'मधुशाला' की बोतल में 'यमराज'?

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'मधुशाला' की बोतल में 'यमराज'?

  • अलीगढ़ की ज़हरीली शराब की घटना में जिन दो मुख्य आरोपियों का नाम आ रहा है, उनके भी संबंध दो राजनैतिक दलों से बताए गए हैं
  • इस तरह की घटनाओं के बाद जिम्मेदार लोगों को सेवा बर्खास्त क्यों नहीं किया जाता? क्योंकि इस तरह का गलत कारोबार इन्हीं के संरक्षण में होता है...

Poisonous liquor business and politics, Hindi Content, Article Pedia

लेखक: प्रभुनाथ शुक्ला (Prabhunath Shukla)
Published on 3 Jun 2021 (Update: 3 Jun 2021, 5:59 AM IST)

मदिरालय जाने को, 
घर से चलता है पीनेवाला, 
किस पथ से जाऊँ, 
असमंजस में है वह भोलाभाला। 

हरिबंशराय बच्चन की अमरकृति मधुशाला की यह पंक्तियां खुद ब खुद सब कुछ बयां कर देती हैं। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जहरीली शराब पीने से 70 से अधिक लोगों की मौत हो गई। 

भला उन बेगुनाह लोगों को क्या पता था कि उनकी शौक उन्हें उन्हें ले डूबेगी!
मधुशाला की बोतल में नशा नहीं यमराज थे। 

यह मौत सिर्फ पीने वालों की नहीं सिस्टम की है, और नक्कारेपन की है। मरती इंसानियत की है।

कोविड काल ने दुनिया को बड़ा सबक दिया है। अब यहां इंसान की कोई कीमत नहीं है। इंसानियत मर चुकी है। जहां लाशों का कफन बेच दिया गया। जीवन रक्षक रेमडिसिवीर के इंजेक्शन में ग्लूकोज भर कर हजारों वसूले गए। आक्सीजन की कालाबाजारी हुई। गंगा में शवों का अंबार लग गया। अस्पतालों में लोग दवाओं और आक्सीजन के अभाव में मर गए, उस समाज में इंसानियत के नाम पर अब बचा क्या है। पैसा कमाने के लिए हम कितने हद तक गिर सकते हैं, इसकी कोई लक्ष्मण रेखा नहीं है। जहाँ मुर्दों का कफन बेच दिया जाता हो, वहाँ अब क्या कुछ बचा है।

देश भर में जहरीली शराब बनाने और बेचने वालों का कारोबार खूब फैला है। 


पंजाब नशे को लेकर कितना बदनाम हुआ। नशे के काले धंधे पर उड़ता पंजाब जैसी फिल्में तक आयीं। जमीनी तस्वीर को हम नकार नहीं सकते हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ उत्तर प्रदेश में इस तरह की घटनाएं होती हैं। लेकिन यह भी सच है कि राज्य में इस तरह के बेहद कम जिले होंगे, जहां जहरीली शराब से मौतें न हुई हों। पंजाब, हरियाणा, गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, बिहार जैसे राज्यों में इस तरह की घटनाएं घट चुकी हैं। लेकिन किसी भी राज्य ने इस तरह की घटनाओं से सबक नहीं लिया। जिसका नतीजा है कि उत्तर प्रदेश में एक बार फिर अलीगढ़ शर्मसार हुआ है।

सियासी रसूख रखने वाले शराब की बोतल में जहर बांटते हैं। अलीगढ़ में हुई घटना इसी का नतीजा है। अलीगढ़ की घटना में जिन दो मुख्य आरोपियों का नाम आ रहा है, उनके भी संबंध दो राजनैतिक दलों से बताए गए हैं। मुख्य आरोपी पर सरकार ने 50 हजार रुपये का इनाम भी रखा है। घटना के बाद कई अफसरों पर गाज भी गिरी है। लेकिन इससे कोई फायदा मिलने वाला नहीं है। जब तक यह आग ठंडी होगी, तब तक मीडिया में फिर इस तरह की दूसरी घटना सुर्खियां बनेगी। राज्य में सरकार किसी की हो गैरकानूनी धंधा करने वालों पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। जब सिस्टम ही अंधा और विकलांग हो, तो सरकार चाहकर भी कुछ नहीं कर सकती है। इसके बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है। लेकिन कोई यह नहीं पूछता कि आखिर इस तरह की घटनाएं क्यों होती हैं।

राज्य में सरकार खुद शराब के ठेकों का आवंटन करती है। अंग्रेजी, बीयर और देशी शराब के ठेके गांव और शहर की गलियों में खुले आम मिल जाएंगे। जब सरकारी शराब की दुकानें पर्याप्त संख्या में हैं, फिर जहरीली शराब क्यों और कैसे बेची जाती है। 


बेगुनाह लोगों के मौत की सजा सिर्फ निलंबन ही क्यों?

