उर्मिला चरितं: रामायण महागाथा की 'अनसुनी' किरदार

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उर्मिला चरितं: रामायण महागाथा की 'अनसुनी' किरदार

  • संपूर्ण रामायण महागाथा में रावण से भी शक्तिशाली अगर कोई खलनायक था, तो निस्संदेह वह मेघनाथ था 
  • अत्याचारी योद्धा मेघनाथ का वध लक्ष्मण जी सिर्फ इसलिए कर पाए थे, क्योंकि उनके पीछे उनकी पत्नी उर्मिला का सतीत्व था 
  • उर्मिला के चरित्र के कई 'अनसुने' पहलुओं को जानें, जिनके बिना रामायण संभवतः अधूरी होती

Urmila Unsung characters of Ramayana, Wife of Laxmana (Pic: Webdunia))

लेखकमिथिलेश कुमार सिंहनई दिल्ली 
Published on 29 April 2021 (Last Update: 29 April 2021, 8:36 PM IST)

अक्सर जब किसी महागाथा की चर्चा होती है, तब उसके मुख्य पात्रों का जबरदस्त ढंग से महिमा-मंडन किया जाता है. यह तथ्यात्मक सत्य है कि मुख्य पात्रों के नायकत्व में दूसरे चरित्रों का त्याग, चरित्र कहीं ना कहीं मद्धम पड़ जाता है, परंतु अगर बारीकी से देखा जाए तो किसी भी महागाथा में सह - पात्रों का चरित्र कहीं ज्यादा दमदार होता है. कुछ क्षणों में ही सह - पात्रों का चरित्र मुख्य पात्रों से तिल भर भी कम प्रतीत नहीं होता है.

कई जगहों पर तो सह - पात्र, मुख्य चरित्रों से बढ़कर नज़र आते हैं!

रामायण जैसी जनप्रिय महागाथा, इस संसार में शायद ही कोई दूसरी हो!
भगवान राम के चरित्र से आज भी संसार प्रेरणा लेता है. मर्यादा पुरुषोत्तम राम को एक आदर्श पुत्र, एक आदर्श भाई, एक आदर्श पति और उससे कहीं आगे बढ़कर एक आदर्श जन नायक के रूप में प्रस्तुत किया गया है.

ऐसे में भगवान राम के इर्द - गिर्द जिन मजबूत चरित्रों का वर्णन किया गया है, उनमें विलेन के तौर पर रावण का नाम आता है, और राम रावण के युद्ध के इर्द-गिर्द इस महाकाव्य की संरचना बुनी गई है. साथ ही इस अमर कथा में सीता, लक्ष्मण, भरत, दशरथ जैसे दूसरे तमाम चरित्रों ने इस कथा को अमर बना दिया है.

पर लक्ष्मण की धर्मपत्नी उर्मिला के चरित्र को, इस महकता में कदाचित वह स्थान नहीं मिला है, जो इस कथा के दूसरे चरित्रों को मिला है, पर आप यह जानकर हैरान रह जाएंगे कि लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला 14 वर्षों तक सोई भी रहीं और जागकर उन्होंने सास-ससुर की सेवा के साथ दूसरी जिम्मेदारियों का निर्वहन भी किया!

आप कहेंगे कि यह कैसे मुमकिन है, तो आइए इस कथा के माध्यम से हम उर्मिला की महानता को समझने का प्रयत्न करते हैं.


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इस कथा में आगे चलें, उससे पहले आप यह जान लीजिए कि संपूर्ण रामायण महागाथा में रावण से भी शक्तिशाली अगर कोई खलनायक था, तो निस्संदेह वह मेघनाथ था.
समस्त संसार में शायद ही ऐसी कोई दिव्य शक्ति रही हो, जो उसके पास मौजूद न थी!

शेषनाग का अवतार होने के बावजूद लक्ष्मण को शक्ति बाण लगना और उससे पहले अशोक वाटिका में पवन - पुत्र हनुमान को बंदी बना लेने जैसे दुस्साहस सिर्फ मेघनाथ ही कर पाया था. 
लक्ष्मण को जब शक्ति बाण लगा, तब राम की सेना में हाहाकार मच गया और भगवान राम बिलखते नजर आए. कल्पना करना मुश्किल नहीं है कि मेघनाथ की तीर से मरणासन्न पड़े लक्ष्मण को अगर समय पर संजीवनी बूटी नहीं मिली होती, तब शायद रामायण की कथा कुछ और ही होती.

