कंस चरितं : Kans - Mama of Lord Krishna

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कंस चरितं : Kans - Mama of Lord Krishna


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Published on 29 Jan 2023

कंस: कृष्ण जन्म से पहले की कहानी!

जब पौराणिक कथाओं के खलनायकों की बात होती है, तो 'कंस' का नाम जरूर आता है. ऐसा जरूरी इसलिए भी क्योंकि, श्री कृष्ण की लीलाओं का पहला दुश्मन चरित्र वही था. पर कथाओं में कंस के चरित्र का वर्णन देवकी-वसुदेव के विवाह और कृष्ण जन्म के दौरान से किया जाता है.

इसके पहले कंस कौन था और कहां से आया यह एक अलग कहानी है. पौराणिक कथाओं में भी कंस के चरित्र को कृष्ण के जन्म के बाद से ही विस्तार दिया गया, जबकि उसके अत्याचारी स्वभाव का एक बहुत बड़ा कारण रहा है.

उसके अत्याचार का कहर केवल बहन देवकी और उसके पति पर ही नहीं बरसा, बल्कि जन्म देने वाली मां भी उस क्रोध और अहंकार की भावना में आजीवन जलती रही.

तो चलिए आज हम कंस के उस पहलू को जानते हैं, जो कृष्ण जन्म से पहले का है!

पूर्व जन्म में असुर था कंस!

इस बात में दो राय नहीं है कि कंस शक्तिशाली था और उसके पास अपार शस्त्र विद्याएं थीं. इन्हीं के बल पर उसने सालों तक मथुरा में शासन किया था. पर ये सोचने वाला विषय है कि कोई मनुष्य इतना क्रूर कैसे हो सकता है कि अपनी ही बहन, बहनोई, माता-पिता को कारावास में डाल दे.

अजन्में भांजे को मारने का प्रयास करे. जनता पर कहर बरपाए और हर वो काम करते जो राक्षसी प्रवृत्ति का संकेत देते हैं है.

रहस्य दरअसल यहीं से खुलना शुरू होता है. कंस की राक्षसी प्रवृत्ति का राज उसके पिछले जन्म से जुड़ा हुआ है. द्वापर युग में जन्म लेने पहले कंस राक्षस योनि में जन्मा था. उसका नाम  'कालनेमि' था. कालनेमि असुर के पिता का नाम विरोचन था. उसकी आसुरी प्रवृत्तियों से अच्छे अच्छे देवता भी घबराते थे.


उसके पास कई विद्याएं थीं. वह शस्त्र कला और तंत्र विद्या में पारंगत था. जब देवासुर संग्राम हुआ था, तब कालनेमि ने अपने सिंह पर बैठे ही बैठे श्री हरि पर बड़े वेग से त्रिशूल चलाया. लेकिन भगवान हरि उसके वार से बच गए और जो त्रिशूल उनकी ओर आ रहा था उसे हाथ से पकड़ लिया.

बाद में उसी त्रिशूल से कालनेमि का वध कर दिया. जब कालनेमि का वध हुआ, तो देवता चिंता मुक्त हो गए. पर श्री हरि ने बताया कि कालनेमि का एक जन्म समाप्त हुआ है. उसकी आसुरी प्रवृत्तियां द्वापर युग में फिर से कहर बरपाएंगी.


यह सुनकर देवता फिर से भयभीत हो गए. तब भगवान ने उन्हें आश्वासन दिया कि जब धरती पर आसुरी प्रवृत्तियों का विस्तार होगा, तो धर्म की स्थापना के लिए मैं मनुष्य रूप में अवतार लूंगा. तभी एक बार फिर उसका संहार होगा.

गंधर्व के छल का शिकार हुई मां

श्री हरि की वा​णी सत्य हुई और द्वापर युग आ गया. इतिहास में बताया गया है कि कंस यदुवंशीय राजा आहुक के पुत्र उग्रसेन के यहां जन्मा पर यह पूरा सत्य नहीं है. कंस का जन्म जरूर उग्रसेन के घर हुआ था और वे उसके पिता कहलाएं. पर कंस के असली पिता गंर्धव थे और उनका नाम द्रमिला था.

