न्याय एवं एनकाउंटर, विद्रोह एवं शहीद भगत सिंह का उदाहरण

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न्याय एवं एनकाउंटर, विद्रोह एवं शहीद भगत सिंह का उदाहरण

प्रशासनिक दृष्टि से सरकार को एनकाउंटर करने-कराने का निर्णय कई बार लेना पड़ता है, लेकिन यह रेयरेस्ट ऑफ द रेयर होना चाहिए और इसको नजीर नहीं बनाया जाना चाहिए।

इसके लिए पुलिस या सरकार प्रशंसा के पात्र भी नहीं हैं कि उन्हें बहुत ज्यादा शाबाशी मिले और ना ही पुलिस या सरकार अपनी जिम्मेदारी से बच सकती है कि कि पब्लिक सेंटीमेंट को एनकाउंटर के नाम पर खुश करके अपनी जिम्मेदारी से बच जाए।

Hyderabad Encounter, Rape Case, Sacrifice, Example of Shaheed Bhagat Singh - The Martyr (Pic: dnaindia)
वस्तुतः इस तरह की घटनाओं के लिए पुलिस ही सर्वाधिक जिम्मेदार होती है, आप डाटा चेक कर लीजिए।

लेकिन हां यह तथ्य है कि एनकाउंटर का डिसीजन प्रशासनिक दृष्टि से कई बार अपरिहार्य हो जाता है, यूपी की पूर्व सीएम सुश्री मायावती जी ने इसी की आज पैरवी करते हुए कहा है कि यूपी पुलिस को हैदराबाद पुलिस से सीख लेनी चाहिए।

 लेकिन इसकी उच्च अधिकारियों द्वारा जांच अवश्य कराई जानी चाहिए और अगर कानून की रक्षा के नाम पर किसी ने दुस्साहस करने का वाकई कार्य किया है तो उसको भी न्याय के कटघरे में लाना चाहिए।

किसी फेसबुक पोस्ट पर भगत सिंह का नाम भी पढ़ा तो यह समझ लें।

कानून के खिलाफ भगत सिंह भी थे, उन्होंने अंग्रेजी राज्य का विरोध किया लेकिन असेम्बली में बम फेंकने के बाद, अपना विरोध जताने के बाद वह सरेआम अपने गले में फांसी का फंदा डालने से हिचके नहीं! 
(फिल्मी अंदाज में बोलें तो 'गब्बर इज बैक' के अंत में इसे दिखाया गया है)

ध्यान रहे, नियमों को चुनौती देकर, सीना तान के खड़ा रहना विद्रोह-बगावत है और यह समाज के लिए आवश्यक है। वहीं नियमों को चुनौती देकर पीठ दिखाना, ओट में छिप जाना 'कायरता' है, जो क्राइम को जन्म देता है।

ज़ाहिर है कि भगत सिंह जैसे लोग हर युग के लिए आवश्यक हैं, किन्तु कायर और मॉब लिंचर लोग समाज के लिए शापित होते हैं।

यहाँ भी अगर किसी पुलिस अधिकारी ने वाकई गलत एनकाउंटर किया है और उसे समाज के लिए यह संदेश देना जरूरी लगा तो क्या वह पुलिस अधिकारी सामने आकर अपने जुर्म को कबूल करके अपना बलिदान दे सकता है?

भगत सिंह की तरह!

नहीं तो वह 'कायर' और 'मॉब-लिंचर' ही है।


समाज के लिए जब आप नियमों के खिलाफ जाते हैं तो आप आदर्श तभी स्थापित कर सकते हैं, जब आप अपना बलिदान दे सकें। अगर आप इसे चोरी-छिपे करते हैं इसका मतलब कि आपमें बलिदान देने का साहस नहीं है और आप समाज को सीख देने का जज्बा भी नहीं रखते हैं... बल्कि उसे गलत राह पर ही धकेलते हैं।

बहरहाल न्याय प्रक्रिया के भीतर समूची घटना को लाया जाना चाहिए और न्याय के रास्ते ही आगे बढ़ा जाना चाहिए, इसमें कोई शक नहीं...  

