लेखक / कवि: जलज कुमार 'अनुपम'(Jalaj Kr. Mishra)
Published on 14 Jun 2021 (Update: 14 Jun 2021, 2:33 PM IST)
यह प्रचंडता है
हमारी संस्कृति की
इस दौर में भी वह
मेरे लिए रखती है व्रत
करती है तप
कहाँ आया है
कोई बदलाव
तलाक के इस दौर में
वह त्याग रखती है
परम्परा जिंदा है
अतीत के पुर्नपाठ का
निश्छल विश्वास का
दूसरे की खुशी हेतु
निज की कुर्बानी की
नैतिकता चरम पर
अपनी मर्यादा में
सबको साथ लेकर
वह अगली पीढ़ी में
आदर्श स्थापित करती
अपने आप को कुशल
नेतृत्वकर्ता बनाती है
अपने मूल्यों के
संरक्षण में जान लगाती है
अर्धांगिनी कहलाती है।
(लेखक जलज कुमार 'अनुपम' एक व्यवसायी होने के साथ साथ सजग कवि / लेखक का दायित्व भी निभाते हैं )
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