राधा की इच्छा और श्री कृष्ण ने छोड़ दिया बांसुरी बजाना! - Untold story of Radhe Krishna in Hindi

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राधा की इच्छा और श्री कृष्ण ने छोड़ दिया बांसुरी बजाना! - Untold story of Radhe Krishna in Hindi


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Published on 30 Jan 2023

राधा की इच्छा, जिसके लिए श्री कृष्ण ने छोड़ दिया बांसुरी बजाना!

अपने अंदर समस्त ब्रम्हज्ञान को समेटे हुए यह नाम 'राधा' के बिना अधूरा है. हिंदू धर्म में श्री कृष्ण के नाम को राधा के साथ ही सार्थक माना जाता है. रिश्ता प्रेम का हो, वियोग का या फिर आध्यात्म का. 'राधा-कृष्णा' से अच्छा उदाहरण हो ही नहीं सकता.
जहाँ कृष्ण राधा तहाँ जहं राधा तहं कृष्ण।
न्यारे निमिष न होत कहु समुझि करहु यह प्रश्न।।


पद्मपुराण में श्री कृष्ण कहते हैं जिस समय मैं किसी के मुख से ‘रा’ सुनता हूँ, उसे मैं अपना भक्ति प्रेम प्रदान करता हूँ और 'धा' शब्द के उच्चारण करनें पर तो मैं 'राधा' नाम सुनने के लोभ से उसके पीछे चल देता हूँ.
अनंत प्रेम कहानी के कई अनछुए पहलु हैं. भक्त ​श्री कृष्ण के बारे में जितना ज्यादा जानते हैं, राधा के बारे में उतना ही कम. पुराणों और शास्त्रों में कृष्ण को जितना विस्तार दिया गया, राधा के चरित्र को उतनी जगह नहीं मिली.
यही कारण है कि कई जगह लोग मानते हैं कि राधा केवल कल्पना है.
खैर, आज कहानी राधा की उस इच्छा, जिसके लिए कहा जाता है कि श्री कृष्ण ने बांसुरी बजाना छोड़ दिया था—
कल्पना नहीं सच्चाई थी राधा, क्योंकि...
महाभारत, हरिवंश पुराण, विष्णु पुराण और श्री मद्भागवत की मूल किताब में राधा नाम के चरित्र का कोई उल्लेख नहीं मिलता है. यही कारण है कि श्री कृष्ण में आस्था रखने वाले कई लोग राधा को साधारण गोपी मानते है.
 
कई तो उन्हें कल्पना करार दे दिया है. इसके पीछे तर्क दिया जाता है कि यदि  राधा तत्कालीन समय में इतनी ही महत्वपूर्ण चरित्र थीं तो वेदव्यास जैसे महर्षि ने उनका वर्णन क्यों नहीं किया?
वहीं दूसरी ओर ब्रह्मवैवर्त पुराण तथा कवि जयदेव दो ही ऐसे प्रमाण है, जो राधा के चरित्र के होने की पुष्टि करते हैं. गीत गोविंद तथा चैतन्य चरणामृत में भी राधा और कृष्ण के मिलन-विक्षोह का प्रमाण मिलता है.
ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार जब श्रीकृष्ण गोलोकधाम में निवास करते थे तब राधा उनके साथ थीं. गोलोकधाम को वैकुण्ठ धाम से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है. यहां राधा के अलावा कृष्ण की अन्य रानियां भी रहा करती थीं.


क्या कहती हैं प्रचलित कथाएं...
एक कथा के अनुसार श्रीकृष्ण अपनी पत्नी विराजा को बहुत सम्मान देते थे. उनके साथ सबसे ज्यादा समय बिताया करते थे. यही कारण था कि राधा विराजा को पसंद नहीं करती थीं.
एक बार श्रीकृष्ण, विराजा से मिलने उनके घर पहुंचे. पीछे-पीछे राधा भी वहां आ गईं. श्रीकृष्ण तो विराजा के महल में चले गए, पर राधा को द्वारपाल श्रीदामा ने रोक लिया. इस हिमाकत के लिए राधा ने श्रीदामा को अपशब्द कहे.
उन्होंने श्रीदामा को श्रॉप दिया कि वह असुर के कुल में जन्म ले. श्रीदामा जो स्वयं श्रीकृष्ण का भक्त था वह इस श्रॉप से दुखी भी हुआ और क्रोधित भी. अत: उसने भी राधा को श्रॉप दियाकि 100 वर्षों के लिए उसका श्री कृष्ण से विक्षोभ हो जाए.

