हमने आपको सत्ता दिया और आपने... ?

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हमने आपको सत्ता दिया और आपने... ?

  • जिस तरह के दृश्य लोगों के आंखों के सामने गुजरी है, उसकी पीड़ा लम्बे समय तक ताजा रहने वाली है 
  • जिस तरह के कदम आज उठाए जा रहे हैं, वह पहले क्यों नहीं उठाए गए? 
  • एक महामारी ने हमारी नीति, नैतिकता और व्यवस्था को नंगा कर दिया 
Government Role in Corona, Hindi Article

लेखक: प्रभुनाथ शुक्ला (Prabhunath Shukla)
Published on 16 May 2021 (Last Update: 16 May 2021, 6:21 PM IST)

भारत कोविड-19 संक्रमण को लेकर संकट काल से गुजर रहा है। यह महामारी इतनी भयंकर रुप लेगी, इसकी कल्पना न तो कभी सरकारों को थीं, और न नागरिकों को। हलांकि चिकत्सा विेशेषज्ञों ने इसकी चेतावनी दे दिया था कि इसकी दूसरी लहर भी आ सकती है। अब तीसरी लहर के और अधिक भयानक होने की बात भी आ रही है। फिर सरकारों ने क्यों नहीं चेता?

दुनिया के साथ भारत को इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है। लाखों की संख्या में आम से लेकर खास नागरिक इस महामारी का शिकार हुआ और हो रहा है। अभी यह कब तक चलेगा, इसका कोई अंदाजा नहीं है। देश की 130 करोड़ जनता अब तक की सभी सरकारों से यह सवाल पूछ रही हैं कि हमने आपको सत्ता, रुतबा, अधिकार और संवैधानिक शक्तियां दी, लेकिन आपने आजाद भारत में हमें क्या दिया? यह आप अपने गिरेबाँ में झांक कर देखें। जहाँ ऑक्सीजन और इलाज के आभाव में लाखों लोग दम तोड़ देते हैं, उस देश के नागरिक किस सत्ता और सरकारों पर गर्व करेंगे ? 

कोविड-19 की पहली लहर तो किसी तरह गुजर गयी थी। जिस तरह के दृश्य लोगों के आंखों के सामने गुजरी है, उसकी पीड़ा लम्बे समय तक ताजा रहने वाली है। बेगुनाह लोग पलायन की वजह से बेमौत मारे गए। हजारों किलोमीटर की पैदल यात्रा कर लोग गाँव पहुंचे और सरकारें असहाय बनी रहीं। लोग उस त्रासदी को आहिस्ता आहिस्ता भूल रहे थे। प्रवासियों की मौत और सरकारों की नाकामियों को भी लोगों ने भुला दिया था। अर्थव्यवस्था पटरी पर आने लगी थी। कामगार शहरों को लौट गए थे, लेकिन दूसरी लहर ने देश को तबाह कर दिया है। शहरों के साथ इस बार ग्रामीण इलाकों में इसका प्रकोप अधिक है। उत्तर भारत के ग्रामीण इलाकों में मानव पूंजी का बहुत बड़ा नुकसान हुआ है। महामारी की डर की वजह से इंसानियत खत्म हो गई। अपनों ने भी दूरियां बना लिया। गंगा हजारों लाशों से पट गयी। शवों का अंतिम संस्कार करने के बजाय लोगों ने सीधे गंगा में प्रवाहित कर दिया।


देश में सबसे अधिक बदतर हालात स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर हुई है। न्याय व्यवस्था की अहम पीठ, यानी अदालतों को सरकारों के खिलाफ तल्ख टिप्पणी करनी पड़ी। चिकित्सा सुविधा को लेकर सरकारों को कटघरे में खड़ा होना पड़ा। सोशल मीडिया पर भुक्त भोगियों ने जिस तरह अपनी पीड़ा के वीडियो शेयर किए, वह मरती हुई इंसानियत को बताने में काफी है। हमारा मकसद किसी सरकार को कटघरे में खड़ा करने का नहीं है, लेकिन सरकार क्यों है, यह भी अहम सवाल है। हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था जिस तरह बदहाल है, उसे देख कर तो यही लगता है कि हम दूसरे हिस्सों में चाहे जो प्रगति कर लिया हो, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर अभी हमें बहुत कुछ करना होगा। फिलहाल हम यह नहीं कहते हैं कि स्वास्थ्य सुविधाओं का विकास नहीं हुआ, या सरकारों ने काम नहीं किया, हमारा सवाल बस इतना है कि अगर सब कुछ हुआ है, तो ऑक्सीजन और चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में लोगों की मौतें क्यों हुई।

