Presented by: Team Article Pedia
Published on 30 Jan 2023
गुरु तेग बहादुर: जो कश्मीरी पंडितों की रक्षा के लिए शहीद हो गए
सिखों के नौवें गुरु, गुरु तेग बहादुर साहिब, जिन्हें 'हिंद की चादर' भी कहा जाता है, मानवता की रक्षा के लिए हंसते-हंसते कुर्बान हो गए.
सभी जानते हैं, कि कैसे गुरु तेग बहादुर साहिब जी को औरंगजेब के आदेश पर चांदनी चौक में शहीद कर दिया गया था.
उन्होंने औरंगजेब का धर्म अपनाने से इंकार कर दिया था.
कैसे शुरू हुई गुरु जी की शहादत की कहानी और कैसे हुआ अंत. आइए, इस लेख के माध्यम से जानने की कोशिश करते हैं –
तलवार से पड़ा नाम 'तेग' बहादुर
पंजाब के अमृतसर में जन्मे गुरु तेग बहादुर जी के बचपन का नाम त्यागमल था. उनके पिता का नाम गुरु हरगोबिंद सिंह था.
बाल्यावस्था से ही संत स्वरूप गहन विचारवान, उदार चित्त वाले तेग बहादुर जी मात्र 14 साल की उम्र में बड़ी बहादुरी के साथ मुगलों के खिलाफ लड़े.
इस युद्ध में जब वह अपने पिता जी के साथ उतरे, तो उन्होंने अपनी तलवार से कई करतब दिखाए और तलवार को इस तरीके से चलाया जैसे कोई महान योद्धा चलाता है.
उनकी इस वीरता और बहादुरी से प्रसन्न होकर गुरु जी के पिता ने उनका नाम त्याग मल से तेग (तलवार) बहादुर रख दिया.
इस दौरान उन्होंने गुरुबाणी के साथ-साथ धर्मग्रंथों, शस्त्रों और घुड़सवारी की शिक्षा भी प्राप्त की.
आगे चलकर उन्हें गुरुगद्दी सौंपी गई.
विवाह के बाद उनके घर एक बेटे ने जन्म लिया, जिसे बाला प्रीतम नाम दिया गया.
अपने पिता और दादा की तरह से ये भी बहादुर थे, इस कारण बहादुरी को देखते हुए इनका नाम भी बदलकर गुरु गोबिंद सिंह रख दिया गया.
औरंगजेब का कट्टर आदेश
प्रोफेसर साहिब सिंह 'जीवन वृतांत: श्री गुरु तेग बहादुर साहिब जी' में लिखते हैं कि इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब किसी भी धर्म को अपने से ऊपर नहीं देखना चाहता था.
वह अक्सर अपने दरबार में एक विद्वान पंडित को बुलाया करता था, जो उसे गीता के श्लोक पढ़कर सुनाते थे. लेकिन पंडित बीच-बीच में कुछ श्लोक छोड़ देता था.
वह जो श्लोक छोड़ता था, उसमें हिंदू धर्म की महानता के बारे में लिखा हुआ था.
चूंकि औरंगजेब किसी धर्म को अपने से बढ़कर नहीं देखना चाहता था, इसलिए पंडित वह श्लोक छोड़ दिया करता था.
एक दिन पंडित बीमार हो गया और औरंगजेब को गीता सुनाने के लिए उसने अपने बेटे को भेज दिया, लेकिन उसे उन श्लोकों के बारे में बताना भूल गया जिनका अर्थ वहां नहीं करना था.
उसके बेटे ने जाकर औरंगजेब को पूरी गीता का अर्थ सुना दिया, जिससे औरंगजेब को यह स्पष्ट हो गया कि हर धर्म अपने आपमें महान है.
यह सुनकर उसके सलाहकारों ने उसे सलाह दी कि वह सबको इस्लाम धारण करवा दे.
औरंगजेब को यह बात समझ में आ गई और उसने सबको इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दे दिया.
औरंगजेब ने लोगों के सामने दो शर्तें रखीं कि या तो वह इस्लाम कबूल कर लें या फिर मरने के लिए तैयार हो जाएं.
