उर्मिला चरितं - Laxman Urmila's Renunciation

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उर्मिला चरितं - Laxman Urmila's Renunciation


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Published on 29 Jan 2023

लक्ष्मण-उर्मिला के त्याग और समर्पण की कहानी

बात जब रामायण की होती है, तो हमारा शीश आदर के साथ झुक जाता है. हम भगवान श्री राम को मर्यादा पुरूषोत्तम कहते हुए पूजते हैं और माता सीता को महान पतिव्रता स्त्री मानते हुए सम्मानित करते हैं.

भाईयों का जिक्र होता है, तो भरत याद आते हैं, जिन्होंने 14 वर्ष तक अपने बड़े भाई के सिंहासन की रक्षा की.

किन्तु इन प्रमुख घटनाओं के पीछे छिप जाते हैं रामायण के दो महत्वपूर्ण पात्र, जिनके बारे में जानना अहम है! ये पात्र हैं लक्ष्मण और उर्मिला!

भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण और माता सीता की छोटी बहन उर्मिला के त्याग का भी रामायण में बहुत महत्व है. वनवास काल के दौरान एक भी क्षण ऐसा नहीं था, जब लक्ष्मण ने आंखें मूंदी हो. 

जबकि, जब राजा का राजतिलक हो रहा था तब वे आराम से सो रहे थे.

तो चलिए आज इस रहस्य को जानते हैं—

जब लक्ष्मण ने सौंपी परिवार की जिम्मेदारी

भगवान श्री राम को चौदह वर्ष का वनवास हो चुका था. पूरा राजमहल दुखी था. राम और सीता वनवास जाने की तैयारी कर रहे थे. ऐसे में लक्ष्मण ने जिद पकड़ ली थी कि वे भी अपने भाई की परछाई बनकर उनके साथ वन में जाएंगे. श्री राम ने उन्हें बहुत समझाया पर लक्ष्मण के हट के आगे उनका भी बस नहीं चला.

आखिर वनवास जाने के लिए राम-सीता के साथ लक्ष्मण भी तैयार हो गए.

जब यह खबर लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला को मिली, तो वे पहले खुश हुईं कि उनके पति अपने भाई की सेवा करने के लिए राजभवन के सारे सुख त्यागने को तैयार हैं. मगर अगले पल वह दुखी हो गईं क्योंकि वो राजमहल में अपने पति के बिना कैसे सुख से जी पाएगी!


उर्मिला ने तय किया कि जैसे बहन सीता पति राम की सेवा करना चाहती हैं, पति लक्ष्मण भाई-भाभी की सेवा करना चाहते हैं वैसे ही वह खुद भी अपने पति की सेवा के लिए उनके साथ वनवास जाएगी.

जब उर्मिला ने यह बात लक्ष्मण से कही, तो उन्होंने उसे साथ ले जाने से इंकार कर दिया. उर्मिला दुखी हो गई. तब उसकी तकलीफ को समझते हुए लक्ष्मण ने कहा कि मैं तुम्हें राज महल में इसलिए छोड़कर जा रहा हूं.

ताकि, तुम मेरे पूरा परिवार का ध्यान रख सको. मेरी सभी माताओं और पिता की जिम्मेदारी तुम्हारी है. भाभी सीता के यहां न रहने पर तुम ही घर की बड़ी बहू हो. उर्मिला ने कहा कि मैं परिवार के प्रति जिम्मेदार हूं, पर मेरा परिवार तो पहले आप से शुरू ​होता है. इसलिए आप के प्रति मेरे कर्तव्य क्या होंगे...

मैं 14 वर्ष महल में रहूं और आप जंगलों में...यह न्याय संगत नहीं है. लक्ष्मण ने कहा कि मैं वनवास जा रहा हूं ताकि अपने भाई-भाभी की सेवा कर सकूं. यदि तुम मेरे साथ वहां रहोगी, तो मेरे सेवा कार्य में व्यवधान आ सकता है.

उर्मिला के पास अपने पति की आज्ञा पालन के अलावा कोई चारा नहीं था. सो सहमति देते हुए उन्होंने परिवार में रहकर सभी की सेवा करना स्वीकार किया.

