कर्ण से विवाह करना चाहती थीं द्रौपदी? क्या है सच? Draupadi and Karna's Love Angle, Hindi Story

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कर्ण से विवाह करना चाहती थीं द्रौपदी? क्या है सच? Draupadi and Karna's Love Angle, Hindi Story


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Published on 30 Jan 2023

कर्ण से विवाह करना चाहती थी द्रौपदी, पर एक मजबूरी ने बदल दी किस्मत!

महाभारत के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण चरित्र है द्रौपदी!
 
कहा जाता है कि यदि द्रौपदी न होती तो महाभारत न होती पर इस पूरी कथा में जितना अन्याय इस नारी चरित्र के साथ हुआ उतना किसी और के साथ नहीं. एक साधारण नारी छिपी प्रेम, ईर्ष्या, डाह जैसी समस्त नारी-सुलभ दुर्बलताएँ उसके भीतर थीं. पुरूषों की भीड़ में उसे कमजोर माना जाता था पर द्रौपदी का अनंत संताप उसकी ताकत बना.

बहरहाल आज यहां द्रौपदी के संघर्ष की बात नहीं हो रही बल्कि उस 'घटना' की बात हो रही है, जो यदि घट जाती तो इतिहास कुछ और हो सकता था. वह छोटा सा वाक्या जिसे महाभारत की अनकही कहानियों में दबा रह गया.
वह प्रसंग था द्रौपदी और कर्ण के प्रेम का. जी हां! यह हैरान कर देने वाला वो सच है जिसका खुलासा खुद कर्ण ने महाभारत के अंतिम क्षणों में मृत्युशैया पर लेटे भीष्म पितामह के सामने किया था. वह सच जिसे द्रौपदी जानती थी पर अपने पिता की प्रतिज्ञा के लिए उसे सीने में दफन कर लिया.

महाभारत में द्रौपदी और अर्जुन के प्रेम का प्रसंग मिलता है. उनके पांचों पांडवों की पत्नी बनने की कथाएं मिलती हैं पर कर्ण से जुडी एक अपमानजनक घटना याद आती है. लेकिन यह अधूरा सच है...

आज एक बार फिर महाभारत की अनकही कहानियों के बीच से उठाते हैं द्रौपदी-कर्ण प्रेम प्रसंग को!
 
अपमान के बदले के लिए हुआ जन्म

द्रौपदी का जन्म सामान्य परिस्थितियों में नहीं हुआ था, शायद इसलिए भी उनके जीवन में स्थिरता नहीं आई. दरअसल पांचाल के राजा द्रुपद को कोई संतान नहीं थी. वे चाहते थे कि उनके घर पुत्र का जन्म हो ताकि उनके राजपाठ को सम्हाल सके और द्रोणाचार्य से उनका बदला ले सके. दरअसल एक अन्य कथा के अनुसार द्रोण के कहने पर अर्जुन ने द्रुपद का आधा राज्य जीत कर अपने गुरू को दक्षिणा में दे दिया था.

द्रुपद ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया. हवन पूरा होने पर यज्ञ में से सबसे पहले एक पुत्री अवतरित हुई. द्रुपद निराश हो गए क्योंकि उन्हें लगा कि एक बेटी उनके बदले की आग को शांत नहीं कर सकती. जब द्रुपद निराश हुए तभी आकाशवाणी हुई कि यह पुत्री कुरू वंश के पतन का कारण बनेगी. यह सुनने के बाद राजा द्रुपद ने उसे स्वीकार कर लिया. इसके बाद उसी यज्ञ अग्नि से एक पुत्र धृष्टधुम्न का भी जन्म हुआ.

द्रोणाचार्य के प्रति जबरदस्त नफरत का बीज बचपन से ही द्रौपदी के मन में बोया जाने लगा. द्रुपद ने बेटी के पालन पोषण में कोई कमी नहीं रखी पर वे इसके साथ ही उसे ​यह याद दिलाते रहे कि आगे चलकर उसे कुरू वंश को समाप्त करना है.


कर्ण के गुणों से प्रभावित थी द्रौपदी

द्रौपदी ज्यों-ज्यों बड़ी हो रही थीं, उनकी सुंदरता और निखर रही थी. वे इतनी खूबसूरत थी कि उनकी कीर्ति आसपास के कई राज्यों में फैल चुकी थी. वे जितना गृह कार्य में दक्ष थीं उतनी ही युद्ध कला, कूटनीति और राजनीति पारंगत भी.

