गुणतंत्र पर आधारित हमारी गणतांत्रिक प्रणाली

Fixed Menu (yes/no)

गुणतंत्र पर आधारित हमारी गणतांत्रिक प्रणाली

आर्टिकल पीडिया ऐप इंस्टाल करें व 'काम का कंटेंट ' पढ़ें
https://play.google.com/store/apps/details?id=in.articlepedia

देश आज अपने गणतंत्र होने की वर्षगांठ मना रहा है। 

हमारे संविधान निर्माताओं, नीति निर्धारकों, स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों ने देश के लिए जो सपने देखे, उनकी पूर्ति करने का कार्य फलीभूत हुआ था आज के दिन। देश को कल्याणकारी लोकतांत्रिक व्यवस्था घोषित किया गया, जिसका अर्थ है, वह व्यवस्था जो जनता द्वारा चुनी गई, जनता द्वारा ही संचालित और जनसाधारण के कल्याण के लिए चलाई जाए। 


स्वतंत्रता प्राप्ति के इन सात दशकों से अधिक के कार्यकाल के परिणामों पर दृष्टिपात किया जाए तो कमोबेश यह व्यवस्था न्यूनाधिक सफल होती दिखाई भी दे रही है। इस अवधि में आम आदमी का जीवन स्तर ऊंचा हुआ है, सुख-सुविधा के साधन बढ़े, शिक्षा व रोजगार के अवसर बढ़े, साक्षरता दर में आशातीत सुधार हुआ, जीवन दर में सुधार हुआ, स्वास्थ्यांक सुधरा और कुल मिला कर आम देशवासियों का जीवन स्तर सुधरा है। हमारे लिए यह भी गौरव की बात है कि कल्याणकारी राज्य की अवधारणा चाहे दुनिया के लिए नई हो, परंतु इसकी जड़ें हमारी संस्कृति में पहले से ही विद्यमान रही हैं। 
अतीत का अध्ययन करें तो पाएंगे कि चाहे हमारी राज्य व्यवस्था राजतांत्रिक हो, परंतु उसका उद्देश्य गणतांत्रिक और जनकल्याण ही रहा है। राजा को ईश्वर का रूप बताया गया, परंतु उसका धर्म प्रजापालन ही माना गया है। आदर्श गणतंत्र की जो व्याख्या देवर्षि नारद जी करते हैं, वह किसी भी आधुनिक लोकतांत्रिक व गणतंत्र व्यवस्था के लिए आदर्श बन सकती है। 

धर्मराज युधिष्ठिर के सिंहासनरोहण के दौरान उन्होंने पांडव श्रेष्ठ से ऐसे प्रश्न पूछे जो आज आधुनिक युग में भी कल्याणकारी लोकतांत्रिक व्यवस्था के आधार बने हुए हैं।

महाभारत सभा पर्व के 'लोकपाल सभाख्यान पर्व के अंतर्गत अध्याय 5 के अनुसार राजा के उन सभी दायित्वों का वर्णन है, जो लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत राज्याध्यक्षों के वर्तमान युग में भी निर्धारित किये गये हैं। 
युधिष्ठिर से नारद जी बोले- राजन! 
क्या तुम्हारा धन तुम्हारे राजकार्यों व निजी कार्यों के लिए पूरा पड़ जाता है? 
क्या तुम प्रजा के प्रति अपने पिता-पितामहों द्वारा व्यवहार में लायी हुई धर्मार्थयुक्त उत्तम एवं उदार वृत्ति का व्यवहार करते हो? 
क्या तुमने दूसरे राज्यों से होने वाले हमलों व राज्य के अंदर समाज कंटकों (अपराधियों) से निपटने के लिए पर्याप्त सैनिक तैनात कर रखे हैं? 
दुश्मन राज्यों पर तुम्हारी नजर है या नहीं? 
तुम असमय में ही निद्रा के वशीभूत तो नहीं होते? 
तुम्हारे राज्य के किसान-मजदूर आदि श्रमजीवी मनुष्य तुमसे अज्ञात तो नहीं हैं? क्योंकि महान अभ्युदय या उन्नति में उन सब का स्नेहपूर्ण सहयोग ही कारण है। 
क्या तुम्हारे सभी दुर्ग धन-धान्य, अस्त्र-शस्त्र, जल, यन्त्र, शिल्पी और धनुर्धर सैनिकों से भरे-पूरे रहते हैं ?


