अहिल्या चरितं - Ahalya Charitam: The Great Women of Indian Mythology

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अहिल्या चरितं - Ahalya Charitam: The Great Women of Indian Mythology


Presented byTeam Article Pedia
Published on 28 Jan 2023

समग्र-प्रसंग: अहिल्या इंद्र की कथा

हिन्दू देवी-देवताओं की जब भी बात होती है, तो देवराज इंद्र की बात अवश्य ही जेहन में आती है. अब चूंकि यहाँ देवताओं के राजा की बात है तो जाहिर तौर पर उसके गुण-दोष भी उतने ही प्रधान रूप से जांचे परखे जाते हैं.

एक सामान्य धारणा के तौर पर देखा जाए तो देवताओं को अच्छाई का प्रतिनिधि माना जाता है, किन्तु देवराज इंद्र के सन्दर्भ में कई बार यही धारणा विपरीत नज़र आती है. उन्हें उनके अच्छे कार्यों की वजह से कम, किन्तु छल-कपट-द्वेष-वासना इत्यादि दुर्गुणों की वजह से अधिक पहचाना जाता है.

इसका मतलब यह कदापि नहीं है कि देवराज के गुणों और उनके द्वारा किये गए अच्छे कार्यों की संख्या कम थी, बल्कि इस सन्दर्भ का उदाहरण कुछ अलग प्रकार से दिया जा सकता है.

जिस प्रकार सफ़ेद कपड़े पर एक छोटा दाग भी बड़ा स्पष्ट नज़र आता है, ठीक उसी प्रकार देवराज के लम्बे इतिहास में कुछ दाग बेहद स्पष्ट नज़र आते हैं.

वो क्या कहते हैं… दाग गहरे हैं!

अलग-अलग युगों में देवराज इंद्र की अलग कहानियां रही हैं. वैदिक युग से लेकर पौराणिक काल तक देवताओं के राजा की कहानियों ने लोगों में रुचि और रोमांच एक साथ पैदा किया है.

एक-एक करके इंद्र की कहानियों को यहाँ पिरोने की कोशिश हम करेंगे और इस क्रम में पहली कहानी इंद्र के ‘युगांतरकारी छल’ की सुनेंगे.

वह ‘छल’ जिसके परिणामस्वरूप इंद्र के समूचे शरीर पर स्त्री-जननांग उभर आये थे और उनका मुंह दिखाना नामुमकिन हो गया था.

जी हाँ, यहाँ बात हो रही है पंचकन्याओं में गिनी जाने वालीं अहिल्या की.

वही अहिल्या, जो पत्थर रूप में सदियों तक कष्ट भोगती रहीं और जिन्हें त्रेता-युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने पाप से मुक्त किया.


अहिल्या सृजन की कथा

यहाँ ‘हल’ का अर्थ कुरूपता से लिया गया है, इसलिए अहिल्या का अर्थ ऐसे समझा जा सकता है, जहाँ रत्ती भर भी कुरूपता न हो!

सृष्टि सृजनकर्ता भगवान ब्रह्मा ने तब उत्साह में आकर एक सुंदर कन्या का सृजन किया. सृष्टि से उच्चकोटि के अवयव लेकर अहिल्या के अंगों की उन्होंने संरचना बनायी. आगे अहिल्या के बड़े होने पर भगवान ब्रह्मा को उनकी शादी की चिंता हुई.

बताते चलें कि अहिल्या को सदैव 16 साल की लड़की के सदृश जवान रहने का वरदान मिला हुआ था. समझा जा सकता है कि अहिल्या के यौवन के वशीभूत होकर तमाम देवताओं और असुरों का मन डोल गया था.

ऐसे में भगवान ब्रह्मा ने निश्चित किया कि ‘जो कोई भी सबसे पहले समूची पृथ्वी के चक्कर लगाकर वापस आएगा, उसी से अहिल्या का विवाह संपन्न किया जाएगा.’

जैसा कि अक्सर होता है, तमाम सुर-असुर अपने-अपने वाहनों पर निकल गए पृथ्वी का चक्कर लगाने.

गौतम ऋषि की यहाँ एंट्री होती है!

वह अपने आश्रम लौट रहे थे, तभी रास्ते में एक गाय बछड़े को जन्म दे रही थी. प्रेमवश अभिभूत होकर उन्होंने गाय की परिक्रमा कर ली.

यह भी कहा जाता है कि गाय की परिक्रमा के साथ-साथ ऋषि गौतम ने शिवलिंग की भी परिक्रमा कर ली थी.

भगवान ब्रह्मा को ऋषि की इस परिक्रम के बारे में जानकर अति प्रसन्नता हुई. चूंकि ऐसा माना जाता है कि गाय और शिवलिंग की परिक्रमा करना पृथ्वी की परिक्रमा करने के बराबर ही है, इसलिए अहिल्या और गौतम ऋषि का विवाह संपन्न हो गया.

इन्द्रिय (इंद्र की) वासना

काम, क्रोध, लोभ, मोह जैसी तमाम इन्द्रिय कमजोरियों में ‘काम’ को बेहद प्रबल माना जाता है. हालाँकि, देवता होने के कारण देवराज इंद्र को इंसानी कमजोरियों से दूर होना चाहिए था, पर ऐसा हुआ नहीं!

