हरिश्चंद्र चरितं - Raja Harishchandra: Satyavadi King of Ikshvaku Dynasty

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हरिश्चंद्र चरितं - Raja Harishchandra: Satyavadi King of Ikshvaku Dynasty


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Published on 29 Jan 2023

राजा हरिश्चंद्र: इक्ष्वाकु सूर्यवंश के सत्यवादी सम्राट!

कहते हैं कि सत्य एक ऐसा हथियार है जो सब बुराइयों का नाश कर सकता है.

सत्य से न सिर्फ लोगों के मन को जीता जा सकता है, बल्कि सत्य एक बेहतर इंसान बनने में भी कारगर हो सकता है!

लेकिन अफसोस है कि आज इस चकाचौंध कर देने वाली दुनिया में सत्य कुछ धुंधला सा दिखाई देने लगा है.

बहरहाल, एक महात्मा गांधी थे, जिन्होंने सत्य को अपना धर्म माना और उनसे कई सदियों पहले राजा हरिश्चंद्र, जिन्होंने सत्य के लिए अपनी पूरी जिंदगी कुर्बान कर दी.

आज भी हरिश्चंद्र के सत्य की मिसाल दी जाती हैं.

ऐसे में इस महान सत्यवादी राजा के बारे में जान लेना आवश्यक हो जाता है –

इक्ष्वाकु वंश के राजा थे हरिश्चंद्र

त्रेता युग के दौरान इक्ष्वाकु वंश में सूर्यवंशी सत्यव्रत के एक यशस्वी पुत्र का जन्म हुआ, नाम रखा गया हरिश्चंद्र.

धर्म में इनकी पूरी निष्ठा थी और सत्य को मानने वाले थे, लिहाजा अयोध्या के राजा बना दिए गए.

हरिश्चंद्र की सत्य के प्रति जो निष्ठा थी, उसने उन्हें चारों दिशाओं में प्रख्यात कर दिया. राजा उत्तम गुणों से संपन्न था, और उनके गुरु महर्षि वशिष्ठ थे, जिनका इंद्र की सभी में आना जाना था, लिहाजा राज्य पर शासन अच्छा चल रहा था.

हरिश्चंद्र के बाद इक्ष्वाकु वंश में पृथु, त्रिशंकु, भागीरथ, ययाति, सगर, अंबरीश, रघु, दिलीप, अज, दशरथ, राम और लव-कुश जैसे श्रेष्ठ राजा हुए.

श्रीमद् भगवद्गीता का एक श्लोक है,

यद्यदाचरति श्रेष्ठस्तत्तदेवेतरो जनः।

स यत्प्रमाणं कुरुते लोकस्तदनुवर्तते।।

इसके अनुसार, श्रेष्ठ मनुष्य जैसा आचरण करते हैं, वह जो कुछ प्रमाण देते हैं, दूसरे मनुष्य (प्रजा) उसी के अनुसार आचरण करते हैं.

कुल मिलाकर तात्पर्य ये है कि इस श्रेष्ठ वंश के राजाओं को देखकर और उनके उत्तम कार्यों ने प्रजा को भी श्रेष्ठ बना दिया. 


ऐसे में प्रजा सभी तरह से राजा से संतुष्ट थी. किसी भी प्रकार के रोग और प्रकोप का भय प्रजा को नहीं था. 

सत्यवादी होने के कारण इनकी ख्याति और कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई. देवता हों या दानव सभी उनकी इस सत्यनिष्ठा के प्रशंसक थे.

हरिश्चंद्र को क्यों त्यागना पड़ा अपना राज पाठ

राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा की ख्याति चारों ओर फैली हुई थी, ऐसे में ऋषि विश्वामित्र ने उनकी परीक्षा लेने का निश्चय किया.

उसी रात राजा हरिश्चंद्र ने एक सपना देखा, जिसमें उनके राजभवन में एक तेजस्वी ब्राह्मण आता है और राजा उन्हें आदर से बैठाते हैं. राजा उस ब्राह्मण का आदर-सत्कार करते हैं और उन्हें अपना राज्य दान में दे देते हैं.

राजा नींद से जागे तो वे अपना सपना भूल चुके थे. फिर उसके अगले दिन उनके दरबार में ऋषि विश्वामित्र आ गए.

उन्होंने सपने में राज्य दान की बात राजा को याद दिलाई, हालांकि राजा ने इस बात को मान लिया.

फिर जब उन्हें समझ आया की वो ब्राह्मण विश्वामित्र ही थे, तो उन्होंने अपना राज्य उनको दान में दे दिया. दान देने के बाद दक्षिणा देने की प्रथा थी, तो विश्वामित्र ने राजा हरिश्चंद्र से 500 स्वर्ण मुद्राएं दक्षिणा में मांग लीं.

