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Published on 29 Jan 2023
हिंदू ग्रंथों, पौराणिक कथाओं को उठाकर एक नजर डाली जाए तो, जो सबसे समान बात नजर आती है वह है वरदान और श्रॉप! देखा जाए तो हर घटना के पीछे या तो वरदान छिपा होता है या फिर श्रॉप!
वरदान तो देवताओं की अपनी शक्ति थी पर वे इतने शक्तिशाली नहीं रहे कि खुद को श्रॉप से मुक्त कर पाते.
वो श्रॉप ही था, जिसने दशरथ को पुत्र वियोग दिया और वो वरदान ही था जिसने उस श्रॉप को सच करने में मदद की! यानि श्रॉप और वरदान एक दूसरे के संगी-साथी ही रहे हैं. भगवान राम हो या भगवान श्री कृष्ण, सभी ने श्रॉप को भोगा है.
वैसे श्रॉप और वरदानों की सूची बहुत लंबी है, पर हम यहां उन श्रॉपों का जिक्र कर रहे हैं जिन्होंने नई कहानियों को जन्म दिया.
नारद का भगवान विष्णु को श्राप
यदि नारद मुनि ने भगवान विष्णु को श्रॉप नहीं दिया होता तो शायद रामायण में माता सीता के हरण की कहानी ही नहीं होती. दरअसल शिवपुराण के अनुसार जब देवी लक्ष्मी का स्वयंवर हो रहा था, तो वहां भगवान विष्णु के साथ नारद मुनि भी मौजूद थे.
नियति में लक्ष्मी जी का विष्णु जी की पत्नी बनना तय था, पर यदि नारद मुनि से विवाह हो जाता तो रिश्ते ही उल्टे हो जाते. सो भगवान विष्णु ने नारद मुनि का मुख वानर के समान कर दिया.
लक्ष्मी जी ने स्वयंवर मे नारद मुनि को देखकर अनदेखा कर दिया और भगवान विष्णु से उनका विवाह हो गया.
जब यह बात नारद मुनि को पता चली तो उन्होने क्रोधित होकर भगवान विष्णु को श्रॉप दिया कि जैसे मुझे स्त्री वियोग हुआ है, वैसे ही एक दिन आप को भी होगा. उनके श्राप के चलते ही भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा.
साथ ही सीता से उनका वियोग हुआ.
बालि पत्नी से श्रीराम को मिला श्राप
जब भगवान विष्णु ने रामावतार लिया तब भी वे अपने श्रॉप से मुक्त नहीं हुए. उन्हें इस जन्म में नया श्रॉप बालि की पत्नी तारा ने दिया. दरअसल राम ने सुग्रीव का साथ देते हुए बालि को युद्ध में मार दिया था.
बालि की पत्नी तारा को लगा कि राम ने छल से उसका सुहाग उजाड़ा तो उसने श्रॉप दिया कि तुम्हें तुम्हारी पत्नी से वियोग मिलेगा. तुम कुछ समय साथ रहोगे और फिर अलग हो जाओगे. और अगले जन्म में तुम्हारी मृत्यु मेरे पति के हाथों होगी.
श्रॉप का ही नतीजा था कि राजतिलक होने के बाद भी राम और सीता साथ नहीं रह पाए. इसके बाद द्वापर युग में जब विष्णु ने श्री कृष्ण का अवतार लिया तो उनकी मृत्यु एक शिकारी के हाथों हुुई. यह शिकारी कोई और नहीं बल्कि बालि था.
गांधारी का श्रीकृष्ण को श्राप
भगवान विष्णु को मिलने वाले श्रॉपों का सिलसिला द्वापर युग में भी जारी रहा. महाभारत के बाद अपने सारे पुत्रों को खो चुकी गांधारी ने कृष्ण को श्रॉप दिया कि जिस तरह मेरे कुल का नाश हुआ है... एक दिन तुम्हारे कुल का भी नाश होगा और तुम अनाथों की तरह मारे जाओगे. महाभारत के मौसल पर्व के अनुसार महर्षि विश्वामित्र, कण्व आदि ऋषि एक बार द्वारिका पहुंचे.
जहां कृष्ण पुत्र सारण और आदिवीर समेत उनके मित्रों ने महर्षि का उपहास उड़ाने के लिए युक्ति बनाई. कृष्ण पुत्र साम्ब ने स्त्री का रूप धरा और बाकी पुत्र उसे ऋषि के पास इसलिए ले गए, ताकि वे बताएं कि स्त्री के गर्भ से कौन सी संतान जन्म लेगी.
