कैकेयी चरितं - The Kaikeyi Story of Ramayana in Hindi

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कैकेयी चरितं - The Kaikeyi Story of Ramayana in Hindi


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Published on 30 Jan 2023

किसी भी व्यक्ति के कई पहलू होते हैं. चरित्र के कुछ भाग को हम समझ पाते हैं, तो कई ऐसी ‘बातें’ भी होती हैं, जो हम आप सामान्यतः नहीं जानते हैं! यहाँ कैकेयी चरितं (Kaikeyi Character) में हम उन्हीं पक्षों पर विचार करेंगे.

कैकेयी, रामायण काल की एक महत्वपूर्ण पात्र जिसे राजकुमार राम को वन भेजने का दोषी माना जाता है. उससे आज तक घृणा की जाती हैं, तो उसे अपने पति महाराज दशरथ की मृत्यु का भी दोषी माना जाता है.

तुलसीकृत रामचरित मानस में कैकेयी को ‘पापिन’, ‘कलंकिनी’ जैसे तमाम वाक्यों से संबोधित किया गया है.

इस कड़ी में आपके, हमारे मन में अक्सर प्रश्न उठते होंगे कि आखिर कैकेयी जैसे बेहद महत्वपूर्ण पात्र की कहानी सिर्फ इतनी ही है क्या?

आखिर उसने अपने अधिकारों, वरदानों का प्रयोग (दुरूपयोग) करके रामायण की दिशा को रोचक मोड़ जो दिया था. अगर कैकेयी के पात्र को हम रामायण से निकाल दें तो मर्यादा पुरुषोत्तम राम, किसी साधारण राजा की भांति ही प्रतीत होते हैं.

कैकेयी के वगैर रामायण की कहानी सदियों तक अमर रहती भी या नहीं, इस बात में अनेक मत हो सकते हैं!

आइये, इस कड़ी में महाराज दशरथ की प्रियतमा महारानी कैकेयी के बारे में विस्तार से जानने का प्रयत्न करते हैं–

आखिर कैकेयी की इतनी ‘ख़ास’ क्यों थी मंथरा?

महारानी कैकेयी राजा अश्वपति की बेटी थीं.


कैकेय देश की राजकुमारी रह चुकीं कैकेयी के 7 भाई थे. आगे की कहानी में कैकेयी और मंथरा के बीच बेहद घनिष्ठ सम्बन्ध होने की जो बात सामने आती है, उसकी कथा बेहद दिलचस्प है.

कैकेयी के पिता और उनकी माँ एक दिन बगीचे में टहल रहे थे, तभी राजा अश्वपति ने हंसों के जोड़ों को आपस में संवाद करते सुना और चूंकि वह पक्षियों की भाषा समझ सकते थे, इसलिए हंसों की बातचीत सुनकर उन्हें हंसी आ गयी.

कैकेयी की माँ ने जब राजा अश्वपति से उनकी हंसी का कारण पूछा तो राजा ने बताने से इनकार कर दिया. इस इनकार के पीछे का कारण यही था कि अगर राजा हंसों की बातचीत अपनी रानी को बता देते तो उनकी मृत्यु निश्चित थी.

पर रानी लगातार जिद्द करती रहीं.

इस तरह का अनर्गल हठ देखकर राजा अश्वपति ने रानी कैकेयी को त्याग दिया और बचपन में ही कैकेयी बिन माँ की हो गयीं. तब उनकी देखभाल के लिए मंथरा नामक दासी नियुक्त की गयी और अपने कुटिल स्वभाव के कारण वह जल्द ही कैकेयी का मन-मस्तिष्क समझने में सफल रही.

आगे के दिनों में दोनों की यही घनिष्ठता रामायण की रचना का आधार बनी.


मंथरा ने कैकेयी को ‘राम’ के खिलाफ क्यों भड़काया?

इस बारे में मुख्य रूप से दो तरीके की बातें प्रचलन में हैं.

पहली बात यह है कि जब राजकुमार राम को राजा बनाने की योजना बन रही थी, ठीक उसी समय देवताओं में भारी चिंता उत्पन्न हो गयी. वह चिंतित इसलिए हुए, क्योंकि अगर राम राजा बन जाते तो सामान्य राजकाज और भोग-विलास में उनका जीवन कटता.

चूंकि वह लार्ड विष्णु के अवतार थे, जिन्हें राक्षसों का नाश करने के लिए धरती पर अवतार लेना पड़ा था, इसलिए ‘बुराई का नाश’ करने का उद्देश्य ही खतरे में दिखाई पड़ने लगा था. इस समस्या से निजात पाने हेतु देवताओं की सलाह पर ज्ञान की देवी सरस्वती मंथरा की जिव्हा पर विराजमान हो गयीं और उससे वही कहलवाया जिससे राम वन जा सकें.