सीता ने दिया था उर्मिला को अनोखा वरदान

उर्मिला ने लक्ष्मण की आज्ञा तो स्वीकार कर ली थी, पर वे दुखी थीं कि आखिर कैसे पति और बड़ी बहन के बिना पूरे राज महल की जिम्मेदारी सम्हाल पाएंगी. ऐसे वक्त में उसे समझने वाला केवल एक व्यक्ति था, वह भी उनकी बड़ी बहन सीता.

उर्मिला तत्काल अपनी बहन सीता के पास पहुंची और कहा, आप जा रहीं हैं. पति मुझे साथ नहीं ले जाना चाहते हैं. मुझ पर पूरे परिवार का भार आ गया है. आप के साथ जिम्मेदारियां बांटती आई हूं, फिर अब कैसे सब कुछ अकेले सम्हाल सकती हूं.


सीता ने उर्मिला को समझाया कि वह वो सबकुछ कर सकती है, जो उससे अपेक्षा की जा रही है. उन्होने बताया कि ईश कृपा से मेरे पास एक वरदान है, जो मैं तुम्हे दे सकती हूं.

इस वरदान के अनुसार तुम एक समय में 3 कार्यो को एक साथ पूरा कर सकती हो. सीता ने उर्मिला को यह वरदान देते हुए कहा कि अब बेफ्रिक होकर 14 वर्षों तक महल और परिवार की सेवा करो. तुम्हें कभी कोई व्यवधान नहीं आएगा.

लक्ष्मण ने उर्मिला को दे दी अपनी नींद

राम, सीता और लक्ष्मण वनवास की ओर प्रस्थान कर गए. जबकि उर्मिला परिवार के साथ रह गईं. रामायण के अनुसार जब वनवास के पहले दिन श्री राम वन पहुंचे तो लक्ष्मण ने उनके लिए अपने हाथ से कुटिया का​ निर्माण किया.

कुटिया निर्माण करते-करते शाम हो गई. जब यह काम पूरा हुआ, तो लक्ष्मण ने अपने भाई-भाभी से आग्रह किया कि वे विश्राम करें. जबकि, खुद लक्ष्मण ने बाहर रहकर उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी सम्हाली.

श्री राम और सीता कुटिया में पहुंचे. जबकि, लक्ष्मण रात्रि में पहरा दे रहे थे. वह तीनों की वनवास में पहली रात थी. अंधेरा घिरने के साथ ही लक्ष्मण की थकान भी बढ़ने लगी. उनकी आंखें नींद से भर रहीं थी, पर यदि वे एक पल के लिए भी सो जाते तो उनके सेवा कार्य में बाधा आ सकती थी. इसलिए वे जागते रहे.

लक्ष्मण पर नींद का असर हो रहा था. पर उनके ना सोने के कारण निद्रा देवी परेशान हो गईं. वे तत्काल ही लक्ष्मण के समक्ष प्रकट हुईं. उन्होंने लक्ष्मण से सोने का आग्रह किया, लेकिन अपने भाई-भाभी की सेवा को सर्वोपरि रखने वाले लक्ष्मण ने इंकार करते हुए प्रार्थना की.  लक्ष्मण ने निद्रा देवी से कहा कि यदि आप मुझ पर कृपा करना चाहती हैं तो तब तक मुझसे दूर रहें. वह भी तब तक, जब तक हम वापस अयोध्या नहीं पहुंच जाते.

निद्रा देवी को लक्ष्मण का सुझाव अच्छा लगा. पर उन्होंने कहा कि ​मैं तुमसे दूर हो सकती हूं, पर तब जब कोई और तुम्हारे बदले की नींद ग्रहण कर ले. लक्ष्मण ने कहा मेरे हिस्से की नींदआप मेरी पत्नी उर्मिला को दे दीजिए.

न्रिदा देवी ने उनकी शर्त स्वीकार तो कर ली, पर स्पष्ट कर दिया कि जैसे ही 14 वर्ष पूरे होंगे वे वापस आएंगी. फिर लक्ष्मण को अपनी 14 वर्ष की नींद पूरी करनी होगी. लक्ष्मण ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया.

...और 14 साल के लिए सो गईं उर्मिला

निद्रा देवी लक्ष्मण के वचन को लेकर उर्मिला के पास पहुंचीं. उर्मिला ने पति की पहली आज्ञा स्वीकार की थी. अब दूसरी आज्ञा के पालन का समय था. अत: उन्होंने उसे भी स्वीकार कर लिया और सीता के दिए वचन के अनुसार अपनी एक छवि को सुला दिया. जबकि, बाकी दोनों छवियों के सहारे वे महल के काम और परिवार की सेवा करती रहीं.

