सरस्वती: आखिर कहां विलुप्त हो गई वैदिक काल की देवतुल्य नदी! Holi Saraswati river of the ancient Vedas, Hindi Story

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सरस्वती: आखिर कहां विलुप्त हो गई वैदिक काल की देवतुल्य नदी! Holi Saraswati river of the ancient Vedas, Hindi Story


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Published on 30 Jan 2023

सरस्वती: आखिर कहां विलुप्त हो गई वैदिक काल की देवतुल्य नदी!

भारत नदियों का देश है!

यहां नदी किनारे कई सभ्यताएं पली-बढ़ीं और उनका खत्मा भी हुआ, लेकिन नदियों की अविरल धारा यूं ही प्रवाहित होती रही.

हालांकि आज विकास की आंधी में नदियां मैली होनी शुरू हो गई हैं, जहां नदियों का पवित्र जल कल कल करके बहता था, वहां आज नाले बह रहे हैं, ऐसे में इन पवित्रता की प्रतीक नदियों का अस्तित्व खतरे में है.
गंगा-यमुना समेत तमाम नदियों को बचाने की मुहिम जारी है, लेकिन इन सब के बीच खास है सरस्वती नदी. वह नदी जो पुराणों के अनुसार आज भी बह रही है, पर किसी को दिखाई नहीं दे रही और विज्ञान के अनुसार वो सैकड़ों साल पहले धरती पर थी, पर आज विलुप्त हो चुकी है.


अन्य नदियों से अलग सरस्वती नदी हमेशा से ही जिज्ञासा का विषय रही है. शास्त्र कहते हैं कि मां सरस्वती नदी का अस्तित्व एक श्राप के कारण खत्म हो गया, लेकिन एक वरदान के कारण वह आज भी जीवंत है. और शायद यही कारण है कि प्रयाग में गंगा, यमुना और सरस्वती का मिलन होना माना जाता है, जबकि सरस्वती नदी कभी किसी को दिखाई नहीं देती.

बहरहाल जो भी है, लेकिन जब से सरस्वती नदी के खोए हुए अस्तित्व की तलाश शुरू हुई है तब से कई तरह की धारणाएं सामने आ रही हैं. अफवाहों से अलग चलिए जानते हैं कि आखिर क्या है सरस्वती नदी का इतिहास और किन कारणों से हम भारत की पवित्रतम नदी को खो चुके हैं –
 
हिमाचल के सिरमौर से उ्दगम!

वैज्ञानिक आधार को सच मानें तो सरस्वती धरती पर बहती थी और प्राकृतिक परिवर्तनों के चलते वह लुप्त हो गई.
जब पुरातात्विक स्थलों की खुदाई की गई तो पता चला कि सरस्वती नदी हरियाणा में यमुनानगर जिले की काठगढ़ ग्राम पंचायत में आदिबद्री स्थान पर पहाड़ों से मैदानों में प्रवेश करती थी, जबकि ऋग्वेद, स्कंद पुराण, गरुड़ पुराण, वामन पुराण, पद्म पुराण जैसे शास्त्रों को मानें तो सरस्वती नदी का उद्गम हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले की नाहन तहसील का गांव जोगी वन है. यह जगह ऋषि मार्कंडेय धाम मानी जाती है.

एक कथा के अनुसार जोगी वन में मार्कंडेय मुनि ने तपस्या की. जिससे प्रसन्न होकर सरस्वती नदी गूलर में प्रकट हुईं. मार्कंडेय मुनि ने सरस्वती का पूजन किया. इसके बाद मां सरस्वती ने वन के तालाब को अपने जल से भरा और फिर पश्चिम दिशा की ओर चली गईं. इसके बाद राजा कुरू ने उस क्षेत्र को हल से जोता और यहां पांच योजन का विस्तार हुआ. तब से यह स्थान दया, सत्य, क्षमा, आदि गुणों का स्थल माना जाता है. बाद में यहीं मार्कंडेय को अमरत्व प्राप्त हुआ था.
कहा जाता है कि बाद में महर्षि उन्ही गूलर के पेड़ों के बीच समा गए थे, जहां से सरस्वती नदी की धार फूट पड़ी थी.

