नकुल-सहदेव चरितं - Nakul Sahadev of Mahabharata

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नकुल-सहदेव चरितं - Nakul Sahadev of Mahabharata


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Published on 29 Jan 2023

नकुल-सहदेव: सुंदरता और गुणों की खान थे ये जुड़वां भाई

जब महाभारत की कथा पढ़ते या सुनते हैं तो पांडवों के पांच पुत्रों के बारे में जानते हैं, किन्तु हम जितना युधिष्ठर, भीम और अर्जुन के करीब हैं शायद तुलनात्मक तौर पर नकुल-सहदेव से दूर हैं.

उनके जन्म, साहस और जीवन की कहानियों को बाकी तीन भाईयों की तुलना में कम स्थान दिया गया है.

इस बात यह मान लेना कि वे दोनों किसी भी रूप में बाकी तीनों भाईयों से कमतर थे, यह गलत होगा. नकुल और सहदेव जुड़वां भाई थे और उनकी अपनी अनोखी शक्तियां थीं. ज्यादातर लोगों का मत है कि श्रीकृष्ण महाभारत युद्ध के बारे में सब जानते थे.

वे जानते थे कि कब क्या होने वाला है. किन्तु कृष्ण के अलावा सहदेव भी थे जो विलक्षण प्रतिभा रखते थे कि उन्हें भविष्य वर्तमान में ही दिख जाता था. वे जानते थे कि महाभारत होगी और कौन जीतेगा?

इन दोनों भाईयों में संदर्भ में ऐसे ही कई और तथ्य हैं, जिन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता. चलिए आज की कहानी में हम नकुल-सहदेव को और करीब से जानने की कोशिश करते हैं!

कुंती के मंत्र से जन्में थे माद्री के बेटे

दो छोटे पांडवों के जन्म की कथा बिल्कुल अलग है. पांडु की पहली पत्नी कुंती तीन वीर पुत्रों युधिष्ठर, भीम और अर्जुन को जन्म दे चुकी थी. वहीं गांधारी ने सौ पुत्रों को जन्म ​दे दिया था. दोनों परिवारों के बच्चे समय के हिसाब से बड़े हो रहे थे.

जबकि, पांडु की दूसरी पत्नी माद्री अभी तक मां बनने के सुख से दूर थी.

माद्री का दुख समझने का समय शायद किसी के पास नहीं था और इसलिए वह अकेली होती जा रही थी. महाभारत आदि पर्व के ‘सम्भव पर्व’ के अध्याय 123 के अनुसार पांडु संतान उत्पत्ति की क्षमता खो चुके थे.

कुंती ने संतान प्राप्ति मंत्र के जरिए तीन पुत्रों को जन्म दे दिया था लेकिन माद्री के सामने समस्या ज्यों कि त्यों थी. पुत्रवति होने से पांडु का पूरा ध्यान कुंती और उसके बच्चों पर रहा. लंबे समय बाद पांडु ने पाया कि माद्री की सुंदरता अब कम होने लगी है, वह कड़वाहट से भरती चली जा रही है. उन्होंने माद्री से इसका कारण जानना चाहा.


माद्री ने कहा, ‘मैं कैसे खुश हो सकती हूं? बस आप, आपके तीन बेटे और आपकी दूसरी पत्नी ही सब कुछ है. मेरे पास न आप हैं न बच्चे! पांडु ने माद्री को समझाने का प्रयास किया पर वे  जानते थे कि माद्री का क्रोध जायज है.

लंबी बहस के बाद माद्री ने पांडु से कहा कि कुंती दीदी संतान प्राप्ति का मंत्र जानती है, आप उनसे कहो कि वह मंत्र मुझे भी सिखाएं ताकि मैं भी मां बन सकूं. पांडु के लिए यह काम मुश्किल था पर माद्री का क्रोध शांत करने के लिए कोई रास्ता नहीं बचा.

जब पांडु ने कुंती को माद्री की इच्छा बताई तो उन्होंने कहा कि यह मंत्र मुझे वरदान स्वरूप मिला है. जिसे मैं किसी के साथ बांट नहीं सकती, लेकिन माद्री की मदद कर सकती हूं. इसके बाद वह माद्री को जंगल की एक गुफा में ले गई.


साथ ही बोलीं, ‘मैं मंत्र का प्रयोग करूंगी. तुम जिस देवता को चाहो, बुला सकती हो और उनके गुणवाली संतान पा सकती हो.

