विकर्ण चरितं

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विकर्ण चरितं

विकर्ण: नारी सम्मान के लिए खड़ा होने वाला अकेला 'कौरव'

Vikarna, The Only Kaurava Warrior, Stood for Women's Respect (Pic: storypick.com)

द्रौपदी के चीर हरण ने इस विश्व को यह बात बखूबी समझाई कि नारी के 'अपमान' में अपमान करने वाले सहित, यह सारा ब्रह्माण्ड जल कर ख़ाक हो जायेगा!

अट्ठारह अक्षौहिणी सेनाओं में गिनती के सैनिक ही बच सके थे, बाकी सब 'ख़ाक' ही तो हो गए थे?

बहरहाल, धर्म-अधर्म के इस युद्ध में नारी अपमान ने सम्पूर्ण कौरवों का विनाश कर दिया और उन्हें सदा-सदा के लिए कलंकित भी कर दिया. 

पर उन्हीं कौरवों में एक ऐसा योद्धा भी था, जो कीचड़ में कमल की भांति चमकता था और उसने बगैर किसी की परवाह किये, द्रौपदी चीर हरण का पुरजोर विरोध किया था!

जब सभा में भीष्म पितामह, आचार्य द्रोणाचार्य, कुलगुरु कृपाचार्य, महाराज धृतराष्ट्र, दानवीर कर्ण जैसे योद्धा अपने कर्तव्य को भूलकर चुप रहे, कुछ ने विरोध करना तो दूर खुद नारी का अपमान भी किया, वैसी दुष्टों और कायरों से भरी सभा में अपने ज्येष्ठ भ्राता दुर्योधन का विरोध करना सहज न था!

परन्तु द्रौपदी के चीर हरण में अपने भाईयों का साथ नहीं देकर उनके खिलाफ खड़ा होने वाला योद्धा कोई और नहीं, स्वयं विकर्ण ही था.

विकर्ण गांधारी पुत्र होने के बावजूद यही चाहता था कि दुर्योधन ही राजा बने, किन्तु वह उसके नीच कार्य में कतई सम्मिलित नहीं होना चाहता था, इसीलिए उसने भरी सभा में खड़ा होकर द्रौपदी चीर-हरण का विरोध किया

विकर्ण के चरित्र की कुछ और बातें काफी प्रभावित करने वाली हैं. जैसे कहा जाता है कि वह अर्जुन के समान धनुर्धर था और गुरु द्रोणाचार्य को उस पर काफी विश्वास भी था.


धर्म युक्त व्यवहार होने के कारण विकर्ण का मन एकाग्र रहता था और वह अर्जुन की ही भांति एक अच्छा धनुर्धर भी था. गुरू द्रोण से उसने धनुर्विद्या की एक-एक बारीकियां सीखीं. 

कहते हैं अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा समाप्ति के उपरांत, आचार्य द्रोण ने जब कठिन गुरू-दक्षिणा मांगी तो सर्वप्रथम दुर्योधन ने पांचाल राज्य पर आक्रमण की अनुमति मांगी. दुर्योधन पर तो नहीं, किन्तु आचार्य द्रोण को विकर्ण पर ज़रूर कुछ विश्वास था.

परन्तु दुर्योधन के अहंकार ने सही युद्ध नीति नहीं अपनाई और अपने धनुर्धर भाई विकर्ण का उसने सही प्रयोग नहीं किया. ज़ाहिर तौर पर एक से बढ़कर एक बड़ा योद्धा होने के बावजूद कौरव द्रुपद की सेना से परास्त हो गए, जबकि पांडवों ने बेहतर युद्ध नीति से द्रुपद की सेना को न केवल परास्त किया, बल्कि उन्होंने द्रुपद को बंदी भी बना डाला. 

कहते हैं अर्जुन को अपनी विलक्षण धनुष प्रतिभा दिखलाने का पूरा अवसर मिला था, जबकि दुर्योधन ने विकर्ण की धर्म युक्त बातों के कारण उस पर सम्पूर्ण विश्वास ही नहीं किया, इसलिए विकर्ण को अपनी प्रतिभा दर्शाने का अवसर ही न मिल सका. 

हम सभी जानते ही हैं कि दुर्योधन का अति प्रिय भाई दुशासन था, जो उसके आदेश को आँख मूद कर मानता था, बेशक वह अधर्म ही क्यों न हो!

संभवतः इसीलिए कहा जाता है कि प्रतिभा तभी निखरती है, जब उसे निखरने का ठीक अवसर प्राप्त होता है.

परन्तु, विकर्ण का धर्म कभी झुका नहीं और इसी धर्म की खातिर आज भी हम उसका नाम आदर सहित ले रहे हैं. 


तब पांडव कपटी शकुनी के हाथों जुए में अपना राजपाठ, अपने भाई, और अपनी धर्मपत्नी द्रौपदी को भी हार गए थे. 

दुर्योधन ने प्रतिशोध के लिए राजदरबार में ही द्रौपदी को निर्वस्त्र करने का आदेश दे डाला!
पांडव पहले ही दास बन चुके थे, इसलिए उनके विरोध का कोई प्रश्न ही न था, भीष्म, द्रोण, कृप सभी ने अपने सिर झुका लिए. 