जब ऋषि को अपने साथ हो रहे उपहास का पता चला तो उन्होंने श्रॉप दिया कि पुत्र अपने ही कुल का नाश करने के लिए एक भयंकर मूसल उत्पन्न करेगा. आखिर में यह श्रॉप सच साबित हुआ.
शुक्राचार्य का राजा ययाति को श्राप
शुक्राचार्य राक्षसों के गुरू थे. उनकी बेटी देवयानी का विवाह राजा ययाति के साथ हुआ था. कुछ समय बा देवयानी को पता चला कि उनकी दासी शर्मिष्ठा के पुत्रों के पिता भी ययाति है. यह दुख वह सहन न कर सकी और अपने पिता से सारा दुख बयां कर दिया. शुक्राचार्य ने तत्काल ही ययाति को बुजुर्ग होने का श्रॉप दिया और उनकी आयु छीन ली.
ययाति मृत्यु से डर गए, उन्हें लगा कि वे अब जल्दी ही मर जाएंगे तो उन्होंने अपने सभी पुत्रों से उनकी आयु मांग ली. अपने पिता को आयु देते ही ययाति के सभी पुत्र मर गए. उनके केवल यदु नाम का पुत्र जीवित रहा.
क्योंकि उसने अपनी आयु देने से इंकार कर दिया था.
मां ने अपने पुत्रों को दिया श्रॉप
यह उदाहरण बिरला ही होगा जब कोई मां अपने बेटों को वरदान की जगह श्रॉप दे दे. पर पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा हुआ था. दरअसल ऋषि कश्यप की कद्रू व विनता नाम की दो पत्नियां थीं. विनिता को गरुण की माता कहा गया.
कद्रू सर्पों की माता थी. एक बार एक घोडे को देखकर विनिता ने कहा कि यह पूरी तरह से सफेद है, जबकि कद्रू ने शर्त लगाई और कहा कि घोडे की पूंछ काली है. हालांकि विनिता की बात सही थी पर कद्रू शर्त जीतना चाहती थी.
कद्रू ने अपने सर्प रूपी पुत्रों से कहा कि वे सूक्ष्म होकर घोडे की पूंछ से चिपक जाएं ताकि वह काली दिखाई दे. जिन सर्पो ने अपनी माता की आज्ञा का पालन नहीं किया उन्हें कद्रू ने श्रॉप दिया कि वे जनमजेय के सर्प यज्ञ में भस्म हो जाएंगे.
नाराज नंदी का रावण को श्राप
रावण वैसे तो बहुत ज्ञानी था पर इतिहास साक्षी है कि वह अपने घंमड के कारण मारा गया. रावण के वध और लंका के दहन में वानरों की मुख्य भूमिका थी. हालांकि इसके पीछे भी एक श्रॉप था.
कहानी यूं है कि एक बार रावण अपने आराध्य भगवान शिव के दर्शन के लिए कैलाश पहुंचा. जहां उसकी पहली मुलाकात नंदी से हुईं. नंदी का मुख देखकर रावण को हंसी आ गई और उसने उपहास उड़ाते हुए कहा कि तुम्हारा मुख वानरों की तरह है.
नंदी इस बात से क्रोधित हो गए और उन्होंने रावण को श्रॉप दिया कि तुम चाहे भगवान शिव की कितनी भी आराधना कर लो लेकिन एक दिन तुम्हारे विनाश का कारण वानर ही होंगे.
तुलसी का भगवान विष्णु को श्राप
शिवपुराण इस श्रॉप का जिक्र किया गया है. समुद्र मंथन से जलंधर नाम के राक्षस का जन्म हुआ था. जिसके उत्पात से देवता भी परेशान थे. राक्षस की सारी ताकत उसकी पत्नी वृंदा थी. वृंदा भगवान विष्णु की भक्त तो थी ही साथ ही पतिव्रता थी इसलिए खुद भगवान शिव भी जलंधर का वध नहीं कर पा रहे थे.
तब कृष्ण ने एक माया रची ओर जलंधर का रूप धरकर वृंदा के पास पहुंचे और उसका शील भंग कर दिया. इसी घटना के साथ जलंधर की ताकत खत्म हो गई और भगवान शिव ने उसका वध कर दिया. जब वृंदा को इसका पता चला तो उन्होंने भगवान विष्णु को पत्थर हो जाने का श्रॉप दे दिया. यही पत्थर शालिगराम कहलाए.
