डॉ. लोहिया के संदर्भ में एक कहावत प्रसिद्ध है कि 'जब-जब लोहिया बोलता है, दिल्ली का तख्ता डोलता है'।
जी हां! डॉ. राम मनोहर लोहिया को उग्र-राजनीति के लिए जाना जाता है। कांग्रेस के समय में जब जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे तो उनके विचारों से असहमत होने पर लोहिया ने कई बार उनका विरोध किया, खासकर उनके 25 हजार रूपये प्रतिदिन खर्च करने को लेकर भी।
जब देश में कांग्रेस का बोलबाला था और विपक्ष में कोई नहीं था जो कांग्रेस के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर सके, तब लोहिया ने उस विपक्ष की भूमिका बखूबी निभाई। 1962 में जब जवाहरलाल नेहरू 'फूलपुर' से चुनाव लड़ रहे थे तब उस वक्त उनको टक्कर देने के लिए लोहिया ने उनके खिलाफ पर्चा दाखिल किया था।
वो यह भी जानते थे कि वह चुनाव नहीं जीत पाएंगे इसके बावजूद उन्होंने कहा था कि 'पहाड़ से लड़ने आया हूं पार नहीं पाऊंगा लेकिन एक सुराख भी कर पाया तो काफी है'। ऐसी थी जीवटता राम मनोहर लोहिया के अंदर।
राम मनोहर लोहिया के ऊपर 'महात्मा गांधी' का बहुत गहरा असर था। जब वह छोटे थे तभी से अपने पिता के साथ वो महात्मा गांधी से मिलने जाया करते थे। महात्मा गाँधी के विचारों से प्रेरित होने के बाद वो महात्मा गांधी के साथ आंदोलनों का हिस्सा बनने लगे। जब 1942 में महात्मा गांधी ने 'भारत छोड़ो आंदोलन' का ऐलान किया तब उन्होंने इस आंदोलन का हिस्सा बनाने का निर्णय किया और इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया भी।
इतना ही नहीं, इस दौरान जब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तब वो हजारीबाग जेल से भाग निकले। जेल से फरार होने के बाद भी वो अंडर ग्राउंड रह कर आंदोलन को दिशा निर्देश देते रहे। हालाँकि उन्हें जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया गया और 1 साल के बाद उनकी रिहाई हुई।
डॉ. लोहिया के विचार
डॉ. लोहिया का मानना था कि समाज के सभी वर्गों को समानता का अधिकार है। इसी समाजवाद को आधार बनाकर लोहिया ने अपनी राजनीतिक लड़ाई शुरू की। अपनी समाजवादी विचारधारा को मजबूत करने के लिए लोहिया हमेशा से कहा करते थे कि जब तक समाज के उच्च और निम्न वर्ग में 'बेटी और रोटी' का रिश्ता नहीं होगा, तब तक जातिवाद की खाई को समाप्त करना असंभव है।
लोहिया हमेशा से ही जातिवाद के विरोध में रहे और उन्होंने अपनी पार्टी 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' बनाई। तब पिछड़ी जाति के लोगों को खूब टिकट भी दिए गए ताकि वो समाज में आगे आ सकें। लोहिया महिला अधिकारों के हिमायती भी थे। इसके लिए वो हमेशा कहते थे कि औरतों को सीता और सती होने के बजाय द्रौपदी की तरह बनना चाहिए। औरतों को अपने अधिकारों के लिए मांग करनी चाहिए, अपने हक के बारे में बात करनी चाहिए और दूसरों से सवाल करने की सामर्थ्य रखनी चाहिए।
मातृ भाषा के प्रति समर्पित
डॉ. राम मनोहर लोहिया की शिक्षा के बारे में बात की जाए, तो उन्होंने बीएचयू से 12वीं तक पढ़ाई की। उसके बाद कोलकाता यूनिवर्सिटी से उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। इतना ही नहीं, लोहिया ने जर्मनी जा कर डॉक्टरेट भी हासिल की। कम ही लोग जानते होंगे कि लोहिया अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, बांग्ला और मराठी भाषा में पारंगत थे लेकिन लोगों के दिलों तक पहुंचने के लिए उन्होंने हमेशा हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया।