दुर्योधन द्रौपदी से विवाह करना चाहता था लेकिन द्रौपदी का पहला आकर्षण थे कर्ण! शास्त्रों में बताया गया है कि जब द्रौपदी के विवाह की चर्चा शुरू हुई थी तब राजा द्रुपद ने विभिन्न राज्यों के राजकुमारों की जानकारियां जुटाना शुरू की. हालांकि उनके मन में कुरू वंश से बदला लेने की योजना भी साथ ही साथ चलती रही.

वे चाहते थे कि राजा जरासंध के पोते से द्रौपदी का विवाह हो. उधर कृष्ण की अपनी अलग योजना थी. वे अपनी प्रिय सखी का विवाह अर्जुन से करवाना चाहते थे. लेकिन इन दोनों से अलग द्रौपदी के मन में कुछ और ही चल रहा था.

द्रौपदी के कानों में कर्ण से शौर्य और साहस की खबरें आईं थी. उसे अपनी सखियों और दास दासियों से मालूम हुआ कि कर्ण अति बलशाली है. वे देखने में बेहद खूबसूरत हैं और उनका मन निर्मल है. वे अपने महान दान के लिए जाने जाते हैं. आज तक ऐसा कोई नहीं हुआ, जिसने कर्ण से दान मांगा हो और उन्होंने न दिया हो. वे भले ही दुर्योधन के अभिन्न मित्र हैं पर उनमें कौरवों जैसे कोई भाव नहीं है.

जैसे-जैसे द्रौपदी के कानों में कर्ण के गुणों की चर्चा पहुंच रही थी ठीक वैसे ही कर्ण के कानों में द्रौपदी के अपूर्व सौंदर्य और ज्ञान-विद्या की ख्याति पहुंचना शुरू हुई. हालांकि यह ख्याति दुर्योधन के जरिए उन्हें मिली. कर्ण जानते थे कि दुर्योधन द्रौपदी को पसंद करता है और उसे अपनी पत्नी बनाना चाहता है. बावजूद इसके वह खुद को द्रौपदी के सम्मोहन से दूर नहीं रख सका.

बिना मिले, बिना देखे और बिना एक दूसरे को जाने ही कर्ण और द्रौपदी आर्कषण के बंधन में बंध गए. यहां आकर्षण शब्द का इस्तेमाल इसलिए किया गया है कि क्योंकि शास्त्र इस बात की पूरी तरह से पुष्टि नहीं करते हैं कि यह प्रेम बंधन दोनों ओर से था अथवा नहीं. लेकिन घटनाओं में द्रौपदी के मन में आर्कषण और कर्ण के मन में प्रेम होने की संभावानाएं मिलती हैं.

कर्ण और अर्जुन की तुलानाओं में उलझी द्रौपदी
बहरहाल एक बात तो स्पष्ट हो चुकी थी कि द्रौपदी के मन में कर्ण के प्रति भाव जागृत होने लगे थे. लेकिन जब इस बात की भनक कृष्ण को लगी तो उन्हें अपनी योजना साकार होने से पहले ही खत्म होती नजर आई. चूंकि यदि द्रौपदी का विवाह कर्ण से हो जाता तो इतिहास में महाभारत जैसी किसी घटना का जिक्र ही नहीं होता. चूंकि कृष्ण नियति के ज्ञाता थे, वे सबकुछ पहले से ही जानते थे इसलिए उन्होंने इस मामले में चतुराई पूर्वक हस्तक्षेप किया.
 
द्रौपदी ने कृष्ण से अपने मन में कर्ण के प्रति जागृत हुए भावों का जिक्र किया. कृष्ण ने द्रौपदी से कहा कि तुम्हारे जन्म के साथ तुम्हारे पिता की प्रतिज्ञा बंधी है. वह प्रतिज्ञा जिसे पूरी करने के लिए लोकमाया भविष्यवाणी कर चुकी है. जिसका होना तय है. इस योजना को सफल बनाने के लिए जरूरी है कि तुम रानी बनो, ना कि किसी दास की पत्नी.

कर्ण बेशक दुर्योधन का मित्र है पर वह राजकुमार नहीं है. वह सूतपुत्र है. उन्होंने कहा द्रौपदी तुम कर्ण के प्रति आ​र्कषित हो न कि उसके प्रेम में हो. कर्ण वे जो खूबियां हैं वे आर्कषण के लिए पर्याप्त हैं पर प्रेम के लिए नहीं. यही वह मौका था जब कृष्ण ने अर्जुन का जिक्र करना सही समझा.

