ययाति चरितं - Yayati Conquered The Whole World, Hindi Story

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ययाति चरितं - Yayati Conquered The Whole World, Hindi Story


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Published on 29 Jan 2023

कौन थे राजा ययाति, जिनके पुत्रों ने संपूर्ण पृथ्वी पर एकछत्र राज किया?

श्रीमद् भागवत जी में नवम स्कन्ध का अठारहवां अध्याय 'ययाति चरित्र' कहता है कि ययाति, राजा नहुष के 6 पुत्रों में से एक थे. 

अत्रि वंश में पैदा हुए नहुष को बाह्मणों ने इंद्र के पद से हटा दिया था. कारण था कि इंद्र के पद पर रहते हुए नहुष ने उनकी पत्नी शची से सहवास करने की चेष्टा की थी.

नहुष को कहीं-कहीं इक्ष्वाकु वंश में पैदा हुआ भी बताया जाता है.

नहुष अपने बड़े पुत्र यति को राज्य का भार सौपना चाहते थे. यति माया से विरक्त था, उसने पहले ही वैराग्य धारण कर लिया था. इसलिए उसने मना कर दिया.

बहरहाल, नहुष के बाद उनके पुत्र ययाति सम्राट बने. सृष्टि के सर्जक ब्रह्मा की पीढ़ी में पैदा हुए ययाति देवराज इंद्र के समान ही तेजस्‍वी थे.

ययाति ने अपने से 4 छोटे भाईयों को चारों दिशाओं में राज्य करने के लिए भेज दिया था. वहीं, इन्होंने दैत्यों के गुरु शुक्रायार्च की पुत्री देवयानी और दैत्यों के राजा वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा से शादी कर ली.

इसी के साथ, ययाति पृथ्वी की रक्षा के प्रयत्न में लग गए.

ऐसे में आइए जानते हैं कि राजा ययाति आखिर कौन थे, और उनके पुत्रों ने कैसे संपूर्ण पृथ्वी पर राज किया – 

पत्नी और दासी के बीच विवाद 

शादी के बाद ययाति को अपनी पत्नी देवयानी से दो पुत्र रत्नों की प्राप्ति हुई, यदु और तुर्वसू. वहीं, शर्मिष्ठा से 3 पुत्र द्रुह्यु, अनु और पुरु हुए.

देवयानी ये बात सहन न कर सकी कि ययाति से शर्मिष्ठा को 3 पुत्र हुए हैं. वह गुस्से के मारे, ययाति के मनाने के बावजूद घर छोड़कर अपने पिता शुक्राचार्य के घर चली गई.


असल में शर्मिष्ठा गुरु शुक्राचार्य के शिष्य और दैत्य राज वृषपर्वा की पुत्री थी.

एक रोज जब दोनों अपनी हजारों सखियों के साथ एक सरोवर में स्नान कर रही थीं. अचानक वहां से भगवान शिव पार्वती संग निकल रहे थे. ऐसे में जल्दी ही सभी कन्या जल से निकलीं और कपड़े पहनने लगीं. कपड़े पहनने की जल्दबाजी में शर्मिष्ठा ने देवयानी के कपड़े पहन लिए. ये देख देवयानी आग बबूला हो गई और शर्मिष्ठा को खरी-खोटी सुनाने लगी.

अपना अपमान देख शर्मिष्ठा से भी रहा न गया और उसने भी देवयानी के ऊपर आरोप लगाए और उससे कपड़े छीनकर उसे कुंए में धकेल दिया. देवयानी नग्न अवस्था में ही कुंए में पड़ी रही.

वहीं, थोड़ी देर में राजा ययाति पानी पीने पहुंचे. उन्होंने देवयानी को अपना दुपट्टा दिया और उन्हें बाहर निकाला. एक सुंदर, नवयुवक देख देवयानी भी ययाति पर मोहित हो गईं और उनके समक्ष शादी का प्रस्ताव रख दिया. अपनी तृष्णाओं के आगे हारे बैठे राजा ययाति भी देवयानी के यौवन पर फिदा थे और उन्होंने झठ से उनकी बात स्वीकार कर ली.

देवयानी की शादी की बात तो तय हो गई, लेकिन उसे अभी शर्मिष्ठा से अपने मानमर्दन का बदला भी लेना था. सो वो रोते रोते अपने पिता और दैत्य राज वृषपर्वा के गुरु शुक्राचार्य के पास पहुंची.

बात की भनक वृषपर्वा को भी लग ही गई, सो डर के मारे वह भी गुरु से माफी मांगने निकल पड़े. शुक्राचार्य भी नगर छोड़ वहां से प्रस्थान कर गए. रास्ते में वृषपर्वा उनके चरणों में गिरकर विनय प्रार्थना करने लगे.


गुरु तो गुरु ठहरे, उन्होंने वृषपर्वा को कोई श्राप तो नहीं दिया, लेकिन उनसे कहा कि तुम देवयानी की एक इच्छा पूरी कर दो. तब देवयानी ने कहा कि मेरी शादी जहां भी हो, लेकिन मेरी सेवा के लिए शर्मिष्ठा मेरे साथ चले.

गुरु का आदेश था, सो वृषपर्वा को मानना पड़ा.

देवयानी की ययाति से शादी हो गई और शर्मिष्ठा को दासी के रूप में उनके साथ भेज दिया गया. साथ में शुक्राचार्य ने राजा ययाति से कहा कि "शर्मिष्ठा को अपनी सेज पर कभी न आने देना."

