Facebook Investment in Reliance Jio, Mukesh Ambani and Mark Zuckerberg (Pic: businesstoday) |
आर्थिक उथल-पुथल के बीच जिस प्रकार फेसबुक ने जिओ में सबसे बड़े माइनॉरिटी शेयर होल्डर का दर्जा हासिल किया है, उसने आर्थिक जगत में बिजनेस को लेकर बड़ी उम्मीद जगाई है. सामान्य तौर पर कंपनियां विपरीत स्थितियों में बिजनेस डीलिंग को आगे बढ़ा देती हैं, लेकिन फेसबुक और जियो ने लॉक डाउन के बीच में ऐसा ना करके यह दिखला दिया है कि उनकी मानसिकता के ऊपर कोरोना क्राइसिस संपूर्ण रूप से हावी नहीं है.
हालांकि इस डीलिंग की बातचीत महीनों से चल रही थी, बावजूद इसके इस वक्त में यह प्रयास सराहनीय है.
इस महत्वपूर्ण डीलिंग की बात करें तो मुकेश अंबानी और मार्क जुकरबर्ग दोनों में एक बड़ी बात कॉमन है और वह यह मानना है कि "इंटरनेट, वर्तमान दुनिया में सबसे बड़ा गेम चेंजर है." इस बात को वह दोनों न केवल कहते हैं, बल्कि इस पर पूरा यकीन भी करते हैं.
जरा ध्यान दीजिए, फेसबुक ने कुछ दिन पहले भारत में फ्री इंटरनेट की बड़ी मुहिम चलाने की कोशिश की थी, जिसका तत्कालीन टेलीकॉम ऑपरेटरों ने विरोध किया था और आशंका जताई थी कि इससे पार्शियल्टी होगी. न केवल एशिया में, बल्कि अफ्रीका इत्यादि महाद्वीपों में भी फ्री इंटरनेट के हिमायती रहे हैं मार्क जकरबर्ग!
इसी प्रकार, भारत में जिस तरह से मुकेश अंबानी ने इंटरनेट को लगभग पूरी ही तरह फ्री कर दिया, सच कहें तो उससे मार्क जकरबर्ग का सपना भी पूरा हुआ है. यह बताने की जरूरत नहीं है कि जियो ने इंटरनेट डाटा मार्केट में जो बड़ा खेल खेला, उस खेल का बड़ा फायदा मार्क जुकरबर्ग के सबसे बड़े वेंचर फेसबुक के साथ-साथ व्हाट्सएप, इंस्टाग्राम इत्यादि को बड़े स्तर पर मिला.
गांव-गांव में इसके उपभोक्ता हो गए, तो फेसबुक विज्ञापनों की कमाई भी दिन-दूनी रात-चौगुनी बढ़ी.
जियो में फेसबुक के इन्वेस्टमेंट का एक पहलू यह भी है कि मार्क जुकरबर्ग बड़े खेल में विश्वास रखते हैं. सामान्य तौर पर बिजनेस में मोनोपोली को लेकर सरकारें सजग रहती हैं, लेकिन मार्क ज़ुकरबर्ग को इससे परहेज नहीं है. भारत में मुकेश अंबानी भी बड़ा खेल खेलते हैं और रिलायंस जिओ से उन्होंने साबित कर दिया है कि वह मार्केट को उलटने पलटने की सटीक क्षमता रखते हैं.
ऐसे में भारत में रिलायंस जियो सबसे बड़ी प्लेयर बन चुकी है और फेसबुक की हिस्सेदारी से इसे मोनोपोली की ओर बढ़ने में मदद मिलने वाली है.
बाजार नियामकों के दबाव में रिलायंस जियो अगर मोनोपोली हासिल नहीं भी कर पाई, तो भी मार्केट के नियमों को तय करने और अपनी जरूरत के हिसाब से उसे बदलने की उसकी क्षमता निश्चित तौर पर काफी बढ़ जाएगी. ऐसे में रिलायंस और फेसबुक दोनों के लिए विन-विन (win-win) सिचुएशन है.
देखना दिलचस्प होगा कि भारत में रिलायंस जिओ की प्रतिस्पर्धी कंपनियां एयरटेल और वोडाफोन-आईडिया (vodafone-idea) इसके जवाब में कौन सा दांव चलती हैं.
Facebook Investment in Reliance Jio, Business Article in Hindi, Writer Mithilesh (Pic: Team Article Pedia) |
फिलवक्त वोडाफोन आइडिया की हालत खराब है और गाहे-बगाहे उसकी तरफ से यह बयान आता है कि वह भारत से अपना कारोबार समेटने पर विचार कर रही है. हालांकि सरकार उसे लेकर उहापोह में जरूर है और वह नहीं चाहेगी कि बाजार में कोई एक या दो खिलाड़ी वर्चस्व बना लें, इसीलिए अभी वोडाफोन हाल-फिलहाल इंडियन मार्केट में रहने वाली है.
बात अगर एयरटेल को लेकर करें तो वह भारत में बेहद सधे कदमों से चल रही है. सुनील मित्तल को जानने वाले लोग अवश्य ही यह आंकलन कर रहे होंगे कि फेसबुक और जियो की पार्टनरशिप के बाद एयरटेल भी किसी बड़े खिलाड़ी से हाथ मिला सकती है.
हालांकि एयरटेल का फोकस फिलहाल अफ्रीकी मार्केट पर कहीं ज्यादा दिखता है.
सवाल सिर्फ भारतीय टेलीकॉम कंपनियों का ही नहीं है, बल्कि फेसबुक की प्रतिस्पर्धी कम्पनियाँ, जिसमें न केवल इंटरनेट जायंट गूगल, बल्कि अमेज़न और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों का नाम भी है, वह भी चिंतित होंगी.
चूंकि रिलायंस का जियो मार्ट एक बड़ा महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है, जिसका ट्रायल मुंबई, थाने इत्यादि जगहों पर शुरू हो चुका है. निश्चित रूप से रिलायंस जियो के क़दमों पर ई-कॉमर्स प्लेयर्स की भी नजरें जमी होंगी.
बहरहाल, दिलचस्प बात यह है कि इन सभी के बीच यूजर्स को इंटरनेट रिवॉल्यूशन के लिए तैयार रहना चाहिए. इसमें न केवल बड़े और नए प्रोडक्ट सामने आ सकते हैं, बल्कि इंटरनेट एक्सपीरियंस का तरीका भी बदलने वाला है. तो तैयार रहिए नए और बेहतर अनुभव के लिए और कमेंट बॉक्स में बताना नहीं भूलिएगा कि यह आर्टिकल आपको कैसा लगा.
लेखक: मिथिलेश कुमार सिंह
लेखक: मिथिलेश कुमार सिंह
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