जब गुरु जी की शरण में पहुंचे कश्मीरी पंडित
प्रोफेसर साहिब सिंह अपनी किताब में आगे लिखते हैं कि पूरे उत्तर और पूर्वी भारत में औरंगजेब के हुक्म से धर्म परिवर्तन की लहर चल पड़ी थी.
उस वक्त कश्मीर में बेहद विद्वान पंडित रहते थे. एक तरह से यह कहा जा सकता था कि कश्मीर पंडितों का गढ़ था.
उन दिनों औरंगजेब की तरफ से शेर अफगान खां कश्मीर का सूबेदार हुआ करता था. औरंगजेब के आदेश के अनुसार उसने भी तलवार के दम पर कश्मीरी पंडितों को मुसलमान बनाना शुरू कर दिया.
इससे पहले कश्मीरी पंडितों ने गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु तेग बहादुर साहिब जी के बारे में यह बातें सुन रखी थीं कि वह लोगों की मदद करते हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनाते हैं.
इसलिए उन्होंने सोचा कि क्यों न मुगलों के आगे अपना सिर झुकाने से बेहतर वह गुरु तेग बहादुर साहिब जी से जाकर मिलें.
ऐसे में कुछ विद्वान पंडितों का समूह गुरु जी से मिलने के लिए आनंदपुर साहिब पहुंचा और इस समस्या पर गुरु जी के साथ संवाद किया.
उन्होंने गुरु जी से कहा कि इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए उन पर दबाव बनाया जा रहा है और न करने वालों को तरह-तरह की यातनाएं दी जा रही हैं.
हमारी बहू-बेटियों की इज्जत को खतरा है. जहां से हम पानी भरते हैं, वहां हड्डियां फेंकी जाती है.
हमें बुरी तरह से प्रताड़ित किया जा रहा है और मारा जा रहा है. कृपया आप हमारे धर्म को बचाइए.
गुरु तेग बहादुर जी का औरंगजेब को जवाब
जब कश्मीरी पंडित गुरु जी को अपनी पीड़ा सुना रहे थे, तो गुरु तेग बहादुर साहिब ने कहा कि कमजोरों में जान और दिलेरी डालने के लिए यह जरूरी है कि इस धर्म परिवर्तन को रोकने के लिए अपना शीश औरंगजेब को पेश किया जाए.
यह सब बातें पास खड़े आठ वर्षीय गोबिंद सिंह जी सुन रहे थे.
वह पिता जी के कुर्बानी वाले वाक्य को सुनकर वह जरा भी न घबराए और उनके इस फैसले का समर्थन किया.
इस बात को सुनकर वहां मौजूद कश्मीरी पंडितों और अन्य लोगों ने कहा कि अगर आपके पिता जी बलिदान दे देंगे तो आप यतीम हो जाएंगे और आपकी मां विधवा हो जाएंगी.
बालक गोबिंद सिंह जी ने कहा कि अगर मेरे अकेले के यतीम होने से लाखों लोग यतीम होने से बच सकते हैं और अकेले मेरी मां के विधवा होने से लाखों मां विधवा होने से बच सकती हैं, तो मुझे यह स्वीकार है.
यह सुन कर गुरु तेग बहादुर ने पंडितों से कहा कि जाकर औरंगजेब से कह दो, अगर गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धारण कर लिया, तो हम भी कर लेंगे और अगर तुम उनसे इस्लाम धारण नहीं करा पाए तो हम भी इस्लाम धारण नहीं करेंगे.
गुरु जी का जवाब औरंगजेब तक पहुंचा दिया गया और उसने इस बात को स्वीकार कर लिया.
गुरु तेग बहादुर साहिब की गिरफ्तारी
कश्मीरी पंडितों की बात सुनने के बाद गुरु जी अपने पांच खास सेवक भाई मती दास, भाई दयाला, भाई गुरदित्ता, भाई ऊदा और भाई जैता जी के साथ आनंदपुर साहिब से चल पड़े.
बीच-बीच में जहां कहीं उन्हें लोग पानी से परेशान दिखे, उन्होंने उनके लिए कुएं खोदे और बावलियां बनाईं.
उनकी एक-एक पल की खबर औरंगजेब तक पहुंच रही थी.
