कृष्णदेव राय: दक्षिण भारत के अजेय महाराजा

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कृष्णदेव राय: दक्षिण भारत के अजेय महाराजा

भारतवर्ष को ऐसे ही वीरों का देश नहीं कहा जाता है!

यहां छत्रपति शिवाजी, बाजीराव, महाराणा प्रताप जैसे सैकड़ों वीर हुए हैं, जिन्होंने काल के कपाल पर अपनी वीरता अंकित की है। प्राचीन समय की बात करें तो चंद्रगुप्त विक्रमादित्य, स्कंद गुप्त, हर्षवर्धन और चित्र गुप्त मौर्य, पुष्यमित्र जैसे प्रतापी और वीर राजाओं की वीरता से यह धरती भरी पड़ी थी। इन्हीं में से एक राजा थे महाराजा कृष्णदेव राय, जिन्हें यह दक्षिण भारत के सर्वाधिक पावरफुल किंग्रास में शुमार किया जाता है।

इन्हें शक्तिशाली राज्य 'विजयनगर साम्राज्य' की पुनर्स्थापना के लिए भी जाना जाता है। विजयनगर राज्य की राजधानी हंपी-डंपी की वैभव और विशालता और भव्यता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि खंडहर हो चुके इस राज्य को यूनेस्को ने विश्व धरोहर घोषित किया हुआ है।

History Of Krishnadeva raya (Pic: tlm4all)

राजा कृष्णदेव राय का जन्म 16 फरवरी 1471 को कर्नाटक में हुआ था। इनके पिता का नाम 'तुलुव नरसा नायक' और माता का नाम 'नागला देवी' था। इनके पिता तुलुवा नरसा नायक को 'सालुव वंश' के अंतिम शासक 'इम्माडि नरसिंह' का संरक्षक नियुक्त किया गया था। चूंकि 'इम्माडि नरसिंह' की उम्र बेहद कम थी, जिसका फायदा उठाकर तुलुव नरसा नायक ने उन्हें कैद कर लिया और शासन की बागडोर अपने हाथों में ले लिया।
यह सन 1491 की बात है। उस समय विजय नगर में विद्रोह के स्वर उठने आरंभ हो चुके थे।

अपने शासन के दौरान नरसा नायक विद्रोहियों को दबाते रहे और 1503 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई। उनकी मृत्यु के बाद उनके बड़े बेटे वीर नरसिंह ने अपने पिता द्वारा कैद किये 'इम्माडि नरसिंह' की हत्या कर दी जो साम्राज्य का अधिकारी था। इसके बाद विजयनगर साम्राज्य पर अपना आधिपत्य स्थापित कर लिया। इतना ही नहीं, नरसिंह ने विजयनगर को 'नरसिंहा साम्राज्य' में परिवर्तित करने का प्रयास किया और लगभग बदल भी दिया।

हालाँकि वीर नरसिंह भी बहुत अधिक समय तक शासन नहीं कर पाए और अज्ञात बीमारी की वजह से 1503 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गयी। इसके बाद इनके छोटे भाई वीर कृष्णदेव राय 1510 में सिंहासन पर बैठे। शासन की बागडोर हाथों में आते ही कृष्ण देव राय ने सबसे पहले पुनः विजय नगर की स्थापना की और साथ ही अपनी सूझबूझ और कुटिलता से विजयनगर की सीमाओं को अरब सागर से लेकर बंगाल की खाड़ी तक फैलाया। मौजूदा समय में दक्षिण के राज्य तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल,आंध्रप्रदेश, गोवा और ओडिशा प्रदेश इसकी सीमा में आते हैं।

इनके शासन काल में कला और साहित्य को विशेष प्रोत्साहन मिला तो इनके राज्य की सम्पन्नता के चर्चे विदेशों तक फ़ैल गए।

इटली के यात्री निकोलो कोंटी ने इनके राज्य की सम्पन्नता के विषय में लिखा था कि भारत के सबसे शक्तिशाली राज्य विजयनगर के राजकोष में इतना सोना भरा है कि अधिकता होने पर इसे गढ्डों में भर दिया जाता है।

वहीं यहाँ के अमीर तथा गरीब सभी लोग सोने के आभूषण धारण करते हैं। इसके दरबार में 'अष्टदिग्गज' थे, जिन्होंने तेलगु साहित्य को राज्य में सींचा। इन्ही दिग्गजों में से एक थे 'तेनालीराम' जिनकी चर्चा इतिहास में मिलती है।

विजयनगर पर 21 सालों तक शासन के दौरान इन्होंने 14 लड़ाईयां लड़ी, जिनमें सभी में इन्हें विजय प्राप्ति हुई। उस समय के सबसे क्रूर और शक्तिशाली 'सुल्तान कुली कुतुब शाह जो कि गोलकुण्डा का शासक था, उसे भी राजा कृष्णदेव राय ने युद्ध में हराया तथा उसके साम्राज्य को अपने अधीन कर लिया।
कृष्णदेव राय के बारे में कहा जाता है कि वो जहां से भी गुजरते वहां के पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार करा देते।

इस महान और शक्तिशाली राजा ने 1529 में अंतिम साँस ली। इनके बाद दक्षिण में ऐसा कोई प्रतापी राजा नहीं हुआ।

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Web Title: History Of Krishnadeva raya Article In Hindi

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