पर्यावरण संरक्षण

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पर्यावरण संरक्षण

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लेखक / कवि: प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम" (Praful Singh)
Published on 5 Jun 2021 (Update: 5 Jun 2021, 2:29 PM IST)

तप रहा है बदन तो ढूंढ रहे हो दरख़्त का साया
भूल गए जाड़े में तुमने ही तो शजर को जलाया

अब कहाँ से मिलेंगे तुम्हें ताजी फल और सब्जियाँ
अरे दरख्तों को काटकर तुमने ही तो अपना घर सजाया

कहते हो आज दुनियाँ में साफ नीर भी हासिल नहीं अब
अरे भूल गए नदियों में तुमने ही तो कल जहर को बहाया 

अब दर्द होता है दूषित हवा जब आंखों में चुभती है तुम्हारे
कहाँ था हृदय उस वक़्त, जब नन्हे नन्हे पौधों को काट गिराया

जरा सी आंच गर तुम्हारे परिवार पर आए तो तांडव कर बैठते हो
कभी पूछा है उस पेड़ से जिसकी नई नई खिली कली को मार गिराया

आज महामारी में छुपने को गाँव ढूंढ रहे हो तुम
शायद भूल गए कल तुमने ही शहर बसाने में गाँवों को उजड़वाया ।। 

जिस चिंतन में आँवला नवमी, वट सावित्री व्रत, पीपल पूर्णिमा, तुलसी विवाह, गोपाष्टमी आदि बहुत से उत्सव अनजाने ही पर्यावरण संरक्षण के आसपास घूमते हों, जहाँ अन्न को जूठा नहीं छोड़ा जाना सिखाया जाता हो, जहाँ कपड़ा फटने पर भी उसके अन्य उपयोग किये जाते थे वहाँ पर्यावरण के लिए समस्या खड़ी हो रही है।


समस्या ये है कि हम सब कुछ जानते-समझते हुए भी पश्चिम का अंधानुकरण कर रहे हैं। पर्यावरण संरक्षण कोई केवल एक दिवसीय कार्यक्रम नहीं है और ना ही होना चाहिए।

कपड़ा उद्योग (फैशन इंडस्ट्री) सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में तीसरे क्रम पर है। ज्यादा कुछ नहीं तो हम सीमित कपड़े पहनें और कपडों का पूर्ण उपयोग करेंगे तो भी पर्यावरण की सेवा कर सकेंगे। इस कपड़ा उद्योग में यदि ऑनलाइन खरीदारी के कारण उपयोग में लिए जा रहे प्लास्टिक को जोड़ लें तो पता नहीं इसका प्रदूषण कहाँ पहुचेगा..!

ये एक उदाहरण मात्र है सब अपना योगदान अपनी-अपनी तरह से दे सकते हैं। जूठा नहीं छोड़कर भी आप अपना योगदान दे सकते हैं। निकट की दूरी पर पैदल या सायकल से जाकर भी आप ये कर सकते हैं। प्लास्टिक का न्यूनतम उपयोग भी एक उदाहरण है। वातानुकूलन (AC) का न्यूनतम उपयोग भी एक अन्य विकल्प है।


सम्भवतः सबको पता है कि कोरोना ने पर्यावरण पर एक अप्रत्याशित प्रभाव डाला है। जिसमें PPE किट एवं मास्क ये दो महत्वपूर्ण है और इनका निपटारा बहुत ही दुष्कर कार्य बन चुका है..!

आवश्यकता इस बात की है कि पर्यावरण संरक्षण को समग्र और समेकित रूप से वर्षभर किए जाने वाले प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए ना कि एकदिवसीय फोटो सेशन के रूप में..

आओ हम सभी एक संकल्प लें, कि एक-एक नन्हा पौधा लगाकर पुनः पर्यावरण  को  पहले जैसे संरक्षित करें। पर्यावरण संपूर्ण सृष्टि का परिलक्षण कर उसमें प्राण फूंकता है। तो आइए हम सभी भी अपने दायित्व का निर्वहन करें। आप समस्त स्वजनों को पर्यावरण की अशेष मंगलकामनाएँ। 

(युवा लेखक: प्रफुल्ल सिंह "बेचैन कलम", लखनऊ, उत्तर प्रदेश)



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