उन्होंने कहा कि बेहतर है कि तुम अपने चुनाव में परिवर्तन लाओ और कर्ण से ध्यान हटाकर पांडु पुत्र अर्जुन की खूबियों को निहारो. वह किसी भी मामले में कर्ण से कम नही है. अच्छी बात यह है कि वह राजकुमार है और कुरू वंश का राजकुमार है. यदि तुम्हें नियति को सार्थक करना है तो तुम्हें अपना चुनाव बदलना होगा.

द्रौपदी चिंता में पड़ गईं. उनके मन में कर्ण की काल्पनिक तस्वीर बन चुकी थी, इस तस्वीर को हटाकर अर्जुन को मन में बसाना आसान नहीं था. वह भी यह जानते हुए कि कर्ण और अर्जुन किसी भी मामले में एक दूसरे कम नही है!


इस बीच राजा द्रुपद ने स्वयंवर की घोषणा कर दी. विभिन्न राज्यों के राजकुमारों को आमंत्रण भेजा गया. आमंत्रण पाकर दुर्योधन कर्ण के साथ स्वयंवर में भाग लेने पांचाल पहुंचे. जहां पहली बार कर्ण की दृष्टि द्रौपदी पर पडी. वे उनका अनुपम रूप देखकर मोहित हो गए. उन्होंने मन ही मन द्रौपदी को अपनी पत्नी बनाने का प्रण ले लिया. हालांकि दुर्योधन भी यही सपना संजो रहा था.
 
वहीं दूसरी ओर द्रुपद के विशेष आग्रह पर जरासंध अपने पोते के साथ स्वयंवर में शामिल हो गया. नियति को साकार करने के लिए कृष्ण ने पांडवों को भी ब्राम्हण वेश में स्वयंवर में आने का आमंत्रण दिया. इन सब तैयारियों के बीच द्रौपदी के मन में उथल-पुथल मची हुई थी. उनके सामने दो रास्ते थे. पहला अपने दिल की सुने और कर्ण को मौका दें या फिर सबकुछ भूलकर पिता की प्रतिज्ञा का मान रखें और वह करें जिसके लिए उनका जन्म हुआ है.

कृष्ण ने दूर की स्वयंवर की बाधा

दिन बीतते गए और वह दिन भी आ गया जब राज्य में द्रौपदी के स्वयंवर का भव्य आयोजन किया गया. द्रुपद ने एक विशेष शर्त रखी. जिसके अनुसार राजकुमारों को अपनी धनुषकला का प्रदर्शन कर मछली की परछाई में देखते हुए उसकी आंख को निशाना बनाना था.

द्रुपद ने बिना देर करते हुए जरासंध के पोते को पहला मौका दिया पर वह धनुष विद्या में निपुण नहीं था इसलिए उसका निशाना चूक गया. द्रुपद निराश हो गए. उन्हें निराश देखते हुए जरासंध ने खुद स्वयंवर में हिस्सा लेने का मन बनाया. जब कृष्ण को यह बात पता चली तो वे समझ गए कि यदि जरासंध ने धनुष उठाया तो निश्चिय ही वह द्रौपदी से विवाह कर लेगा.

अत: वे उसके पास पहुंचे और बोले-जरासंध तुम बुजुर्ग हो, यहां अपने पोते का विवाह करवाने आए थे अब जब तुम खुद ही उसकी जगह स्वयंवर में हिस्सा लोगे तो सभी तुम्हारा मजाक बनाएंगे. वैसे भी द्रौपदी तुम्हारी पोती की उम्र की है, तुम्हें उससे विवाह करना शोभा नहीं देगा. जरासंध ने कृष्ण की बात मान ली और पीछे हट गए.

अब स्वयंवर में केवल तीन ही ऐसे व्यक्ति थे जिसमें शर्त का पालन करने का सामर्थ् था. वे तीन थे दुर्योधन, कर्ण और अर्जुन! स्वयंवर में बैठी राजकुमारी द्रौपदी की नजर कर्ण पर पड़ चुकी थी. वे उनके रूप पर मोहित थी, वहीं दूसरी ओर अर्जुन को ब्राम्हण वेश में पहचान पाना उनके लिए संभव नही था.
 
शर्त का पालन करने के लिए पहले दुर्योधन आगे आए. कृष्ण ने यहां भी अपनी माया का इस्तेमाल किया और भीम को आदेश दिया कि जैसे ही दुर्योधन निशाना लगाए वह जोर जोर से हंसे. इसके बाद जैसे ही दुर्योधन ने मछली की ओर अपना निशाना साधा उसे लगा कि वह पांडवों पर तीर ताने हुए है. उसका निशाना अचूक था कि तभी दुर्योधन ने जोर-जोर से हंसना शुरू कर दिया और दुर्योधन का ध्यान भंग हो गया. आखिर निशाना चूक गया और दुर्योधन का द्रौपदी से विवाह का सपना अधूरा रह गया.