यह सुनकर माद्री सोच में आ गई. वह समझ नहीं पा रही थी कि आखिर कौन सा देवता है जो सबसे बलशाली, सबसे सुंदर, सबसे ज्ञानी है? इस विचारों की उलझन में माद्री के मन में दो अश्वनियों की तस्वीर अंकित हुई.

जो देवता नहीं, परंतु आधे देवता हैं. अश्व का मतलब है घोड़ा, ये दोनों दिव्य अश्वारोही थे, जो अश्व विशेषज्ञों के कुल से संबंध रखते थे. जब माद्री उनके बारे में विचार कर रही थी तभी कुंती ने मंत्र बोलना आरंभ कर दिया और कुछ ही देर में अश्वनी प्रकट हो गए.

उन्होंनें फलस्वरूप माद्री को दो जुड़वां पुत्र दिए. इसमें एक का नाम नकुल और दूसरे का नाम सहदेव रखा गया. इस तरह पांडु के पांच पुत्र हुए. वह होने को तो राजकुमार थे, लेकिन उनका जन्म जंगल में हुआ. किसी के भी शरीर में पांडु का रक्त नहीं था.

रघुकुल से था दोनों का संबंध

यहां सबसे अहम तथ्य यह है कि केवल नकुल-सहदेव ही थे जिनका संबंध श्री राम के परिवार से था. जी हां.. ये दोनों रघुकुल से संबंध रखते थे. माद्री का मायका रघुकुल का था. उनके भाई का नाम शल्य था, जो माद्र देश के राजा थे. शल्य और माद्री दोनों रघुकुल परिवार की पीढी थे. इस लिहाज से नकुल-सहदेव का मामा पक्ष की ओर से रघुकुल संबंध भी रहा.
 

वैसे एक कहानी यह भी है कि महाभारत के दौरान नकुल-सहदेव अपने मामा शल्य से नाराज हो गए थे. हुआ यूं कि जब शल्य को पता चला कि महाभारत युद्ध होने वाला है तो वह पांडवों की तरफ से लड़ने के लिए तैयार हो गए.

जब वे पांडवों से मिलने जा रहे थे, तो दुर्योधन ने उन्हें अपने महल में बुलाया और खूबखातिरदारी की. शल्य को लग रहा था कि उनका यह सत्कार युधिष्ठिर करवा रहे हैं इसलिए उन्होंने उनसे मिलने की इच्छा जताई. इसके पहले वे दुर्योधन से कह चुके थे कि जो चाहे वह वरादान मांग सकते हो. दुर्योधन ने उन्हें छल से अपनी सेना में शामिल करवा लिया.

जब तक शल्य कुछ समझ पाते वे वरदान दे चुके थे. जब यह बात नकुल और सहदेव को पता चली तो वे अपने मामा से नाराज हो गए. उन्होंने कहा कि आपकी इस हरकत से यह साबित हो गया है कि हम पांडवों के सौतेले भाई हैं.

शल्य को वरदान स्वरूप कौरव सेना के साथ जाना पड़ा.

हालांकि, अपने भांजों का गुस्सा शांत करने और अपनी गलती के प्राइश्चित के लिए उन्होंने कहा आश्वास दिया कि मैं महाभारत में कर्ण का सारथी बनूंगा और पूरे युद्ध में उन्हें हत्तोसाहित करता रहूंगा.

सहदेव ने खाया था पिता का मांस

जी हां! आपने कुछ गलत नहीं पढ़ा है. यह सच है कि सहदेव ने अपने​ पिता की शरीर का मांस खाया था. यह महाभारत की वह घटना है जिसके विषय में दो कहानियां कही जाती हैं. दरअसल पांडु के पास असीम ज्ञान था.

वे राजनीति, रणनीति और तलवारबाजी के महारथी माने जाते थे. उन्होंने अपने पुत्रों से अंतिम समय में एक वरदान माना था. जिसके अनुसार सभी पुत्रों को मरणोपरांत उनके शरीर का मांस खाना था. पांडु का विचार था कि ऐसा करने से उनके सभी पुत्रों में वह ज्ञान समान रूप से चला जाएगा जो उन्होंने अपने जीवन काल में प्राप्त किया.

चूंकि उनके किसी भी पुत्र में उनका रक्त नहीं था इसलिए उनकी यह इच्छा प्रकट करना लाजमी था. यहां तक तो कहानी एक है पर इसके बाद दो मत हो जाते हैं. पहले मत के अनुसार पांचों पांडवों ने अपने पिता के शरीर के मांस को खाया, पर सबसे ज्यादा मांस सहदेव ने खाया. यही कारण रहा कि उसमें पिता का सबसे ज्यादा ज्ञान पहुंचा.