शर्मिष्ठा के 3 पुत्रों के जन्म के साथ ही शुक्राचार्य से किया गया ये वादा टूट चुका था.

शुक्राचार्य के श्राप ने दिया बुढ़ापा

रुष्ट होकर देवयानी पिता शुक्राचार्य के पास पहुंचीं.

शुक्राचार्य ने भी बात को समझने में तनिक देरी न लगाई और राजा ययाति को श्राप दे दिया. उन्होंने कहा कि "तू स्त्रीलंपट, मंदबुद्धि और झूठा है. जा तुझे कुरुप कर देने वाला बुढ़ापा आ जाए."

श्राप के मारे ययाति शुक्राचार्य से बोल पड़े कि "इससे तो आपकी पुत्री का भी अनिष्ट ही है. अभी मेरी भोग की तृप्ति नहीं हुई है."

गुस्सा शांत होने पर शुक्राचार्य ने ययाति से कहा कि "तुम्हारी जवानी वापस आ सकती है, लेकिन तब जब कोई खुशी-खुशी अपनी जवानी तुम्हें देना चाहे."


बेटे पुरु ने लौटाई जवानी

तब, ययाति ने देवयानी पुत्र यदु से अपनी जवानी देने का विनय किया. उन्होंने कहा कि "यदु! तुम्हारी जवानी लेकर मैं कुछ और सालों तक भोग का आनंद लूंगा. तब तक तुम यह बुढ़ापा स्वीकार कर लो."

अपनी जवानी खो जाने के डर से यदु ने ऐसा करने से मना कर दिया.

पिता की आज्ञा मानने से इंकार करने पर यदु को उनके श्राप का भागी बनना पड़ा. ययाति ने रुष्ट हो कर यदु या उसके लड़कों को कभी भी राजपद प्राप्त न होने का श्राप दिया.

ऐसे में उन्होंने अपने अन्य पुत्र तुर्वसू, द्रुह्यु, अनु से भी यही निवेदन किया, लेकिन कोई भी ऐसा नहीं कर पाया. चारो पुत्रों ने पिता की आज्ञा को स्वीकार करने से मना कर दिया.

अपने पुत्रों से न सुनने के बाद ययाति ने अपने आखिरी पुत्र पुरु से ये बात कही. तब पुरु ने अपने पिता से कहा कि "ये शरीर तो आप ही का दिया हुआ है, भला मैं कैसे आपके उपकारों का बदला चुका सकता हूं."

ये कह कर पुरु ने अपने पिता का बुढ़ापा स्वीकार कर उन्हें अपनी जवानी दे दी.

राजा ययाति ने यौवन को प्राप्त करने के बाद सुखों को भोगना शुरू कर दिया. जवानी लौट आने पर देवयानी भी तन-मन-धन सभी प्रकार से ययाति की सेवा में लग गई. इधर ययाति अपने ईष्ट भगवान विष्णु का यजन करने लगे.

उन्होंने पूरी तल्लीनता के साथ निष्काम भाव से श्रीहरि की पूजा की. सुखों के भोग और भगवान का यजन करते-करते लगभग एक हजार साल बीत चुके थे. बावजूद इसके राजा ययाति की तृष्णाओं की तृप्ति न हो सकी.


बीमार शरीर देख हुआ वैराग्य

श्रीमद्भागवत जी में नवम स्कन्ध के उन्नीसवें अध्याय 'ययाति का गृह त्याग' में श्री शुकदेव जी राजा परीक्षित को बताते हैं कि "एक दिन विषय भोग की अंधड़ में खोए हुए ययाति की नजर अपने गिरते शरीर पर पड़ी."

उन्हें ये देख बड़ा वैराग्य हुआ.

उन्होंने देवयानी से कहा कि "मैं तुम्हारे प्रेमपाश में बंधकर दीन हो गया हूं. तुम्हारी माया ने मुझे भुलक्कड़ बना दिया है." "मुझे विषयों का बार बार सेवन करते करते हजार साल हो गए हैं, लेकिन मेरे अंदर भोगों की लालशा बढ़ती ही जा रही है."

इतना कहना भर था कि राजा ययाति ने अपने पुत्र पुरु की जवानी उसे वापस कर दी और उपना एक हजार साल से भी पुराना बुढ़ापा उससे ले लिया.

राजा ययाति का पूरी धरती पर एकछत्र राज था. वह सातों द्वीपों के राजा थे. ऐसे में उन्होंने दक्षिण-पूर्व दिशा का राज्य अपने पुत्र द्रुह्यु, दक्षिण का यदु, पश्चिम का तुर्वसू और उत्तर का राज्य अनु को सौंप दिया.

इसी के साथ ययाति ने अपने सबसे श्रेष्ठ पुत्र यदु को राजा घोषित कर दिया. उन्होंने सभी भाईयों को राजा यदु के अधीन कर खुद वन की ओर निकल पड़े.

माना जाता है कि ययाति के इन 5 पुत्रों के वंश से ही अखंड भारत में रहने वाली विभिन्न जातियां बनी हैं.

साथ ही वेदों में पंचनंद कहलाने वाले इन पांचों पुत्रों का आज से लगभग 10 हजार साल पहले पूरी पृथ्वी पर राज था. यदु के यदु या यादव, तुर्वसु के यवन, द्रुहु के भोज, अनु के मलेच्छ और पुरु के पौरव राजवंश ने पूरे विश्व पर शासन किया था.

The Story of Yayati, Who Had Conquered The Whole World, Hindi Article


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