इसके अतिरिक्त, दूसरा मत भी काफी दिलचस्प है.

रंगनाथ रामायण के तेलगु वर्जन में यह दर्शाया गया है कि बालकाण्ड में राम अपने भाइयों के साथ छड़ी और गेंद के साथ खेल रहे थे. इसी दौरान मंथरा ने उनकी गेंद को दूर फेंक दिया. क्रोध में राम ने मंथरा के घुटने पर छड़ी से प्रहार किया, जिसके कारण मंथरा का घुटना चोटिल हो गया.

कैकेयी को अपनी प्रिय दासी के साथ किया गया यह व्यवहार काफी बुरा लगा, जिसकी शिकायत उन्होंने महाराज दशरथ से कर दी. इसके बाद ही महाराज को अपने बच्चों की शिक्षा की चिंता हुई.

बालकाण्ड की इस घटना को लेकर मंथरा ने राम के प्रति वैर पाल लिया और वक्त आने पर उन्हें सबक सिखाने की ठान ली.

कहते हैं कि राम के राज्याभिषेक के समय कैकेयी को भड़काने का काम मंथरा ने ‘बदला’ लेने की नीयत के कारण ही किया था.


देवासुर संग्राम और कैकेयी को मिले ‘दो वरदान’

महारानी कैकेयी राजा दशरथ के सर्वाधिक नजदीक थीं. इसका कारण केवल उनका अनन्य सौन्दर्य ही नहीं था, बल्कि युद्ध-कौशल में भी वह माहिर थीं. इसका उदाहरण तब मिलता है जब वह राजा दशरथ के साथ देवराज इंद्र का साथ देने युद्ध भूमि गयी थीं.

वह राक्षस था संबरासुर!

दण्डकारण्य के भीतर उसका भारी आतंक था और तमाम देवता मिलकर भी उसे पराजित नहीं कर पाए थे. महाराजा दशरथ की सहायता के बावजूद संबरासुर देवताओं पर हावी था और खुद अयोध्या के महाराज राक्षसों की युद्ध कला से बुरी तरह घायल हो गए थे.

वह तो कैकेयी थीं, जिन्होंने कुशल रूप से न केवल महाराज दशरथ की रक्षा की, बल्कि उन्हें युद्ध भूमि से दूर भी ले गयीं. हालाँकि, कई जगह यह भी कहा जाता है कि कैकेयी की कुशल युद्धकला से खुद संबरासुर डर कर भाग गया.

कुल मिलाकर राजा दशरथ के प्राण बच गए और इसी के फलस्वरूप उन्होंने कैकेयी को दो वरदान देने का वचन भी दिया.

आगे की कथा हम सबको ज्ञात ही है कि किस प्रकार उन दो वरदानों के सहारे राम को वन और भरत के लिए राज्य की मांग की गयी.

जब ‘प्रायश्चित की अग्नि’ में जलीं कैकेयी

अपनी मुहलगी दासी मंथरा के भड़कावे में आकर महारानी कैकेयी ने राम के लिए वन-गमन का वरदान मांग तो लिए, किन्तु उसके साइड-इफेक्ट्स की कल्पना शायद उन्होंने नहीं की थी.

इस हेतु अपने पति महाराज दशरथ की मृत्यु के साथ-साथ कैकेयी को अपने पुत्र भरत द्वारा भी अपमान झेलना पड़ा था.

भरत ने दोनों कृत्यों के लिए अपनी माँ को ही दोषी माना और उनसे माता कहलाने का अधिकार तक छीन लिया. बाद में प्रायश्चित की आग में जलते हुए कैकेयी चित्रकूट तक गयी थीं और राम से वापस आने की विनती भी उन्होंने की.


इस तरह हम देखते हैं कि कैकेयी के चरित्र में तमाम उतार चढ़ाव होने के बावजूद रामायण की कहानी उनकी उपस्थिति की वजह से ही महत्वपूर्ण मोड़ ले पाती है.

अपने पुत्र-प्रेम और दासी के बहकावे में आकर बेशक उन्हें कलंक का भागी बनना पड़ा हो, किन्तु बिन माँ की बच्ची के लिए एक दासी ही तो उसकी माँ थी.

इसके अतिरिक्त उनका सौन्दर्य और उस पर भारी उनकी वीरता सदृश दूसरा उदाहरण रामायण में अन्यत्र नहीं!

आप क्या कहेंगे रामायण की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्रों में से एक कैकेयी के बारे में?

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