दूसरे मत के अनुसार पांडवों में यह हिम्मत नहीं थी कि वे अपने पिता के शरीर को ही नोंचकर खा पाएं, पर चूंकि पिता का यह अंतिम आदेश था इसलिए इसे पूरा करना था. चारों भाईयों में से केवल सहदेव ही थे जो हिम्मत दिखा पाए और पांडु के शरीर का मांस खा पाए. नतीजतन उनमें बाकी चारों भाईयों की अपेक्षा सर्वाधिक ज्ञान पहुंचा.

इसके बाद सहदेव ने गुरू द्रोणाचार्य से शिक्षा हासिल की. जहां सभी भाई रणनीति और राजनीति सीख रहे थे वहीं सहदेव ने इसके अतिरिक्त ज्योतिष विज्ञान भी सीखा. नतीजतन उनमें भविष्य देखने की क्षमता विकसित हो गई.

श्री कृष्ण जानते थे कि सहदेव महाभारत के हर एक रहस्य को जानता है. उन्हें डर था कि कहीं वह महाभारत का भेद न खोल दे इसलिए उन्होंने सहदेव की शिक्षा खत्म होने के साथ ही उसे यह श्राप दे दिया कि यदि वह महाभारत के संदर्भ में कभी भी कोई बात कहेगा तो तत्काल उसकी मृत्यु हो जाएगी. जिसके बाद सहदेव ने सबकुछ जानते हुए भी मौन धारण कर लिया.


घमंड के कारण हुई दोनों की मृत्यु

अश्वनी पुत्र होने के कारण नकुल-सहदेव बुद्धि, रूप और गुणों से सम्पन्न हुए. कहा जाता है कि पृथ्‍वी पर सुन्‍दर रुप में उन दोनों की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं था. अश्विन कुमारों की तरह की नकुल ने धर्म, नीति और चिकित्साशास्त्र में दक्षता हासिल की थी. इसके अलावा अश्व विद्या में भी महारत हासिल की. जिसका फायदा उन्हें अज्ञातवास के दौरान मिला.

अज्ञातवास के दौरान नकुल ने भेष बदलकर ‘ग्रंथिक’ नाम से महाराज विराट की राजधानी उपपलव्य की घुड़शाला में काम किया था. वे शाही घोड़ों की देखभाल करने का काम करते थे. इसके अलावा तलवारबाजी और घुड़सवारी की कला में पारंगत होने के कारण वे राजा के सैनिकों को भी प्रशिक्षित करते रहे.

सहदेव की तुलना में नकुल ज्यादा सुंदर थे. कहा जाता है कि उन्हें अपनी सुंदरता का घंमड भी था. धरती पर उनके रूप की तुलना ‘कामदेव’ से की जाती थी. दोनों भाईयों ने पहला विवाह द्रौपदी के साथ किया था. द्रौपदी और नकुल को एक पुत्र प्राप्ति हुई, जिसका नाम शतानीक रखा गया.


हालांकि इसके अलावा नकुल की की एक और पत्नी करेणुमती थी और उन दोनों के पुत्र का नाम निरमित्र था.

इसी तरह सहदेव की दूसरी पत्नी का नाम विजया था. विजया ने सुहोत्र नाम के पुत्र को जन्म दिया. कहा जाता है कि महाभारत खत्म होने के बाद जब पांडवों ने हिमालय की यात्रा शुरू की तो रास्ते में नकुल-सहदेव की मृत्यु हो गई.

जब धर्मराज युधिष्ठर ने उनकी मृत्यु का कारण पूछ तो साफ हुआ कि नकुल को अपने पूरे ​जीवन काल में इस बात का अभिमान रहा कि वह सबसे ज्यादा सुंदर है. जबकि, सहदेव की मृत्यु का कारण भी उसका घंमड था. यह घंमड उसे इसलिए था, क्योंकि वह जानता था कि भविष्य देखने की क्षमता कृष्ण के अलावा केवल उसके पास है. वह खुद को सर्वाधित ज्ञानी मानता रहा.

इस तरह दोनों भाईयों की मृत्यु उनके घमंड के कारण हुई. दोनों ने अपने भाईयों का साथ देते हुए महाभारत में दुश्मनों की नाक में दम कर रखा था, यह बात और है कि उनके साहस का बखान बाकी योद्धाओं की तुलना में कम हुआ है!

Nakul Sahadev's Legendary Story, Hindi Artcle

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