सरस्वती का पौराणिक इतिहास

सरस्वती का पहला जिक्र ऋग्वेद में मिलता है. ऋग्वेद के नदी सूक्त के एक मंत्र (10.75) में सरस्वती नदी को ‘यमुना के पूर्व’ और ‘सतलुज के पश्चिम’ में बहती हुई बताया गया है. इसमें लिखा है,
 
‘इमं में गंगे यमुने सरस्वती शुतुद्रि स्तोमं सचता परूष्ण्या असिक्न्या मरूद्वधे वितस्तयार्जीकीये श्रृणुह्या सुषोमया’
इसके अलावा ऋग्वेद के अन्य छंदों 6.61, 8.81, 7.96 और 10.17 में भी सरस्वती नदी की महानता का जिक्र किया गया है. इन छंदों में सरस्वती नदी को ‘दूध और घी’ से भरा हुआ बताया गया है.

महाभारत में सरस्वती नदी के प्लक्षवती नदी, वेदस्मृति, वेदवती जैसे कई नाम मिलते हैं. बताया जाता है कि बलराम ने द्वारका से मथुरा तक की यात्रा सरस्वती नदी से की थी और लड़ाई के बाद यादवों के पार्थिव अवशेषों को इसमें बहाया गया था.


वाल्मीकि रामायण में भरत के कैकय देश से अयोध्या आने के प्रसंग में सरस्वती और गंगा को पार करने का वर्णन है. जिसमें लिखा गया है,
‘सरस्वतीं च गंगा च युग्मेन प्रतिपद्य च, उत्तरान् वीरमत्स्यानां भारूण्डं प्राविशद्वनम्’
वैदिक काल में सरस्वती की बड़ी महिमा थी और इसे ‘परम पवित्र’ नदी माना जाता था. वहीं कहा जाता है कि सरस्वती नदी का जल पीने के बाद ही ​ऋषियों ने पुराण, शास्त्र और ग्रंथों की रचना की थी. गुजरात का सिद्धपुर सरस्वती नदी के तट पर बसा हुआ माना जाता है. इसके पास में बिंदुसर नाम का तालाब है, जिसे महाभारतकाल में ‘विनशन’ कहा जाता था. माना जाता है कि महाभारत काल में ही सरस्वती लुप्त हो गई थी.

नासा ने भी माना नदी का अस्तित्व!

भारतीय पुरातत्व परिषद् ने अपने शोधों में कहा है कि सरस्वती का उद्गम उत्तरांचल में रूपण नाम के हिमनद (ग्लेशियर) से होता था. यह नैतवार में आकर हिमनद जल में बदल जाती थी और फिर इसकी जलधारा आदिबद्री तक पहुंचती थी. जहां इसे सरस्वती नदी कहा जाता था. इसके बाद नदी आगे बढ़ती थी. इस शोध के बाद रूपण ग्लेशियर को सरस्वती ग्लेशियर कहा जाने लगा है.
 
सरस्वती नदी हरियाणा और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों से होती हुई बहती थी. इसकी कई सहायक नदियां भी थीं. भूगर्भीय खोजों से स्पष्ट हुआ है कि सदियों पहले प्राकृतिक परिर्वतनों के कारण सरस्वती नदी ने अपना मार्ग बदला था.
भीषण भूकंप के कारण कई विशाल पहाड़ धरती के ऊपर आ गए और सरस्वती की मुख्य सहायक नदी दृषद्वती यानी यमुना नदी ने उत्तर और पूर्व की ओर बहना शुरू कर दिया.
भूकंप के झटकों के कारण सरस्वती नदी का पानी भी यमुना नदी में गिर गया और तब से यमुना ही सरस्वती के जल को खुद में समाए हुए है. जबकि वास्तविक सरस्वती नदी उस वक्त सूख गई.