बहरहाल, मेघनाथ की शक्ति के बारे में यहां बताना इसलिए न्यायोचित है कि इतने महान और शक्तिशाली योद्धा का वध करने की शक्ति सिर्फ और सिर्फ लक्ष्मण में ही थी, और आप यह जानकर आश्चर्य नहीं कीजिए कि लक्ष्मण को यह शक्ति उनकी पत्नी उर्मिला के त्याग के कारण मिल सकी थी.

तात्पर्य स्पष्ट है कि किसी बड़े महल में लाख बेश कीमती पत्थर जड़े हों और उन पत्थरों की चमक उसकी शोभा बढ़ा रही हो, किंतु उसकी नींव् में पड़ी ईंट ही उस भवन की मजबूती का आधार होती है, और उर्मिला वास्तव में रामायण रुपी महागाथा की नींव की एक मजबूत ईंट थीं, जिसने रामायण रूपी महागाथा में असत्य पर सत्य की विजय में अपना महत्वपूर्ण योगदान सुनिश्चित किया था.



रामायण के उस प्रसंग से हम इस कथा को शुरू करते हैं, जब कैकयी के वरदान स्वरुप भगवान राम वन जाने को तैयार हुए!

भगवान राम के साथ सीता जी भी वन जाने का निश्चय कर चुकी थीं, तो दोनों की सेवा करने के लिए लक्ष्मण भी वन जाने को तत्पर हो गए थे. यह सारी स्थिति जानकर लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला भी अपने पति के साथ वन जाने को सज्ज हो गयीं, किंतु लक्ष्मण ने उन्हें यह कहकर रोक दिया कि वह अपने भैया राम और भाभी सीता की सेवा में इस कदर डूबे रहेंगे कि वह उनकी सुरक्षा नहीं कर पाएंगे, उनको समय नहीं दे पाएंगे.

साथ ही अयोध्या में रघुकुल परिवार का ध्यान रखने वाला, सास-श्वसुर की सेवा करने वाला भी कोई होना चाहिए!

उर्मिला के लिए अपनी पति की इच्छा आदेश थी, किंतु वह बड़ी धर्म संकट में आ गयीं कि कैसे अपने पति के बिना और बड़ी बहन सीता के बिना अयोध्या राजमहल की जिम्मेदारी संभाल पाएंगी?

तब उनकी बड़ी बहन और अयोध्या में उनकी जेठानी सीता ने उन्हें एक वरदान दिया, जो सीता के पास पहले से था. उस वरदान के अनुसार एक समय में 3 कार्य करने की शक्ति उर्मिला को प्राप्त हुई थी. यह वरदान उर्मिला को अपने कर्तव्य पालन की प्रेरणा दे सका. 

रामायण के बारे में जानने वाले मित्रों को यह पता ही होगा कि उर्मिला मिथिलापति जनकनंदिनी सीता की छोटी बहन थीं और सीता के विवाह के समय ही दशरथ और सुमित्रा के पुत्र लक्ष्मण को ब्याही गई थीं.

महान उर्मिला ने अपने त्याग-तपस्या से 14 वर्षों तक अपना कर्म निभाने में किसी प्रकार की चूक नहीं की, उनके अखंड समर्पण ने उन्हें रामायण की महान स्त्रियों में निस्संदेह रूप से ऊँचा स्थान दिया. 


महाभारत काल की यह कथा पढ़ें: एकलव्य चरितं


उधर लक्ष्मण अपने भैया और भाभी के साथ वन को प्रस्थान कर गए, और पहली रात में जब भगवान राम और सीता माता सो रहे थे, तब लक्ष्मण वन में पहरा दे रहे थे. कुछ पहर रात गुजर जाने के बाद लक्ष्मण को भी नींद आने लगी, किंतु अपनी तपस्या के बल पर निद्रा को वह दूर रखने की कोशिश कर रहे थे. 
यह अवस्था देखकर निद्रा की देवी परेशान हो गईं और वह लक्ष्मण के सामने प्रकट हुईं. उन्होंने लक्ष्मण से सोने की प्रार्थना की, तब लक्ष्मण ने अपने कर्तव्य का हवाला देते हुए निद्रा देवी से कहा कि वह उनसे तब तक दूर रहें, जब तक वह वापस अयोध्या नहीं पहुंच जाते.

