उर्वशी के श्राप ने अर्जुन को क्यों बनाया नपुंसक? Arjun Urvasi Story of Mahabharata in Hindi

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उर्वशी के श्राप ने अर्जुन को क्यों बनाया नपुंसक? Arjun Urvasi Story of Mahabharata in Hindi


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Published on 30 Jan 2023

उर्वशी के श्राप ने अर्जुन को बना दिया था नपुंसक, पर क्यों?

अर्जुन, महाभारत के इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण चरित्र रहे. उनके बारे में कहा जाता है कि यदि वह नहीं होते तो, कौरवों को युद्ध में हराना आसान नहीं होता. वीरता, साहस और सुंदरता जैसे कई गुण उनके उसके भीतर थे.

बहरहाल आज बात अर्जुन की यशकीर्ति की नहीं, बल्कि उस प्रसंग की, जिसमें उन्हें स्वर्ग की अप्सरा उर्वशी ने नपुंसक बन जाने का श्राप दे डाला था.

अप्सरा ने आखिर ऐसा क्यों किया आईए जानते हैं-


'वेदव्यास जी' ने दिखाया था रास्ता

यह कहानी उस दौर से शुरू होती है, जब पांडव भाईयों के साथ अर्जुन अपना वनवास काट रहे थे. साथ ही कौरवों से लड़ने के लिए खुद को मजबूत कर रहे थे. इसी कड़ी में जब उनकी मुलाकात वेदव्यास जी से हुई, तो उन्होंने अर्जुन को सुझाव दिया कि तुम्हें देवाताओं की आराधना करनी चाहिए, ताकि तुम उनसे दिव्य अस्त्र प्राप्त कर सको.
तभी संभव हो सकेगा कि तुम भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे महारथियों का सामना कर पाओगे!

वेदव्यास जी के इस सुझाव को मानते हुए को अर्जुन तपस्या में लग गए. वह वन में तपस्या कर ही रहे थे कि एक दिन भील के रूप में भगवान शिव उनकी परीक्षा के लिए आ गए. इसी दौरान एक दैत्य ने अर्जुन को अपना शिकार बनाना चाहा, तो उन्होंने अपना तीर उस पर छोड़ दिया. दूसरी तरफ अर्जुन ने भी उस पर प्रहार किया.
ऐसी स्थिति में दोनों के बाण उस दैत्य को जा लगे और वह मारा गया.

भगवान शिव से मिला 'पशुपत्यास्त्र'

आगे की कहानी दिलचस्प हो जाती है. वो इसलिए क्योंकि भील के रूप में भगवान शिव अर्जुन से झगड़ने लगते हैं. उनका दावा होता है कि उन्होंने दैत्य को मारा है. जबकि, अर्जुन के अनुसार उनके बाण से दैत्य के प्राण निकले.
 
अगले कुछ ही पलों में संवाद का यह सिलसिला उग्र भाव ले लेता है.

यहां तक कि दोनों लोग युद्ध करने पर उतारू हो गए. अतंत: भगवान शिव के प्रहार से अर्जुन बेहोश हो गए. जब उन्हें होश आया, तो वह जान चुके थे कि भील के रूप में कोई देवता ही होंगे. उन्होंने प्रणाम करते हुए उनसे क्षमा मांगी.

ऐसे में भगवान शिव ने उनके पराक्रम से खुश होकर दर्शन दिए. साथ ही पशुपत्यास्त्र जैसा दैवीय शस्त्र प्रदान किया.

इंद्र के बुलावे पर पहुंचे इंद्रलोक, और...


भगवान शिव से 'पशुपत्यास्त्र' मिलने के बाद भी अर्जुन ने अपनी तपस्या खत्म नहीं की. वह दूसरे सभी देवताओं की विधिवत पूजा में लग गए. इसके फलस्वरूप शिव के बाद वरुण, यम, कुबेर, गन्धर्व और इन्द्र उनके पास पहुंचे.  उन्होंने कहा अर्जुन हम तुम्हारी तपस्या से खुश हुए हैं. इसलिए बताओ कि तुम्हारी क्या इच्छा है.

जैसा कि अर्जुन को भीष्म और द्रोणाचार्य जैसे महारथियों को हराने के लिए दिव्य अस्त्र-शस्त्र की जरूरत थी, इसलिए उन्होंने विनती की कि वह उन्हें प्रदान करें.  एक पल की देरी न करते हुए देवताओं ने उन्हें आशीर्वाद दिया.
साथ ही कहा कि वह इंद्रलोक आए, ताकि वह इनके उपयोग की विद्या सीख सके.