संबंधों को लेकर दृढ़
एक बार महात्मा गाँधी ने लोहिया जी को उनके सिगरेट पीने की आदत के लिए टोका तब लोहिया जी ने बापू को यह आश्वासन दिया कि वह इस बारे में सोच कर बताएंगे। इसके ठीक 3 महीने बाद वह बापू से मिले और उन्होंने बताया कि वो सिगरेट पीना छोड़ चुके हैं।
वहीं उनके रिलेशनशिप के बारे में शायद ही किसी को पता हो। डॉ. राम मनोहर लोहिया मीरांडा हाउस में प्रोफेसर 'रमा मित्रा' के साथ लिव इन रिलेशनशिप में जीवन व्यतीत करते थे। हालांकि उन्होंने इस बात को कभी छुपाने की कोशिश नहीं की और जब तक लोहिया जीवित रहे वह रमा जी के प्रति समर्पित थे।
मौत को लेकर विवाद
ज्ञात हो कि लोहिया की मौत हॉस्पिटल के लापरवाही के चलते मानी जाती है। तब प्रोस्टेट ग्लैंड्स काफी बढ़ गया था, जिसके इलाज के लिए उन्हें दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसी अस्पताल पर आरोप था कि डॉक्टरों ने सही तरीके से उनके रोग को नहीं पकड़ा और जिसके चलते उनकी मौत हो गई।
बाद में एक समिति नियुक्त करके इसकी जांच भी कराई गई लेकिन इस मामले को धीरे-धीरे दबा दिया गया। बता दें कि आगे चलकर इसी विलिंग्डन हॉस्पिटल का नाम 'राम मनोहर लोहिया' अस्पताल कर दिया गया।
डॉक्टरों की लापरवाही कहें या काल का चक्र कि मात्र 57 साल की उम्र में डॉ. राम मनोहर लोहिया इस दुनिया से विदा हो गए। वहीं उनके समाजवाद के विचार को मुलायम सिंह यादव, नितीश कुमार जैसे नेताओं ने आगे बढाया, हालाँकि लोहिया के सामान कोई दूसरा पैदा नहीं हुआ।
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Web Title: Ram Manohar Lohia Biography, Article In Hindi
जी हां! डॉ. राम मनोहर लोहिया को उग्र-राजनीति के लिए जाना जाता है। कांग्रेस के समय में जब जवाहर लाल नेहरू प्रधानमंत्री थे तो उनके विचारों से असहमत होने पर लोहिया ने कई बार उनका विरोध किया, खासकर उनके 25 हजार रूपये प्रतिदिन खर्च करने को लेकर भी।
जब देश में कांग्रेस का बोलबाला था और विपक्ष में कोई नहीं था जो कांग्रेस के खिलाफ आवाज़ बुलंद कर सके, तब लोहिया ने उस विपक्ष की भूमिका बखूबी निभाई। 1962 में जब जवाहरलाल नेहरू 'फूलपुर' से चुनाव लड़ रहे थे तब उस वक्त उनको टक्कर देने के लिए लोहिया ने उनके खिलाफ पर्चा दाखिल किया था।
Dr. Ram Manohar Lohia (Pic: indiatoday) |
वो यह भी जानते थे कि वह चुनाव नहीं जीत पाएंगे इसके बावजूद उन्होंने कहा था कि 'पहाड़ से लड़ने आया हूं पार नहीं पाऊंगा लेकिन एक सुराख भी कर पाया तो काफी है'। ऐसी थी जीवटता राम मनोहर लोहिया के अंदर।
राम मनोहर लोहिया के ऊपर 'महात्मा गांधी' का बहुत गहरा असर था। जब वह छोटे थे तभी से अपने पिता के साथ वो महात्मा गांधी से मिलने जाया करते थे। महात्मा गाँधी के विचारों से प्रेरित होने के बाद वो महात्मा गांधी के साथ आंदोलनों का हिस्सा बनने लगे। जब 1942 में महात्मा गांधी ने 'भारत छोड़ो आंदोलन' का ऐलान किया तब उन्होंने इस आंदोलन का हिस्सा बनाने का निर्णय किया और इसमें बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया भी।
इतना ही नहीं, इस दौरान जब उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया तब वो हजारीबाग जेल से भाग निकले। जेल से फरार होने के बाद भी वो अंडर ग्राउंड रह कर आंदोलन को दिशा निर्देश देते रहे। हालाँकि उन्हें जल्दी ही गिरफ्तार कर लिया गया और 1 साल के बाद उनकी रिहाई हुई।
