंगल पांडेय ( शिक्षक), स्व. रंजीत बाबु (शिक्षक), स्व. हरि प्रसाद शर्मा ( ए. टी. सी. ), श्री जी. डी. माहेश्वरी आदि के सान्निध्य में  मैं राजनीती के क्षेत्र पूरी तरह से सक्रिय रहा .  
शायद मेरी योग्यता को भांप कर पार्टी ने मुझे दिनबाजार (मारवाड़ी पट्टी) से वार्ड पार्षद का चुनाव लड़ने के लिए टिकट देने का फैसला किया पर मैंने इसे सहर्ष मना कर दिया. 

उस वक़्त मैं ए.सी कॉलेज ऑफ कॉमर्स, जलपाईगुड़ी में अध्यनरत था, परीक्षा नजदीक थी.  
इसके बाद  स्व. सत्यनारायण जी कानोड़ियां को टिकट दिया गया तथा वे चुनाव जीत कर वार्ड पार्षद बने तथा उन्होंने वार्ड के लिए पूरा समय दिया तथा  शानदार कार्य किए .

समाज सेवा के लिए मैंने जेसीस यूथ क्लब की सदस्यता ली तथा 1984 में चेयरमैन बना.
मेरे कार्यकाल में बहुत सारे जन सेवामूलक  प्रोजेक्ट लिए गएं .
सीनियर जेसीस से मिलकर खूब जन सेवा की. 

जेसीस क्लब में उस वक़्त कई सालों से सिलीगुड़ी में रह रहें श्री चंद्र प्रकाश सिंहल ( सिल्वर क्विन), श्री राधे श्याम कंदोई , श्री अशोक अग्रवाल ( sitare jewe.s), श्री बिनोद चौधरी (choudhary E.ectrica.s ), ओम प्रकाश सिंधी ( Hindusthan .ights), दिलीप चौधरी, सुरेंद्र छाजेड़ आदि . हम सभी ने मिलकर शानदार काम किए . 
इन सभी ने धन के साथ-साथ इज्जत भी कमाई है पर इनमे  नाम मात्र का भी घमण्ड नहीं है. 
मुझे याद है जब सिलीगुड़ी का  रामघाट ( श्मशान घाट) अशांत हो गया था उस वक़्त मंत्री के डर से समाज के तथाकथित नेतागण भूमिगत हो गए . 
रामघाट के दर्द को समाजसेवी श्री श्याम मईया ने समझा एवं  उनके नेतृत्व में जन आंदोलन हुआ. श्री मईया जी के आग्रह पर मुझे भी सड़क पर उतरना पड़ा. 