सरस्वती नदी के अस्तित्व को नासा भी स्वीकार कर चुका है. भारत और नासा के संयुक्त अभियान के तहत उपग्रह कार्यक्रम शुरू किया गया था. जिसके माध्यम से वैज्ञानिकों ने एक ऐसी विशाल नदी के प्रवाह-मार्ग का पता लगाया, जो किसी समय पर भारत के पश्चिमोत्तर क्षेत्र में बहती थी.
उपग्रह से मिली तस्वीरों के अनुसार यह नदी आठ किमी. चौड़ी थी और करीब 4 हजार वर्ष पहले प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण सूख गई.

शोध में आ रहे अलग नतीजे

सरस्वती नदी के अस्तित्व पर शास्त्र और विज्ञान दोनों मुहर लगा चुके हैं. नासा ने माना है कि लगभग 5,500 साल सरस्वती नदी भारत के हिमालय से निकलकर हरियाणा, राजस्थान व गुजरात में लगभग 1,600 किलोमीटर तक बहती थी और अंत में अरब सागर में विलीन हो जाती थी.

इसरो के वैज्ञानिक एके गुप्ता ने अपनी टीम के साथ थार के रेगिस्तान में शोध किया और पाया कि यहां पानी का कोई स्त्रोत नहीं है, फिर भी धरती के नीचे कुछ जगहों पर ताजे पानी के भंडार मिलते हैं. ऐसा ही जैसलमेर में भी है. यहां 50-60 मीटर पर भूजल मौजूद है. यहां खोदे गए कुए सालों से नहीं सूखे हैं.

यहां के पानी की जांच की गई और पानी में ट्राइटियम की मात्रा नगण्य है. आइसोटोप टेस्ट में भी स्पष्ट हुआ है कि यहां रेत के टीलों के नीचे पानी की मात्रा है और रेडियो कार्बन डाटा इस बात का संकेत है कि यह पानी हजारों सालों से यहां जमा है.

वहीं, दूसरी ओर राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान की एक टीम ने संगम में नया शोध शुरू किया. इस टीम का नेतृत्व वैज्ञानिक डॉ. सुभाष चंद्रा कर रहे हैं. इस शोध मैपिंग में हेलीबॉर्न इलेक्ट्रोमैग्नेटिक सिस्टम की मदद ली जा रही है, जो 30 मीटर की ऊंचाई से जमीन के नीचे पांच सौ मीटर तक सूक्ष्म डेटा इकट्ठा कर सकता है.
इससे प्राप्त डेटा के आधार पर यह पता लगाया जाएगा कि आखिर यमुना और गंगा के अलावा सरस्वती नदी कहां से और किस दिशा से बहती रही है.
 
तो क्या वापिस आएगी सरस्वती..?
सरस्वती नदी के अस्ति​त्व का प्रमाण मिलने के बाद अब वैज्ञानिक इस खोज में लग गए हैं कि आखिर सरस्वती नदी को फिर से कैसे जीवित किया जा सकता है.
धर्म-शास्त्रों के अनुसार सरस्वती नदी आज भी है, लेकिन अदृश्य है जबकि वैज्ञानिक इस तर्क से सहमत नहीं हैं.
हरियाणा और राजस्थान में मिले सरस्वती नदी के रास्तों की खोज जारी है.

जोधपुर में सुदूर संवेदी उपग्रह केंद्र के अध्यक्ष डा. जे आर शर्मा ने अपनी खोज में दावा कियाहै कि भूगर्भीय पट्टियों की गतिविधि के कारण सरस्वती नदी में पानी की आपूर्ति बंद हो गई थी. यदि किसी प्रकार इस गतिविधि को दोबारा शुरू करना संभव हुआ तो एक बार फिर सरस्वती नदी को प्राण मिल सकते हैं.
यदि ऐसा होता है तो जैलमेर और थार के मरूस्थल में पानी की आपूर्ति बहुत आसान हो जाएगी. वहीं भारत के अलावा अन्य वैश्विक वैज्ञानिक भी इस पर अपनी खोज कर रहे हैं. इससे उम्मीद की जा रही है कि सरस्वती नदी को फिर धरती पर उतारा जा सकता है.

यदि ऐसा होता है तो यह भारत के पौराणिक इतिहास की सबसे बड़ी जीत होगी!
इस बारे में आपका क्या कहना है.. हमें नीचे कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं.

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