इस तरह की घटनाओं के बाद जिम्मेदार लोगों को सेवा बर्खास्त क्यों नहीं किया जाता?

क्योंकि इस तरह का गलत कारोबार इन्हीं के संरक्षण में होता है। गैर कानूनी शराब बनाने वालों का पुलिस प्रशासन और आबकारी विभाग से अच्छी सांठ-गाँठ रहती है।

इस तरह की शराब का सेवन आम तौर पर कड़ी मेहनत करने वाले गरीब तबके लोग करते हैं। सरकारी ठेके पर मंहगी शराब मिलती है, जिसकी वजह से उनकी क्रय शक्ति इतनी नहीं होती है। उस स्थिति में सस्ते पैसे में जहरीली शराब गटक कर अपनी मौत बुलाते हैं। सरकार को जब शराब खुले आम बेचनी ही है, तो सस्ते दामों पर क्यों नहीं बेचती। शराब पर अनावश्यक टैक्स क्यों लगाए जाते हैं। सरकार को भी शायद इस तरह के लोगों पर कोई दया नहीं आती। अगर शराब सस्ती बेची जाय तो जहरीली शराब के करोबार में संलिप्त लोग अपने आप हतोत्साहित होंगे। दूसरी तरफ सरकारी शराब की खपत भी बढ़ेगी। राजस्व भी अधिक बढ़ जाएगा, लेकिन सरकार ऐसा करना नहीं चाहती है।


आंकड़ों के मुताबित, उत्तर प्रदेश में लगभग 36 हजार करोड़ रुपए का सालाना शराब का कारोबार है। शराब सरकार की आय का प्रमुख स्रोत है। यही वजह है कि गुजरात, बिहार और दूसरे राज्यों में शराब बंदी के बाद भी उत्तर प्रदेश में शराब पर प्रतिबंध नहीं लग पाया। साल 2018-19 की तुलना में 2019-20 में सरकार ने शराब कारोबार में 14 फीसदी अधिक राजस्व कमाया। हालांकि राज्य में शराब बिक्री का जो लक्ष्य रखा गया था, उससे तकरीबन 14 फीसदी कम कमाई हुई। राज्य में सरकार को सबसे अधिक राजस्व देशी शराब से मिलता है। वर्ष 2019-20 में 48 करोड़ बल्क लीटर से अधिक शराब की खपत हुई। एक रिपोर्ट के मुताबित वर्ष 2021-22 में सरकार को नयी आबकारी नीति की वजह से 6000 करोड़ की अतिरिक्त आय होने की उम्मीद है।

जहरीली शराब तैयार करने का कारोबार काफी बड़े पैमाने पर फैला है। इस कारोबार में लगे लोग अच्छी पहुंच और पकड़ वाले होते हैं। शराब बनाने में यूरिया, ईस्ट, गुड़ और सड़े फल का इस्तेमाल किया जाता है। इस कारोबार से जुड़े लोग मिथाइल अल्कोहल का भी प्रयोग कर शराब तैयार करते हैं, जिसकी वजह से यह जहरीली हो जाती है और लोगों के शरीर में जाते ही केमिकल रियेक्शन शुरु होता है। 

जिसकी वजह से शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं, और पीने वाले की मौत हो जाती है। कभी कभी लोग अंधे हो जाते हैं। मिथाइल का उपयोग रंग बनाने में किया जाता है। लेकिन गैर कानूनी कारोबार से जुड़े लोग अपनी पहुंच की वजह से मिथाइल हासिल कर शराब बनाते हैं, जबकि उसकी आपूर्ति सिर्फ लाइसेंसी उपयोग के लिए होती है। इथाइल और मिथाइल दो तरह के अल्कोहल होते हैं। इथाइल नशा करता है जबकि मिथाइल पूरी तरह जहर है। लेकिन इसी से जहरीली शराब बना कर बेची जाती है, जिसके सेवन से लोगों की जान चली जाती है।


मुख्यमंत्री योगी आदित्नाथ ने इस घटना को गंभीरता से लिया है। अपर मुख्य सचिव आबकारी और अपर मुख्य सचिव गृह को इस मामले में त्वरित कार्रवाई करने को कहा गया है। प्रदेश भर में अभियान चलाने का भी निर्देश दिया गया है। घटना में जिन दो आरोपियों की संलिप्तता बतायी गयी है, उसमें एक पर 50 हजार का इनाम भी रखा गया है। मुख्यमंत्री के निर्देश पर कई अफसरों को निलंबित भी किया गया है। लेकिन जिन बेगुनाहों की मौत हुई है, उनकी जिंदगी वापस नहीं लौट सकती है। अब वक्त आ गया है, जब जहरीली शराब के निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध लगना चाहिए। दोषी लोगों को फांसी की सजा मिलनी चाहिए। सरकार को इस पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।

(लेखक: प्रभुनाथ शुक्ल, स्वतंत्र पत्रकार एवं स्तम्भकार, भदोही, यूपी))



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