हरी हरी सब्जी, हर छत सब्जी #HindiPoem

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हरी हरी सब्जी, हर छत सब्जी #HindiPoem

Hindi Poem Hari hari Sabzi, Har Chhat Sabzi, Poet Mithilesh Anbhigya

कविमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 14 Aug 2022 (Update: 14 Aug 2022, 16:10 IST)

हरी हरी सब्जी, हर छत सब्जी
क्यों खाते मगर हम, जहरीली सब्जी

हर व्यक्ति ये जाने, जरूरी है सब्जी
हर व्यक्ति ये माने, हो शुद्ध ये सब्जी
पर देख विडंबना स्वतंत्र इस राष्ट्र की
गुलामी करें सब, है विषैली ये सब्जी

हरी हरी सब्जी, हर छत सब्जी
क्यों खाते मगर हम, जहरीली सब्जी

क्या सच में उगा न सकेंगे ये सब्ज़ी
सामर्थ्य को है ललकारती सब्ज़ी
स्मार्ट बनें, छोड़ें फोन स्मार्ट को
अब छत पे उगाने को सोच लें सब्ज़ी

हरी हरी सब्जी, हर छत सब्जी
क्यों खाते मगर हम, जहरीली सब्जी

परिवार के ख़ून में जाए ये सब्जी
छोटे और बड़े रोज़ खाएं ये सब्जी
फिर स्वास्थ्य प्रभाव को कैसे ना जानें
बीमार करे, केमिकल की ये सब्ज़ी

हरी हरी सब्जी, हर छत सब्जी
क्यों खाते मगर हम, जहरीली सब्जी

पर हार नहीं, जिताएगी सब्जी
स्वस्थ करेगी, व स्वाद बढ़ाएगी सब्जी
जगह कम है, तो भी गम नहीं
आओ पाइप में सब, उगाएं ये सब्जी

हरी हरी सब्जी, हर छत सब्जी
क्यों खाते मगर हम, जहरीली सब्जी

कोई वादा नहीं, खरीदे क्यों सब्जी?
अपनी आंखों से बढ़ती देखें ये सब्जी
गार्डेन का शौक, पौधों संग करें योग
प्रकृति से जुड़ें सब, जैसे उगे ये सब्जी

हरी हरी सब्जी, हर छत सब्जी
क्यों खाते मगर हम, जहरीली सब्जी

क्यों खाएं अब हम, जहरीली सब्जी?

- मिथिलेश 'अनभिज्ञ' 





कविमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 14 Aug 2022 (Update: 14 Aug 2022, 16:10 IST)



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