हाँ! वह बेहद स्पीड में होना चाहिए और किसी भी रेपिस्ट को सरेआम सजा मिलनी चाहिए, सरेआम फाँसी मिलनी चाहिए, मगर अदालत द्वारा।

फिर रिपीट कर दूं कि अगर किसी को समाज को जगाने के लिये वाकई जज़्बा उछाल मार रहा है तो भगत सिंह की तरह 'बलिदान' देकर समाज को सीख दे, न कि पीछे से समाज को गर्त में धकेले।
क्यों एक पुलिस अधिकारी समाज में सही संदेश देने के लिए जेल नहीं जा सकता क्या?
समाज की सिम्पैथी भी मिलेगी उसे!
सोचिये...

वैसे #KCR पब्लिक सेंटिमेंट को समझने वाले लीडर हैं और बहुत मुमकिन है कि यह निर्णय वहीं से आया हो।

इससे इतर अगर हम नज़र दौड़ाते हैं तो तमाम प्रश्न मुंह बाए हमारा इंतज़ार कर रहे हैं, मसलन

हमारे देश में प्रत्येक राज्य की पुलिस का जैसा पुराना रिकॉर्ड रहा है, उसके मुताबिक क्या कोई इस बात की गारंटी ले सकता है कि ये जो मारे गए हैं यही असली रेपिस्ट रहे हों!
क्या यह मुमकिन नहीं है कि इस पूरे मामले के पीछे कोई रसूखदार व्यक्ति हो और पुलिस को मैनेज करा के यह सारा खेल किया गया हो!

जहाँ तक बात पुलिस के सामने जुर्म कबूल करने की है तो यह जानकारी होनी चाहिए कि अदालत पुलिस के सामने दिए गए बयान को नहीं मानती, जब तक उसे पूरे सुबूतों के साथ साबित न कर दिया जाए।

चलो यह मान भी लें कि वह क्रिमिनल हो थे, तो भी कई प्रश्न उठते हैं। फेसबुक पर एक मित्र ताराशंकर, जो दिल्ली यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर हैं और इसी संबंधित विषय से पीएचडी हैं, उन्होंने एक आंकड़ा प्रस्तुत किया है जो कमोबेश सही प्रतीत होता है और सोचने को विवश करता है।

इसके अनुसार...


  • इस समय भारतीय जेलों में कुल 4 लाख 33 हज़ार आरोपी बंद हैं। तो क्या कोर्ट ख़तम करके उनको गोली मार दी जाये? 
  • मर्डर के आरोप में 70 हज़ार लोग जेल में हैं तो क्या सबका एन्काउंटर कर दिया जाये? 
  • रेप के आरोप में 10 हज़ार 400 आरोपी जेल में हैं, तो क्या सबकी हत्या कर दी जाये बिना ट्रायल के?
  • इसी प्रकार संसद में 100 से ऊपर सांसद बलात्कार और मर्डर के आरोपी हैं, तो इन सबका क्या किया जाये?
  • इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि बलात्कार के मामलों में 10.40% लोग घर के ही सदस्य बलात्कारी निकलते हैं, तो क्या सबको गोली मार दी जाये? 
  • पुलिस कस्टडी में ही कई बार रेप की घटनाएं घट चुकी हैं तो पुलिस को ही एनकाउंटर कर दिया जाये? 

इन सबके बाद भी बलात्कार, मर्डर रुक जायेंगे इसकी क्या गारंटी? 

ताराशंकर आगे सलाह देते हैं कि समस्या की जड़ पर प्रहार करना आवश्यक है, न्याय की प्रक्रिया त्वरित और फ़ास्ट करना आवश्यक है, क्योंकि तालिबानी बनने से अपराध नहीं रुक पायेगा।

हालांकि, हैदराबाद का मामला सिर्फ रेप का ही नहीं था, बल्कि गैंग-रेप और मर्डर के रेयरेस्ट ऑफ दी रेयर मामलों में था, किंतु क्या वाकई इससे बाकी प्रश्न गौड़ हो जाते हैं?

क्या आगे इससे हल निकल जायेगा?

सच बात तो यह है कि समाज में बलिदान की भावना होना भी आवश्यक है। विद्रोह-बगावत से सड़-गल चुके नियमों पर सिस्टम का ध्यान जाता है और इससे समाज जीवांत बना रहता है।

किंतु यह विद्रोह-बगावत भगत सिंह की तरह होना चाहिए, न कि किसी कायर या मॉब लिंचर की तरह!

आप क्या सोचते हैं कि सत्यमेव जयते के विचार को जीवित रखने के लिए क्या किया जा सकता है?


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