पौराणिक कथा के अनुसार उग्रसेन का विवाह विदर्भ के राजा सत्यकेतु की पुत्री पवनरेखा के साथ हुआ था. राजा उग्रसेन और पवनरेखा दोनों बेहद धार्मिक थे. वे हमेशा श्री विष्णु की आराधना में लीन रहते थे. उनके काल में जनता भी भगवान विष्णु की आराधना करती रहती थी.

तब कोई रोष नहीं था, किसी में कोई बैर नहीं था. उनका राजपाट अच्छा चल रहा था. राजा और रानी के बीच अत्यंत प्रेम था.

रानी पवनरेखा बेहद खूबसूरत थीं और उनका चंचल-हसंमुख स्वभाव सभी के बीच लोकप्रिय था. विवाह के कुछ माह बाद रानी अपने मायके पहुंचीं. जहां वे सखियों के साथ उद्यान में घूम रहीं थी. तब उनके सुंदर रूप पर गंधर्व द्रामिला की नजर पड़ गई.

द्रामिला का दूसरा नाम गोदिला भी है. जब उसने रानी को देखा तो वह हर कीमत पर उन्हें पाने का प्रयास करने लगा. उसने पहले अपने स्वभाव से पवनरेखा को रिझाने का प्रयास किया. लेकिन जब इससे बात नहीं बनी, तो उसने मायावी शक्ति का प्रयोग कर रानी को सम्मोहित कर लिया.

इस तरह संसार से गोपनीय रहते हुए द्रमिला और रानी पवनरेखा का संबंध स्थापित हुआ. कुछ समय बाद रानी पर से सम्मोहन का प्रभाव खत्म हो गया और तब तक द्रामिला भी जा चुका था. रानी को द्रामिला के विषय में कुछ भी याद नहीं रहा.

वे महल वापस आईं और फिर वहां से पति उग्रसेन के पास लौट गईं.


रगों में बहता था गंधर्व रक्त

रानी जब महल वापस लौटी, तब कुछ दिन बीत जाने के बाद समाचार मिला कि वे गर्भवती हैं. पूरा महल खुशियों से भर गया. राजा उग्रसेन के हर्ष का पारावार न ​रहा. रानी भी बेहद खुश थीं. नौ माह पूरे होते ही उनके घर पुत्र कंस का जन्म हुआ.

राजा औ रानी दोनों कंस को अपना ही पुत्र समझ रहे थे, जबकि कंस रानी पवनरेखा और गंधर्व द्रमिला का पुत्र था.

एक ओर जहां महल में धार्मिक वातावरण रहता था. वहीं दूसरी ओर कंस का स्वभाव बचपन से ही आक्रामक रहा. उसे अच्छे माहौल में पर​वरिश दी जा रही थी. पर कंस के स्वभाव पर उसके गंधव्र पिता का आचरण हावी रहा. वह उन्हीं की तरह व्यवहार करते हुए बड़ा हुआ.

राजा उग्रसेन और पवनरेखा दोनों को यह समझ नहीं आ रहा था कि आखिर कंस के क्रोध और खराब व्यवहार को कैसे सुधारा जाए. वे जितना अपने पुत्र के करीब आने का प्रयाास करते. वह उतना ही उनसे दूर होता गया. उग्रसेन की घर कंस के अलावा आठ पुत्र और पांच पुत्रियों का जन्म हुआ.

वे सभी स्वभाव से धार्मिक थे और उनका आचरण परिवार के वातावरण के अनुकूल रहा. कंस इन सभी में सबसे बड़ा था.

कंस के भाईयों का नाम न्यग्रोध, सुनामा, कंक, शंकु अजभू, राष्ट्रपाल, युद्धमुष्टि और सुमुष्टिद था. जबकि बहनें कंसा, कंसवती, सतन्तू, राष्ट्रपाली और कंका थी. अब सवाल यह आता है कि आखिर देवकी कौन थीं, जिसे कंस में बंदी बना लिया था.