राजा हरिश्चंद्र पहले ही अपना राज पाठ ऋषि को दान दे चुके थे, इस बात को भूलकर उन्होंने अपने मंत्री से मुद्रा कोष से स्वर्ण मुद्रा लाने को कहा, लेकिन विश्वामित्र ने उन्हें याद दिलाया की दान में देने के बाद अब राज्य उनका हो चुका है.

राजा को इस बात का ऐहसास हुआ और उन्हें चिंता हुई कि अब दक्षिणा कैसे दी जाए.

दक्षिणा न मिलने पर विश्वामित्र ने राजा को श्राप देने की भी बात कही.

राजा हरिश्चंद्र धर्म और सत्य के सच्चे पुजारी थे, ऐसे में दक्षिणा न देने पर उनसे अधर्म हो जाता, तब उन्होंने फैसला किया कि वो खुद को बेच देंगे और जो रकम प्राप्त होगी वे इससे ऋषि को दक्षिणा चुका देंगे.

इसी उम्मीद के साथ उन्होंने खुद को काशी के एक चांडाल को बेच दिया और चांडाल ने ऋषि को इनकी कीमत अदा कर दी.

इसके बाद राजा हरिश्चंद्र शमशान में रहने लगे.

पत्नी और पुत्र से वियोग

अपने जीवन में राजा हरिश्चंद्र को कई हृदय विदारक स्थितियों का सामना करना पड़ा, कई बार उनका परिवार से वियोग भी हुआ, लेकिन उन्होंने अपने सत्य का मार्ग कभी नहीं त्यागा.

राज पाठ छोड़ने के बाद जब राजा ने खुद को चांडाल के हाथों बेच दिया, तो वो अपनी पत्नी और बेटे से बिछड़ गए.

राजा की पत्नी अपने बेटे के साथ घर का काम करने में लग गई, जिस रानी की कभी सेंकड़ों दासियां हुआ करती थीं, वो अब नौकरों की जिंदगी जीने लगी.

इस तरह पूरा परिवार बिछड़ गया. रानी और उनका पुत्र घरेलु काम करके अपना पेट पालने लगे.

इतने कष्ट सह कर भी राजा अपना काम सत्यनिष्ठा से करते रहे.

समय बीतता गया लेकिन राजा ने कभी अपने काम में कोई त्रुटि नहीं आने दी.

पुत्र की मृत्यु और...

बिना अपनी पत्नी और पुत्र की स्थिति के बारे में जाने राजा हरिश्चंद्र अपनी जिंदगी जी रहे थे, लेकिन एक दिन रानी के ऊपर दुःख का पहाड़ टूट पड़ा, जब उनके पुत्र रोहिताश्व को खेलते वक्त सांप ने काट लिया और उसकी मृत्यु हो गई.


रानी की जिंदगी में अचानक ही तूफ़ान सा आ गया, जो उसका सब कुछ उड़ा कर ले गया.

यहां तो उन्हें ये भी मालूम न था की उनके पति कहां हैं और कैसे उन तक खबर पहुंचाएं.

रानी के पास कफ़न तक के पैसे न थे और वो समझ न पाईं कि ऐसे में क्या किया जाए.

रोती बिलखती रानी पुत्र को गोद में उठाए उसका अंतिम संस्कार करने के लिए उसे शमशान ले गईं.

रात हो गई थी, चारों ओर सन्नाटा था. शमशान में पहले से ही दो चिताएं जल रही थीं.

ये वही शमशान था जहां हरिश्चंद्र काम करते थे.

रानी शमशान पहुंचीं तब यहां काम कर रहे हरिश्चंद्र ने उनसे कर मांगा.

पहले राजा रानी को पहचान नहीं पाए, जब रानी ने उनसे विनती की तब हीं जाकर राजा ने उन्हें पहचाना.

अपने पुत्र का शव देखकर राजा विलख पड़े. लेकिन उन्होंने अपना कर्तव्य नहीं छोड़ा और रानी से बिना कर के अंतिम संस्कार करने से मना कर दिया.

रानी ने बहुत विनती की कि उनके पास कर में देने के लिए कुछ नहीं है, लेकिन राजा ने कहा कि कर न लेना उनके मालिक के साथ विश्वासघात होगा जो वो कभी नहीं कर सकते.


फिर उन्होंने रानी से कहा कि अगर उनके पास कुछ नहीं है तो अपनी साड़ी का कुछ भागफाड़कर कर के रूप में दे दें.

रानी ने जैसे ही साड़ी फाड़नी शुरू की, उनका पुत्र जीवित हो उठा, और वहां ऋषि विश्वामित्र प्रकट हुए.

उनके साथ कुछ अन्य देवता गण और भगवान विष्णु व इंद्र भी थे. 

उन्होंने बताया कि ये सब राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा और कर्तव्य की परीक्षा हो रही थी. इस परीक्षा में राजा सफल रहे और इतना कह कर विश्वामित्र ने हरिश्चंद्र को उनका राज पाठ लौटा दिया.

Raja Harishchandra: Satyavadi King of Ikshvaku Dynasty, Hindi Article

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