समाज का नेतृत्व हम दोनों को  करना पड़ा.
सिलीगुड़ी की मीडिया हम दोनों से प्रश्न करने लगी .  
आंदोलन सफल हुआ इसी के साथ रामघाट भी शांत हो गया. आज रामघाट का सौंदर्यीकरण किया जा रहा है .  इस का पूरा क्रेडिट श्याम मईया को मिलना चाहिए था पर समाज के कुछ लोग सारी की सारी क्रेडिट को अपनी ही झोली में डलवाने की कोशिश करते  रहते हैं .  
 अपनी कलम को छोड़ कर जनहित के लिए कई बार मुझे सड़क पर उतरना पड़ा दो बार तो पुलिस ने मुझे हिरासत में लिया फिर बाद में बाइज्जत रिहा कर दिया.  गलतियां मेरे से भी हुईं हैं पर मैंने अपने गलतियों को सुधारा .
जहां पर वर्षो से रसोई गैस की home de.ivery नहीं होती थी वहां पर मैंने एक सप्ताह के भीतर गैस की होम de.ivery आरम्भ करवा दी . मैं उस शहर का हीरो बन गया . केरोसिन तेल की ब्लेक मार्केटिंग बंद करवाई. लोग मुझे चुनाव में खड़े होने का निवेदन लगे. वहां का मैं जननेता बन गया.  यह बात करौली, राजस्थान की है . 
सिलीगुड़ी के चर्च रोड में एक बार मेरे साथ एक घटना हुई . 
मेरे साथ गलत हुआ, गलती करने वाला कोई 'मामूली' नहीं था फिर भी मैं उससे टकरा गया.
 और वह "ताकतवर" भाग खड़ा हुआ . लोग तालियां बजाने लगे,  कईयों ने मेरे से हाथ मिलाया .
इस सीन को देखने के लिए काफी लोग इक्कठे हो गए. 
 इस घटना को देखकर एक बंगाली बाबु को कहना पड़ा कि "ऐसा सीन तो सिनेमा में ही देखने को मिलता है" . उस बंगाली बाबु ने मुझसे कहा - "दादा की साहोस आपनार ( भाईसाहब क्या हिम्मत है आप में), आप तो सिलीगुड़ी के हीरो बन गए . मैंने कुछ नहीं किया गीता के उपदेश को अपनाया, चाणक्य की नीति को अपनाया और सत्य की जीत हुई. 
जलपाईगुड़ी के एक नेता ने हमारी जमीन पर कब्जा करने की कोशिश की उस नेता के घर जाकर उसे धमकाया एवं उससे जमीन की कीमत बाबत दो लाख रुपये वसूले. उस चेक की photocopy आज भी मेरे पास है . जब मैं स्कूल में पढ़ता था उस वक़्त काँग्रेस के एक नेता ने गंगानगर, वर्धमान रोड, सिलीगुड़ी की हमारी जमीन अपना कब्जा जमा लिया था . उस समय Additiona.  S.P. नज़रूल इस्लाम साहब थे. उन्होंने ज़बर्दस्त एक्शन लिया एवं उस कॉंग्रेस नेता को लॉकआप में डाल दिया . 
हमारी जमीन की कीमत हमें मिली . उस समय श्री कन्हैया लाल जोशी वार्ड पार्षद थे . मैंने अपने जीवन में एक ही बात सीखी वो है "जो डर गया समझो मर गया" .  शोले फिल्म का यह Dia.ogue बहुत popu.ar हुआ था .  मेरे एक writer ने मुझसे कहा कि यदि आपके जीवन पर आधारित एक स्क्रिप्ट लिख दी जाए एवं उसे किसी अच्छे फिल्म निर्माता को भेज दें तो ऐसी सुपर हिट फिल्म बनेगी जो बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचा देगी.  इतना कुछ होने के बाद भी मैं हमेशा सचेत रहता हूं कि कहीं मुझमें अहंकार न आ जाए . 
 मेरा बेटा एवं एक बेटी दोनों सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं जो बैंगलोर में MNC में जॉब कर रहे हैं . एक बेटी post Graduate जिसने अपना करियर teacher के रूप में चुना, मेरा अपना मकान है, four whee.er है . उच्च शिक्षित परिवार से हूँ . 
फिर भी  क्या आपने मेरे में घमंड देखा है ? नहीं ना, क्योंकि मैं थोथा चना नहीं हूं . 
समाज के उन अहंकारी व्यक्तियों को बता देना चाहता हूं कि 
मैं राजनीति भी में रहा , सामाजिक संस्था में रहा, वर्तमान में मैं पौराझार एंड कावाखाली मौजा भूमि रक्षा कमिटी ( रजि.) का प्रेसिडेंट हूं. अन्याय के विरुद्ध लड़ना मेरा स्वभाव है . मैं कायरों से दूरी एवं वीरों से दोस्ती करने का शौक रखता हूं . 

