नारद चरितं - Narad Charitam, Devarshi Narad Muni ki kahani

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नारद चरितं - Narad Charitam, Devarshi Narad Muni ki kahani


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Published on 28 Jan 2023

देवर्षि नारद!

सृष्टि के प्रथम पत्रकार नारद मुनि!

या फिर आप उन्हें गूगल ही कह लीजिये... हर किसी की ख़बर लेना, हर किसी को ख़बर देना, नारद मुनि से बेहतर भला कौन कर पाया है!

परन्तु नारद मुनि का रहस्य, या फिर उनके तमाम रहस्य आप जानते हैं क्या?

चाहे आप वैदिक साहित्य की बात करें, अथवा रामायण, महाभारत, पुराण, शास्त्र और किवदंतियों तक में देवर्षि नारद का उल्लेख मौजूद है.

ब्रह्मवैवर्तपुराण के व्याख्यानों के अनुसार देवर्षि नारद को सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी का मानसपुत्र बताया जाता हैं. चूंकि वह ब्रह्मा जी के कण्ठ से उत्पन्न हुए थे.

कहते हैं कि एक बार ब्रह्मदेव ने किसी आवश्यक कार्य की पूर्ति हेतु नारद मुनि को धरती पर जाने कहा, किन्तु नारद जी ने इस आदेश को नहीं माना. इसके पीछे उनका तर्क था कि धरती पर मौजूद विषय-भोग, ईश्वर की प्राप्ति में बड़ी बाधा थे. 

लेकिन नारद जी के तर्क से इतर, ब्रह्म देव ने उन्हें कठोर शाप दे दिया, जिसके कारण न केवल नारद मुनि का ज्ञान नष्ट हो गया, बल्कि उन्हें काम-विलास के आधीन रहने वाले गन्धर्वयोनि में जन्म लेना पड़ा.

परन्तु अकारण शाप से नारदजी दुखी हो गए और उल्टा ब्रह्मदेव को भी शॉप दे दिया कि-

“स्वयं ब्रह्मदेव की तीन कल्पों तक, लोक में उनकी पूजा नहीं होगी व ब्रह्मा के मन्त्र, स्त्रोत, कवच इत्यादि का लोप हो जायेगा!”

इस तरह से पिता-पुत्र एक दूसरे को शाप देकर संतुष्ट हो गए, किन्तु शापों के लेन-देन की प्रथा यहीं नहीं रुकी...
हालाँकि, अपनी भक्ति के कारण नारद मुनि को इतना ज्ञान अवश्य शेष रहा कि उनका मन किसी भी जन्म में भगवदभक्ति में रमा रहता!

बाद में नारद मुनि गन्धर्व योनि में उत्पन्न हुए और उनका नाम उपबर्हण रखा गया.

कामदेव सदृश रूप का नारद मुनि को अत्यंत घमंड था और जब एक बार, देवता व गंधर्व ईश्वर का संकीर्तन करने हेतु ब्रह्म दरबार में पधारे तो उपबर्हण अपनी योनी के अनुसार, वासना में लिप्त हो रहे थे!


यह दृश्य ब्रह्मदेव से सहन न हुआ व उन्होंने नारद रुपी उपबर्हण को शूद्र हो जाने का शाप दे दिया.
तत्पश्चात नारदजी एक शूद्र परिवार में जन्मे और जन्म लेते ही इनके पिता मृत्यु धाम प्रस्थान कर गए.

हालाँकि, इनकी माँ एक ब्राह्मण के यहाँ कार्य करती थीं और भगवद कथा का आनंद लेती थीं. ऐसे में बालक नारद में भी सदाचार उत्पन्न हुआ. कहते हैं इसी कारण इस जन्म में नारद सदाचारी होने के साथ-साथ संयमी व गम्भीर बालक थे. 

मात्र 5 वर्ष की उम्र में उन्होंने मुनि महात्माओं की बड़ी मन से सेवा की व तल्लीनता से भगवत्कथा भी सुनी. 

इस सत्संगति से बाल नारद के समस्त दोष दूर हो गए. 

