महाभारत की कई कथाएँ (Mabharata Stories) हमारे संस्कारों, Culture में आज भी जीवित हैं. कहते हैं, जो महाभारत में नहीं, वह इस संसार में कहीं नहीं.
इस कथा के मूल में धृतराष्ट्र और पांडू (Dhritrashtra and Pandu) के बीच हस्तिनापुर के सिंहासन (Hastinapur Kingdom) की महत्वाकांक्षा ही थी. इनमें भी बड़ा भाई होने के कारण धृतराष्ट्र की यह महत्वाकांक्षा कभी मन से निकल नहीं पायी कि उनका ही पुत्र गद्दी पर बैठे. धृतराष्ट्र का गांधारी (Gandhari ka Vivah) से विवाह भी पहले हुआ था, इसलिए यह मत था कि उनका पुत्र ही बड़ा होगा और स्वाभाविक रूप से सिंहासन पर विराजेगा. किन्तु विवाह के कई वर्षों के बाद भी गांधारी को संतान प्राप्ति नहीं हुई. यूं तो वह गर्भवती थीं, किन्तु सामान्य 9 महीने से अधिक का समय (कई जगहों पर यह दो साल तक बताया गया है), संतानोत्पत्ति में लग रहा था.
अपनी संतान होने में देरी से धृतराष्ट्र परेशान एवं क्रोधित थे, एवं यही वो क्षण था, जब वह गांधारी के प्रति उत्पन्न क्रोध के कारण गांधारी की ही दासी (सौवाली) से सम्भोग किया. इस संभोग के फलस्वरूप दासी गर्भवती हो गयी. कुछ समय बाद गांधारी ने संतान के रूप में मांस का टुकड़े को जन्म दिया. महर्षि वेदव्यास के निर्देशानुसार गांधारी ने जन्म दिए गए मांस के टुकड़े को कलश में रखा, जिससे पहले दुर्योधन का जन्म (Duryodhan birth) हुआ था. दुर्योधन के बाद दुशासन का जन्म हुआ.
तीसरे पुत्र का जन्म होता इसके पहले उसी समय दासी ने पुत्र को जन्म दे दिया.
इस बात का समाचार धृतराष्ट्र और गांधारी को मिला. इस तरह से दासी पुत्र धृतराष्ट्र का तीसरा पुत्र कहलाया. बाद में गांधारी ने बाकी पुत्रों को कलश के जरिए जन्म दिया.
धृतराष्ट्र ने कभी भी दासी को नहीं अपनाया पर, चूंकि पुत्र उनका रक्त था इसलिए उसे युयुत्सु (Yuyutsu birth story in hindi) नाम दिया. साथ ही उसे हस्तिनापुर के बाकी कौरवों की तरह अपना पुत्र समझकर अपनाया.
हालांकि, इतिहास में विकर्ण की मां का कोई उल्लेख नहीं किया गया. यह बात जरूर है कि विकर्ण कभी भी गांधारी को अपने बाकी पुत्रों की तरह प्रिय नहीं था. पर चूंकि वह धृतराष्ट्र पुत्र था, इसलिए कौरव होने के सम्मान का अधिकारी रहा.
बाद में जब महाभारत का युद्ध निश्चित हो गया, एवं कौरव और पांडवों की सेनाएं आमने सामने खड़ी हो गयीं, और दोनों ओर के सेनापतियों द्वारा घोषणा की गयी कि धर्म युद्ध (Mahabharat Dharm Yuddh) की शुरुआत से पहले अगर कोई योद्धा अपना पक्ष बदलना चाहे, तो वह ऐसा कर सकता है. इस घोषणा के बाद युयुत्सु पांडवों के पक्ष में चले गए, और उन्हीं की ओर से लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए.
हालाँकि इस युद्ध से पहले भी कई मौकों पर दुर्योधन एवं शकुनी के प्रपंचों (Duryodhana and Shakuni Conspiracy) का युयुत्सु ने विरोध किया था, जिसमें भीम को दुर्योधन द्वारा ज़हर दिया जाना, एवं द्रौपदी के चीरहरण के समय दुर्योधन का विरोध करना शामिल है.
अधर्म का पक्ष प्रबल होने के बावजूद, धर्म के पक्ष में मजबूती से अपने विचार रखने के कारण युयुत्सु को महाभारत के नायकों (Warriors of Mahbharata) में गिना जा सकता है. हालाँकि, कई लोग उन्हें विभीषण की तरह गद्दार भी कहते हैं.
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Article Presented by: Team Article Pedia
Web Title: Yuyutsu, The Mahabharata Warriors, The only Kaurava, who FOUGHT FROM PANDAVA'S SIDE, Premium Unique Content Writing on Article Pedia
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