भद्रजनों के खेल को बदनाम करती हैं 'नस्लभेदी टिप्पणियां'

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भद्रजनों के खेल को बदनाम करती हैं 'नस्लभेदी टिप्पणियां'

Racism in Cricket, Sports, Hindi Article (Pic: Aajtak)


भारतीय क्रिकेट टीम ने ऑस्ट्रेलिया में एक लम्बे अंतराल के बाद झंडा गाड़ दिया और इसने प्रत्येक क्रिकेट - प्रेमी के हृदय को झूमने पर मजबूर कर दिया. 

सुपर स्टार विराट कोहली की गैरमौजूदगी के बावजूद इंडियन क्रिकेट टीम ने जिस तरह अजिंक्य रहाणे की कप्तानी में इतिहास रचा है, वह कई खेल विशेषज्ञों की नज़र में भी विशेष है. आम जनता तो खैर उनका ढोल नगाड़ों से स्वागत कर ही रही है. 2-1 से सीरीज जीत ली गयी, किन्तु चौथे टेस्ट में 3 विकेट की करारी हार ऑस्ट्रेलिया को लम्बे समय तक याद रहने वाली है, खासकर उसके घर में ही.

वैसे रनों का पीछा करने में भारतीय टीम को उतना विशेष नहीं माना गया, किन्तु गाबा में अपनी चौथी पारी खेलते हुए जिस प्रकार 328 के रनों का पीछा किया गया, उसने लोगों में जोश भर दिया. गाबा में यह जीत इसलिए भी ख़ास है क्योंकि 1951 में वेस्ट इंडीज ने बड़े लक्ष्य का पीछा करते हुए जीत दर्ज की थी. तब उसके द्वारा 236 रन बनाए गए थे. यह भी ख़ास है कि ब्रिसबेन में 33 साल से अपराजेय ऑस्ट्रेलिया को भारत ने जकड़ा ही और गाबा में उसका घमंड चकनाचूर कर दिया. 

भारत के स्टार गेंदबाज बन चुके सिराज अहमद के योगदान को भला कौन भुला सकता है. उनकी उपलब्धि इसलिए भी ख़ास है क्योंकि नवम्बर में उनके पिता का देहांत हो गया था और वह उनके अंतिम संस्कार तक में नहीं जा सके थे. भारत लौटने के तुरंत बाद यह स्टार अपने पिता की कब्र पर गया.

इस क्रम में और भी कई उपलब्धियां गिनाई जा सकती हैं. 

किन्तु, इन तमाम उपलब्धियों और खुशियों के बीच हम उस 'कलंक' को नहीं भूल सकते, जिसके लिए ऑस्ट्रेलिया के खिलाड़ी और दर्शक बदनाम रहे हैं. 

नस्लभेदी टिप्पणियों ने पूरे दौरे को 'कलंकित' कर दिया और पहले से ही पिता की मौत से इमोशनल सिराज अहमद पर इसका क्या असर पड़ा होगा, यह अपने आप ही समझने वाली बात है.

Racism in Cricket, Sports, Hindi Article (Pic: Aajtak))


दुनिया वैसे ही इस समय काफी बंटी हुई नज़र आती है. लोग एक दूसरे को बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं हैं.किसी से एक दूसरे का अस्तित्व बर्दाश्त करने में किसी को कितनी दिक्कत आ जाए, इसका आंकलन करना मुश्किल हो रहा है. 

क्रिकेट से इतर बात करें तो अमेरिका में कुछ दिनों तक चले ब्लैक लाइव कैंपेन का मैटर हमने देखा. पूरा अमेरिका ही इस पर उबल पड़ा था और काले और गोरों की सामाजिक समस्या को इस आंदोलन ने सबके सामने ला दिया. सच कहा जाए तो यह हमेशा से रहा है, और इस भेद से भद्र जनों का खेल कहा जाने वाला क्रिकेट भी मुक्त नहीं है.
पहले भी इस तरह की कई बातें आती रही हैं, किंतु इस ऑस्ट्रेलिया दौरे पर गई भारतीय टीम के खिलाड़ी सिराज अहमद के ऊपर जिस प्रकार से नस्लवादी टिप्पणियां की गयीं, वह अपने आप में चिंता पैदा करने वाला है.

