यमराज तक को हरा देने वाला रामायणकालीन 'योद्धा'
भगवान राम और जनकनन्दिनी सीता के पुत्र 'लव' के बारे में आखिर हम कितना जानते हैं?
वस्तुतः अपनी माँ के साये में पले लव की तस्वीर एक नाजुक से किशोर की हो सकती है, किन्तु सच्चाई इतनी भी 'नाजुक' नहीं है.
सच तो यह है कि अपने पिता मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के समान ही लव वीर-योद्धा थे और यह बात उन्होंने एक से अधिक बार साबित भी किया है...
लव-कुश के जन्म की कथा
यह प्रसंग तब का है जब श्रीराम, सीता एवं अनुज लक्ष्मण रावण वध के पश्चात अयोध्या लौट आते हैं. राम का राज्याभिषेक होता है और कुछ ही समय बाद पता चलता है कि वे माता-पिता बनने वाले हैं. पूरी अयोध्या में खुशियों की लहर दौड़ जाती है.
ठीक तभी इन खुशियों को नज़र लग जाती है और एक धोबी द्वारा अपनी पत्नी पर अत्याचार के कारण माहौल ही बदल जाता है.
हालाँकि, कुछ जगहों पर यह भी प्रसंग मिलता है कि न केवल धोबी, वरन कई ओर से ऐसी बातें होने लगती हैं.
कालांतर में समाज बेहद रूढ़िवादी था और तब अगर पत्नी यदि एक रात भी अपने पति से दूर रह जाए, तो उसे दोबारा पति के घर में दाखिल होने की अनुमति नामुमकिन के बराबर ही थी.
ऐसे में राजधर्म के तहत श्रीराम के सामने धर्मसंकट की स्थिति आन खड़ी होती है.
कहा जाता है कि सीता ने अपने पति को धर्मसंकट की स्थिति से उबारने हेतु खुद ही अयोध्या छोड़ने का निर्णय ले लिया था.
तत्पश्चात स्वयं लक्ष्मण उन्हें जंगल तक छोड़कर आए जहां महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में उन्हें विश्राम मिला. प्रजा का सुख देखते हुए महारानी सीता ने महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में एक आम संन्यासिन जैसी ज़िन्दगी बिताने का निर्णय ले लिया.
दिन बीते, फिर महीने और अब सीता एक संतान को जन्म देने वाली थीं.
एक सजग नारी की भांति सीता ने अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाईं.
कुछ ही दिन पश्चात महर्षि वाल्मीकि के आश्रम में नन्हें से बच्चे की किलकारी गूंज उठी. बालक का नाम लव रखा गया और उसका लालन-पालन सुखद तरीके से महर्षि के आश्रम में होने लगा.
इसी बीच एक दिन सीता जी भोजन बनाने हेतु लकड़ियां लाने के लिए जंगल जा रही थीं, लेकिन वह लव को साथ लेकर नहीं जाना चाहती थीं. ऐसे में उन्होंने महर्षि वाल्मीकि को लव का ध्यान रखने को कहा. महर्षि ने अपनी स्वीकृति दे दी.
हालाँकि, थोड़ी ही देर बाद सीता जी ने लव को साथ लेकर जाने का फैसला किया.
कुछ देर बाद महर्षि को यह भान हुआ कि लव अपने स्थान पर है ही नहीं!
महर्षि बड़े चिंतित हुए कि कहीं किसी जानवर ने लव को शिकार न बना लिया हो और अब वे सीता जी को क्या जवाब देंगे? सीता के विलाप से डरकर वाल्मीकि ने पास में पड़े कुशा (घास) को लिया और कुछ मंत्र पढ़ने के बाद एक नया बालक 'लव' की ही तरह बना दिया.
जब जंगल से सीता आश्रम वापस लौटीं तो महर्षि उनके पास लव को देख दंग रह गए.
हालाँकि, जब सीता जी ने उस बालक को देखा, तो वे बेहद प्रसन्न हुईं, क्योंकि लव को एक भाई मिल गया था. कुशा से बने होने के कारण उस बालक का नाम ‘कुश’ पड़ा.
इन दोनों भाइयों की वीरता का स्वाद खुद लक्ष्मण सहित भरत और शत्रुघ्न के साथ वीर हनुमान ने भी चखा था, जब अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा इन दोनों बालकों ने बाँध लिया था. बाद में सीता के हस्तक्षेप के बाद राम को ये बालक पहचान गए थे और पुनः अपने पिता के साथ अयोध्या लौट गए!
लव का यमराज से टकराव
दोनों भाई कितने वीर थे, यह तो उन्होंने अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा रोककर ही साबित कर दिया था, किन्तु एक प्रसंग ऐसा भी आया जब लव यमराज तक को परास्त करने में सफल रहे.
प्रसंग है राजा राम के मंत्री सुमंत्र का!
तब अयोध्या के वृद्ध मन्त्री सुमंत्र स्वर्गवासी हो गए थे.
हालाँकि बाद में शीर्ष पंडितों द्वारा सुमंत्र की कुन्डली देखने पर पता चला कि उसकी आयु के नौ दिन शेष बचे रह गये थे और यमदूतों ने 9 दिन पहले ही सुमंत्र को उठा लिया था.
तब प्रभु राम ने यमराज के इस कृत्य को अपमान समझकर उसे दंड देने की प्रतिज्ञा कर ली.
गरुड़ पर बैठ कर ज्योंही श्रीराम यमपुरी की ओर बढे, तभी रास्ते में उन्हें वह यमदूत दिखलाई दिए, जो सुमंत्र की आत्मा को यमलोक ले जा रहे थे. उन्हें दंड देकर श्रीराम सुमंत्र को छुड़ा लाये.
यमदूतों को यह कार्य अनुचित जान पड़ा और वह यमराज को धिक्कारने लगे कि वह अपने अनुचरों की रक्षा नहीं कर सकते!
यमराज को भी क्रोध आ गया और वह इंद्र सहित तमाम देवी-देवताओं के पास मदद मांगने पहुंचे, किन्तु नारायण के अवतार के खिलाफ भला कौन यमराज की मदद करता?
जब उनकी किसी ने भी सहायता नहीं की, तब क्रोधित यमराज अपनी ही सेना लेकर राम के साथ युद्ध करने की मंशा पाले अयोध्या चल पड़े.
यमराज के द्वारा अयोध्या को घिरा देखकर श्री राम ने लव को युद्ध करने का आदेश दिया और फिर लव के बाणों से घायल होकर यमराज के करोड़ों यमदूत धराशायी हो गये. अपनी किसी भी युक्ति को चलता न देखकर यमराज ने लव पर 'यम-दंड' का प्रहार कर दिया और इसकी काट के रूप में लव को ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ा.
बस फिर क्या था, यमराज को भागना पड़ा, किन्तु ब्रह्मास्त्र उनका पीछा छोड़ने को राजी न था!
कहा जाता है कि सूर्य की शरण में यम चले गए और सूर्यवंश की शपथ देकर लव को सूर्यदेव ने ब्रह्मास्त्र वापस लौटाने को मनाया.
तत्पश्चात यमराज को अपनी गलती का अहसास हुआ और वह अपने पिता सूर्य के साथ श्री राम के दर्शन हेतु अयोध्या नगरी पधारे!
लव की वीरता देखकर देवता पुष्प वर्षा करने लगे और श्रीराम के पुत्र की कथा युगों-युगों तक अमर हो गयी!
लव चरितं - The Great Warrior of Ramayan, Son of Ram, Lav, The Stories of Lav Kusha, Yamraj se Yuddh ki Kahani
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