 
एक-दूसरे पर क्रोध जाहिर करने के जल्दी में दोनों ने खुद को श्री कृष्ण से दूर कर लिया था.
अत: वे श्रॉप की मुक्ति के लिए वा​पस कृष्ण की शरण में पहुंचे. श्रीकृष्ण श्रीदामा को असुरराज बनने का वरदान देते हैं और कहते है कि धरती लोक पर मेरे हाथों तुम्हारा वध होगा और तुम श्रॉप से मुक्ति पाकर फिर मेरी शरण में आ जाओगे.
वहीं राधा से कहते हैं कि तुम मेरे साथ धरती लोक पर मनुष्य अवतार लोगी. वहां हम साथ होंगे पर कुछ वर्षों की दूरी भी आएंगी. फिर जब तुम्हारा श्रॉप कट जाएगा, तब हम फिर मिलेंगे.
द्वापर युग में श्रीदामा शंखचूड़ नामक असुर के रूप में जन्मा और राधा वृषभानु और कीर्ति की पुत्री के रूप में अवतरित हुईं. राधा के धरती पर जन्म लेने के पीछे भी अलग-अलग तर्क है.
पद्मपुराण के अनुसार श्री वृषभानु ईश्वरभक्ति में लीन रहते थे. एक बार जब वे यज्ञ भूमि साफ कर रहे थे, तो उन्हें भूमि कन्या रूप में श्रीराधा प्राप्त हुई. ऐसा मत है कि राधा और श्री कृष्ण की पत्नी रुकमणि एक ही हैं. जब कृष्ण कथा में राधा का जिक्र खत्म होता है तो उसके बाद रूकमणि के चरित्र की व्याख्या मिलती है.

एक दूसरी कथी की माने तो...

इसी संदर्भ में एक अन्य कथा भी है. इसके अनुसार रूकमणि का जन्म राजा भीष्मत के घर हुआ था. उसी दौरान श्री कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ. जब कृष्ण ब्रज में थे, तब उन्हें मारने के लिए कंस ने रासक्षी पूतना को भेजा.
 
लक्ष्मी रूपी रूकमणि कृष्ण की सहायता ​के लिए ब्रज में अवतरित हुईं.
पूतना ने उन्हें कृष्ण समझकर गोद में उठ लिया और वहां से जाने लगी. तभी रूकमणि ने अपना वजन बढ़ाना शुरू किया. वह इतनी भारी हो गई कि पूतना उन्हें उठा न सकी और नीचे फेंक दिया. रूकमणि एक सरोवर के कमल पर जाकर गिरी.


तभी वहां से वृषभानु गुजरे और उनकी नजर एक बच्ची पर पडी. उन्होंने उसे उठाया और घर ले गए. पत्नी कीर्ति ने बच्ची को अपनी गोद में लिया और उसका नाम रखा 'राधा'. इस कथा को सही माना जाए तो राधा और रूकमणि एक ही थी.
शायद यही कारण है कि भागवत कथा में सीधे तौर पर राधा के नाम का जिक्र नहीं मिलता.
जब कृष्ण ने दिया राधा को श्रॉप
कृष्ण और राधा के प्रेम लीलाओं का तो बहुत वर्णन किया गया है, पर दोनों बीच एक स्थिति ऐसी बनी थी, जहां कृष्ण ने राधा को श्रॉप दे दिया था. ऐसा श्रॉप जिसके कारण राधा कभी मां नहीं बन सकीं और उनका नाम कृशोदरी हुआ.
दरअसल गोलोकधाम में रहने के दौरान ही एक रोज राधा को मातृत्व सुख पाने की असीम इच्छा हुई. चूंकि वे देवी थी तो उनके लिए यह सुख पाना मुश्किल नहीं था. अत: उन्होंने अपने गर्भ से एक सुंदर बालक को जन्म दिया.
 
'राधा अपने ही बालक की सुंदरता देखकर मोहित हो गईं. वे उसे दुलारने लगीं.

तभी नन्हें बालक को जम्हाई आ गई. राधा तब हैरान रह गईं, जब बालक के अपना मुंह खोला और उसमें उन्हें समस्त आकाशगंगा नजर आई. इसमें समुचित ब्रम्हांड के असंख्य ग्रह, नक्षत्र, सूर्य, तारे आदि थे.
यह देखकर राधा परेशान हो गईं और मन ही मन सोचा कि यह कैसा विराट बालक जन्मा है मैंने?
अत: उन्होंंने उस बालक को जब में प्रवाहित कर दिया. जब यह बात श्री कृष्ण को पता चली तो, वे राधा पर क्रोधित हुए और उन्हें श्रॉप दिया ​कि वे कभी मां नहीं बन सकेंगी. जबकि, वह बालक विराट पुरूष बना. उसने समस्त ग्रहों की रचना की.

इस प्रेम कहानी का अंत क्या था!

