अपने सात जीवत पुत्रों को नदी में बहा देने वाली गंगा की कहानी
महाभारत की प्रतिदिन की एक घटना जीवन की एक सीख देती है. इसका हर पात्र कहीं न कहीं वह कहता है, जो आम मनुष्य अपने जीवन में घटित होते देखता है.
पिछली कई कड़ियों में हमने महाभारत के उन पात्रों के जीवन का रहस्योद्घाटन किया था, जिन्हें कम विस्तार दिया गया. ऐसा ही एक महत्वपूर्ण हिस्सा भीष्म के जीवन से जुड़ा है!
सर्वविदित है कि गंगा भीष्म की मां थीं. वह गंगा जो आज धरती पर पापमोक्षनी मानी जाती है और मनुष्यों को पुण्य के द्वार तक पहुंचा रही है. बताते चलें कि यह वहीं गंगा हैं, जिन्होंने अपने 7 पुत्रों को जन्म देते ही जीवित अवस्था में नदी में विजर्सित कर दिया.
ये सात बच्चे भीष्म के छोटे भाई थे, जिन्हें भीष्म कभी देख ही नहीं पाए.
तो आईए जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर किस मजबूरी के कारण गंगा को ऐसा करना पड़ा-
जब गंगा पर गई महाभिषक की नज़र
भीष्म तक आने से पहले हमें उनकी माता-पिता के बारे में जान लेना चाहिए. चूंकि उनके मिलन की कहानी भी एक दिलचस्प घटना से प्रेरित है. महाभारत के आदि पर्व के अनुसारदुष्यंत और शकुंतला के विवाह के बाद उनकी संतान राजा भरत हुए.
राजा भरत के पांच बेटे थे, लेकिन उनमें से कोई भी राजा बनने के लायक नहीं था. इसलिए उन्होंने वृहस्पति के पुत्र विरथ को अपना उत्तराधिकारी चुना. विरथ की चौहदवीं पीढ़ी में शांतनु का जन्म हुआ.
शांतनु के धरती पर जन्म लेने के पीछे एक श्राप निहित था. इसके अनुसार शांतनु का पूर्व जन्म का नाम महाभिषक था. वह पूर्ण सिद्ध होकर देवलोक चले गए थे. देवलोक में वे इंद्र के दरबार में बैठे थे, जहां बाकी देवियों के साथ गंगा भी विराजमान थी.
जब गंगा सभा में बैठी थीं, तो शरीर से उनका पल्लू गिर गया. इस घटना के होते ही सभी देवताओं ने अपनी आंखें बंद कर लीं, लेकिन महाभिषक ही थे, जिन्होंने नेत्र बंद नहीं किए.
इस अनुचित आचरण को देखकर इंद्र ने महाभिषक को देवलोक से निकालकर फिर से मृत्युलोक में जन्म लेने का श्राप दे दिया.
इस घटना से महाभिषक जहां दुखी थे, वहीं गंगा खुद पर गर्व महसूस कर रही थीं. उनकी आंखों में अहंकार का भाव देखते हुए इंद्र ने उन्हें भी धरती लोक में मनुष्य योनि में जन्म लेने का आदेश दे दिया. इस तरह धरती पर महाभिषक शांतनु के रूप में जन्में.
आगे राजा शांतनु एक बार शिकार करने वन पहुंचे. जहां पहली बार उनकी नजर गंगा से मिली. धरती लोक में वह अपना श्राप भूल चुके थे, लेकिन गंगा को सब याद था. दोनों के बीच मोह का बंधन ऐसा प्रगाढ़ हुआ कि उन्होंने विवाह कर लिया.
हालांकि, विवाह से पहले गंगा ने शर्त रखी कि राजा शांतनु उनसे कभी कोई सवाल नहीं पूछेंगे और उनके कुछ भी करने पर रोक नहीं लगाएंगे. यदि ऐसा हुआ तो वे आजीवन के लिए उनसे अलग हो जाएंगी.
शांतनु ने यह शर्त स्वीकार कर ली...
गंगा ने अपने 7 पुत्रों को दे दी जलसमाधि
इस प्रकार नियति ने गंगा और शांतनु को एक बंधन में बांध दिया था, लेकिन कहानी यहां से रोचक मोड़ लेने वाली थी. गंगा और शांतनु का जीवन सुख में व्यतीत हो रहा था. इसी बीच एक खुशखबरी उनके जीवन में आई.
गंगा गर्भवती हुईं. शांतनु खुश थे, क्योंकि उनके राज्य को युवराज मिलने वाला था.
बहरहाल, जब गंगा ने पुत्र को जन्म दिया तो बिना किसी कारण शांतनु के सामने ही उस पुत्र को नदी में बहा दिया. वे समझ नहीं पाए कि आखिर गंगा ने ऐसा क्यों किया है? लेकिन वे अपनी शर्त में बंधे थे, इसलिए कोई सवाल नहीं किया.
यही फिर से हुआ, जब गंगा ने दूसरे पुत्र को जन्म दिया. शांतनु क्रोधित थे, पर सवाल न करने की विवशता में बंधे थे. यह क्रम 7 साल तक चला. गंगा हर साल एक पुत्र को जन्म देती और उसे पैदा होते ही नदी में बहा देती.