आखिर द्रौपदी को करना पड़ा अपमान

इस बीच द्रौपदी अपनी दुविधा से उभरने का प्रयास कर रहीं थी. वे जानती थी कि कर्ण किसी भी मामले में कम नहीं हैं. उनमें वह खूबी है जिससे वे उन्हें जीत सकते हैं, लेकिन पिता की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए उनका कुरू वंश में विवाह होना आवश्यक है. अब जबकि दुर्योधन शर्त हार चुका है तो अर्जुन एकमात्र विकल्प है.

लेकिन द्रुपद ने दुर्योधन के बाद कर्ण का मंच पर बुलाया. अब समस्या यह थी कि यदि कर्ण ने शर्त जीत ली तो द्रौपदी का पिता को दिया गया वचन अधूरा रह जाएगा. कर्ण ने अपना धनुष निकाला और उस पर तीर साधा ही था कि द्रौपदी उठ खड़ी हुईं.

उन्होनें अपने मन पर पत्थर रखकर सभा में सभी के सामने कर्ण को अपमानित करते हुए कहा कि कर्ण चाहे जितने भी बलशाली हों, पर वे हैं तो एक सूतपुत्र ही. मैं एक राजकुमारी हूं और सूतपुत्र से विवाह नहीं करूंगी.  द्रौपदी के शब्दों ने कर्ण के हदय को छलनी कर दिया. उन्हें एक गुणवती राजकुमारी से ऐसे तर्क की अपेक्षा नहीं थी.

इस अपमान के बाद कर्ण ने दुर्योधन के साथ स्वयंवर छोड़ दिया और वहां से चले गए. आगे क्या हुआ यह तो सभी जानते हैं. अर्जुन ने स्वयंवर में द्रौपदी को जीता और फिर वह पांडवों की पत्नी बन गई.

भीष्म के सामने स्वीकार किया अपना प्रेम

कर्ण के मन से कभी भी द्रौपदी के किए अपमान की आग बुझ न सकी. यह अपमान ज्यादा बुरा इसलिए लग रहा था क्योंकि कर्ण द्रौपदी से प्रेम करते थे. जब पांसों के खेल में पांडव द्रौपदी को हार गए तो कर्ण को अपने अपमान का बदला देने का मौका मिला और उसने ही दुर्योधन को द्रौपदी को सभा में ​बुलाने का विचार दिया.

जब सभा में द्रौपदी लाई गई तब उन्होंने बड़ी उम्मीद के साथ कर्ण की ओर देखा लेकिन कर्ण की आंखों में केवल अपमान की ज्वाला दिखाई दे रही थी. जो उस घटना के बाद द्रौपदी के मन में भी जाग गई और इस तरह एक प्रेमकहानी शुरू होने से पहले ही नफरत की भेंट चढ़ गई.

कर्ण ने अपने भीतर के प्रतिशोध को तो जाहिर किया पर द्रौपदी के प्रति अपने प्रेम को मन में ही दबाए रखा. शास्त्रों के अनुसार जब महाभारत के युद्ध में भीष्म पितामह मत्युशैया पर लेटे थे तब कर्ण उनके पास आए. अगले दिन कर्ण और पांडवों का आमना सामना होना था. कर्ण बेचैन थे कि कैसे वे अपने ही भाईयों के खिलाफ शस्त्र उठाएंगे.
उन्होंने अपने मन की पीड़ा भीष्म से कही. जब वे अपनी बात कह रहे थे तब द्रौपदी भी चुपचाप दूर से उन दोनों के संवाद को सुन रही थी. भावों में बहते हुए कर्ण ने भीष्म के सामने पहली बार यह स्वीकार किया कि वे द्रौपदी से अनन्य प्रेम करते हैं. जब यह बात द्रौपदी को पता चली तो उनकी आंखों से आंसू आ गए. लेकिन तब तक घटनाओं की क्रम इतना तेजी से आगे निकल चुका था कि उसे रोक पाना दोनों में से किसी के वश में नहीं था.

यह महाभारत की वो छिपी हुई प्रेम कहानी थी, जो यही साकार होती तो इतिहास कुछ और ही होता. कृष्ण नियति को नहीं टाल सकते थे. इसलिए उन्होंने अपना कर्म किया. जबकि, वे जानते थे कि द्रौपदी के लिए कर्ण से अच्छा विकल्प कोई नहीं हो सकता था!
 
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