हालांकि क्रिकेट आस्ट्रेलिया द्वारा इस चीज का तत्काल विरोध किया गया और इससे सख्ती से निपटने की बात भी कही गयी, लेकिन सवाल यह है कि लोग इतने असहिष्णु कैसे होते जा रहे हैं?

खेल जहां अपनी खेल भावना के लिए जाना जाता है, एक दूसरे को बर्दाश्त करने के लिए जाना जाता है, वही खेल अब गंदगी का भंडार बनता जा रहा है.यह कोई पहला मामला नहीं है, किंतु 2021 की शुरुआत में ही जिस प्रकार से यह मामला प्रकाश में आया है, उसने ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों की मानसिकता पर बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा किया है. 

चूंकि आस्ट्रेलिया एक लंबे समय तक क्रिकेट में अपना वर्चस्व रखता आया है और ऐसे में उसके प्रशंसकों में दूसरे टीमों के प्रति हीन भावना का उत्पन्न होना स्वभाविक ही है. सच्चाई यह है कि ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाड़ियों को, उनके प्रशंसकों को अपनी टीम की हार देखना गवारा नहीं होता है, और ऐसी स्थिति में वह नस्लवादी टिप्पणियों का सहारा लेकर अपनी कमजोर मानसिकता जाहिर कर ही देते हैं.


यह एक ऐसा फैक्टर है, जिससे ठीक ढंग से निपटने की जरूरत है.भारतीय कप्तान विराट कोहली ने भी इस मामले की कड़ी आलोचना करते हुए कानूनी शक्ति का प्रयोग करने की बात कही. 

इस विवाद ने उस मंकी गेट प्रकरण को भी हवा दे दी, जब भारतीय फिरकी गेंदबाज हरभजन सिंह द्वारा एंड्रयू सायमंड्स को कथित तौर पर मंकी कहने की बात प्रकाश में आई थी. इसे लेकर खूब विवाद हुआ और सचिन तेंदुलकर ने जब इस मामले में कहा कि उन्होंने हरभजन सिंह को ऐसा कुछ कहते नहीं सुना, तब जाकर इस मामले पर पानी पड़ा था. 

हालाँकि बावजूद उसके ऑस्ट्रेलियाई मीडिया बाल की खाल निकालती रही. अब जब खुद ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों द्वारा इस तरह का कृत्य किया गया है, तब ऑस्ट्रेलियाई मीडिया की पैनी धार अवश्य ही दिखनी चाहिए थी, जो उस तरह से दिखी नहीं.समाज में जब तक हम बुराई को सबके सामने नहीं लाएंगे, तब तक उसकी अनदेखी करने से समस्या सुलझने की बजाय उलझेगी ही!
समाज के लोगों की भी जिम्मेदारी बनती है कि जब भी वह मैच देखने जाएँ, वह बेशक क्रिकेट हो, फुटबॉल हो, या कोई और खेल हो, उसमें धैर्य का परिचय अवश्य दें और कभी भी खेल भावना से इतर हटकर एक दूसरे टीम की खिलाड़ियों के सम्मान के साथ अवहेलना न करें.

हालांकि, ऐसी चीजों को जिस बेहतर ढंग से टीम इंडिया जवाब दे सकती थी, उसने उसी अंदाज में जवाब दिया है. और यह जवाब उद्दंड ऑस्ट्रेलियाई दर्शकों और पक्षपाती ऑस्ट्रेलियाई मीडिया को अवश्य ही समझ आया होगा.
परन्तु बावजूद इसके, इन पर ऑफिसियल एक्शन आवश्यक है. 



आप इस संबंध में क्या कहते हैं, कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.







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