भारतीय संस्कृति में सहजीवन ( लिव इन रिलेशनशिप )

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भारतीय संस्कृति में सहजीवन ( लिव इन रिलेशनशिप )

  • चरित्र बल को यहां सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है 
  • यह हमारे आदिवासी समाज में ‘ घोटुल ’ नामक परम्परा के रूप प्राचीन काल से ही समाज का अंग रहा है 
Live-in Relationships Article in Hindi


लेखक: डाॅ0 कामिनी वर्मा
Published on 7 Oct 2022 (Update: 7 Oct 2022, 14:10 IST)

आत्मसंयम, इन्द्रियनिग्रह, परोपकार, सहनशीलता, उदारता, अपरिग्रह आदि वैयक्तिक गुण भारतीय संस्कृति में जीवनतत्व के रूप जन-जन में विद्यमान है। आन्तरिक एवं वाह्य पवित्रता यहां मानवजीवन को आलोकित करती रहती है। यहाॅ प्रत्येक कार्य में आध्यात्मिक दृष्टिकोण समाहित है। नैतिकता इसका मूलतत्व है। चरित्र बल को यहां सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है।

विवाह एवं परिवार जीवन की मूलभूत संस्था है। भारतीय जीवन में विवाह समझौता न होकर व्यक्ति के जीवन का संस्कार है जो सृष्टि चक्र को गति प्रदान करता है। विवाह संस्कार में कन्या सोच समझकर दी जाती है-
सकृत कन्याः प्रदीयन्ते चिन्तयित्वा

विवाह सूक्त नवविवाहिता को श्वसुर, सास, ननद तथा देवर के ऊपर अधिकार रखने वाली साम्राज्ञी के रूप में आशीर्वाद प्रदान करता है। पति-पत्नी घर के सम्मिलित स्वामी हैं। पत्नी के बिना कोई भी धार्मिक अनुष्ठान, यज्ञ अधूरा रहता है।

आज जहाॅ सम्पूर्ण भूमण्डल इन्टरनेट के द्वारा एक कुटुम्ब का रूप धारण कर करता जा रहा है वहीं पर भौतिकतावादी संस्कृति को भी प्रश्रय दिया है। बदलते परिवेश में मूल्यों और रिश्तों पर बाजार प्रभावी हो गया है। वैश्विक स्तर पर निरन्तर परिवर्तन हो रहे हैं। भारतीय संस्कृति पाश्चात्य संस्कृति को आत्मसात करती जा रही है। समाज और परिवार का स्वरूप तेजी से बदल रहा है। महिलाओं की सोच व स्थिति में आमूल चूल परिवर्तन हो रहा है। आज वह घर के साथ-साथ सार्वजनिक जीवन में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करके समाज को नई दिशा भी दे रही है। आज वह न सिर्फ स्वतन्त्रता की मांग कर रही है बल्कि स्वतन्त्रता का उपभोग भी कर रही है।

आपसी प्रतिस्पर्धा, कार्यस्थल के तनाव ईष्र्या, द्वेष शारीरिक व मानसिक उत्पीड़न पुरूष सहकर्मियों द्वारा की गई व्यूह रचनायें स्त्रियों को बार-बार तोड़ रहे है। फलतः वह ऐसे स्थान की तलाश करने लगी है जहां वह इन दम घोंटू परिस्थितियों से बाहर निकलकर राहत की सांस ले सके। इसी प्रवृत्ति के कारण आज कुछ लोग मानसिक सुकून पाने की चाहत में बिना विवाह संस्कार के साथ-साथ रहने लगे हैं, और समाज में एक नये प्रकार का सम्बन्ध सहजीवन ( लिव इन रिलेशनशिप ) अस्तित्व में आ गया है। इस सम्बन्ध में स्त्री पुरूष साथ-साथ रहते हैं लेकिन उनके बीच वैवाहिक सम्बन्ध नहीं होता है। महानगरों में यह सम्बन्ध काफी प्रचलन में है। इस तरह के सम्बन्ध में जब तक यह रिश्ता सामान्य रूप से मधुर रहता है, तभी तक अस्तित्व में रहता है कलह की स्थिति में दोनों बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के अलग हो जाते है।

भारतीय कानून व्यवस्था में इस प्रकार के सम्बन्ध को मान्यता प्राप्त नहीं है, लेकिन वर्तमान कानून में कोई भी व्यस्क एक दूसरे की सहमति से आपस में शारीरिक सम्बन्ध स्थापित कर सकते है। यह कानूनन अवैध भी नहीं है।
 

अर्थात सर्वोच्च न्यायालय भी विवाह के बिना स्त्री पुरूष के साथ रहने को अपराध नहीं मानता। सहजीवन महानगरों में समय के साथ निरन्तर बढ़ता जा रहा है। साथ ही इस सम्बन्ध के पक्ष और विपक्ष में निरन्तर बहस हो रही है प्रगतिवादी विचारधारा के समर्थक इस रिश्ते को विवाह के विकल्प के रूप में मान्यता दे रहे है। उनका मानना है यह रिश्ता आज की भौतिकवादी संस्कृति की देन न होकर हमारे आदिवासी समाज में ‘ घोटुल ’ नामक परम्परा के रूप प्राचीन काल से ही समाज का अंग रहा है। इस परम्परा में विवाह के योग्य युवक युवती कुछ समय के लिये साथ-साथ रहते है यदि वह एक दूसरे का पसन्द करने लगते है!

लेखिका: डाॅ0 कामिनी वर्मा
एसोसिएट प्रोफेसर
काशी नरेश राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,
ज्ञानपुर, जनपद-भदोही





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