'जुगाड़ - जमात' का देश

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'जुगाड़ - जमात' का देश

  • सभी जुगाड़ जमात की तरह काम करते रहे, जिससे सारे देश में अराजकता की स्थिति बन गयी 
  • संकट की घड़ी में केंद्र सरकार का दायित्व बनता है कि वह इन दोनों खतरों को भांपते हुये बहुत समझदारी तथा सख्ती से इन खतरों का सामना करे 


लेखक: डॉ. योगेश शर्मा (Writer Dr. Yogesh Sharma)
Published on 21 May 2021 (Last Update: 21 May 2021, 8:11 PM IST)

देश आज चीन से आई कोरोना महामारी से लड़ रहा है। लोग जिंदगी और मौत के बीच लटक रहे हैं। देश में लाखों लोग मर चुके हैं, और लाखों अस्पतालों में जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं। परंतु इतनी भयावह हालात होते हुए भी किसी भी स्तर पर इस महामारी से लड़ने के लिये कोई ठोस एवम गम्भीर प्रयास नहीं किये जा रहे हैं। सभी देश की जुगाड़ परम्परा का पालन कर रहे हैं, और देश जुगाड़ जमात वालों का देश बन कर रह गया है। 

इस दुखद वास्तविकता के लिये सभी दोषी हैं। केंद्र सरकार, सभी राज्य सरकारें, नौकरशाह, न्यापालिका, व्यापारी, गैर-सरकारी संगठन, नागारिक आदि सभी इस भयावय स्थिती और मौतों के लिये दोषी हैं। इस महामारी को किसी ने भी गम्भीरता से नहीं लिया, और सभी इस असफल जुगाड़ जमात की तरह काम करते रहे। इसका परिणाम यह रहा कि सारे देश में अराजकता की स्थिति बन गयी। हालात इतने खराब थे कि अस्पताल में मरीजों के लिये बेड, ऑक्सीजन, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन कंसंट्रेटर, आई सी यू बेड, ऐम्बुलेंस आदि एकदम या तो कम पड़ गये, या खत्म हो गये। इतना ही नहीं, अस्पतालों ने भी लूट मचानी प्रारम्भ कर दी। यह हाल तो देश की राजधानी दिल्ली का है। अन्य स्थानों के हालात की बात सोच कर ही डर लगता है। 

बात यहीं खत्म नहीं हो जाती। चाईनीज कोरोना के कारण देश में दवा और इंजेक्शन की भी भारी कमी एवं मारामारी हो गयी। रेमडिसीवर इंजेक्शन, फेवीफ्लू, आईवरमिसिन आदि या तो बाज़ार से गायब हो गये, या कई गुना ज्यादा कीमत में मिल रहे थे। यही हाल आक्सिजन सिलेंन्डर, वेंटिलेटर, आक्सिजन कंसंट्रेटर, आक्सिमीटर आदि का भी हो गया। दुकानदारों और व्यापारियों ने बाजार में लूटमार मचा दी। इतना ही नही, अंतिम संस्कार के लिये बाज़ार से लकड़ी तक गायब हो गयी। सैकड़ों क्रूर लोग अपने सगे सम्बंधियों के शव नदियों में फेंक कर भाग गये। 

इसके बाद निर्लज्ज और गिद्ध पत्रकारों का विघटनकारी ऐजेन्डा का खेल प्रारम्भ होता है। उनकी पत्रकारिता और प्रेस की आजादी हिन्दू शवदाह गृहों में हिन्दुओं की जलती चितायें, लाइन में पड़े हिन्दुओं के शवों और नदियों में बहते शवों के आंखों देखा हाल से प्रारम्भ होने लगी। इन पत्रकारों ने देश में भय और नफरत की पत्रकारिता करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। इतना ही नहीं, तड़पते मरीजों को दिखा कर भी इस लाबी ने निर्लज्ज्ता और घृणा की सारी हदें पार कर दीं। इतना ही नही, कुछ पत्रकारों ने तो निर्लज्ज्ता की सारी हदें पार कर दीं, अपने अपने कैमरे लोगों की लाशों व जलती चिताओं पर ही फिट कर दिये। 


एक ओर जहां हजारों मरीज रोज मर रहे थे, तथा लाखों अस्पतालों में जिंदगी और मौत से लड़ रहे हैं, वहीं एक नया तमाशा और प्रारम्भ हो गया। गुरुद्वारों, सत्संग भवन, स्कूल, कालिज, आदि में आक्सिजन लंगर, कोविड बेड, आईसोलेशन सेंटर, का खेल प्रारम्भ हो गया। जहां डाक्टर, नर्स, वेंटिलेटर, आई सी यू आदि एकदम गायब थे। इसके साथ-साथ सभी ने सेवा के नाम पर चंदा और धन उगाहना प्रारम्भ कर दिया। ऐसे नाटक मरीजों की सुरक्षा और जिंदगी के लिये गम्भीर खतरा है। सरकार और प्रशासन इस तरह के खिलवाड़ को सख्ती सख्ती से रोक लगायें। कई लोग ठीक भी कार्य कर रहे हैं, किन्तु अधिकांश जगहों पर तमाशे से भला किसे इनकार होगा!

इस आपदा के समय भी हिंदु विरोधी टूलकिट भी अपनी सांप्रदायिक एवं घृणा की राजनीति में भी अत्यंत सक्रिय रहे। इन तत्वों ने हिंदु कुम्भ पर्व एवम हिंदु संतों को कोरोना फैलाने का दोषी मानते हुये बदनाम करने की पूरी साजिश रच डाली। पर ये तत्व ईद, इफ्तार पार्टी, जुम्मा नमाज, नमाजे जनाजा की भीण आदि पर एकदम चुप रहे। इतना ही नहीं, इन तत्वों ने सेवादार बनकर किसानों को अराजकता और प्रदर्शन के लिये भड़काया। किसान रैलियां, धरना, सड़क जाम आदि के कारण भी कोरोना माहमारी देश के अनेक भागों में फैली। 


विपक्षी दलों ने देश के लोकतंत्र पर भी कोरोना के नाम पर हमले शुरु कर दिये, तथा चुनावों, मतदान और मतगणना को भी कोरोना फैलाने का दोषी होने का आरोप लगाने लगे। इस कोरोना महामारी में जहां एक ओर देश और नागरिक कोरोना महामारी से लड़ रहे थे, वहीं दूसरी ओर विपक्षी दल, मीडिया, अल्पसंख्यक वर्ग, एक्टिविस्ट, आदि देश, सरकार को बदनाम करने के लिये अत्यंत विघटनकारी एजेंडा चला रहे थे। 
इस वर्णन से स्पष्ट है कि आज देश एक बहुत ही खरब दौर से गुजर रहा है।

इस संकट की घड़ी में केंद्र सरकार का दायित्व बनता है कि वह इन दोनों खतरों को भांपते हुये बहुत समझदारी तथा सख्ती से इन खतरों का सामना करे।  
सरकार का भी दायित्व एवं कर्तव्य है कि वो अस्पताल तथा स्वास्थ सेवायें पर युद्धस्तर पर ध्यान दे, तथा इन क्षेत्रों में सरकार का निवेश बढाया जाये। अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, जातिगत सामाजिक न्याय, मुफ्तखोरी, कर्जमाफी आदि पर धन की बरबादी को रोके, तथा इस धन को अस्पताल तथा स्वास्थ सेवाओं पर निवेश करे। 
अस्पताल तथा स्वास्थ सेवायें पर निवेश को हर प्रकार के कर से मुक्त रखा जाये। 

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