ऋषिगण की सेवा के कारण नारद को परमपिता की भक्ति का ज्ञान प्राप्त हुआ. कुछ समय बाद उनकी मां, सर्पदंश से मृत्यु को प्यारी हो गयीं और अब नारद मोह से पूर्णतः मुक्त हो गए. 

ईश्वर की खोज में तब तक चलते रहे, जब तक उनके पावों में शक्ति रही. 

फिर वह एक जगह गिर पड़े और वहीं आसन लगाकर भगवान का ध्यान करने लगे. शुद्ध भक्ति से नारद मुनि के हृदय में स्वयं ईश्वर प्रकट हो गए.

ईश्वरीय प्रेरणा से, पांच बार नश्वर शरीर धारण करने के बाद उन्हें मुक्ति मिल गयी!

कहते हैं कि प्रलय के समय जब भगवान विष्णु स्वलोक में विश्राम अवस्था में थे, तो समूची सृष्टि के साथ स्वयं ब्रह्मदेव भी उनके मुख के रास्ते हृदय में प्रवेश कर गएगे. नारद जी भी उसी समय ब्रह्माजी के हृदय में प्रवेश कर गये.



फिर चतुर्युग के बाद ब्रह्माजी जगे व सृष्टि रचने की पुनः शुरुआत की.

इसी समय अन्य ऋषियों के साथ स्वयं नारद मुनि भी ब्रह्माजी के मानसपुत्र के रूप में धरती पर प्रकट हुए व परमपिता की कृपा से देव ऋषि नारद नारायण-नारायण करते हुए वीणावादन करते रहते हैं.

देवर्षि नारद सृष्टि के उच्च कोटि के मार्गदर्शक माने जाते हैं और ‘नारदपांचरात्र’ में उनके विषद ज्ञान का वर्ना मिलता है. कहते हैं कि स्वयं भगवान विष्णु ने ही देव ऋर्षि नारद के रूप में तृतीय अवतार लिया था व सात्वत-तन्त्र (नारद-पांचरात्र) का उपदेश इस संसार को दिया. 

कर्मबन्धन से मुक्ति का मार्ग इस शास्त्र में सहज ढंग से बतलाया गया है.

इसी प्रकार ‘नारदपरिव्राजकोपनिषद्’ में अथर्ववेद की गूढ़ व्याख्याएं सरल भाषा में प्रस्तुत हैं. साथ ही 'नारद पुराण', ‘नारदगीता’, ‘नारद-स्मृति’ और ‘नारदीय शिक्षा’ आदि ग्रंथ देवर्षि नारद की शिक्षाओं को हमारे सामने प्रस्तुत करते हैं.

शायद आप नहीं जानते होंगे, किन्तु देवर्षि नारद महर्षि वेदव्यास एवं महर्षि वाल्मीकि के भी गुरु रथे. जाहिर तौर पर रामायण, श्रीमद्भागवत जैसे ग्रन्थ हमें उनके शिष्यों द्वारा ही प्राप्त हुए हैं.

कहते हैं कि जब महर्षि वेद व्यास को महाभारत-ग्रन्थ में समस्त ज्ञान वर्णित करने के बाद भी संतोष नहीं प्राप्त हुआ तो स्वयं देवर्षि नारद ने व्यासजी भागवतसंहिता की रचना करने की सलाह दी, जिसमें प्रभु की भक्ति का वर्णन है.

इसी प्रकार, भक्त प्रहलाद को भक्ति के लिए दृढ करने में नारद मुनि द्वारा जगाया गया आत्मविश्वास ही काम आया. 

इस क्रम में कई भूले-भटके लोगों को नारद मुनि ने निस्संदेह ही राह दिखलाई.

इस महान ऋषि ने हमारी सृष्टि को अनेकों उपहार ज्ञान के रूप में दिया है, जिसे लेना हमारा परम कर्तव्य है. आप क्या सोचते हैं नारद मुनि के बारे में, कमेन्ट-बॉक्स में अवश्य बताएं.

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