अहिल्या और गौतम ऋषि के विवाह के फलस्वरूप देवताओं और असुरों में निराशा फ़ैल गयी और कई तो ईर्ष्या के फलस्वरूप जलने लगे. जाहिर तौर पर पृथ्वी-परिक्रमा के कारण आपसी प्रतिस्पर्धा पहले ही पनप गयी थी.

चूंकि गौतम ऋषि सिद्धियों से युक्त महात्मा थे, अतः बाकी सुर-असुरों ने अपने मन को समझा लिया किन्तु इंद्र तो ‘इंद्र’ ठहरे…

उनके मन से अहिल्या निकल न सकीं और वह गौतम ऋषि और अहिल्या पर नज़र रखने लगे.

आखिर, उनके वासना से भरे मन ने एक योजना बना ही डाली.

एक खतरनाक योजना!

देवराज ने चंद्रमा को अपने साथ इस कुटिल योजना में शामिल कर लिया. इसके तहत चंद्र देव ने एक सुबह मुर्गे का रूप लेकर जल्दी (वास्तविक समय से पूर्व) ही बांग दे दिया. चूंकि सुबह-सुबह गौतम ऋषि नदी-स्नान के लिए जाते थे, इसलिए उस दिन गौतम ऋषि समय से पूर्व ही नदी-स्नान को निकल पड़े.

कहते हैं, ठीक उसी समय देवराज इंद्र गौतम ऋषि का रूप बदलकर अहिल्या के कक्ष में दाखिल हो गए. उन्हें अपने समक्ष देखकर अहिल्या को भारी आश्चर्य हुआ, क्योंकि अभी तुरंत ही गौतम ऋषि नदी-स्नान के लिए निकले थे. उनके प्रश्नवाचक मुद्रा को गौतम बने इंद्र भांप गए और बोले कि उनके रूप-यौवन ने उन्हें वापस खींच लिया और वगैर स्नान के ही वह वापस लौट गए. कहते हैं ऐसी स्थिति में अहिल्या को कुछ शक भी हुआ, किन्तु वह इंद्र के दुस्साहस से प्रभावित हो गयीं थीं. इंद्र की मीठी बातों ने तब अहिल्या का दिल जीत लिया था और दोनों के बीच सम्बन्ध बन गये.

हालाँकि, यह बात भी कही जाती है कि अहिल्या ने इंद्र को गौतम ऋषि जानकर ही सम्भोग किया.

खैर, लब्बो-लुआब यह है कि ‘इन्द्रिय-वासना’ काम कर गयी थी और…

इंद्र का शापित काल और प्रायश्चित

अहिल्या की कथा हमें ज्ञात ही है कि गौतम ऋषि ने उन्हें पत्थर बन जाने का शॉप दिया था, जो हवा पीकर युगों तक जीवित रहीं. जब महर्षि विश्वामित्र के साथ राम-लक्ष्मण जनकपुरी की ओर प्रस्थान कर रहे थे, तब राजकुमार राम के चरण-स्पर्श से अहिल्या मुक्त हुई थीं.


इस कड़ी में इंद्र की आगे की दुर्दशा बेहद डरावनी और एक मायने में घृणास्पद कही जा सकती है.

गौतम ऋषि को इस बात पर बेहद क्रोध आया कि एक देवता, वह भी देवताओं का राजा होने के बाद भी इंद्र ने ऐसा कुकर्म किया. ऋषि के मुंह से इंद्र के लिए बेहद खतरनाक शॉप निकला.

ऋषि ने इंद्र को कहा कि ‘हे इंद्र, जिस स्त्री जननांग के लिए तुमने यह घृणित कार्य किया, तुम्हारे पूरे शरीर पर वही ‘स्त्री जननांग’ उभर आएंगे.’

शॉप के फलस्वरूप इंद्र के समूचे शरीर पर 1000 वजाइना उभर आये और अपनी ऐसी हालत देखकर इंद्र काँप गए.

वह गिड़गिड़ाते रहे, किन्तु गौतम ऋषि उनके कुकृत्य से बेहद क्षुब्ध थे. इंद्र की द्वारा तमाम मिन्नतें करने के बाद ऋषि ने उनके शरीर पर उभरे स्त्री जननांगों को ‘आँखों’ में ज़रूर बदल दिया.

और हाँ, इंद्र को इतना ही नहीं, बल्कि यह शॉप भी मिला था कि उन्हें दूसरे देवताओं के बराबर भी मान-सम्मान नहीं मिलेगा और उनकी पूजा नहीं होगी… अनंतकाल तक!


बुराई चाहे जिसने भी की हो, वह इंसान हो या देवता ही क्यों न हो, उसका परिणाम उसे भोगना ही पड़ता है. कई बार तो उसका परिणाम अनंतकाल तक रहता है, जैसे अहिल्या और इंद्र की इस कथा में हमने जाना.

सिर्फ इंद्र ही क्यों, महाभारत का चरित्र अश्वत्थामा भी तो आपको याद होगा, जिसे उसके कुकृत्य की सजा मिली थी… अनंतकाल तक!

आपकी नज़रों में ऐसे और भी कैरेक्टर्स हों तो कमेन्ट-बॉक्स में अवश्य ही शेयर करें.

Web Title: Ahalya Indra Story, Indian Mythology

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