यह क्रम पूरे 14 वर्ष तक जारी रहा. यानि लक्ष्मण 14 वर्ष तक नहीं सोए और उर्मिला 14 वर्ष तक नहीं जागीं. एक तरह से उर्मिला के लिए यह आज्ञा वरदान ही थी. क्योंकि उन्हें निद्रा के प्रभाव में बीते 14 वर्षों का अहसास तक नहीं हुआ था.

वहीं दूसरी ओर लक्ष्मण वनवास काल में बिना एक क्षण सोए हर वक्त श्रीराम और माता सीता की सेवा करते रहे.

उर्मिला की तरह ही लक्ष्मण के लिए निद्रा देवी का वचन वरदान बन गया था. इस बात का एहसास उन्हें तब हुआ, जब लंका में रावण के विरूध लड़ाई शुरू हो चुकी थी. रावण की सेना में मेघनाद सबसे शक्तिशाली योद्धा था.

उसकी सारी शक्ति एक वरदान में निहित थी.

इस वरदान के अनुसार मेघनाद को पृथ्वी पर केवल वही प्राणी मार सकता था, जिसने बीते 14 वर्षों से अपनी निद्रा पूर्ण ना की हो. उसे लगता था कि धरती पर ऐसा होना संभव नहीं है.


इसलिए उसे अपनी शक्ति पर गुमान रहा. रावण भी यही समझता रहा कि मेघनाद के होते हुए उसे कोई नहीं हरा सकता.

हालांकि, वह यह नहीं जानता था कि लक्ष्मण धरती का वह एकमात्र प्राणी है, जो 14 वर्षों से जाग रहा है. जब उन्हें मेघनाद के वरदान के बारे में पता चला, तो उन्होंने खुद उसका सामना करने का निर्णय लिया.  दोनों के बीच भीषण युद्ध हुआ और मेघनाद लक्ष्मण के हाथों मारा गया.

यह खबर मेघनाद की पत्नी सुलोचना को मिली, तो वह रोते हुए श्रीराम की सेना के खेमे में पहुंची और लक्ष्मण से कहा कि यह कभी गुमान न करना कि मेघनाद का वध तुमने किया है. तुम्हें यह जीत एक पतिव्रता स्त्री के प्रभाव से मिली है, जो तुम्हारी आज्ञा का पालन कर रही है.

राम का राजतिलक तक नहीं देख पाए लक्ष्मण!

रावण वध के बाद जब श्री राम माता सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या वापस लौटे तो परिवार में खुशियां लौट आईं. श्री राम के राज तिलक की तैयारियां शुरू हो गईं. इस खुशी के मौके पर लक्ष्मण ने बिना कारण हंसना शुरू कर दिया.

लक्ष्मण की असहज हंसी को देखकर सभी ने उनसे कारण पूछा तो वे बोले- मैंने अयोध्या आने और अपने भाई को राज सिंहासन पर बैठे देखने का स्वप्न सजा रखा जो आज पूरा होने जा रहा है.


पर कितना अजीब है कि मैं खुद इस स्वप्न को साकार होते नहीं देख सकता, क्योंकि मैं निद्रा देवी को दिए वचन से बंधा हूं. तभी निद्रा देवी प्रकट हुई और लक्ष्मण ने अपना वचन पूरा किया.

इस तरह लक्ष्मण अपने कक्ष में सो गए और उधर उर्मिला 14 साल बाद जाग गईं.

इस तरह जब श्री राम का राजतिलक हुआ तो उस समारोह से लक्ष्मण नदारद रहे. उनकी जगह उर्मिला ने राम को सिंहासन पर विराजते हुए देखा. समारोह के बाद भी अगले 14 वर्ष तक लक्ष्मण सोते रहे और उर्मिला उन्हें दूर से केवल निहारती रहीं.

इस तरह महाभारत हमें हमारे कर्तव्यों का बोध करता है और रामायण हमें त्याग की शिक्षा देती है. रामायण केवल राम के त्याग से सार्थक नहीं है, बल्कि इसका हर पात्र त्याग की एक पूरी कहानी खुद में समेंटे हुए है.

The Story of Laxman Urmila's Renunciation, Hindi Article

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