अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव ने बढ़ा दी है सरगर्मी

Fixed Menu (yes/no)

अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव ने बढ़ा दी है सरगर्मी


Presidential elections in America 2020, Donald Trump and Joe Biden, Hindi Article


एक तरफ दुनिया जहां कोरोना वायरस से दो-चार है, वहीं दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में भी लोगों की कम दिलचस्पी नहीं है.

वास्तव में देखा जाए तो हाल-फ़िलहाल दुनिया में एकमात्र सुपर पावर अमेरिका ही है और इसका चुनाव दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक व्यवस्था के तौर पर भी प्रतिबिंबित है. यह न केवल अमेरिका, बल्कि विश्व भर में अपना प्रभाव छोड़ता है. यह बेहद सामान्य बात है कि तमाम लोग अमेरिकी चुनाव में अपनी दिलचस्पी रखते हैं.

यूं भी अमेरिकी चुनाव सीधे-सीधे वैश्विक अर्थव्यवस्था से भी जुड़ा हुआ है. डॉलर के रेट के साथ साथ वैश्विक अर्थव्यवस्था भी चलती है. अमेरिकी उप महाद्वीपों को तो छोड़ ही दीजिए, अगर हम यूरोप की बात करें, या फिर एशिया की बात करें तो अमेरिका का तमाम अर्थव्यवस्थाओं पर उतना ही प्रभाव है!
इसलिए बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है कि अमेरिकी राष्ट्रपति की नीतियां क्या हैं और उन नीतियों के साथ वह दूसरे राष्ट्रों के साथ किस प्रकार डील करेंगे?


भारत को ही ले लीजिए!
एशिया में भारत - अमेरिका का महत्वपूर्ण सहयोगी बनने की राह पर आगे बढ़ चला है. खासकर चीन को लेकर जिस प्रकार दोनों देश संकट का सामना कर रहे हैं, वह अभूतपूर्व हैं. भारत से तो चीन की शत्रुता के स्तर तक प्रतिद्वंद्विता रही है, किंतु हाल-फिलहाल के दशकों में अमेरिका को भी चीन से कड़ी चुनौती मिल रही है. ना केवल अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर, बल्कि सैन्य स्तर पर भी चीन ने अमेरिका के लिए मुसीबतें खड़ी की हैं. वह चाहे दक्षिण चीन सागर की बात हो, अथवा मिडिल ईस्ट में प्रभाव जमाने को लेकर अपनाई गई चीनी नीतियां हों, अफ़्रीकी महाद्वीप में चीन की पैठ हो... अमेरिकी वर्चस्व को थोड़ी ही सही, मगर चुनौती तो मिल ही रही है.

आखिर, कौन नहीं जानता है कि चीन मिडल ईस्ट में ईरान के साथ मिलकर रूस के साथ एक नए तरह के गठबंधन को आकार दे रहा है, ताकि अमेरिकी प्रभुत्व को चुनौती मिल सके. 

खैर! वैश्विक स्तर पर अमेरिकी प्रशासन की नीतियां एक हद तक स्थिर रहती हैं, किंतु वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस भ्रम को काफी हद तक तोड़ा भी है. जिस प्रकार से उन्होंने झटके से ईरान के साथ हुई न्यूक्लियर डील को रद्द कर दिया और जलवायु परिवर्तन जैसे समझौतों से बाहर आए, उससे वैश्विक अमेरिकी छवि को अच्छी खासी चोट पहुंची है.
हाँ! चीन के प्रति वह सख्त ज़रूर रहे हैं और व्यापार घाटे को लेकर ट्रम्प प्रशासन द्वारा भारी टैरिफ भी लगाया गया है. ऐसे में ट्रम्प को लेकर चीन परेशान ज़रूर रहा है, किंतु अप्रत्यक्ष रूप से देखा जाए तो चीन को डोनाल्ड ट्रंप से फायदा ही हुआ है. इसका कारण स्पष्ट है और वह यह है कि बिजनेस बैकग्राउंड से होने के कारण ट्रम्प की राजनीतिक समझ क्षीण रही है और उनकी इसी समझ ने अमेरिका की वैश्विक छवि को नुकसान पहुंचाया है. निश्चित रूप से अमेरिका की साख गिरी है. 

साख गिरने का फायदा यह हुआ है कि चीन को उभरने का मौका मिला है. आप पेरिस जलवायु परिवर्तन के समझौते को ही देख लें. इस महत्वपूर्ण समझौते से अमेरिका के निकलने के बाद उसकी जगह को भरने की चीन द्वारा पुरजोर कोशिश की गयी. इसी प्रकार डब्ल्यूएचओ (WHO) की बात भी है. डब्ल्यूएचओ को लेकर डोनाल्ड ट्रंप ने जो नजरिया अपनाया, वह भी कोविड-19 के समय, उसने अमेरिकी साख को अच्छी खासी चोट पहुंचाई.
ऐसे कई वैश्विक संगठनों में अमेरिका के प्रभाव को लेकर चीन निश्चित रूप से डोनाल्ड ट्रंप से खुश होगा.

हालांकि भारत को लेकर डोनाल्ड ट्रंप की नीति कमोबेश ठीक ठाक रही है और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी बॉन्डिंग भी अच्छी रही है. चीन के साथ भारत के सीमा विवाद में भी ट्रम्प प्रशासन ने सकारात्मक रुख ही अख्तियार किया है. यूं भी भारत के लिए कमोबेश स्थिति समान ही रहने वाली है. हालांकि व्यापार के मोर्चे पर ट्रम्प ने भारत को भी झटका ज़रूर दिया है, पर भारत के सन्दर्भ में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों के सत्ता में आने पर भी बहुत बड़ा बदलाव मुमकिन नहीं है. यह रिपब्लिकन जार्ज डब्ल्यू बुश जूनियर, बराक ओबामा और ट्रम्प प्रशासन तक स्पष्ट रूप से दिखा है. 

स्पेसिफिकली बाईडन की बात करें तो उनके राष्ट्रपति बनने की सूरत में बराक ओबामा काल की नीतियाँ जारी रह सकती हैं. भारत को उनसे सिर्फ कश्मीर में मानवाधिकारों पर चिंतित होने की ज़रुरत है, बाकी भारत से वह भी अपना सम्बन्ध मजबूत ही करना चाहेंगे. इस बात में भी दो राय नहीं होना चाहिए कि वैश्विक स्तर पर अमेरिकी साख को मजबूत करने पर उनका ज्यादा जोर रहेगा. 

यूं भी वह अनुभवी राजनेता हैं और उपराष्ट्रपति पद पर कार्य कर चुके हैं. ऐसे में उनके कदम अपेक्षाकृत सधे होंगे.

बहरहाल, डुगडुगी बज चुकी है और अब जबकि 10 दिन से कम समय रह गया है अमरीकी चुनाव में, तो सरगर्मी के और भी तेज होने की सम्भावना है.
आप इस सम्बन्ध में क्या सोचते हैं, कमेन्ट बॉक्स में अपने विचारों से अवश्य ही अवगत कराएं. 





क्या आपको यह लेख पसंद आया ? अगर हां ! तो ऐसे ही यूनिक कंटेंट अपनी वेबसाइट / डिजिटल प्लेटफॉर्म हेतु तैयार करने के लिए हमसे संपर्क करें !

** See, which Industries we are covering for Premium Content Solutions!

Web Title: Premium Hindi Content on Presidential elections in America 2020, Donald Trump and Joe Biden, Hindi Article

Post a Comment

0 Comments