चिकित्सा सुविधा के अभाव में इंसान तो बेमौत मारे गए, लेकिन लाखों युवा और दूसरे लोग इस दुनिया से रुखसत हो गए। उनकी मौत परिजनों को जिंदगी भर की टीस दे गयी। क्योंकि उनकी बाकी बची हुई जिंदगी सरकारों और व्यवस्था की नाकामियों की वजह से ऑक्सीजन और इलाज के अभाव में खत्म हो गई। परिजनों के सपने खत्म हो गए, जीवन की उम्मीद टूट गयी। निजी अस्पतालों में जिस तरह लूट और सरकारी अस्पतालों में जिस तरह लापरवाही की खबरें आयीं, वह शर्मसार करने वाली हैं। जिन भगवान स्वरूप चिकित्सकों के लिए देश की जनता ने तालियाँ और दीये जलाए थे, उन्हीं में तमाम ने अपने कर्तव्य और नैतिकता को तिलांजलि दे दिया। हम सभी चिकित्सकों पर सवाल नहीं उठाते, लेकिन इस तरह की हरकत करने वाले बहुतायत हैं, जिनकी वजह से देश और समाज शर्मसार हुआ। जिन पर हमें गर्व करना चाहिए, उन्होंने इंसानियत को ताक पर रख दिया।


सरकारों से यह सवाल तो जनता पूछेगी। क्योंकि आप नागरिक अधिकार की रक्षा क्यों नहीं किया?जनता ने आपको चुना, फिर आप उसकी उम्मीद पर खरा क्यों नहीं उतरे। आपने उसे क्या दिया? क्या सिर्फ सत्ता ही आपका धर्म और कर्म है। सरकारें निश्चित रुप से अपनी नैतिक जिम्मेवारी से नहीं बच सकती। सरकारों से कहीं न कहीं भूल हुई है, जिसकी भरपाई वे कभी नहीं कर सकती हैं। जिस तरह के कदम आज उठाए जा रहे हैं, वह पहले क्यों नहीं उठाए गए?
एक महामारी ने हमारी नीति, नैतिकता और व्यवस्था को नंगा कर दिया। जिस परिवार में जवान बेटा, बेटियाँ, पति और पत्नी मर गए, क्या उनकी वेदनाएं हमें कभी माफ करेंगी। यह अपने आप में विचारणीय प्रश्न है।

विपक्ष आज सत्ता को कटघरे में खड़ा कर रहा है, लेकिन कल जब वे सत्ता में थे, तो उन्होंने क्या किया, इसका भी उन्हें हिसाब देना होगा। उन्हें भी अपने गिरेबान में झांकना होगा। बेगुनाह लोगों की मौत के लिए जितनी वर्तमान सरकारें जिम्मेदार और जबाबदेह हैं, उससे कहीं अधिक विपक्ष है। क्योंकि अगर उनकी सरकारों ने स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर किया होता, तो इस महामारी में शायद देश को यह पीड़ा न देखनी पड़ती।


एक संप्रभु राष्ट्र की जनता ने आपको सत्ता सौंपी, लेकिन आपने उसे क्या दिया?हम उन्हें एक अदद अस्पताल और ऑक्सीजन की बॉटल तक उपलब्ध नहीं करा पाए। क्या कभी सरकारों ने इसका मूल्याकंन किया। हमने सिर्फ सत्ता के लिए लोगों को धर्म, जाति, और संप्रदाय में बांट कर सियासी उल्लू सीधा कर भावनात्मक शोषण किया। देश की जनता को हमने इस तरह उलझाए रखा कि वह कभी अपने अधिकार की बात ना करे। हमने नागरिक अधिकारों को भेड़ बकरियों से भी कम समझा। आजाद भारत में नागरिकों के लिए ऑक्सीजन अस्पताल तक मुहैया नहीं करा पाए। अस्पताल मिला तो डाक्टर नहीं। डॉक्टर हैं तो ऑक्सीजन और दवाएं नहीं। सब कुछ है तो कुछ डाक्टरों की मरी हुई संवदनाओं ने जिंदा लोगों को मार डाला। संक्रमित मरीजों को अस्पतालों में भर्ती नहीं किया जा रहा। नागरिकों को पीएमओ, सीएमओ और मंत्रीयों से गुहार लगानी पड़ी, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया, सबकुछ लुट गया।

देश की चिकित्सा व्यवस्था पर अदालतों ने किस तरह की टिप्पणियां की, वह भी किसी से छुपी नहीं है। आखिर यह सब क्यों हुआ और हो रहा है। हमारा सिस्टम आँखों पर पट्टी बाँध गंधारी की भूमिका में क्यों बैठा रहा। श्मशान लाशों से पटता रहा। अंतिम संस्कार को लकड़ियां खत्म हो गईं। लाशों से गंगा अट गईं और हम मौन होकर देखते रहे। सत्ता विपक्ष तो विपक्ष सत्ता पर आरोप लगता रहा, लेकिन दम तोड़ते लोगों को ऑक्सीजन नहीं उपलब्ध करा पाया। हम क्या इस तरह की घटनाओं से सबक लेंगे?क्या देश में अब तक सरकार नाम की संस्थाएं रही हैं, अगर रही हैं तो उन्होंने क्या किया। जब हम देश नागरिक प्राणवायु के लिए लड़ रहा हो और हम चुनावों में लगे हों, क्या यही हमारा दायित्व है। क्या अदालतों की नसीहत के बाद ही हमारी नैतिकता और दायित्व बोध जागते हैं। अब तक की सरकारों को लिए यह बेहद शर्म की बात है। स्वास्थ्य सुविधाओं का सवाल अब भी हाशिए पर है। इस संक्रमण काल में इस पर गंभीरता से मंथन होना चाहिए। ...



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