अब गंगा आठवीं बार मां बनने वाली थी. शांतनु ने तय किया कि इस बार वे अपने पुत्र को कुछ नहीं होने देंगे. जब गंगा ने पुत्र को जन्म दिया और उसे लेकर नदी पर पहुंचीं, तो शांतनु ने पीछे से आकर गंगा को रोक दिया.
पुत्र को छीनते हुए उन्होंने कहा कि मैं अब तुम्हारी मनमानी नहीं चलने दूंगा. गंगा ने शांतनु से कहा कि तुमने अपना वचन तोड़ा है. अब हम साथ नहीं रह सकते. शांतनु ने कहा यदि तुम जाना चाहती हो तो कारण बताओ कि आखिर ऐसा क्यों किया?
वशिष्ठ ऋषि के श्राप से ग्रसित आठ भाई
वह गंगा और शांतनु के जीवन का आखिरी क्षण था, जब दोनों साथ थे. गंगा ने जाने से पहले उस रहस्य को खोला. इसके लिए उन्होंने अपने ही पुत्रों को जलसमाधि दे दी थी.
गंगा ने बताया कि आज वर्षों पहले मेरू पर्वत पर वशिष्ठ ऋषि का आश्रम हुआ करता था. आश्रम में वे अपने शिष्यों और प्रिय गाय नंदिनी के साथ रहते थे. यह कोई साधारण गाय नहीं थी, बल्कि उसमें दैवीय गुण थे.
विष्णु भगवान के अंशावतार पृथु के आठ पुत्र एक बार अपनी पत्नियों के साथ विचरण करने के लिए मरू पर्वत पहुंचे. जब वे आश्रम के सामने से गुजर रहे थे, तो उनकी नजर नंदिनी पर गई.
एक वसु प्रभास की पत्नी ने उनसे उस गाय को लाने के लिए कहा. पत्नी की इच्छापूर्ति के लिए प्रभास आश्रम में गए और बिना किसी की अनुमति के वह गाय ले आए.
प्रभास के इस कृत्य का वसुओं ने विरोध किया, पर उन्होंने इस जायज ठहराया. जैसे ही वशिष्ठ ऋषि को नंदिनी के गायब होने की खबर हुई वे क्रोध से भर गए. वह वसु के पास पहुंचे और वसु से कहा तुमने मेरी गाय चुराकर घोर पाप किया है.
उन्होंने तत्काल वसुओं को श्राप देते हुए कहा कि तुम लोग मनुष्य योनि में पैदा होगे. प्रभास को श्राप देते हुए उन्होंने कहा कि तुम्हें पृथ्वी पर आजीवन कष्ट भोगना होगा.
तुम्हारे अपने ही तुम्हारे पतन का करण बनेंगे. यह सुनकर वसु परेशान हो गए और वापस देवलोक पहुंचे. जब वे देवलोक पहुंचे, तभी वह वाक्या घटित हुआ था. इसके कारण महाभिषेक और गंगा को धरती पर जन्म लेने का श्राप मिला था.
अत: आठों वसुओं ने गंगा से गुहार लगाई कि हमारी मुक्ति का कोई उपाय बताएं.
गंगा ने कहा कि जब में धरती पर जन्म लूंगीं, तब तुम आठों में मेरे गर्भ से उत्पन्न होगे. तभी मैं तुम्हें मृत्युलोक से मुक्त कर दूंगी.
आजीवन दुख भरे जीवन को जीते रहे भीष्म
गंगा ने शांतनु से कहा कि मैंने आठ वसुओं को जन्म दिया. इसमें से सात को उनके जन्म के तत्काल बाद ही जीवन-मृत्यु के चक्र से मुक्त कर दिया. पर तुमने जिस शिशु को बचाया है वह प्रभास का मनुष्यवतार है.
शायद ऋषि वशिष्ठ का श्रॉप सच होने वाला है. यह शिशु धरती पर जिएगा और आजीवन कष्ट भोगेगा.
गंगा ने शांतनु से कहा कि मुझे यह बालक दे दो. मैं 16 वर्ष तक इसका जीवन संवारूंगी और इसे सुयोग्य राजा बनाने की कोशिश करूंगी. शांतनु ने भारी मन से अपने नवजात शिशु और पत्नी गंगा को विदाई दे दी.
गंगा ने पुत्र को देवव्रत नाम दिया और उसका लालन-पालन किया.
उसमें क्षत्रियों वाले सभी गुण थे. वह धर्म, अर्थशास्त्र, नीति शास्त्र में पारंगत हुआ. 16 साल बीतजाने के बाद गंगा ने देवव्रत को उसके पिता शांतनु के बारे में बताया और फिर दोनों की भेंट हुई.
शांतनु जो अपने परिवार को खोने के बाद दुखी हो गए थे, उनमें एक बार फिर चेतना जागी. उन्होंने देवव्रत को शस्त्र-अस्त्र, घुड़सवारी और तीरंदाजी में पारंगत करवाया. यह बात और है कि देवव्रत कभी राजा नहीं बन सके.
यही देवव्रत अपनी प्रतिज्ञा और गुणों के कारण 'भीष्म' के नाम से जाने जाते हैं. वही भीष्म जिन्होंने आगे चलकर पांडवों और कौरवों को नीतिशास्त्र की शिक्षा दी.
हालांकि उनका पूरा जीवन कष्ट से घिरा रहा. उनकी कष्टप्रद मृत्यु का प्रमारण तो महाभारत में भी है.
Ganga Shed Her Seven Sons In The River, Hindi Article
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