क्या आपने मेरे में अहंकार देखा है ?  फिर आप किस बात पर अहंकार करते हैं . 
ऐसे लोगों की कमी नहीं हैं 
जिन्होंने  ईमानदारी से खूब धन कमाया एवं मान सम्मान भी पर उनमें  बिल्कुल भी अहंकार नहीं  है ऐसे लोग खानदानी होते हैं . 
समाज में ऐसे व्यक्ति भी हैं जो गुटबाजी एवं तिकड़म बाजी से किसी संस्था -संगठन के अध्यक्ष या सचिव या कोई अन्य पद हासिल क्या कर लेते हैं और वें अपने आपको तीसमार खां समझने लग जाते हैं . पर इनमे होनी जानी कुछ भी नहीं .
 ऐसे लोग समाज पर भार होते है, समाज को पथभ्रष्ट करते हैं. नेताओं की चमचागीरी करके समज का नुकसान करते हैं . 
जो लोग नेताओं एवं प्रशासन से करीब रहें उन्होंने ने ही समाज का नुकसान किया या नुकसान करवाया.
 सिलीगुड़ी के अग्रसेन महाराजा हॉस्पिटल में जब तोड़ फोड़ हुई घंटों तक दरवाजे के कांच बिखरे पड़े रहे. ये ऊपर तक पहुंच रखने वाले क्यों घर में दुबके रहें जबकि वहां मौजूद रोगी एवं स्टाफ घंटों तक भय के माहौल में रहें, उनका हर पल दहशत में गुजारा . 
 सिलीगुड़ी का श्मशान घाट( रामघाट) कांड में मुर्दा एवं शव यात्रियों पर घंटों पत्थरों की बरसात होती रही .
क्यों नहीं मंत्री को कह कर तुरंत पुलिस फोर्स को भिजवाया गया  जबकि बेचारा मुर्दा घंटों तक अपना अंतिम संस्कार करवाने के लिए तड़पता रहा . 

आप लोगों की ऊपर तक की पहुंच क्या काम आई . 
सिलीगुड़ी के उत्तरबंग मारवाड़ी पैलेस में हिंदी भाषियों का अपमान क्यों करवाया गया . 
कार्यक्रम के आयोजक की और से हिंदी भाषियों से क्यों नहीं माफी मांगी गई . 
कितनी शर्मनाक बात है . हद हो गई . थोड़ी बहुत तो लज्जा शर्म होनी ही चाहिए . 
जलपाईगुड़ी के 125 वर्ष प्राचीन  श्री हनुमान मंदिर को तुड़वाने में हमारे समाज के उन लोगों का हाथ था जो नेताओं के करीब थे.   जिस नेता ने उत्तरकन्या के करीब वसुंधरा आवासन की होलिका दहन वाली जमीन पर कब्जा कर उसे बेच दिया था वहीं  B- B.ock के कुछ लोग उस नेता की जी हजूरी करते हैं .  
हद हो गई . ये समाज सेवी का चोला पहन कर समाज का कितना नुकसान कर रहें है सोच कर रूह कांप जाती है . 
इन गरीबों के यहां पैसों की इतनी किल्लत हो गई है कि ये लोग गौशाला की जमीन तो क्या श्मशान घाट तक की जमीन को  बेच कर अपने महंगे शौक को पूरा कर लेंगे .  इस  तरह की गंदगी के चलते समाज के सज्जन व्यक्ति आगे नहीं आ रहे हैं . 
दुर्जनों की संख्या इतनी ज्यादा बढ़ गई हैं कि सज्जनों की ये चलने नहीं देते . अब कुछ लोगों ने एक पॉलिसी बना ली है कि पद लो अपना फायदा उठाओ . समाज की ऐसी की तैसी .
सबसे बड़ी बिडम्बना यह है कि ये लोग अपने आप को समाज के हीरो समझने लग जाते हैं जबकि इनमे साधारण से भी गुण नहीं होते.  बंगाल के सपूत बंकिम चंद्र चटर्जी, राजा राम मोहन राय, सुभाष चंद्र बोस जैसे मनीषियों ने समज में क्रन्ति लाने के लिये अपना पूरा जीवन खपा दिया पर हमारे ही समाज के चंद लोग इन मनीषियों के सिद्धांत के विरुद्ध समाज को पथभ्रष्ट करने में लगे हुए हैं .  यह कृत्य नैतिकता के विरुद्ध है . 
 ये लोग नेताओं की चमचागीरी करके अपने को श्रेष्ठ समझने लगते है पर वे सामाजिक दृष्टि से सम्मान योग्य नहीं होते, इसलिए तो सम्मान पाने के लिए इन्हें भारी दौरधूप करनी पड़ती है. जबकि योग्य व्यक्ति सम्मान के पीछे नहीं भागता . जहां पर कांच के टुकड़ों को सम्मानित किया जा रहा हो वहां हीरा पहुंच कर अपनी गरिमा को थोड़े ही घटायेगा. 

