कृष्ण पुत्र प्रद्युम्न: धरती पर पैदा हुए एक महान योद्धा!
भगवान श्री कृष्ण और रुक्मिणी के पुत्र प्रद्युम्न जैसा शक्तिशाली योद्धा आज तक नहीं हुआ. कहते हैं कि प्रद्युम्न का जन्म धरती पर केवल युद्ध लड़ने के लिए ही हुआ था.
रूप लावण्य और स्वरूप में ठीक अपने पिता श्री कृष्ण जैसे दिखने वाले प्रद्युम्न चक्रव्यूह का रहस्य और उसे भेदने का ज्ञान रखने वाले कुछ लोगों में शुमार थे.
इन्होंने मायावी दैत्य शम्बरासुर का वध किया और उसके बाद महाभारत जैसे युद्ध में भी अपने पराक्रम का प्रदर्शन किया.
ऐसे में आइए, पौराणिक कथाओं के इतिहास में जाकर भगवान श्रीकृष्णकुमार प्रद्युम्न के बारे में जानते हैं –
कामदेव के अवतार हैं प्रद्युम्न!
श्रीमद् भागवत जी में दशम स्कन्ध का पचपनवां अध्याय 'प्रद्युम्न का जन्म और शम्बरासुर का वध' कहता है कि कामदेव भगवान श्रीकृष्ण के ही अंश हैं. जब भगवान शिव ने अपने तीसरे नेत्र से कामदेव को भस्म कर दिया तो उन्होंने दोबारा से शरीर प्राप्ति के लिए अपने अंशी वासुदेव की शरण ली.
असल में, जब माता पार्वती ने पिता द्वारा पति शिव के अपमान के बाद अपने आपको यज्ञ में सती कर लिया. उसके बाद गुस्से से लाल जटाजूट शिवशंकर ने तांडव से पूरी सृष्टि को हिलाकर रख दिया.
जो भी उनके रास्ते में आया वह काल के गाल में समां गया. यहां तक कि राजा दक्ष का धड़ भी उनके शीश से अलग कर दिया गया. तब कहीं जाकर वह शांति की खोज में समाधि में लीन हो गए.
इसी समय दैत्य तारकासुर ने कठोर तप कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त कर लिया कि उसका वध केवल शिव पुत्र द्वारा ही हो.
इस वरदान के बाद वह और ताकतवर हो गया और उसने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया. वह स्वर्ग पर अधिकार कर इस सृष्टि पर शासन करने का मन बना चुका था. ऐसे में देवता भी उसकी आसुरी शक्तियों के आगे बेबस नजर आ रहे थे.
अब इस दैत्य को केवल रुद्र ही समाप्त कर सकते थे.
इस बात की जानकारी देवताओं को लगी, तो उन्होंने भगवान शिव को समाधि से जगाने का प्रण किया. यहां समस्या ये थी कि आखिर शिव के ध्यान को कौन भंग करेगा.
इस काम के लिए देवताओं ने कामदेव को चुना.
कामदेव भी तैयार थे, हालांकि उन्हें डर भी था कि कहीं शिव उनके ऊपर क्राेधित न हो जाएं, और हुआ भी यही. जब कामदेव लाख जतन के बाद भी महादेव को समाधि से जगा न सके, तो उन्होंने शिवजी पर पुष्प बाण चला दिया.
शिव के सीधे हृदय पर लगे इस बाण के आघात से उनकी समाधि टूट गई और क्राेध के मारे उनका तीसरा नेत्र खुल गया. इससे निकली आग की लपटों में सामने खड़े कामदेव जलकर राख हो गए.
रुक्मिणी जी के गर्भ से हुआ जन्म
इस बार कामदेव का जन्म भगवान श्रीकृष्ण के द्वारा रुक्मिणी जी के गर्भ से हुआ. रुक्मिणी, विदर्भ नरेश भीष्मक की पुत्री थीं. उनके शरीर में लक्ष्मी के समान लक्षण थे.