बाद में देवी लक्ष्मी के आग्रह से वृंदा ने अपना क्रोध शांत किया और पति के साथ सति हो गई.
उसी की राख से एक पौधा निकला, जिसे भगवान विष्णु ने तुलसी नाम दिया और वरदान दिया कि जिस भोग में तुलसी साथ नहीं होगी मैं उसे स्वीकार नहीं करूंगा.
श्रृंगी ऋषि का परीक्षित को श्राप
पाण्डवों के स्वर्ग जाने के बाद राजपाठ की जिम्मेदारी अभिमन्यु के पुत्र परीक्षित पर आ गई. वह अच्छा राजा साबित हुआ. एक दिन शिकार के लिए जब वह वन में थे तो वहां उसे शमीक ऋषि दिखाई दिए जो साधना में लीन थे.
परीक्षित ने उनसे बात करने का प्रयास किया पर ऋषि ने कोई जवाब नहीं दिया.
क्रोध में आकर परीक्षित ने ऋषि के गले में मरा हुआ सांप डाल दिया. जब यह बात शमीक पुत्र श्रृंगी ऋषि को पता चली तो उन्होंने परीक्षित को श्रॉप दिया कि 7 दिनों की भीतर उसकी मृत्यु तक्षक नागराज के डंस लेने से हो जाएगी.
महर्षि वशिष्ठ का भीष्म को श्रॉप
भीष्म पितामह पूर्व जन्म में वसु थे. उनके 7 अन्य भाई भी थे. एक बार उन्होंने अपने भाईयों के साथ मिलकर ऋषि वशिष्ठ की गाय चुरा ली थी. क्रोध में आकर वशिष्ठ मुनि ने सभी वसुओं को धरती लोक जन्म लेने का श्रॉप दिया था.
साथ ही एक वसु को श्रॉप दिया कि वह जीवित रहेगा और राज, स्त्री आदि सुखों की प्राप्ति कभी नहीं कर सकेगा. यही वसु अगले जन्म में भीष्म बने. जबकि उनके 7 भाईयों को मां गंगा ने जल में प्रवाहित कर जन्म लेते ही मृत्युलोक से मुक्ति दिला दी थी.
दंपत्ति का राजा दशरथ को श्राप
इस श्रॉप से तो हर कोई भली भांति परिचित है. यदि यह न होता तो राम वन न जाते और रामायण कभी वैसी न होती जैसी है. वाल्मीकि रामायण के अनुसार राजा दशरथ ने शिकार के दौरान हिरण के भ्रम में पितृ मातृ भक्त श्रवण कुमार का वध कर कर दिया था, जो कि उन्हें तीर्थ यात्रा पर लेकर निकला था.
तब माता पिता को अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो उन्होंने दशरथ को श्रॉप दिया कि तुम्हारा भी पुत्र वियोग होगा और आखिरी क्षणों तक भी तुम अपने पुत्र को देख नहीं सकोगे और तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी.
आज भी भटक रहा है अश्वत्थामा
महाभारत युद्ध के दौरान अश्वत्थामा ने पांडवों पर ब्रम्हस्त्र चलाया, जवाब में अर्जुन ने भी ब्रम्हस्त्र चला दिया.
महर्षि व्यास ने दोनों अस्त्रों को टकराने से रोक लिया. अर्जुन ने अपना अस्त्र वापस ले लिया जबकि अश्वत्थामा यह विद्या नहीं जानता था इसलिए उसने अपना अस्त्र अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ की ओर कर दिया.
तब श्रीकृष्ण ने अश्वत्थामा को श्रॉप दिया कि वह कलियुग के अंत तक धरती लोक पर भटकता रहेगा. उसके शरीर से मवाद निकलेगी, खून निकलेगा जिसके कारण वह आम जीवन नहीं जी सकेगा.
वह जंगलों और वीरान गुफाओं में अपनी मृत्यु के लिए तड़पता रहेगा.
तो ये थे कुछ चर्चित श्रॉप जिन्हें भगवानों तक को भोगना पड़ा. अगर आप भी किसी ऐसे श्रॉप के बारे में जानते हैं, तो नीचे दिए कमेंट बाक्स में बताना न भूलें.
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