दरअसल देवकी कंस की चचेरी बहन थीं. राजा उग्रसेन की मां काशीराज की पुत्री काश्या थीं. उनके दो पुत्र थे. देवक और उग्रसेन. देवकी देवक की पुत्री थीं. आसुरी प्रवृत्ति होते हुए भी कंस अपनी चचेरी बहन से गहरा स्नेह रखता था.

जब भी कंस रूष्ट होता तो देवकी को ही जिम्मेदारी दी जाती कि वह उसे मनाएं और समझाएं. कंस कभी भी देवकी का कहा नहीं टालता था.

अपने 6 पुत्रों का किया वध

देवकी का विवाह शूरसेन के पुत्र वसुदेव के साथ हुआ. राजा शूरसेन यादव वंशी थे. उनके छोटे भाई का नाम 'पार्जन्य' था. पार्जन्य और शूरसेन महाराज देवमीढ की संतान थे. पार्जन्य के नौ पुत्र थे, जिसमें से तीसरे पुत्र का नंदबाबा थे. इस तरह वसुदेव और नंदबाबा दोनों यादववंशी थे और चचेरे भाई भी.

वसुदेव के पांच छोटे भाई थे जिनसे कंस के पांच बहनों का विवाह हुआ. इस तरह देवकी समेत कंस की सभी बहनें वसुदेव के परिवार में ब्याही गईं थीं. इसके आगे देवकी-कंस के प्रसंग को हर कोई जानता है.

जब कंसदेवी को विदा करके उसके ससुराल छोडने जा रहा था, तभी मार्ग में आकाशवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र तुम्हारा काल होगा. इसके बाद उसने देवकी की हत्या का प्रयास किया. पर वसुदेव ने वायदा किया कि वह अपनी हर संतान को जन्म लेते ही उसके हवाले कर ​देगा.

कंस ने देवकी के जिन छ: पुत्रों का वध किया था. वे असल में पूर्व जन्म में उसी की छ: संतानें थे. श्री हरिवंश पुराण के अनुसार कंस के पूर्व जन्म यानि कालनेमि के छ्ह पुत्र थे. जिन्होंने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए उपासना  शुरू की.

उस समय हिरण्यक्षिपु का राज्य था और वह स्वयं को भगवान मानता था. इसलिए उसे उनकी यह उपासना रास नहीं आई.

हिरण्यक्षिपु ने उन 6 पुत्रों को श्रॉप दिया कि ​जिस पिता ने तुम को पाल-पोस के बड़ा किया है, वही गर्भ में स्थित होने पर तुम सबका वध करेगा. जब तुम लोग देवकी के गर्भ में जाओगे तब कालनेमि कंस के रूप में तुम्हारा वध कर देगा.

देवकी के 6 पुत्रों की हत्या के बाद उसके 7वें गर्भ में श्रीशेष (अनंत) ने प्रवेश किया था. भगवान विष्णु ने श्रीशेष को बचाने के लिए योगमाया से देवकी का गर्भ ब्रजनिवासिनी वसुदेव की पत्नी रोहिणी के उदर में रखवा दिया.  8वें बेटे की बारी में श्रीहरि ने स्वयं देवकी के उदर से पूर्णावतार लिया.

वसुदेव ने अपने आठवें पुत्र को आपने चचेरे भाई ब्रज में वसुदेव के पास पहुंचा दिया और इस तरह श्री कृष्ण नंदलाल कहलाए. कृष्ण का जन्म और कंस के वध बाकी कथाएं जग में प्रचलित हैं. पर हम केवल कंस के चरित्र की बात कर रहे हैं.

शक्ति बढ़ाने के लिए की मित्रता

कंस की बहनों का विवाह हो चुका था अब बारी कंस की थी. उसकी आसुरी प्रवृत्ति इस कदर हावी हो रही थी कि उसने अपने माता-पिता को बंदी बनाकर पूरा राज पाट अपने नाम कर लिया. उसने खुद को प्रजा का राजा घोषित कर दिया.