भरत श्रेष्ठ! कठोर दण्ड के द्वारा तुम प्रजाजनों को अत्यन्त उद्वेग में तो नहीं डाल देते? 
मन्त्री लोग तुम्हारे नियमों का न्यायपूर्वक पालन करते व करवाते हैं न? 
तुम अपने आश्रित कुटुम्ब के लोगों, गुरुजनों, बड़े-बूढ़ों, व्यापारियों, शिल्पियों तथा दीन-दुखियों को धनधान्य देकर उन पर सदा अनुग्रह करते रहते हो न? 
तुमने ऐसे लोगों को तो अपने कामों पर नहीं लगा रखा है, जो लोभी, चोर, शत्रु अथवा व्यावहारिक अनुभव से शून्य हों? 
चोरों, लोभियों, राजकुमारों या राजकुल की स्त्रियों द्वारा अथवा स्वयं तुमसे ही तुम्हारे राष्ट्र को पीड़ा तो नहीं पहुँच रही है? 
क्या तुम्हारे राज्य के किसान संतुष्ट हैं? 
जल से भरे हुए बड़े-बड़े तालाब बनवाये गये हैं? 
केवल वर्षा के पानी के भरोसे ही तो खेती नहीं होती है? 
किसान का अन्न या बीज तो नष्ट नहीं होता? 
तुम किसान पर अनुग्रह करके उसे एक रूपया सैकड़े ब्याज पर ऋण देते हो? 

राजन! क्या तुम्हारे जनपद के प्रत्येक गाँव में शूरवीर, बुद्धिमान और कार्य कुशल पाँच-पाँच पंच मिल कर सुचारू रूप से जनहित के कार्य करते हुए सबका कल्याण करते हैं? 
क्या नगरों की रक्षा के लिये गाँवों को भी नगर के ही समान बुहत-से शूरवीरों द्वारा सुरक्षित कर दिया गया है? 
सीमावर्ती गाँवों को भी अन्य गाँवों की भाँति सभी सुविधाएँ दी गई हैं? 

Download Article Pedia Android App


तुम स्त्रियों को सुरक्षा देकर संतुष्ट रखते हो न? 
तुम दण्डनीय अपराधियों के प्रति यमराज और पूजनीय पुरुषों के प्रति धर्मराज सा बर्ताव करते हो?

'लोकपाल सभाख्यान पर्व में नारद जी द्वारा पूछे गए प्रश्नों में से इन कुछ प्रश्नों को पढ़ कर ही पाठक स्वत: अनुमान लगा सकते हैं कि महर्षि ने युगों पहले ही कल्याणकारी गणतांत्रिक व्यवस्था को युधिष्ठिर के राज्य के रूप में मूर्त रूप प्रदान करने का प्रयास किया और युधिष्ठिर का राज्यकाल साक्षी भी है कि वह किसी भी रूप में रामराज्य से कम नहीं था। 
नारद जी के इन सिद्धांतों पर आएं तो हर राष्ट्र को सर्वप्रथम तो धन, अन्न व श्रम संपन्न होना चाहिए। इसके लिए राजा को सतत् प्रयास करने चाहिए। किसानों को ऋण, सिंचाई के लिए जल, बीज, खाद, यंत्र की व्यवस्था करनी चाहिए। व्यापार की वृद्धि के लिए राज्य में चोरों, डाकुओं, ठगों का भय समाप्त करना चाहिए। 

प्रशासनिक अधिकारियों व राजा को अपने सगे-संबंधियों पर पैनी नजर रखनी चाहिए कि कहीं वह राजकीय शक्तियों का प्रयोग अपने स्वार्थ के लिए तो नहीं कर रहे। 


आवश्यकता पडऩे पर व्यापारियों का आर्थिक पोषण भी राज्य की जिम्मेवारी है। देश को बाहरी खतरों से सुरक्षित करने के लिए शक्तिशाली सेना का गठन करना चाहिए, दुर्गों को मजबूत करना चाहिए, सीमावर्ती ग्रामों को सर्वसुविधा संपन्न करना चाहिए, ताकि यहां रह रहे लोग सुरक्षा पंक्ति के रूप में वहीं टिके रहें। देश के अंदर और बाहर गुप्तचरों का मजबूत जाल होना चाहिए। राज्य निराश्रित लोगों जैसे वृद्धों, बेसहारों, दिव्यांगों, परितक्याओं, विधवाओं के सम्मानपूर्वक जीवन की जिम्मेवारी राज्य को उठानी चाहिए। राजा को दुष्टों व अपराधियों के प्रति यमराज और सज्जनों के प्रति धर्मराज की जिम्मेवारी निभानी चाहिए। 

इस तरह हम पाएंगे कि गणतांत्रिक व्यवस्था चाहे 26 जनवरी, 1950 में हमारे देश में फलीभूत हुई, परंतु यह अतीत में भी हमारे समाज में विद्यमान रही है। आज इस गणतंत्र दिवस पर आओ, हम इसी प्रजातांत्रिक भावनाओं को और मजबूत कर, इनमें नए आयाम स्थापित करने का प्रण लें, ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी हम पर भी उसी भांति गौरव करे, जैसे हम आज अपने महान पूर्वजों पर करते हैं।



राकेश सैन
32 खण्डाला फार्मिंग कालोनी, वीपीओ लिदड़ां, जालंधर।
संपर्क : 77106-55605







क्या आपको यह लेख पसंद आया ? अगर हां ! तो ऐसे ही यूनिक कंटेंट अपनी वेबसाइट / ऐप या दूसरे प्लेटफॉर्म हेतु तैयार करने के लिए हमसे संपर्क करें !
** See, which Industries we are covering for Premium Content Solutions!

Web Title: Premium Hindi Content on...




Post a Comment

0 Comments