गुरु तेग बहादुर साहिब के निडर औरगंजेब के पास आने और लोगों की मदद करने की बात से औरंगजेब विचलित हो उठा.
और उसने गुरु तेग बहादुर और उनके साथियों को तुरंत गिरफ्तार करने का फरमान जारी कर दिया.
औरंगजेब ने कहा कि उन्हें मुसलमान बनाने के लिए यतन शुरू कर दिए जाएं.
औरंगजेब के आदेश पर पांचों सिखों सहित गुरु जी को कैद कर दिल्ली लाया गया. औरंगजेब के हाकमों ने गुरु तेग बहादुर साहिब को मुसलमान बनाने के लिए कई तरह के लालच दिए और भयानक मौत देने की बात कहकर डराने की कोशिश की.
बावजूद इसके गुरु तेग बहादुर साहिब जी के दिमाग में केवल एक ही बात थी कि अपना शीश कलम करके कश्मीरी पंडितों को बचाया जाए और कमजोर लोगों में हिम्मत भरी जाए.
...और चांदनी चौक पर हो गए शहीद
जब गुरु जी ने धर्म परिवर्तन करने से इंकार कर दिया, तो औरंगजेब ने दूसरा हुक्म जारी किया कि गुरु तेग बहादुर का कत्ल कर दिया जाए. और उनके जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर शहर के चारों ओर लटका दिए जाएं.
गुरु जी को डराने के लिए पहले उनके सामने भाई मतिदास जी को जिंदा आरे से चीर दिया गया और फिर भाई दियाला को उबलते पानी की देग में डालकर शहीद कर दिया गया.
इस जुल्म के बाद भी गुरु जी घबराए नहीं और अंत में 11 नवंबर 1675 को गुरु जी को चांदनी चौक में तलवार से शहीद कर दिया गया.
आज इसी जगह पर गुरुद्वारा शीशगंज साहिब मौजूद है.
औरंगजेब का आदेश था कि इनका अंतिम संस्कार न किया जाए. हालांकि सिपाहियों की आंख में धूल झोंककर भाई जैता जी उनके शीश को उठाकर घोड़े पर सवार होकर आनंदपुर साहिब की ओर चल पड़े.
गुरु जी का शीश गायब हुआ देख सिपाहियों ने उनके धड़ के पास पहरा लगा लिया.
ऐसे में लक्खी नाम के एक व्यापारी ने गुरु जी के धड़ को उठाया और अपने गांव रकाबगंज ले गया.
वहां ले जाने पर उसने गुरु जी के धड़ को अपने घर में रखकर पूरे घर को आग लगा दी. इस तरह गुरु जी का अंतिम संस्कार किया गया.
Guru Tegh Bahadur Sahib: The Martyrdom, The Tale of Guru Tegh Bahadur Sahib: Who Martyr to Protect Kashmiri Pandits, Hindi Article
👉 Be a Journalist - Be an experienced Writer. Now! click to know more...
How to be a writer, Know all details here |
👉 सफल पत्रकार एवं अनुभवी लेखक बनने से जुड़ी जानकारी लेने के लिए इस पृष्ठ पर जायें.
Liked this?
We also provide the following services:
Are you a writer? Join Article Pedia Network...
Article Pedia Community के Whatsapp Group से यहाँ क्लिक करके जुड़ें, और ऐसे लेखों की Notification पाएं.
👉Startup, टेक्नोलॉजी, Business, इतिहास, Mythology, कानून, Parenting, सिक्यूरिटी, लाइफ हैक सहित भिन्न विषयों पर... English, हिंदी, தமிழ் (Tamil), मराठी (Marathi), বাংলা (Bangla) आदि भाषाओं में!
Disclaimer: The author himself is responsible for the article/views. Readers should use their discretion/ wisdom after reading any article. Article Pedia on its part follows the best editorial guidelines. Your suggestions are welcome for their betterment. You can WhatsApp us your suggestions on 99900 89080.
क्या आपको यह लेख पसंद आया ? अगर हां ! तो ऐसे ही यूनिक कंटेंट अपनी वेबसाइट / ऐप या दूसरे प्लेटफॉर्म हेतु तैयार करने के लिए हमसे संपर्क करें !
0 Comments