कुछ वक्त बाद दोबारा से इंद्र का सारथी वापस अर्जुन के पास आया और उन्हें अपने साथ स्वर्ग में ले गया. ताकि, अर्जुन दूसरी सभी जरूरी विद्याएं सीख सकें, जो उनके लिए युद्धभूमि में मददगार बन सके. अलौकिक अस्त्र-शस्त्र चलाना सीखना इसमें मुख्य थीं.

संगीत कक्षा में हुई उर्वशी से मुलाकात

इंद्रलोक पहुंचते ही सभी देवताओं ने अर्जुन का अभिवादन किया. अपने आशीष के साथ उन्हें बताया कि कैसे उन्हें दिव्य अस्त्रों का प्रयोग करना है. आगे उन्होंने इसके लिए अभ्यास की कुछ कक्षाएं भी रखीं, ताकि अर्जुन इसमें पारांगत हो सकें.

चूंकि, अर्जुन बचपन से कुशाग्र थे, इसलिए उन्हें महारत हासिल करने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. इसी क्रम में एक दिन इंद्र ने सलाह दी कि अर्जुन तुम संगीत और नृत्य की कला सीख लो. यह कला तुम्हारे वनवास के दौरान काम आ सकती है. अर्जुन को सलाह अच्छी लगी, तो उन्होंने स्वीकृति दे दी.

इस तरह वह चित्रसेन नामक गन्धर्व की कक्षा में जा पहुंचे. जोकि, संगीत और नृत्य की कला के गुरु माने जाते थे. इन्हीं कक्षाओं के दौरान पहली बार उनकी मुलाकात इंद्रलोक की अप्सरा उर्वशी से हुई. वह भी उनकी तरह ही गन्धर्व से संगीत और नृत्य से सीखने आती थी! बताते चले कि उर्वशी इंद्रलोक की एक ऐसी अप्सरा थीं, जिनका यौवन चर्चा में रहता था.

हालांकि, अर्जुन उनसे प्रभावित नहीं हुए. उनका ध्यान तो बस तेजी से इस कला में निपुण होने पर था. जबकि, उर्वशी व्याकुल हो रही थीं. असल में वह अर्जुन पर अपना दिल हार चुकी थीं. बस समस्या यह थी कि आखिर वह पहल कैसे करें...

जब अर्जुन ने नहीं मानी उर्वशी की बात

खैर, एक दिन उनसे नहीं रहा गया, तो उन्होंने खुद अर्जुन के पास जाकर कहा- हे! अर्जुन मैं आपको बहुत स्नेह करती हूं. मैं तुम्हें अपना सबकुछ लुटा देना चाहती हूं. कृपया मेरी भावनाओं को समझो और मुझे स्वीकार करो...
 
उर्वशी को अपने प्रति इस तरह पिघलता देख अर्जुन हैरान रह गए. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. ऐसे में उन्होंने बड़ी विनम्रता से कहा, मुझे माफ कीजीए. यह संभव नहीं है. पुरु वंश की जननी होने के नाते आप मेरी माता तुल्य हैं.

अर्जुन के उत्तर को सुनकर उर्वशी आग बबूला हो गईं. एक प्रकार से यह स्वाभाविक था. असल में उर्वशी के जिस यौवन को पाने के लिए लोग लालयित रहते थे. अर्जुन ने उसे ही ठुकरा दिया था.

अब चूंकि, उर्वशी ने इसे अपमान के रूप में लिया था, इसलिए अर्जुन को इसका परिणाम तो  झेलना ही था. उन्होंने अर्जुन से कहा, तुमने नपुंसकों की तरह मुझे ठुकराया है, इसिलए मैं तुम्हें श्राप देती हूं कि तुम नपुंसक हो जाओ. 
हालांकि, इस श्राप का प्रभाव एक साल तक ही रहा था. इस कालखंड में अर्जुन ने उत्तरा कोएक साल तक नृत्य सिखाया. वही उत्तरा, जोकि बाद में उनके पुत्र अभिमन्यु की पत्नी बनीं.

तो ये था अर्जुन के श्राप से जुड़ा एक प्रसंग. 
अगर आप भी किसी ऐसे प्रसंग की जानकारी रखते हैं, तो नीचे दिए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं! 

Arjun Urvasi Story of Mahabharat, Hindi Article

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