प्रस्तुतकर्ता: टीम आर्टिकल पीडिया (Team Article Pedia)
Published on 13 May 2021 (Update: 13 May 2021, 1:49 AM IST)
तीन नौजवान एक बड़े होटल में ठहरे। 75th फ्लोर पर कमरा मिला।
एक रात लेट हो गए... रात के 12 बजे लिफ्ट किसी कारण से बन्द थी.
तीनों सीढियां चढने लगे... बोरियत दूर करने के लिये एक ने चुटकुला सुनाया, और पच्चीसवी मंजिल तक आ गए।
दूसरे ने गाना सुनाया और पचासवीं मंजिल तक आ गए।
और तीसरे ने सेहत पर किस्सा सुनाया, और 75 फ्लोर पर आखिर पहुँच ही गए।
कमरे के दरवाजे पर पहुंचे, तो याद आया कि कमरे की चाबी, रिसेप्शन (Reception) पर ही भूल गए...
तीनों बेदम होकर गिर पड़े..!!
ज़रा सोचिये!
आखिर इसी तरह तो इंसान भी अपनी जिदंगी के शुरूआती 25 साल खेल-कूद, हंसी मजाक में व्यर्थ करता है?
अगले 25 साल नौकरी, शादी, बच्चे और उनकी शादी मे गुजार देता है...
और आगे 25 साल जिंदा रहे तो बीमारी, डॉक्टर, अस्पताल में गुजर जाते हैं...
जब भगवान के द्वार जाने का समय आता है, तब हम सोचते हैं कि आखिर जीवन में हमने किया क्या?
क्या हमने जीवन का उद्देश्य समझा?
क्या हमने, अपनी क्षमतानुसार, किसी का थोड़ा भी भला किया?
फिर मरने के बाद पता चलता है कि परमात्मा के द्वार की चाबी तो लाए ही नहीं... दुनिया में ही रह गई...
आखिर, स्व-कल्याण के साथ, परोपकार एवं प्रभु का स्मरण ही तो परमात्मा के द्वार की चाबी है!
तो आइए... आज ही, अभी ही, इसी अवस्था से ही, अपना कर्तव्य करते हुए, यथासंभव परोपकार की भावना रखते हुए, हर समय प्रभु का सुमिरन करे... और अच्छे कर्म करें, ताकि भगवान के द्वार पर जाकर पछताना ना पड़े।
ध्यान रखिये, जीवन के आखिरी क्षणों में आप क्या सोचकर संतुष्ट होंगे?
अपने जीवन का आंकलन किस प्रकार करेंगे?
वही आंकलन, वही संतुष्टि ही 'परमात्मा के द्वार' की असली चाभी है!
(साभार: व्हाट्सअप की दुनिया से)
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