सबरीमाला स्थित 'अयप्पा' भगवान के मंदिर की 18 सीढ़ियों का रहस्य

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सबरीमाला स्थित 'अयप्पा' भगवान के मंदिर की 18 सीढ़ियों का रहस्य

भारत में समृद्ध और मशहूर मंदिरों की बात करें तो केरल के तिरुअनंतपुरम के सबरीमाला स्थित अय्यप्पा भगवान के मंदिर का नाम भी इसमें शामिल है। लगभग 800 साल पुराना यह मंदिर ना केवल दक्षिण भारत में बड़ी श्रद्धा के साथ जाना जाता है, बल्कि भारत के सभी राज्यों सहित विदेशों से लोग यहां दर्शन के लिए आते हैं।  सबरीमाला मंदिर का नाम उसी रामायण के शबरी के ऊपर रखा गया है, जिसने भगवान को जूठे फल खिलाए थे। इस उम्मीद में कि कहीं कोई फल खट्टा ना हो, कड़वा ना हो। 

Mythological History Of Sabarimala Temple


हर एक फल चख कर शबरी ने भगवान राम को खिलाए और भगवान राम ने उतने ही प्रेम से वह फल ग्रहण किए। हालांकि प्राचीन समय से ही इस मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा हुआ था, जिसे लेकर समाज सेवी संगठन विरोध कर रही थीं। वहीं भारी विरोध के बाद भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रतिबंध को हटाते हुए मंदिर के गर्भ गृह में महिलाओं को प्रवेश करने की अनुमति दे दी है। सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों लगा था इसके बारे में कहा जाता है कि भगवान शिव और विष्णु के पुत्र कहे जाने वाले 'अय्यप्पा' भगवान ब्रह्मचारी थे और इसी वजह से उनके मंदिर में औरतों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा हुआ था। 

भगवान शंकर और भगवान विष्णु के पुत्र भगवान 'अय्यप्पा' को लेकर एक दिलचस्प बात प्रचलित है जिसके अनुसार कहा जाता है कि जब विष्णु भगवान ने मोहिनी रूप धारण किया हुआ था तब भगवान शिव उन पर मोहित हो गए और इसी वजह से भगवान अयप्पा का जन्म हुआ। केरल राज्य की राजधानी  'तिरुअनंतपुरम' से 175 किलोमीटर दूर स्थित भगवान अयप्पा के मंदिर में दर्शन करना इतना आसान नहीं है। क्योंकि यह मंदिर घने जंगलों के बीच पड़ता है और इसके लिए 6 माह पहले से ही तपस्या करनी पड़ती है। इस दौरान दर्शन करने वालों को सात्विक जीवन जीना पड़ता है, मांस -मदिरा आदि का त्याग कर अनुशासित जीवन जीना पड़ता है। 
Mythological History Of Sabarimala Temple



मंदिर की पवित्र 18 सीढ़ियों का रहस्य 
सबरीमाला स्थित भगवान अय्यप्पा का यह मंदिर जितना भव्य और खूबसूरत है उतना ही अलौकिक और चमत्कारिक भी है। मंदिर के गर्भगृह स्थित 18 सीढ़ियों के बारे में कहा जाता है कि यह अलौकिक सीढियाँ चढ़ना साधारण मनुष्य के बस की बात नहीं है और इसको वही पार कर सकता है जो सात्विक हो। 
 इन 18 सीढ़ियों को मनुष्य के संपूर्ण जीवन से जोड़कर बताया जाता है, जिनमें पहली पांच पीढ़ियों को लेकर कहा जाता है कि यह मनुष्य के पांचों इंद्रियों की प्रतीक हैं। इसके बाद 8 सीढ़ियों को मनुष्य की भावनाओं से जोड़ा जाता है और कहा जाता है कि यह मनुष्य की भावनाओं के प्रतीक हैं। आगे की तीन सीढ़ियां मानवीय गुणों का प्रतीक मानी जाती हैं तो अंत की दो सीढ़ियों को ज्ञान और अज्ञान का प्रतीक बताया जाता है। 

और भी हैं चमत्कार! 
हर साल इस मंदिर के पास मकर संक्रांति की रात घने अंधेरे में रह-रहकर यहां एक ज्योति दिखती है। इस ज्योति के दर्शन के लिए दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु हर साल आते हैं। इस रोशनी के साथ शोर भी सुनाई देता है और यहाँ आने वाले भक्तों का कहना हैं कि ये देव ज्योति है और भगवान इसे जलाते हैं। वहीं मंदिर प्रबंधन के पुजारियों के मुताबिक मकर माह के पहले दिन आकाश में दिखने वाले एक खास तारा मकर ज्योति है। 






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