अभी प्रद्युम्न के जन्म को 10 दिन भी नहीं हुए थे कि दैत्य शम्बरासुर ने उन्हें घर से उठा लिया और समुद्र में फेंक दिया. समुद्र में ये बालक मगरमच्छ के लिए आहार साबित हुआ और उसने प्रद्युम्न को निगल लिया.
इसी समय कुछ मछुआरे जाल बिछाकर मछलियों को पकड़ रहे थे. उसमें ये मगरमच्छ भी आ फंसा.
मछली के जाल में मगरमच्छ देख मछुआरों की खुशी का ठिकाना न रहा. उन्होंने इस मगरमच्छ को दैत्य शम्बरासुर के रसोईये को बेच दिया. रसोई में जब इस मच्छ का पेट चीरा गया, तो प्रद्युम्न की सांसें चल रही थीं. सो मायावती नाम की एक सेविका ने इस बच्चे को अपना लिया.
ये मायावती कोई और नहीं, हजारों साल से अपने पति कामदेव का इंतजार कर रही उनकी पत्नी रति थी.
रति ने भगवान से अपने पति को दोबारा जिंदा करने की विनय प्रार्थना की थी. भगवान ने इनके दोबारा जन्म लेने की बात रति को बताई, तब से रति मायावती बनकर अपने पति का इंतजार कर रही थीं.
इस प्रकार कामदेव को पुन: जीवंत देख सालों से उदास रति का चित्त खिल उठा और वो अपने पति के रूप लावण्य में डूब गईं. हो भी क्यों न दिनों दिन जवान होते जा रहे प्रद्युम्न का सौंदर्य बड़ा अद्भुत था. गुण और सौन्दर्य-रूप में प्रद्युम्न भगवान वासुदेव से कहीं भी कमतर नहीं थे. कमल जैसी बड़ी-बड़ी आंखें, घुटनों तक को छू लेने वाली लंबी बाहें और सौशील्य ने प्रद्युम्न को सभी युवतियों के बीच आकर्षण का केंद्र बना दिया था.
अब तो रति पुत्र भाव को छोड़ प्रेम और कामिनी हाव-भाव से कामदेव को रिझाने की कोशिश करने लगीं.
ये तय हो चुका था कि मायावती रति ही प्रद्युम्न नामक कामदेव की पत्नी हैं.
दैत्य शम्बरासुर का वध
अब प्रद्युम्न को दैत्य शम्बरासुर का वध करना था. इसके लिए रति ने प्रद्युम्न को सभी प्रकार की मायाओं का नाश करने वाली महामाया विद्या सिखाई.
इस प्रकार की विद्या में पारंगत होने के बाद प्रद्युम्न ने शम्बरासुर को युद्ध के लिए ललकारा.
शम्बरासुर कई प्रकार की माया को जानता था. उसने उन सभी का इस्तेमाल प्रद्युम्न को मारने के लिए किया, लेकिन प्रद्युम्न का बाल भी बांका न कर सका. प्रद्युम्न ने शम्बरासुर को मारने से पहले उसकी सभी मायाओं का नाश किया. और मौका देखते ही श्रीकृष्ण कुमार ने अपनी तेज तलवार से शम्बरासुर का सर धड़ से अलग कर दिया.
पृथ्वी शम्बरासुर के अत्याचारों से आजाद हो चुकी थी. और इधर रति को भी अपने ईष्ट कामदेव मिल गए.
मायावती रति प्रद्युम्न के साथ द्वारका पहुंचीं. जहां प्रद्युम्न के अद्भुत स्वरूप को देख द्वारका की युवतियां उन पर मोहित हो गईं.
बर्षाकालीन मेघ के जैसा श्याम शरीर, पीत वस्त्र धारण किए हुए, कजरारे नैन और कमल समान मुखमण्डल वाले प्रद्युम्न को देख द्वारका की युवतियां उन्हें श्रीकृष्ण समक्ष बैठीं.
हालांकि वो अब तक ये समझ नहीं पा रही थीं कि ये साक्षात भगवान श्रीकृष्ण हैं या फिर कोई और.
बहरहाल, जल्द ही उनकी ये शंका नारद मुनि ने दूर कर दी.
The Tale of Pradyumna, Son of Lord Krishna, Hindi Article
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