राधा के जन्म और श्री कृष्ण से उनके वियोग की कहानी तो जान ली. पर अब सवाल यह आता है कि जब राधा का श्रॉप समाप्त हो गया, तब वे कृष्ण के जीवन में आईं या नहीं? आखिर इस प्रेम कहानी का अंत क्या था?
तो इस संदर्भ में ब्रह्मवैवर्त पुराण में एक घटना मिलती है. इसके अनुसार जिस समय कुरूक्षेत्र में महाभारत का युद्ध समाप्त होने वाला था. ठीक उसी समय राधा को मिले श्रीदामा के श्रॉप की अवधि भी खत्म हो रही थी.
आगे जब युद्ध पूरी तरह समाप्त हो गया, तब राधा ब्रज से निकलकर श्री कृष्ण से मिलने द्वारका की ओर निकल पड़ी.

 
कृष्ण के बिना 100 बरस गुजारने के बाद राधा के चेहरे पर अब पहले जैसी रौनक नहीं थी. उनके चेहरे की हर एक झुर्री बीते सौ वर्षों का हिसाब देने के लिए काफी थी. पर राधा इन सब बातों से परे केवल कृष्ण के बारे में सोच रही थीं.

लंबा सफर तय करते हुए वे कृष्ण के महल पहुंची. वहां दास-दासियों, मंत्रियों और रानियों के बीच कृष्ण को देखकर राधा एक कोने में खड़ी, उनकी एक नजर का इंतजार करती रहीं. इसी बीच कृष्ण की नजर उन पर पड़ी. दोनों को अपना प्रेम जाहिर करने के लिए शब्दों की जरूरत नहीं थी. दोनों की आंखों से बस आंसू निकल रहे थे और सारे संवाद मन ही मन हो गए.

चूंकि द्वारका में राधा को कोई नहीं जानता था, इसलिए श्री कृष्ण ने उन्हें एक देविका के रूप मेंनियुक्त कर लिया. असल में वह राधा को हमेशा अपने समक्ष रखना चाहते थे. राधा से इस प्रस्ताव को सहर्ष स्वीकार किया. वे सारा दिन महल में रहती. वहां का काम-काज सम्हालतीं और जब-तब अपने कान्हा के दर्शन कर लेेतीं.



भ्रम वश छोड़ दिया महल और...

कृष्ण के आसपास इतनी रानियां और दासियां थीं कि राधा उनके नजदीक जा ही नहीं पातीं थीं. ऊपर से बढ़ती उम्र के असर ने उनके मन में यह भ्रम पैदा कर दिया था कि शायद कृष्ण अब उन्हें पहले के रूप में नहीं देख पा रहे हैं. इसलिए वह उनसे दूर हैं. इसी भ्रम वश एक रात उन्होंने बिना किसी को खबर किए महल छोड़ दिया.
उन्होंने अपने जाने का कोई मार्ग तय नहीं किया था.
 
बस चलना स्वीकार किया था. वह भी यह भूलकर कि श्री कृष्ण तो अनंत के ज्ञाता हैं. उनसे कुछ नहीं छिपा है. राधा जा तो रहीं थीं, पर उनके मन में कृष्ण नाम की धुन लगातार बजे जा रही थी. कृष्ण ने भी बिना देर किए तत्काल मार्ग में आकर दर्शन दिए.

राधा की खुशी का पारावार न रहा. वे लंबे मार्ग को तय करते हुए थक चुकी थीं और कृष्ण को देखकर उनकी हिम्मत ने जवाब दे दिया. वे कृष्ण के चरणों में गिर पड़ीं. वह घड़ी नजदीक आ चुकी थी, जब राधा और कृष्ण का अंतिम वियोग होना था.
कृष्ण ने राधा से प्रश्न करते हुए कहा, प्रिय तुमने धरती लोक पर मेरा बहुत साथ दिया है. आज जब हम आखिरी बार इस लोक में मिल रहे हैं, तो बताओ कि मुझसे क्या चाहती हो?

तुमने अपने पूरे जीवन में मुझसे कुछ नहीं मांगा. आज मैं तुम्हारी हर इच्छा को पूरा करना चाहता हूं.
राधा की आंखों से आंसू झर रहे थे. उन्होंने अपने कंपकंपाते होंठ खोले और धीरे से बोली, कान्हा में आखिरी बार तुम्हे बांसुरी बजाते देखना चाहती हूं. कृष्ण ने देर न करते हुए अपनी बांसुरी उठाई और राधा की आंखों में आंखें डालकर उसमें सुर फूंके. बांसुरी की मधुर धुन सुनते हुए राधा ने अपनी आंखें बंद कर लीं और कृष्ण के चरणों में ही प्राण त्याग दिए.

एक मनुष्य के रूप में शायद इससे ज्यादा खूबसूरत मृत्यु किसी को न तो मिली है और शायद फिर कभी मिल भी न सके. जब कृष्ण ने राधा की ओर देखा तो उनके हाथ से बांसुरी छूट गई.
यह वह आखिरी क्षण था जब श्री कृष्ण ने बांसुरी बजाई थी. इसके बाद उन्होंने कभी उसे हाथ नहीं लगाया.

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