डॉ. लोहिया के विचार
डॉ. लोहिया का मानना था कि समाज के सभी वर्गों को समानता का अधिकार है। इसी समाजवाद को आधार बनाकर लोहिया ने अपनी राजनीतिक लड़ाई शुरू की। अपनी समाजवादी विचारधारा को मजबूत करने के लिए लोहिया हमेशा से कहा करते थे कि जब तक समाज के उच्च और निम्न वर्ग में 'बेटी और रोटी' का रिश्ता नहीं होगा, तब तक जातिवाद की खाई को समाप्त करना असंभव है।
लोहिया हमेशा से ही जातिवाद के विरोध में रहे और उन्होंने अपनी पार्टी 'कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी' बनाई। तब पिछड़ी जाति के लोगों को खूब टिकट भी दिए गए ताकि वो समाज में आगे आ सकें। लोहिया महिला अधिकारों के हिमायती भी थे। इसके लिए वो हमेशा कहते थे कि औरतों को सीता और सती होने के बजाय द्रौपदी की तरह बनना चाहिए। औरतों को अपने अधिकारों के लिए मांग करनी चाहिए, अपने हक के बारे में बात करनी चाहिए और दूसरों से सवाल करने की सामर्थ्य रखनी चाहिए।
मातृ भाषा के प्रति समर्पित
डॉ. राम मनोहर लोहिया की शिक्षा के बारे में बात की जाए, तो उन्होंने बीएचयू से 12वीं तक पढ़ाई की। उसके बाद कोलकाता यूनिवर्सिटी से उन्होंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया। इतना ही नहीं, लोहिया ने जर्मनी जा कर डॉक्टरेट भी हासिल की। कम ही लोग जानते होंगे कि लोहिया अंग्रेजी, जर्मन, फ्रेंच, बांग्ला और मराठी भाषा में पारंगत थे लेकिन लोगों के दिलों तक पहुंचने के लिए उन्होंने हमेशा हिंदी भाषा का ही प्रयोग किया।
संबंधों को लेकर दृढ़
एक बार महात्मा गाँधी ने लोहिया जी को उनके सिगरेट पीने की आदत के लिए टोका तब लोहिया जी ने बापू को यह आश्वासन दिया कि वह इस बारे में सोच कर बताएंगे। इसके ठीक 3 महीने बाद वह बापू से मिले और उन्होंने बताया कि वो सिगरेट पीना छोड़ चुके हैं।
वहीं उनके रिलेशनशिप के बारे में शायद ही किसी को पता हो। डॉ. राम मनोहर लोहिया मीरांडा हाउस में प्रोफेसर 'रमा मित्रा' के साथ लिव इन रिलेशनशिप में जीवन व्यतीत करते थे। हालांकि उन्होंने इस बात को कभी छुपाने की कोशिश नहीं की और जब तक लोहिया जीवित रहे वह रमा जी के प्रति समर्पित थे।
मौत को लेकर विवाद
ज्ञात हो कि लोहिया की मौत हॉस्पिटल के लापरवाही के चलते मानी जाती है। तब प्रोस्टेट ग्लैंड्स काफी बढ़ गया था, जिसके इलाज के लिए उन्हें दिल्ली के विलिंग्डन अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसी अस्पताल पर आरोप था कि डॉक्टरों ने सही तरीके से उनके रोग को नहीं पकड़ा और जिसके चलते उनकी मौत हो गई।
बाद में एक समिति नियुक्त करके इसकी जांच भी कराई गई लेकिन इस मामले को धीरे-धीरे दबा दिया गया। बता दें कि आगे चलकर इसी विलिंग्डन हॉस्पिटल का नाम 'राम मनोहर लोहिया' अस्पताल कर दिया गया।
डॉक्टरों की लापरवाही कहें या काल का चक्र कि मात्र 57 साल की उम्र में डॉ. राम मनोहर लोहिया इस दुनिया से विदा हो गए। वहीं उनके समाजवाद के विचार को मुलायम सिंह यादव, नितीश कुमार जैसे नेताओं ने आगे बढाया, हालाँकि लोहिया के सामान कोई दूसरा पैदा नहीं हुआ।
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Web Title: Ram Manohar Lohia Biography, Article In Hindi
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