कोयल उस वक़्त इसलिए चुप हो जाती है कि कौवे की कांव - कांव में हमारी मधुर वाणी को कौन सुनेगा .
जो लोग पद को पाकर अहंकार के नशे में डूब जाते हैं उन्हीं 
लोगों के लिए दो कहावतें बनी हैं, "पहली- थोथा चना बाजे घना", दूसरी कहावत है "चूहे को हल्दी की गाँठ क्या मिल गई वह अपने आप को पंसारी समझने लग जाता है" . 
ऐसे लोग सिर्फ गिने चुने कुछ लोगों के ही चहेते भले ही बन जाते हैं पर आम लोगों के बीच इनकी लोकप्रियता जीरो ही होती है . धन के बल पर तथा चापलूसी करके प्राप्त किया हुआ पद एवं मान-सम्मान पानी के बुलबुले के समान होता है पर जो लोग अपनी प्रतिभा एवं अपने दम पर पद एवं मान-सम्मान प्राप्त करते हैं उसे लोग सालों दर साल याद रखते हैं . कबाड़ी रद्दी का मूल्यांकन  करना जानता हैं और जौहरी हीरे का सम्मान करता हैं . 
श्रेष्ठ लोग मान सम्मान से दूर रहते हैं.  

 धन कमाने के बाद मान सम्मान पाने की इच्छा होती है वे अपनी योग्यता के आधार पर नहीं धन के बलबूते से अपना मान सम्मान हासिल कर लेते है यानी कि पद एवं सम्मान को खरीदा सकता है . "ये पब्लिक है जो सब जानती है, ये पब्लिक है, असली क्या है नक़ली क्या वो सबको पहचानती है, ये पब्लिक हैं...... 
बात अब  दान-पुण्य की करें तो मैं गुप्त दान पर विश्वास करता हूं.  गुप्त दान का शत प्रतिशत भाग पुण्य अकाउंट में जमा होता है एवं ढिंढोरा पीट कर किया हुआ दान कट-पीट कर पुण्य के अकाउंट में जमा होता है इसलिए कहते हैं कि दाएँ हाथ से  किया हुआ दान को बाएं हाथ को भी मालूम नहीं होना चाहिए. 
 हमारे आस-पास ऐसे लोग भी हैं जो राजनेताओं  एवं अफ़सरों की जी हजूरी करते रहते हैं.  जो पार्टी पावर में आती है उसी पार्टी के नेताओं के आगे पिछे मंडराने लगते हैं. 
इनमें जनहित कम स्वहित ज्यादा दिखता है . ये लोग अपने फायदे के लिए समाज का नुकसान पहुंचाने में जरा सा भी नहीं हिचकिचाते .
 धिक्कार है ऐसे लोगों पर.
इति मेरी रामायण . 
समय निकाल कर पढ़ने के लिए बहुत- बहुत धन्यवाद .

पूरन चंद्र शर्मा, सिलीगुड़ी (पश्चिम बंगाल) में सक्रीय पत्रकार हैं.


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