अप्सरा रम्भा के 'पुत्र' को देख भाग खड़े हुए थे 'रणछोड़' श्रीकृष्ण! Story of Kalyavan and Krishna, Hindi Article

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अप्सरा रम्भा के 'पुत्र' को देख भाग खड़े हुए थे 'रणछोड़' श्रीकृष्ण! Story of Kalyavan and Krishna, Hindi Article


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Published on 30 Jan 2023

अप्सरा रम्भा के इस पुत्र को रणभूमि में देख भाग खड़े हुए थे रणछोड़ श्रीकृष्ण!

फिल्म थ्री इडियट का वो ‘रणछोड़दास चांचड़’ तो याद ही होगा!
 
ये चरित्र फिल्म में बेहद लोकप्रिय हुआ, जिसका एक कारण विचित्र नाम भी रहा था. ये सोचने वाली बात है कि आखिर कौन ऐसा माता-पिता होगा जो अपने बच्चे का नाम ‘रणछोड़दास’ रखेगा!

असल में ‘रणछोड़’ भगवान श्रीकृष्ण के अनगिनत नामों में से एक नाम है. यही कारण है कि फिल्म में या फिर वास्तविक दुनिया में भी आपको कई ‘रणछोड़दास’ मिल जाएंगे.


भले ही इस नाम का शाब्दिक अर्थ अटपटा हो, लेकिन ‘रणछोड़दास’ का तात्पर्य ‘कृष्णभक्त’ होता है. श्रीकृष्ण के ‘रणछोड़दास’ नाम को लेकर एक बेहद ही रोचक और प्रेरक प्रसंग है, जो ‘कालयवन की कथा’ से जुड़ा हुआ है.
तो आईए जानते हैं कि आखिर कौन था कालयवन और श्रीकृष्ण से उसका क्या कनेक्शन रहा-

यवन देश का राजा था 'कालयवन'

कालयवन यवन देश का राजा था, जोकि जन्म से ब्राह्मण और कर्म से मलेच्छ था. त्रिगत राज्य के कुलगुरु ऋषि शेशिरायण के इस पुत्र का साम्राज्य अरब देश के पास स्थित था. पुराणों में इसे मलेच्छों (असुरों) का प्रमुख कहा गया है.

कहते हैं उसकी वीरता के आगे कोई भी टिक नहीं पाता था. सभी सुर-असुर उससे भयभीत रहा करते थे. इस अतुलित बल के पीछे शिवजी का वरदान था जो उसके पिता को मिला हुआ था.

कालयवन का जन्म शिव वरदान के फलस्वरूप हुआ था. उसके पिता ऋषि शेशिरायण सिद्धि की प्राप्ति हेतु अनुष्ठान कर रहे थे. इसके लिए उन्हें 12 वर्षों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना था, लेकिन एक सभा के दौरान की  गई एक टिप्पणी ऋषि शेशिरायण को चुभ गई. दरअसल उन्हें नपुंसक कहकर चिढ़ाया गया था, जिसके बाद उन्होंने शिव की घोर तपस्या शुरू कर दी.

शिव वरदान से अजेय था कालयवन

ऋषि शेशिरायण के कठोर तप से महादेव प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा. शेशिरायण ने शिवजी से अपनी आपबीती बताई और इस घोर अपमान का जवाब देने हेतु पुत्र की कामना की.

ऋषि ने अति बलशाली और अजेय पुत्र की प्राप्ति का वरदान मांगा, जिसे किसी भी अस्त्र-शस्त्र से पराजित नहीं किया जा सकेगा.

अन्तर्यामी भगवान शिव से तो कुछ छिपा नहीं था. उन्होंने शेशिरायण को मुंह मांगा वर दे दिया. वर पाते ही ऋषि ने अपने अविवाहित होने की बात की तो शिव मुस्कुराते हुए बोले- ‘अब जब वरदान मिल गया है तो पुत्र अवश्य होगा, निश्चिंत रहें!  आपकी इच्छा विलासिता और वैभव की है, वह भी पूरी होगी.’ इतना कहकर शिव अंतर्धान हो गए.
इधर शेशिरायण अपनी अवस्था को लेकर व्यथित थे कि कौन उनसे विवाह करेगा और कैसे पुत्र की प्राप्ति होगी!

ऋषि को देख मोहित हुईं अप्सरा रम्भा

शिवजी के जाने के बाद ऋषि स्नान हेतु झरने के पास गए तो ठिठके रह गए. जल-दर्पण में स्वयं को देखा तो राजकुमार की तरह युवा और सुडौल हो गए थे. स्नान करके जब निकले ही थे कि एक सुंदर युवती उनकी ओर निहार रही थी.

वे दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गए. दरअसल वह युवती स्वर्ग की अप्सरा रम्भा थीं, जो जलक्रीड़ा हेतु धरती पर आई थी. कुछ समय उपरांत शेशिरायण और रम्भा से एक पुत्र का जन्म होता है, जो बाद में कालयवन कहलाता है.
 