एक तरह से यह प्रकृति के नियम के विरुद्ध था, किंतु निद्रा देवी ने लक्ष्मण को यह विकल्प दिया कि अगर उनके बदले कोई और उनकी नींद ग्रहण कर ले, तब वह उनसे 14 वर्षों के लिए दूर हो सकती हैं.
लक्ष्मण जी ने अपनी नींद अपनी पत्नी को देते हुए निद्रा देवी को उनके पास भेज दिया. उधर जब निद्रा देवी उर्मिला के पास पहुंची तो उर्मिला ने पति की यह आज्ञा भी स्वीकार कर ली, और वह 14 वर्षों के लिए पूर्ण रूप से सुषुप्त अवस्था में चली गईं.



परंतु पति की दूसरी आज्ञा का पालन भी उन्हें करना था, और यहां पर सीता माता के दिए वरदान से वह 14 वर्ष तक सोई नहीं और महल से संबंधित दायित्व का निर्वहन करती रहीं.

उनकी इस अखंड कठोर तपस्या से रावण पुत्र मेघनाथ अनजान था, और इसीलिए उसे अपनी ताकत पर बड़ा गुमान था. 

अति बलवान योद्धा मेघनाथ को यह वरदान प्राप्त था कि उसका वध सिर्फ वही व्यक्ति कर सकता है, जो 14 वर्षों से सोया ना हो. ऐसा होना एक तरह से असंभव था, किंतु अपनी पत्नी के त्याग के कारण लक्ष्मण जी ने 14 वर्षों से पलक तक नहीं झपकाई थी.

अत्याचारी योद्धा मेघनाथ का वध, अंततः लक्ष्मण जी के हाथों ही हुआ, और तभी मेघनाथ की अखंड पतिव्रता पत्नी सुलोचना रोते बिलखते युद्ध भूमि में आई थीं और उन्हें यह समझते देर न लगी कि उनसे भी महान पतिव्रता स्त्री उर्मिला के कारण लक्ष्मण, मेघनाथ पर भारी पड़े थे. 



बता दें कि सुलोचना को भी भारतीय पौराणिक इतिहास में महान स्त्रियों में शामिल किया जाता है और उसके सतीत्व के कारण ही मेघनाथ अजेय था, जिसने देवराज इंद्र को ही जीत लिया था.

पतिव्रता सुलोचना ने युद्धभूमि में ही राम की सेना को धिक्कारते हुए बोला था कि कोई ये ना समझे कि उसने मेघनाथ का वध करने में सफलता प्राप्त कर ली है, बल्कि पतिव्रता स्त्री उर्मिला के कारण ही मेरे पति 'मेघनाथ' का वध हुआ है!

धन्य थीं उर्मिला और धन्य था उनका सतीत्व!

इस कथा में आगे चलते हैं तो हम देखते हैं कि जब वनवास की अवधि समाप्त करके राम लक्ष्मण और सीता अयोध्या लौटे थे, तब भगवान राम का राजतिलक हुआ था, किंतु निद्रा देवी को लक्ष्मण ने यह वचन भी दिया था कि जब 14 वर्ष के उपरांत वह अयोध्या लौट कर आएंगे, तो वह अपनी नींद स्वयं भी पूरी करेंगे.
ऐसे में लक्ष्मण जी वन से वापस लौटने के बाद 14 वर्षों तक सोए रहे, और वह भगवान राम का राजतिलक नहीं देख सके थे.

बाद में लक्ष्मण के उर्मिला से अंगद और चन्द्रकेतु नाम के दो पुत्र तथा सोमदा नाम की एक पुत्री उत्पन्न हुई. अंगद ने अंगदीया पुरी तथा चन्द्रकेतु ने चन्द्रकांता पुरी की स्थापना की थी.



कहा जाता है कि महागाथाएं अमर होती हैं, और वह अमर हो भी क्यों ना?

आखिर इन महागाथाओं में लक्ष्मण जैसे त्याग और तपस्या की बात होती है, तो उर्मिला जैसी स्त्रियों का सतीत्व और त्याग भी इसमें शामिल होता है.
वह महागाथा भला अमर क्यों ना होगी?

आप उर्मिला के बारे में क्या सोचते हैं, उसके त्याग के बारे में क्या महसूस करते हैं, अपने विचार अवश्य व्यक्त करें.




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