राजा बनते ही वह प्रजा पर हावी हो गया. उसने अनुशासन के नाम पर अत्याचार शुरू कर दिए. वह चाहता था कि दुनिया उसे भगवान माने, इसलिए जरूरी था कि अपनी शक्तियों का विस्तार किया जाए.

अत: कंस ने आर्यावर्त के तत्कालीन सर्वप्रतापी राजा जरासंध की दो पुत्रियों 'अस्ति' और 'प्राप्ति' से विवाह कर लिया. इस तरह वह जरासंध का करीबी बन गया. जरासंध पौरव वंशज था और पूरा मगध उसके अधीन था.

चूंकि कंस जरासंध का दामाद था इसलिए उसकी भी मगध में वही छवि बनी जो जरासंध की थी.

जरासंध के जरिए कंस ने चेदि के यादव वंशी राजा शिशुपाल से मित्रता की. शिशुपाल भगवान श्रीकृष्ण की बुआ और वसुदेव की बहन का बेटा था. इस लिहाज से कंस और शिशुपाल रिश्तेदार भी कहलाए. जरासंध और शिशुपाल के अभिन्न मित्र असम के राजा भगदन्त ने भी कंस से मित्रता कर ली.

इस तरह से कंस ने अपनी मित्रता को मजबूत बनाया और धीरे-धीरे उसका प्रभाव मगध से लेकर असम तक फैल गया.

वह घोर अत्याचारी बन गया. उसने अपने शासन में ऋषियों-मुनियों को प्रताड़ित किया. जिससे क्षेत्र में धार्मिक अनुष्ठान बंद हो गए और चारों ओर हिंसा-भय का वातावरण पैदा बन गया. कंस के अत्याचारों का प्रकोप मथुरा समेत ब्रज पर भी था.
कृष्ण को मारने की सारी कोशिशें नाकाम हुई. फिर उसने छलावे से कृष्ण बलराम को मथुरा बुलाया. जहां वह अपने कुश्ती के अखाड़े में पहलवानों के हाथों उनका वध करवाना चाहता था, लेकिन कृष्ण ने यहां मामा कंस को मत्यु के द्वार तक पहुंचा दिया.


कंस के मृत्यु के बाद कृष्ण ने राजा उग्रसेन, रानी पवनरेखा, माता देवकी और पिता वसुदेव को कारगार से बाहर निकाला. उन्होने राजा उग्रसेन को उनका सिंहासन लौटा दिया. इसके बाद  उन्होंने व्रजनाभ के शासन संभालने के पूर्व तक राज किया.

तमाम बुराईयों के बावजूद यह कहा जाता है कि कंस ने अत्याचारों के डर से प्रजा में अनुशासन का भाव पैदा हो गया था. चोर चोरियां करने से घबराते थे. पर यह दूसरा सत्य है कि उसने मासूम बच्चों की हत्याएं करवाई. धर्म को हानि पहुंचाई.

बावजूद इसके भारत के कई गांवों में आज भी कंस की पूजा की जाती है.

लखनऊ से हरदोई जाते वक्त मार्ग में कंस की एक प्रतिमा मिलती है. आसपास के गांव वाले यहां पूजा करने आते हैं. जब भी कोई नई वधु गांव में प्रवेश करती है तो पहले कंस के मंदिर में माथा टेकती है. वहीं दूसरी ओर उड़ीसा में 'कंस महोत्सव' मनाने की प्रथा है.

यहां धनु यात्रा निकली जाती है और 11 दिनों तक उड़ीसा में कंस का राज होता है. कंस बने इस पात्र का इतना महत्व है कि राज्य के सीएम तक उसे नमन करने आते हैं. कंस की पूजा के इस रहस्य को हम फिर कभी जानेंगे.

Web Title: Kans: The story of Krishna before birth, Hindi Article

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