कुछ समय तक पुत्र की परवरिश के बाद रम्भा शेशिरायण से विदा लेकर स्वर्ग को चली जाती है. इसके बाद ऋषि शेशिरायण फिर से भक्ति-साधना में लग जाते हैं.


शिव वरदान से कालयवन में अपूर्व क्षमता होती है लेकिन ऋषिपुत्र होने के कारण उसका दिन वन विचरण में ही व्यतीत होता था. जो भी वन में इस अलौकिक बालक को देखता था उसे घोर आश्चर्य होता था.

यवन राज के सैनिकों को भी वन में यह बालक दिखा. उन्होंने राजा काल जंग के मंत्री को ये बात बताई.
राजा काल जंग निःसंतान थे और इस वियोग में परेशान रहा करते थे. मंत्री राजा को आनंदगिरी पर्वत पर ऋषि शेशिरायण के पास ले कर गए. राजा ने ऋषि से बालक को मांग लिया.

पहले तो ऋषि शेशिरायण ने देने से मना किया, लेकिन जब उन्हें राजा ने शिव वरदान के विषय में ज्ञात होने की बात बताई तो शेशिरायण मान गए.  उन्होंने अपने पुत्र को राजा काल जंग के हवाले कर दिया.
बाद में चलकर ये बालक यवन (यमन) का राजा बना और कालयवन के नाम से विख्यात हुआ.

श्रीकृष्ण से टक्कर लेने को था बेताब

शिव जी के वरदान के कारण कालयवन से युद्ध करने की हिम्मत किसी राजा में नहीं थी. अतः सब उसके सामने झुकने को तैयार हो गए थे. शक्तिशाली कालयवन की शक्ति बेकार हो रही थी. उसे लगने लगा था कि असीमित शक्ति का वह उपयोग नहीं कर पा रहा है. ऐसे में कालयवन शक्ति का दुरुपयोग कर अन्य राजाओं पर तरह-तरह के अत्याचार करने लगा.
 
सभी उससे भय खाने लगे थे. इधर श्रीकृष्ण और जरासंध लगातार लड़ रहे थे. बार-बार पराजित होने के बाद भी जरासंध शक्ति संचय कर श्रीकृष्ण से लड़ने आ जाया करता था. इस बार जरासंध कालयवन के साथ मिलकर श्रीकृष्ण को ललकार रहा था. श्रीकृष्ण ने स्पष्ट कह दिया था कि जरासंध से युद्ध नहीं करेंगे, क्योंकि वह बार-बार उसे धूल चटा चुके हैं.

कालयवन के ललकारने पर श्रीकृष्ण उससे अकेले युद्ध करने को तैयार हो गए. उसके बाद जो हुआ वह सबको चकित कर देने वाला था. असीम बलशाली कालयवन से लड़ने की बजाय श्रीकृष्ण रणभूमि से भाग खड़े हुए थे.
कालयवन क्रोध में लाल हुआ श्रीकृष्ण का पीछा करने लगा. कालयवन श्रीकृष्ण को पाकर उन्हें मसलने को उद्यत हुआ, लेकिन रणछोड़ माखनचोर श्रीकृष्ण को दौड़कर पकड़ना इतना सरल नहीं था.

रणछोड़ श्रीकृष्ण गुफा में हुए दाखिल

देखते ही देखते श्रीकृष्ण गुफा में दाखिल हुए. पीछे-पीछे कालयवन भी गुफा में प्रवेश किया. उसने देखा कि गुफा में श्रीकृष्ण सोने का नाटक कर रहे हैं. वह लीलाधर की लीला न जान सका और पैर से ठोकर मारकर जगाने लगा.
दरअसल गुफा में चिरकाल से सो रहे मुचकुंद के शरीर पर श्रीकृष्ण ने अपने वस्त्र रख दिए थे. इसके फलस्वरूप कालयवन को लग रहा था कि श्रीकृष्ण नाटक कर रहे हैं.
मुचुकुंद देवासुर संग्राम में इंद्र की ओर से लड़ते हुए थक गए थे और ब्रह्मा से चिर नींद का वरदान मांगा था. उन्होंने ये भी वरदान मांगा था कि जो भी उनकी नींद खराब करेगा वह उनके देखने भर से जलकर राख हो जाएगा.

कालयवन के लगातार पैर से मारने पर मुचुकुंद जाग गए और जैसे उन्होंने कालयवन की ओर देखा और वह जलकर राख हो गया. इस प्रकार शिव वरदान प्राप्त कालयवन परलोक सिधार गया और श्रीकृष्ण ‘रणछोड़दास’ कहलाने लगे.
कालयवन की कथा बताती है कि जीतने के लिए शक्ति ही नहीं, युक्ति की जरूरत भी होती है.

Story of Kalyavan and Krishna, Hindi Article

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