Disha Vastu |
पृथ्वी पर मुख्य रूप से चार दिशाएं मौजूद हैं, सामान्यतः इसका ज्ञान हम सभी को होता है। हालाँकि वेदों और पुराणों में 10 दिशाओं का वर्णन किया गया है। लेकिन वास्तु शास्त्र की बात करें तो यहाँ मुख्य रूप से 8 दिशाओं का वर्णन है। वास्तुशास्त्र में इन आठों दिशाओं का अलग - अलग महत्व बताया गया है जिसको समझना सभी के लिए बहुत आवश्यक है। आईये जानते हैं इन दिशाओं के बारे में....
पूर्व दिशा
पूर्व दिशा के राजा भगवान इंद्र को माना जाता है और इस दिशा से सूर्योदय होता है।
पश्चिम दिशा
इस दिशा का राजा वरुण देव को माना जाता है। पश्चिम दिशा में सूर्य अस्त होते हैं।
उत्तर दिशा
उत्तर दिशा के राजा धन के देवता कुबेर हैं।
दक्षिण दिशा
दक्षिण दिशा का राजा यम देवता को माना जाता है।
उत्तर पूर्व दिशा
उत्तर पूर्व दिशा को 'ईशान कोण' कहा जाता है, और इस दिशा के राजा स्वयं भगवान शंकर हैं।
उत्तर पश्चिम दिशा
उत्तर पश्चिम दिशा उत्तर और पश्चिम दिशा के कोने से बना होता है, इसलिए इसे 'वायव्य कोण' भी कहा जाता है और इस दिशा का राजा पवन देव को माना गया है।
दक्षिण पश्चिम दिशा
दक्षिण दिशा को 'नेत्रत्य दिशा' भी कहा जाता है और यह दिशा दक्षिण और पश्चिम के कोण पर बनती है।
दक्षिण पूर्व दिशा
दक्षिण पूर्व दिशा को 'आग्नेय कोण' कहते हैं और इस दिशा का देवता अग्नि देव को माना गया है।
इसके अलावा भी दो दिशाएं मानी गई हैं, जिसमें आकाश और पाताल शामिल हैं। आकाश के देवता ब्रह्मा जी हैं और पाताल का देवता शेषनाग को माना गया है।
वास्तु - शास्त्र में वर्णित 8 दिशाओं के अनुसार आप अपने घर को किस प्रकार बनाये ताकि इसमें कोई दोष न हो।
भोजन घर
भोजन मनुष्य के शरीर के लिए सबसे महत्वपूर्ण तत्व है और भोजन ग्रहण करने का उचित स्थान हर घर में निश्चित होता है। ऐसे में आप जब भी भोजन करें तो यह बात ध्यान रखें कि भोजन की थाली हमेशा दक्षिण पूर्व की दिशा में होनी चाहिए और आपका मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
बेडरूम कहाँ बनायें
आपने अक्सर सुना होगा कि दक्षिण दिशा में पैर करके नहीं सोना चाहिए। वहीं, वास्तु के अनुसार भी दक्षिण दिशा में पैर करके सोना नकारात्मक माना जाता है और इससे सौभाग्य में कमी आती है। सोने का सबसे सही तरीका यह है कि आप अपने बिस्तर को दक्षिण और उत्तर की दिशा में ही रखें और सोते हुए आपका चेहरा दक्षिण दिशा में होना चाहिए और पैर उत्तर दिशा में होना चाहिए। इस दिशा में सोने से अच्छी और गहरी नींद भी आती है तथा डरावने सपने भी नहीं आते हैं।
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पूजा घर
घर में मंदिर की स्थापना करते हुए दिशाओं का ज्ञान होना बेहद आवश्यक है। इसीलिए, जब तक सही दिशा में भगवान की मूर्ति स्थापित नहीं होगी तो पूजा का संपूर्ण लाभ आपको नहीं प्राप्त होगा। इसीलिए मंदिर का मुख कुछ इस प्रकार रहे कि आप अपना चेहरा उत्तर पूर्व या उत्तर पश्चिम की ओर करके बैठें और भगवान का मुख उत्तर पूर्व का कोना होना चाहिए। ईशान कोण में भगवान की मूर्ति को स्थापित करें तब जाकर आपको पूजा का संपूर्ण लाभ प्राप्त होगा।
पानी का स्थान
भवन के निर्माण के समय ही जल - बहाव की दिशा निश्चित करना बेहद आवश्यक है। वास्तु - शास्त्र के अनुसार जल, उत्तर पूर्व दिशा में स्थापित किया जाना चाहिए। हालांकि, अब घरों में संख्या
वाटर टैंक बनने लगे हैं। इसलिए, छत पर वाटर टैंक को स्थापित करते हुए उत्तर पूर्व दिशा का चुनाव करें और यहीं से पूरे घर में पानी की सप्लाई हो तो वास्तु के अनुसार शुभ माना जाता है।
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