परन्तु राजदरबार में इस कुकृत्य का विरोध करने सबसे पहले महामंत्री विदुर खड़े हुए और उन्होंने दुर्योधन को 'विनाश' की चेतावनी दे डाली, किन्तु दुर्योधन ने उन्हें चुप करा दिया. दुर्योधन सम्पूर्ण रूप से हठधर्मिता और अधर्म पर उतारू था, इसलिए उसने महामंत्री की न्यायसंगत बातों को दुत्कार दिया.

तब कौरवों के बीच से ही दुर्योधन के विरोध में एक मजबूत स्वर सुनाई दिया और यह यह स्वर विकर्ण का था! 

विकर्ण ने बेहद विनम्रता से अपने ज्येष्ठ भ्राता दुर्योधन से कहा कि जुए में योद्धा का निशस्त्र होना, सब हार जाना एवं  किसी नारी के निर्वस्त्र होने, वह भी एक कुरुवंश की कुलवधू, में बहुत फर्क है, इसलिए दुर्योधन यह न करे!

साथ ही विकर्ण ने पितामह भीष्‍म, महाराज धृतराष्‍ट्र, महात्मा विदुर, आचार्य द्रोणा एवं कृपाचार्य को भी साक्षी बनाकर जुए रुपी खेल का अंत करने का आग्रह किया. 

एक पल के लिए राजदरबार में सन्नाटा छा गया!

विकर्ण कहता रहा कि - 

राजाओं के चार दुर्गुण शास्त्रों में वर्णित हैं, जो क्रमशः शिकार, मदिरापान, जुआ व विषय भोग में लिप्त होना है. इनके प्रभाव में आकर मनुष्‍य, अधर्म का बर्ताव करने लगता है.

आज, यहां जो हो रहा है वह इन दुर्व्‍यसनों का जीवंत परिणाम है.

विकर्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को भी जुए का व्यसनी बता डाला, तो द्रौपदी को दांव पर लगाने की बात सबसे पहलेे शकुनि द्वारा उठाने पर उसे भी धिक्कारा!

Draupadi Chir Haran (Pic: iskconnews.org)


विकर्ण की नीतियुक्त बातें सुनकर दुर्योधन को भी कुछ कहते न बना और वह किंकर्तव्यविमूढ़ सा हो गया!

ठीक तभी कर्ण अपनी गद्दी से उठा और उसने कुतर्क देते हुए कहा कि 

"इस संसार में कई वस्‍तुएँ विपरीत परिणाम देने वाली देखी जाती हैं. जैसे अरणि से उत्‍पन्‍न हुई अग्नि, उसी को जला देती है. कर्ण ने आगे कहा कि रोग शरीर में ही उत्पन्न होता है, फिर भी वह शरीर को ही हानि पहुंचाता है."

विकर्ण! क्या तुम भी इसी प्रकार अपने ही पक्ष को नुक्सान पहुँचाना चाहते हो?

महाभारत काल की यह कथा पढ़ें: एकलव्य चरितं

कर्ण ने विकर्ण को बालक बताते हुए यह कुतर्क दिया कि राजदरबार में भीष्म, द्रोण जैसे लोग मौन हैं, तो तुम क्यों मूर्खता दिखला कर अपनी हानि कर रहे हो?

कर्ण ने और भी कई कुतर्क दिए और द्रौपदी को वेश्या तक कह डाला!

विकर्ण ने तब क्रोधित होकर कर्ण को याद दिलाया और कहा कि 'रावण ने भी अहंकार और काम वासना के वशीभूत होकर माता सीता का अपमान किया था और अंत में उसके समस्त कुल का ही नाश हो गया था. अपने भाई को न्यायसंगत तर्क देकर अपने कुल की रक्षा का कर्तव्य ही यह विकर्ण निभा रहा है!

परन्तु, तब तक दुर्योधन किंकर्तव्यविमूढ़ता की स्थिति से बाहर आ चुका था और कर्ण का साथ मिलते ही उसका अधर्म हमेशा ही बढ़ जाता था. उसने विकर्ण को न केवल चुप कराया, बल्कि उसको तमाम अपशब्द भी कहे!

उसके तत्काल बाद दुशासन, दुर्योधन के आदेशानुसार द्रौपदी को बालों से घसीट कर राजदरबार में लाया और उसके बाद महाभारत के युद्ध में सभी कौरव नरकवासी बने!

परन्तु, विकर्ण अपना धर्म निभा कर हमेशा के लिए इतिहास में अपना नाम अमर कर गया!

कहते हैं युद्ध में वह अपना कर्तव्य समझकर दुर्योधन की ओर से ही लड़ा और वीरगति को प्राप्त हुआ. हालाँकि भीम के मन में विकर्ण के प्रति कोई द्वेषभाव नहीं था, बल्कि सम्मान ही था. भीम नहीं चाहते थे कि धर्म पर चलने वाले एकमात्र कौरव का वध किया जाए.

वह उसे जीवित छोड़ना चाहते थे, किन्तु विकर्ण ने अपने भाई दुर्योधन के आदेश के अनुसार भीम से वीरता से युद्ध किया और वीरगति को प्राप्त हुआ.

अपने अंत समय तक धर्म को निभाने वाले एकमात्र कौरव योद्धा को इतिहास सदैव आदर देता रहेगा.

- मिथिलेश कुमार सिंह, नई दिल्ली.






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